नींव खुदाई बाप ने ,माँ ने फेंकी गार |
अब बेटों ने डाल दी आँगन में दीवार ||
रचना प्रवेश - दोहे रामनारायण 'हलधर '
दोहों की बात से शुरू आज दोहों के संकलन 'शिखरों के हकदार ' पर ही बात करते है |समकालीन दोहाकार श्री रामनारायण मीणा "हलधर "जी का प्रथम दोहा संकलन 'शिखरों के हकदार "बोधि प्रकाशन ,जयपुर से २०१२ में प्रकाशित हुआ | संकलन के दोहे पाठक के मन में गहरी पैठ बनाने में पूर्ण सक्षम है |सरल स्वभाव हलधर जी अपने भावुक मन की स्याही से दोहों को कलमबद्ध करते है तो लगता है जैसे गागर में सागर समा दिया |संकलन के सम्बन्ध में क्या कहते है लेखक ,पाठक ,समीक्षक ,मित्र और पत्रकार ...
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दोहे हिंदी और हिंदी परिवार की अन्य निकटवर्ती भाषाओँ में काव्याभिव्यक्ति के बहुत लोकप्रिय और सशक्त माध्यम रहे है |राजस्थानी भाषा में तो छंद ने अपनी लोकप्रियता के कारण लम्बे समय तक "छंदराज " होने का सम्मान पाया है |विद्द्वानो का मत है कि अपने लघु आकार ,सहज प्रवाह ,और त्वरित गति से -किन्तु सधे हुए शब्दों में सार्थक बात कह देने के कारण दोहा उत्तर अपभ्रंश काल से ही लोक के मन में ऐसा पैठा कि आज भी कई कहावतों को "दोहा रूप 'में ही कहा जाता है |इस बात को हम यों भी कह सकते है कि कुछ दोहों की अभिव्यक्ति इतनी सार्थक और सधी हुई रही की लोक उन दोहों को पूर्णत:या अंश रूप में कहावतों में इस्तेमाल करने लगा |
हमारे समय के दोहाकारों में रामनारायण 'हलधर 'की धार धार अभिव्यक्ति बहुधा चमत्कृत करती है -
नींव खुदाई बाप ने ,माँ ने फेंकी गार |
अब बेटों ने डाल दी आँगन में दीवार ||
प्रतिबंधो ने तान दी सीने पर बन्दुक |
अरमानों ने खोल ली ,सुधियों की संदूक ||
मिलने की जब आपसे ,टूट गई हर आस |
मुस्कानों ने ले लिया ,चहरे से संन्यास ||
जैसे दोहे उनके भावुक मन की बेकली को तो अभिव्यक्त करते ही है ,उनके सृजन ,चिंतन की विलक्षण पहचान के तौर पर सभी के सामने आते है |
रहीम या कबीर के समय से अब तक दुनिया की सभी नदियों के तटो को छूकर इतना पानी बह गया है कि पानी को सहेजना ,समय की सबसे बड़ी आवश्यकता बन गया है |इतनी बड़ी आवश्यकता कि दुनिया डरने लगी है कि कहीं अगले विश्व युद्ध का सबब पानी ही नं बन जाए |हम दुआ करते है की मानवता को ऐसे दुर्दिन कभी न देखनें पड़े |याद करे कवी रहीम ने सदियों पहले एक दोहे में ही कहा था --
रहिमन पानी राखिये ,बिन पानी सब सुन
पानी गए न ऊबरे -मोती ,मानस ,चुन ||
चिंता के इसी धरातल पर खड़े होकर संकलन के कवि ने कहा है -
सोच समझ कर आजकल ,नल की टोंटी खोल
जल की इक- इक बूंद है ,अमृत सी अनमोल |
कल सबको लड़ना पड़े ,अपनो से ही युद्ध |
शायद फिर भी ना मिले ,पानी हमको शुद्ध ||
चरण सगे माँ -बाप के , छूने में शरामाय |
नेताजी की जूतियाँ ,हंस -हंस बहुत उठाय ||
जैसे दोहे एक संवेदनशील रचनाकार के ह्रदय में कही बैठे ,एक असरकारक व्यंगकार को उजागर करते है |व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि बिना संवेदना व्यंग जन्मता ही नहीं है
"शिखरों के हक़दार " दोहा संकलन के लिए
कवि ,व्यंगकार ,उपन्यासकार ,कथाकार columnist श्री अतुल कनक जी के भाव
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परम मित्र श्री रामनयण जी 'हलधर ' साहिब की प्रस्तुत कृति मुझे बहुत ....बहुत अच्छी लगी ....इसे पढ़कर जो सुखद अनुभूति हुई उसे पूरी तरह शब्दबद्ध नहीं कर पाई..क्योंकि यह इतना आसन नहीं है | पुस्तक बहुत स्तरीय है | जितना कर पाई आप के समक्ष है ....प्लीज त्रुटियाँ जरुर बता दीजियेगा ताकि दुरुस्त कर सकूँ ... शुक्रिया ...
‘शिखरों के हक़दार ’ कृति : गागर में सागर
.‘शिखरों के हक़दार’ पढ़ने का सुअवसर मिला , एक अरसे बाद दोहा विधा की इतनी खूबसूरत कृति पढ़ी ,वाकई ये दोहे शिखरों के हक़दार हैं | एक - एक दोहा ‘गागर में सागर’ | यह पुस्तक बरबस ही रहीम , बिहारी की याद दिला रही है |
श्री रामनारायण जी ‘हलधर’ के कई –कई दोहे लोक की जुबान पर चढ़ चुके हैं , जो एक कृतिकार की लोकप्रियता और साधना को चिन्हित करते हैं |इसी के साथ - साथ विषयगत वैविध्य देखते ही बनता है | नूतनता और पारम्परिकता का अभूतपूर्व सम्मिश्रण यहाँ देखा जा सकता है | इस पुस्तक की सब से बड़ी विशेषता है , हलधर जी की मौलिक सोच, अंदाज़े – बयां , प्रतीकों की सुषमा , गीतात्मकता ... मिठास , लोक संस्कृति की अभिव्यक्ति ...सरलता , माधुर्य , सौन्दर्य ....आदि आदि |
हलधर जी ने जहाँ मौसम ,श्रृंगार , नारी मन , दाम्पत्य , प्रकृति - चित्रण , स्मृतियाँ ,रूप लावण्य को बहुत ही सूक्षमता के साथ अभिव्यक्त किया है |वहीँ आम आदमी की पीड़ा , संत्रास , अभाव, अश्रु , ग्रामीण जीवन , टूटते , रिश्तों की टीस और मानवीय संवेदानाओं को बखूबी छूकर एक नया मुहावरा प्रस्तुत किया है |वर्तमान परिवेश , मानवीय संबंधों की धड़कन इन दोहों में जीवंत हो उठी है | रामानारायण जी गहन चिंतन – मनन के सागर में डूबकर एक –एक मोती चुनकर लाये हैं |हर दोहा बेजोड़ है |इन के एक –एक दोहे पर बड़े –बड़े निबन्ध लिखे जा सकते हैं और कृति पर शोधकार्य हो सकते हैं |
अलंकर , बिम्ब ,गीति तत्व , शब्द सौन्दर्य ,शब्द शक्ति , व्यंजना , ध्वनि , अर्थात कला पक्ष को सुघड़ता और सौन्दर्य कृति में चार चाँद लगा रहे हैं | बहुत ही कशमकश में हूँ कि किस दोहे को संदर्भित करूँ किसे नहीं |.....इतने अच्छे दोहे कोई कैसे लिख सकता है भला |....ये ही सोचकर अचम्भित हूँ | इतना मौलिक चिंतन – प्रस्तुतीकरण , बात कहने का नायाब सलीका रामनारायण जी का ही हो सकता है जो काबिले – तारीफ है |. बतौर बानगी देखिये ...
‘ तुम कहते हो प्रेम की , यादें बड़ी ख़राब
क्यों रक्खे हैं आज तक , सूखे हुए गुलाब
अहसानों का सिलसिला इतना ना बढ़ जाये
तेरी नीयत पर मुझे , शक होने लग जाये
कहाँ छुपाऊँ आप को , कहाँ जताऊँ प्यार
इतना छोटा शहर है , इतने रिश्तेदार
मौसम की शैतानियाँ , छू न सके दहलीज
हर पौधे को बांधता , रहता हूँ ताबीज
लिखूं स्वयं के नाम के , साथ आप का नाम
लगता है पापा खड़े , मेरी उंगली थाम
और दिशाएं प्रीत की , मनवा बैठा भूल
तुम सूरज तो हम हुए , सूर्यमुखी के फूल
हर दोहा अपने आप में नाविक का तीर है | हलधर जी के लोक भी बहुत प्रचलित हैं ,ख्याति अर्जित कर रहे हैं | बड़े –बड़े विद्वानों ने इन दोहों की भूरि - भूरि सराहना की हैं |श्रोता इन को सुनकर मन्त्र मुग्ध हो जाते हैं |पाठक निहाल हो जाते हैं |सच कहूँ तो इन के दोहों में चमत्कारिक असर है | हलधर जी को दोहों का शहजादा कहा जा सकता है | यह अत्युक्ति नहीं अपितु यथार्थ है | इन के उत्तरोत्तर उन्मेष के लिए अनंत शुभकामनाएं ..., साधुवाद | दोहों के गगन में ध्रुव की भाति दैदीप्यमान रहें .... इन्ही शुभाशंषाओं के साथ
कृष्णा कुमारी (कवियत्री )
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सतसैया के दोहरे,ज्यों नाविक के तीर
देखन में छोटे लगें
घाव करें गंभीर।
कविराज बिहारी के विषय में कही गई यह उक्ति हलधर जी के लिए बिलकुल सटीक है।दो पंक्तियों का दोहा छंद जो मात्राओं के अनुशासन में बंधा है-हलधर जी के मन की भावनाओं को विस्तार देने में कहीं सीमा या बाधा नहीं बना है।सम्वेदनशील भावुक मन और भाषा की गहरी पकड़ हलधर जी के दोहों को परिपूर्ण भावाभिव्यक्ति देती है।उनके दोहे कथा की अविव्यक्ति नहीं करते किन्तु व्यथा की अभिव्यक्ति बखूबी करते हैं।
उनकी सतत रचनाधर्मिता का उपहार दोहा संग्रह"शिखरों के हकदार" पढ़ा। सिर्फ पढ़ा कहना उचित नहीं होगा क्योंकि प्रत्येक दोहा पढ़ने के पश्चात विचारोत्तेजक और प्रयोजनपूर्ण लगा। - कुछ यादों के पिटारे खुल गए, कहीं व्यथा का समानीकरण हो गया और कहीं स्थितियों पर क्रोध आया।कुल मिलाकर पाठक को सोचने पर विवश कर देते हैं हलधर जी के दोहे।
कविता संसार में वर्गीकरण बेमानी है।सब कुछ संलग्न है, मिला हुआ है।हलधर जी का भावसंसार भी ऐसा ही है।भावनाओं की विविधता इस संग्रह में खूब उजागर हुई है।कहीं कवि का भावुक मन
तुम आए बजने लगे मन में लाख सितार,
धड़कन हो गई दादरा,नैन हुए मल्हार।
और
तुम आए गाने लगी,पायल की झनकार
रोम-रोम संतूर सा मन वीणा के तार।
जैसे दोहे रचता है।और कहीं
नीवें खोदी बाप ने माँ ने फेंकी गार,
अब बेटों ने डाल दी,आँगन में दीवार।
दादाजी के वास्ते घर में सब सामान,
खाने को फटकार है ,पीने को अपमान।
जैसे दोहों में पीड़ा को सांझी करता है
कहीं प्रतीकों के माध्यम से अपने गांव की सैर करा लाते हैं, जैसे
नवल बनी सी ग्रीष्म ऋतु, फूल फूल सिंगार,
गुलमोहर की ओढ़नी,अमलतास के हार
नेताओं की वादाखिलाफी हो या सूदखोरों की निर्ममता,रिश्तों का उथलापन हो या माता-पिता का निस्वार्थ प्रेम,शृंगार की गुनगुनाहट हो या मौसम के मस्ताने अंदाज सभी मिजाज के दोहे इस संकलन में पढ़ने को मिले हैं।जीवन के हर रंग,हर पहलू को हलधर जी ने क्या खूब उकेरा है।यही कहूँगी कि फूलों से दोहे और उपवन सा संकलन।बहुत खूब!!!!
स्मृति शर्मा ,कोटा
(सुधि पाठक )
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कुछ प्रमुख पत्रिकाओं में
अब बेटों ने डाल दी आँगन में दीवार ||
रचना प्रवेश - दोहे रामनारायण 'हलधर '
दोहों की बात से शुरू आज दोहों के संकलन 'शिखरों के हकदार ' पर ही बात करते है |समकालीन दोहाकार श्री रामनारायण मीणा "हलधर "जी का प्रथम दोहा संकलन 'शिखरों के हकदार "बोधि प्रकाशन ,जयपुर से २०१२ में प्रकाशित हुआ | संकलन के दोहे पाठक के मन में गहरी पैठ बनाने में पूर्ण सक्षम है |सरल स्वभाव हलधर जी अपने भावुक मन की स्याही से दोहों को कलमबद्ध करते है तो लगता है जैसे गागर में सागर समा दिया |संकलन के सम्बन्ध में क्या कहते है लेखक ,पाठक ,समीक्षक ,मित्र और पत्रकार ...
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परिचय
नाम रामनारायण ‘हलधर’
तुरन्त सम्पर्क (0) 94133-51749, 0744-2327327
जन्म 1 अपै्रल 1970
शिक्षा स्नातकोत्तर (हिन्दी साहित्य)
सम्प्रति आकाशवाणी कोटा में वरिष्ठ उदघोषक
निवास व पता डी-27, रोड़ नम्बर-1, कृष्णा नगर
पुलिस लाइन, कोटा - 324001
पुरस्कार-सम्मान-
1. डॉ0 अमबेडकर फैलोशिप ( भारतीय दलित साहित्य अकादमी नई दिल्ली
2. साहित्य श्री सम्मान 2009 (श्री भारतेन्दु समिति कोटा)
3. डॉ0 रतनलाल शर्मा स्मृति पुरस्कार, कोटा
4.सृजन साहित्य सम्मान .२०१३
लेखन विधाऐं- दोहा, गजल, गीत (हिन्दी-राज.) मुक्तक,चौपाई,
मुक्त छंद, हास्य व्यंग्य लेख एंव रेडियो
साक्षात्कार।
प्रकाशन- चर्चित दोहा संग्रह.शिखरों के हक़दारए प्रकाशित
समकालीन भारतीय साहित्य एदैनिक जागरण (पुर्ननवा - सप्तरंग), सण्डे नई दुनिया (दिल्ली), सरिता, पां´्चजन्य दैनिक नई दुनिया (इंदौर), दैनिक भास्कर (मधुरिमा, रसरंग), राजस्थान पत्रिका (परिवार), डेली न्यूज (पत्रिका प्रकाशन जयपुर), मधुमति (राज. सा. अका.उदयपुर), हिमप्रस्थ (हिमाचल साहित्य अका.), व्यंग्य यात्रा, सुमन-सौरम, पंजाब सौरभ आदि पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन।
प्रमुख रेडियो साक्षात्कार- डॉ0 ज्ञान चतुर्वेदी, श्री प्रेम जनमेजय, विष्णु नागर, डॉ0 बालेन्दु शेखर तिवारी (सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार) डॉ0 लीलाधर जगूड़ी, निदा फाजली, सईद कादरी, (सुप्रसिद्ध फिल्मी गीतकार) वेदव्रत वाजपेयी, बशीर बद्र, बशीर अहमद मयूख, डॉ. दया कृष्ण विजय।
तुरन्त सम्पर्क (0) 94133-51749, 0744-2327327
जन्म 1 अपै्रल 1970
शिक्षा स्नातकोत्तर (हिन्दी साहित्य)
सम्प्रति आकाशवाणी कोटा में वरिष्ठ उदघोषक
निवास व पता डी-27, रोड़ नम्बर-1, कृष्णा नगर
पुलिस लाइन, कोटा - 324001
पुरस्कार-सम्मान-
1. डॉ0 अमबेडकर फैलोशिप ( भारतीय दलित साहित्य अकादमी नई दिल्ली
2. साहित्य श्री सम्मान 2009 (श्री भारतेन्दु समिति कोटा)
3. डॉ0 रतनलाल शर्मा स्मृति पुरस्कार, कोटा
4.सृजन साहित्य सम्मान .२०१३
लेखन विधाऐं- दोहा, गजल, गीत (हिन्दी-राज.) मुक्तक,चौपाई,
मुक्त छंद, हास्य व्यंग्य लेख एंव रेडियो
साक्षात्कार।
प्रकाशन- चर्चित दोहा संग्रह.शिखरों के हक़दारए प्रकाशित
समकालीन भारतीय साहित्य एदैनिक जागरण (पुर्ननवा - सप्तरंग), सण्डे नई दुनिया (दिल्ली), सरिता, पां´्चजन्य दैनिक नई दुनिया (इंदौर), दैनिक भास्कर (मधुरिमा, रसरंग), राजस्थान पत्रिका (परिवार), डेली न्यूज (पत्रिका प्रकाशन जयपुर), मधुमति (राज. सा. अका.उदयपुर), हिमप्रस्थ (हिमाचल साहित्य अका.), व्यंग्य यात्रा, सुमन-सौरम, पंजाब सौरभ आदि पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन।
प्रमुख रेडियो साक्षात्कार- डॉ0 ज्ञान चतुर्वेदी, श्री प्रेम जनमेजय, विष्णु नागर, डॉ0 बालेन्दु शेखर तिवारी (सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार) डॉ0 लीलाधर जगूड़ी, निदा फाजली, सईद कादरी, (सुप्रसिद्ध फिल्मी गीतकार) वेदव्रत वाजपेयी, बशीर बद्र, बशीर अहमद मयूख, डॉ. दया कृष्ण विजय।
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दोहे हिंदी और हिंदी परिवार की अन्य निकटवर्ती भाषाओँ में काव्याभिव्यक्ति के बहुत लोकप्रिय और सशक्त माध्यम रहे है |राजस्थानी भाषा में तो छंद ने अपनी लोकप्रियता के कारण लम्बे समय तक "छंदराज " होने का सम्मान पाया है |विद्द्वानो का मत है कि अपने लघु आकार ,सहज प्रवाह ,और त्वरित गति से -किन्तु सधे हुए शब्दों में सार्थक बात कह देने के कारण दोहा उत्तर अपभ्रंश काल से ही लोक के मन में ऐसा पैठा कि आज भी कई कहावतों को "दोहा रूप 'में ही कहा जाता है |इस बात को हम यों भी कह सकते है कि कुछ दोहों की अभिव्यक्ति इतनी सार्थक और सधी हुई रही की लोक उन दोहों को पूर्णत:या अंश रूप में कहावतों में इस्तेमाल करने लगा |
हमारे समय के दोहाकारों में रामनारायण 'हलधर 'की धार धार अभिव्यक्ति बहुधा चमत्कृत करती है -
नींव खुदाई बाप ने ,माँ ने फेंकी गार |
अब बेटों ने डाल दी आँगन में दीवार ||
प्रतिबंधो ने तान दी सीने पर बन्दुक |
अरमानों ने खोल ली ,सुधियों की संदूक ||
मिलने की जब आपसे ,टूट गई हर आस |
मुस्कानों ने ले लिया ,चहरे से संन्यास ||
जैसे दोहे उनके भावुक मन की बेकली को तो अभिव्यक्त करते ही है ,उनके सृजन ,चिंतन की विलक्षण पहचान के तौर पर सभी के सामने आते है |
रहीम या कबीर के समय से अब तक दुनिया की सभी नदियों के तटो को छूकर इतना पानी बह गया है कि पानी को सहेजना ,समय की सबसे बड़ी आवश्यकता बन गया है |इतनी बड़ी आवश्यकता कि दुनिया डरने लगी है कि कहीं अगले विश्व युद्ध का सबब पानी ही नं बन जाए |हम दुआ करते है की मानवता को ऐसे दुर्दिन कभी न देखनें पड़े |याद करे कवी रहीम ने सदियों पहले एक दोहे में ही कहा था --
रहिमन पानी राखिये ,बिन पानी सब सुन
पानी गए न ऊबरे -मोती ,मानस ,चुन ||
चिंता के इसी धरातल पर खड़े होकर संकलन के कवि ने कहा है -
सोच समझ कर आजकल ,नल की टोंटी खोल
जल की इक- इक बूंद है ,अमृत सी अनमोल |
कल सबको लड़ना पड़े ,अपनो से ही युद्ध |
शायद फिर भी ना मिले ,पानी हमको शुद्ध ||
चरण सगे माँ -बाप के , छूने में शरामाय |
नेताजी की जूतियाँ ,हंस -हंस बहुत उठाय ||
जैसे दोहे एक संवेदनशील रचनाकार के ह्रदय में कही बैठे ,एक असरकारक व्यंगकार को उजागर करते है |व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि बिना संवेदना व्यंग जन्मता ही नहीं है
"शिखरों के हक़दार " दोहा संकलन के लिए
कवि ,व्यंगकार ,उपन्यासकार ,कथाकार columnist श्री अतुल कनक जी के भाव
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परम मित्र श्री रामनयण जी 'हलधर ' साहिब की प्रस्तुत कृति मुझे बहुत ....बहुत अच्छी लगी ....इसे पढ़कर जो सुखद अनुभूति हुई उसे पूरी तरह शब्दबद्ध नहीं कर पाई..क्योंकि यह इतना आसन नहीं है | पुस्तक बहुत स्तरीय है | जितना कर पाई आप के समक्ष है ....प्लीज त्रुटियाँ जरुर बता दीजियेगा ताकि दुरुस्त कर सकूँ ... शुक्रिया ...
‘शिखरों के हक़दार ’ कृति : गागर में सागर
.‘शिखरों के हक़दार’ पढ़ने का सुअवसर मिला , एक अरसे बाद दोहा विधा की इतनी खूबसूरत कृति पढ़ी ,वाकई ये दोहे शिखरों के हक़दार हैं | एक - एक दोहा ‘गागर में सागर’ | यह पुस्तक बरबस ही रहीम , बिहारी की याद दिला रही है |
श्री रामनारायण जी ‘हलधर’ के कई –कई दोहे लोक की जुबान पर चढ़ चुके हैं , जो एक कृतिकार की लोकप्रियता और साधना को चिन्हित करते हैं |इसी के साथ - साथ विषयगत वैविध्य देखते ही बनता है | नूतनता और पारम्परिकता का अभूतपूर्व सम्मिश्रण यहाँ देखा जा सकता है | इस पुस्तक की सब से बड़ी विशेषता है , हलधर जी की मौलिक सोच, अंदाज़े – बयां , प्रतीकों की सुषमा , गीतात्मकता ... मिठास , लोक संस्कृति की अभिव्यक्ति ...सरलता , माधुर्य , सौन्दर्य ....आदि आदि |
हलधर जी ने जहाँ मौसम ,श्रृंगार , नारी मन , दाम्पत्य , प्रकृति - चित्रण , स्मृतियाँ ,रूप लावण्य को बहुत ही सूक्षमता के साथ अभिव्यक्त किया है |वहीँ आम आदमी की पीड़ा , संत्रास , अभाव, अश्रु , ग्रामीण जीवन , टूटते , रिश्तों की टीस और मानवीय संवेदानाओं को बखूबी छूकर एक नया मुहावरा प्रस्तुत किया है |वर्तमान परिवेश , मानवीय संबंधों की धड़कन इन दोहों में जीवंत हो उठी है | रामानारायण जी गहन चिंतन – मनन के सागर में डूबकर एक –एक मोती चुनकर लाये हैं |हर दोहा बेजोड़ है |इन के एक –एक दोहे पर बड़े –बड़े निबन्ध लिखे जा सकते हैं और कृति पर शोधकार्य हो सकते हैं |
अलंकर , बिम्ब ,गीति तत्व , शब्द सौन्दर्य ,शब्द शक्ति , व्यंजना , ध्वनि , अर्थात कला पक्ष को सुघड़ता और सौन्दर्य कृति में चार चाँद लगा रहे हैं | बहुत ही कशमकश में हूँ कि किस दोहे को संदर्भित करूँ किसे नहीं |.....इतने अच्छे दोहे कोई कैसे लिख सकता है भला |....ये ही सोचकर अचम्भित हूँ | इतना मौलिक चिंतन – प्रस्तुतीकरण , बात कहने का नायाब सलीका रामनारायण जी का ही हो सकता है जो काबिले – तारीफ है |. बतौर बानगी देखिये ...
‘ तुम कहते हो प्रेम की , यादें बड़ी ख़राब
क्यों रक्खे हैं आज तक , सूखे हुए गुलाब
अहसानों का सिलसिला इतना ना बढ़ जाये
तेरी नीयत पर मुझे , शक होने लग जाये
कहाँ छुपाऊँ आप को , कहाँ जताऊँ प्यार
इतना छोटा शहर है , इतने रिश्तेदार
मौसम की शैतानियाँ , छू न सके दहलीज
हर पौधे को बांधता , रहता हूँ ताबीज
लिखूं स्वयं के नाम के , साथ आप का नाम
लगता है पापा खड़े , मेरी उंगली थाम
और दिशाएं प्रीत की , मनवा बैठा भूल
तुम सूरज तो हम हुए , सूर्यमुखी के फूल
हर दोहा अपने आप में नाविक का तीर है | हलधर जी के लोक भी बहुत प्रचलित हैं ,ख्याति अर्जित कर रहे हैं | बड़े –बड़े विद्वानों ने इन दोहों की भूरि - भूरि सराहना की हैं |श्रोता इन को सुनकर मन्त्र मुग्ध हो जाते हैं |पाठक निहाल हो जाते हैं |सच कहूँ तो इन के दोहों में चमत्कारिक असर है | हलधर जी को दोहों का शहजादा कहा जा सकता है | यह अत्युक्ति नहीं अपितु यथार्थ है | इन के उत्तरोत्तर उन्मेष के लिए अनंत शुभकामनाएं ..., साधुवाद | दोहों के गगन में ध्रुव की भाति दैदीप्यमान रहें .... इन्ही शुभाशंषाओं के साथ
कृष्णा कुमारी (कवियत्री )
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सतसैया के दोहरे,ज्यों नाविक के तीर
देखन में छोटे लगें
घाव करें गंभीर।
कविराज बिहारी के विषय में कही गई यह उक्ति हलधर जी के लिए बिलकुल सटीक है।दो पंक्तियों का दोहा छंद जो मात्राओं के अनुशासन में बंधा है-हलधर जी के मन की भावनाओं को विस्तार देने में कहीं सीमा या बाधा नहीं बना है।सम्वेदनशील भावुक मन और भाषा की गहरी पकड़ हलधर जी के दोहों को परिपूर्ण भावाभिव्यक्ति देती है।उनके दोहे कथा की अविव्यक्ति नहीं करते किन्तु व्यथा की अभिव्यक्ति बखूबी करते हैं।
उनकी सतत रचनाधर्मिता का उपहार दोहा संग्रह"शिखरों के हकदार" पढ़ा। सिर्फ पढ़ा कहना उचित नहीं होगा क्योंकि प्रत्येक दोहा पढ़ने के पश्चात विचारोत्तेजक और प्रयोजनपूर्ण लगा। - कुछ यादों के पिटारे खुल गए, कहीं व्यथा का समानीकरण हो गया और कहीं स्थितियों पर क्रोध आया।कुल मिलाकर पाठक को सोचने पर विवश कर देते हैं हलधर जी के दोहे।
कविता संसार में वर्गीकरण बेमानी है।सब कुछ संलग्न है, मिला हुआ है।हलधर जी का भावसंसार भी ऐसा ही है।भावनाओं की विविधता इस संग्रह में खूब उजागर हुई है।कहीं कवि का भावुक मन
तुम आए बजने लगे मन में लाख सितार,
धड़कन हो गई दादरा,नैन हुए मल्हार।
और
तुम आए गाने लगी,पायल की झनकार
रोम-रोम संतूर सा मन वीणा के तार।
जैसे दोहे रचता है।और कहीं
नीवें खोदी बाप ने माँ ने फेंकी गार,
अब बेटों ने डाल दी,आँगन में दीवार।
दादाजी के वास्ते घर में सब सामान,
खाने को फटकार है ,पीने को अपमान।
जैसे दोहों में पीड़ा को सांझी करता है
कहीं प्रतीकों के माध्यम से अपने गांव की सैर करा लाते हैं, जैसे
नवल बनी सी ग्रीष्म ऋतु, फूल फूल सिंगार,
गुलमोहर की ओढ़नी,अमलतास के हार
नेताओं की वादाखिलाफी हो या सूदखोरों की निर्ममता,रिश्तों का उथलापन हो या माता-पिता का निस्वार्थ प्रेम,शृंगार की गुनगुनाहट हो या मौसम के मस्ताने अंदाज सभी मिजाज के दोहे इस संकलन में पढ़ने को मिले हैं।जीवन के हर रंग,हर पहलू को हलधर जी ने क्या खूब उकेरा है।यही कहूँगी कि फूलों से दोहे और उपवन सा संकलन।बहुत खूब!!!!
स्मृति शर्मा ,कोटा
(सुधि पाठक )
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कुछ प्रमुख पत्रिकाओं में
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