Friday, July 1, 2016


ब्रज श्रीवास्तव जी  की कवितायें गहन संवेदना की परिचायक है |जीवन की प्रवाहमान धारा के बीच वो देखते है एक अच्छी खबर ,की बुरी खबर दरवाजे तक पहुचने में नाकाम रही  |और आशा का दामन थामे रहते है |
जीवन के परिद्रश्य को बखूबी  परखते है अपने अनुभव के चश्मे से |
कभी कभी प्राकृतिक आपदाओ से आहत होकर ईश्वर भी उनके सवालों के दायरे में आ जाते है |भाषा और जज्बात आईने की तरह आपसे रूबरू होते है जब उनकी कविता में भीख न माँगने की सीख दी जाती है |

उत्कृष्ठ सृजन के लिए कवि  को शुभकामनाये 
======================================
परिचय
ब्रज श्रीवास्तव
जन्म तिथि –5.9.1966
दो कविता संग्रह ..’तमाम गुमी हुई चीज़ें’ और ‘घर के भीतर घर’ प्रकाशित .
पता ..233 हरिपुरा विदिशा पिन-४६४००१ 
मोब.-9425034312.





अच्छी ख़बर

 अच्छी ख़बर
अभी बस यही है
कि दरवाजा तोड़कर आने में
नाकाम हो रही है
बुरी ख़बर.


चश्मा.
प्यार बहुत  कम दिखाई दे रहा है
नज़र का चश्मा पहन कर निकलता हूँ
कोलाहल दिखाई देने लगा,
नहीं दिखाई दी कहीं भी भावनाएं
शब्दों के रुमाल से चश्मे को साफ करके देखा तो
बस विज्ञापन  ही दिखाई  दिए भावों के ,
कोई आँखें तरेरता है,
कोई चीख रहा है,
कोई हंस रहा है शरारत से
कोई लिये है हाथ में पत्थर और                                                     फेकना  चाहता है मेरे चश्मे पर.
कोई धोखे से खंरोंचें कर देता है
ऐनक के कांच पर

मैं लेंस बदल कर                                  
एक बार फिर निकलता हूँ
मैं देखता हूँ
वहां  पहले से  कई लोग,
अरसे से खड़े हैं
सुहाना द्रश्य देखने के लिये   ..
 ....

        

वाह रे ईश्वर

जो मर गए केदारनाथ में
आखिर लम्हों में भी
मानते रहे
तुम्हे ही महान

जो बच गए
वे भी ऋणी रहे तुम्हारे ही
वाह रे ईश्वर
भक्त बनाना तो कोई तुमसे  सीखे ..


मेरी दिनचर्या में

कोई उडान शामिल होने को है
मेरी  दिनचर्या में.
अपने हिस्से के रोजाना को
मैंने देखा दूर खड़े होकर
इसमें में जितना मौजूद था
उससे ज़्यादा मौज़ूद हुई व्यवस्था

इसमें शरीक हुए कुछ बच्चे
इसमें शरीक हुआ बाज़ार
इसमें महगाई,बजट,भूमंडल,शरीक हुए
ख़बरों के जरिये
आतंकवाद,हत्यारे और छिटपुट आन्दोलन हुए
प्रेमपंक्ति में खड़ा रहा संकोच के साथ
मेरी दिनचर्या में शामिल होने के लिये...


भीख मत मांगना यार
    
मेरिज गार्डन के चौकीदार बन जाओ
मस्त खाना भी खाओ,

वेटर बन जाओ
बारात में गमले वाले बनने में भी
खूब फायदा है,

होटल पर
कप प्लेट धोने का भी बढ़िया काम है,

भीख मत मांगना यार
इससे अच्छा तो
शनीचर को शनि का डोलचा घुमाओ
और दो ढाई सौ कमाओ,

एक गरीब बच्चा
दुसरे गरीब बच्चे को
ऐसा मशवरा दे रहा है,
अभी भी यह हो रहा है बच्चों की दुनिया में***



धोखा 

जैसे की हम आए दिन सुनते रहते हैं
फलां ने फलां को
प्रेम में धोखा दिया
और एक तबाह हो गया कोई .

रे ईश्वर .....
तुमने भी तबाह कर दिया वहां
अपने प्रेमियों और भक्तों को
तुमने भी भक्ति के खेल में बड़ा
धोखा दिया

कम से कम इतना रोना तो रो लेने दो हमें
कि तुमने ही बुलाकर वहां 
एक बड़ा धोखा दिया हमें.
                
      
 उसके हिस्से में

उसके बाजुओं की तरह मेरे बाजू मजबूत नहीं हैं
उसके चेहरे की तरह नहीं चमक रहा मेरा चेहरा पसीने से
उसकी नींद की तरह नहीं मेरी नींद

उसके पेशे से मुकाबला  हो ही नहीं सकता मेरे किताबी काम का
उसके कंधों की तरह मेरे कंधों ने नहीं उठाया दूसरों के लिये वज़न                                                                                                                                                                                               उसके हिस्से में आएगा  तामीर का जैसा श्रेय
मैं कुछ भी करूँ
मेरे हिस्से में वैसा श्रेय कभी ना आएगा.
ये और बात है कि
इसका ज़िक्र नहीं किया जायेगा,

===================================

ब्रज श्रीवास्तव जी की कविताओं के विषय में श्री सुदिन श्रीवास्तव जी   लिखते है ... 

जो विषय और जो बातें सबके ज़ेहन में होते हुये भी कविताओं से बचे रहे जाते हैं वही विषय ब्रज भाई की कविता के केंद्र मे होते हैं । ब्रज उन्हें अपनी सरल भावपूर्ण अभिव्यक्ति के विशिष्टता प्रदान करते हैं। ब्रज यदि मानवीय संवेदनाओं में आते ह्रास से दुखी और चिंतित हैं तो वे ईश्वरीय सत्ता से भी सवाल करने से नहीं चूकते । ब्रज की कवितायें अपने कहने की सहजता के कारण उन्हीं अर्थों में पाठकों तक अपनी पहुँच बनाती हैं जिन अर्थों में वह लिखी गयी हैं । यही विशेषतायें उन्हें अपने समकालीन कवियों के बीच ऐक महत्वपूर्ण कवि के रूप में रेखांकित करती है ।               अभिव्यक्ति से विशिष्टता प्रदान करते हैं|                                                                                                                                                                          



 साहित्य सम्मेलन,"साहित्य की बात" 17-18 september 2022 साकिबा  साकीबा रचना धर्मिता का जन मंच है -लीलाधर मंडलोई। यह कहा श्री लीलाधर...

पिछले पन्ने