Tuesday, February 23, 2016




◻  उसे दूसरी दुनिया में भेज दिया गया है..।
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 📝 संध्या कुलकर्णी
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पी टी करते हुये तन्मय को अक्सर अपने सर में कुछ बहता हुआ महसूस  होता  है ।पी टी मिस अमिता जब वन टू  थ्री फोर बोलतीं तो उसे लगता ,जैसे सर से कुछ आवाज़ें आ रही हैं ।इसे वो धूप में बहुत देर से खडा होने के कारण होना ही समझता है ।फोर बोलने से पहले ही विश्राम की मुद्रा में आ जाता है ।हमेशा की तरह अमिता मिस चिलला पड़ती है  ..."मेहरबानी करके अपनी-अपनी पोजीशन ठीक रखिये आप लोग "बाज़ू की लाइन में खड़ा मनुहार बड़ बड़ा उठता है "इन पर कोइ पनिशमेंट नहीं है हिंदी बोलने पर ....अगर हमारे मुँह से निकल जाए तो जान ही ले लेते हैं ...हुंह !!"
जानता है तन्मय ,आज मनुहार को हिंदी में बात करने पर पनिशमेंट मिली है गले में एक मोटे गत्ते पर लिख कर टांग दिया है "आई विल नॉट स्पीक इन हिंदी"।
तन्मय को लगता है ये सज़ा भी ज़्यादा बड़ी नहीं है, वरना लिजी मिस तो फाइव हंड्रेड टाइम्स यही वाक्य लिखने की सजा देती हैं,रो दिया था विजय ये कहते हुए .......।
 पी टी हो चुकी है ,सब लाइन से क्लास में जा रहे हैं ,पीछे से राहुल बार-बार टिहुंका मारता है ,वो चिढ जाता है "अबे चुप कर यार "।लिजी मिस दो कदम पीछे चल रही थीं  ,कह उठीं "अगेन हिंदी ...!! तन्मय ...!!" ओह सजा सुना ही दी लिज़ी मिस ने !! अब फाइव हंड्रेड टाइम्स लिखना होगा तन्मय को भी "आई विल नॉट स्पीक इन हिंदी "उसे मतली सी हो आती है वो मुश्किल से नियंत्रित करता है ।उसे अमिता मिस की बड़ी होती हुई आँखें याद आ जाती हैं ,वो डर सा जाता है ।सायास आँखें खोल देखता है ,वो क्लास में है दूर -दूर तक अमीता मिस नहीं है ये सिर्फ डर है उसका .....।   "अरे , ये क्या लिख रहे हो ?होम वर्क ? ये कैसा होम वर्क है तनु ? " "माँ ,मैंने हिंदी में बात की थी न क्लास में तो उसका पनिशमेंट है "लाइनें गिन ली थीं उसने एक पेज पर दस लाइन्स है,पचास पेज लिखना होंगे उसे तब हो पाएंगे पांच सौ ।"बाप रे ...!!पांच सौ टाइम्स ...ये तुम्हारा स्कूल है या पागलखाना ?बात करना होगी तुम्हारी टीचर से "।"ना माँ कुछ बात नहीं करना वरना  स्कूल में सब मुंझसे नाराज़ हो जायेंगे ,प्लीज़ ...
 माँ चुप हो जाती हैं "तुम जानो ,पर बात तो करना ही होगी ये क्या बात हुई भला ...?अपनी भाषा में बोलने में भला क्या पनिशमेंट ?
  माँ को बताया नही है उसने ,माँ नाराज़ होती हैं न स्कूल में आये दिन ऐसी सज़ाएं मिलती रहती हैं ,कल संदीप दो अलग रंगों की जुराबें पहन आया था गलती से तो उसे जुराबें उतरवा कर नंगे पाँव धूप में खड़ा किया था दो घंटे तक ,तभी से ध्यान से जुराबें पहनता है तन्मय ।
तन्मय बैटिंग कर रहा है ....सर में एक बहाव सा महसूस करता है वो ,पर फिर भी बॉल को घुमा कर मार देता है ....सामने से आते सौरभ ने उचक कर कैच कर लिया है । सौरभ बाज़ू वाले अपार्टमेंट में रहता है कॉलेज में पढता है ।"अरे ,आपने क्यों कैच लिया "?झुंझला जाता है तन्मय ।"हटो तुम लोग अब हम खेलेंगे यहाँ
"बस छ सात बॉल हैं उसके बाद तुम लोग खेल लेना"
"अच्छा ,दादागिरी करेगा तू ?हटता है कि,नहीं "?
"नहीं हटूंगा ,क्या कर लोगे?
"अच्छा!!देखते हैं बेटा तुझे बहुत गर्मी चढी है ?"
 कहता हुआ सौरभ बाहर चला जाता है।
 बैट तन्मय के हाथ में है विकेट्स मोनू ने उठा रखी हैं वो लोग ग्राउंड से बाहर जा रहे थे ,सौरभ के हाथ में हॉकी स्टिक है ,और वो अपने चार पांच दोस्तों के साथ सामने खड़ा है ...तन्मय सुन्न हो चला है ,सर पर ,पीठ पर ,हाथों में जांघ पर चोट महसूस करता है लेकिन कुछ भी विरोध नही कर पा रहा है सारे दोस्त उसे पिटता देख रहे हैं .....कोइ कुछ नही बोल रहा है ....वो चिल्ला रहा है...अकेला हो गया है ...सौरभ की आँखे जैसे उबल कर बाहर आती लग रही हैं। सर में कुछ बहाव सा महसूस करता है तन्मय...टी वी स्क्रीन पर निगाहें जमी हैं  उसकी रितिक का गीत बज रहा है..... इक पल का जीना ,फिर तो है जाना ,कुछ पल को खो जाता है तन्मय ....
    "अरे ...तनु....सुन नही रहा ...ले दूध लेजा ..बस कर टी वी देखना ...आज होमवर्क नही करना है क्या ?"
सामने टी वी है माँ की आवाज़ है और वो घर में है ।कराह उठता है तन्मय सर पर माथे पर पीठ पर पैरों पर चोटें हैं उठ नहीं पा रहा है वो , "अरे ये सर पर कैसी चोट है ?तुझे तो चोटें आई हैं....क्या हुआ है लड़ कर आया है क्या ?"
"नहीं माँ ,गिर गया था पतथरो पर ,तो चोट आई है ""सच कह रहां है न ?किसी से मार तो नहीं खाई न"?
"ना माँ झूठ क्यों बोलूँगा भला "झूठ बोल गया था तन्मय ।सौरभ की धमकाती आँखे फिर एक बार कौंध गयी थी उसके आगे "खबरदार ...!अगर किसी से मार के बारे में कहा तो ....।नहीं जानता था तब ये चुप्पी का ज़हर उसके हार्मोन्स का संतुलन बिगाड़ देगा ।
 दबाव ....दबाव.....दबाव....बीस दिन से कमरे में कैद है तन्मय  बस बाथरूम जाता है , कुछ खा लेता है और फिर कमरे में , किताब हाथ में है , नोटबुक सामने है ,पिछले दो महीनों से नींद भी नही आ रही है एक बेचैनी ने उसे जकड रखा है ...उसके आत्मबल को पूरी तरह ख़त्म कर दिया है ।एक डर ने घेर रखा है उसे सोते जागते सौरभ का चेहरा उसे चौका जाता है ।उसे लगता है वो कभी आवाज़ नही लगा पायेगा ...किसी के लिए भी नहीं ...अपने लिए भी नहीं ......बंद कमरे की दीवारें उसे अपनी और खींचती सी लगती हैं ....वह चीखने की कोशिश करता है ,सब सो रहे हैं रात के तीन बजे हैं ....घिघ्घी बन्ध  जाती है उसकी ...पा की चिल्लाहट उसके कानो ने जैसे बजती सी है "इस बार अगर अच्छे नंबर नहीं लाया तो पी सी ऍम नहीं मिलेगा तुझे ज़िन्दगी बर्बाद हो जायेगी तेरी"
"ज़िंदगी..."?उसे रंग अच्छे लगते हैं ,उनसे खेलना भी अच्छा लगता है .....ख़ास तौर से पेड़ों पर चमकता हरा रंग ...संगीत जो निकलता है गिटार से ...जब वो बजाता है "राग काफी"तब खुद भी मगन हो जाता है भूल जाना चाहता है सारी दुनिया ....उसे खेल अच्छे लगते हैं ...क्रिकेट उसका प्रिय खेल है ....उसे फिर घबराहट हो जाती है ...नहीं नहीं ...क्रिकेट के बैट से तो ख़ौफ़ खाने लगा है वो ....क्रिकेट का बैट देखकर तो उसे जैसे  करंट लगने लगा है उसे ......उसका बस चले तो क्रिकेट बैट को अपार्टमेंट के कोने में बने कचरे के डब्बे में डाल आये वो .....मन करता है पा से पूछे ....".ज़िंदगी के क्या मानी है पा "?सर पर उठा शक्ति की ताकत बताता गूमड़ ...पैरों पर उग आये सिक्के से निशाँ ....सौरभ की डरावनी आँखे...लीज़ा मिस का पनिशमेंट ..या पी सी ऍम ...?क्या है पा "?या ये रुपहले से रंग ...या ये राग काफी .....या ये समय कुसमय सर पर बहता हुआ बहाव .....?
    अभिज्ञान के साथ कोचिंग जाता है तन्मय ..सुमित और उसके पांच छ: दोस्त झुण्ड बनाये  चाय की दुकान पर खड़े हैं ..एक डर उसके ऊपर तारी हो जाता है ..कदम वापस घर की और उठ जाना चाहते  हैं ..जेसे सौरभ और उसके दोस्तों का झुण्ड खड़ा हो ...उफ़ !!ये उसका पीछा क्यों नही छोड़ते  ?तन्मय कोचिंग जाना छोड़ देता है ..स्कूल भी जाना छोड़ देता है....उसका कमरा किताबें और नोटबुक...किसी से बात का मन नहीं रहता उसका..कहीं नहीं जाना चाहता ...भरी दुपहरिया में रज़ाई ओढे पड़ा रहता है वो....आवाज़ें आवाज़ें ...चारों और से उसे परेशान करती हैं.."पढ़ाई कर ""अच्छे नंबर लाना है न "",अरे सोता ही रहेगा क्या ""और सबको काटती एक आवाज़ "खबरदार !!जो किसी को बताया ......"।
     डर उसे घेरे रहता है ...दबाव ....दबाव ....दबाव कोचिंग नहीं जाना चाहता वो अभिज्ञान ने चलते हुए कुछ  मज़ाक किया है।अवश हो गया है तन्मय....उसे ज़ोर का थप्पड़  मार देता है ...उसे कुछ नही पता वो ऐसा नही करना चाहता था ....
कोचिंग क्लास में कुर्सी उठा कर फेक देता है ...अयूब सर नाराज़ हो जाते हैं"अरे कोइ इसके पेरेंट्स को बुलाओ पगला रिया है लड़का.....तन्मय होश खो चुका है ।
     
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अस्पताल का कमरा है माँ सिरहाने बैठी हैं
"कैसा लग रहा ही तनु "?
"ठीक हूँ माँ"
"अब कुछ टेंशन न ले पढ़ाई का समझा न"?
एग्जाम नही दे पाया है वो ....डर ने उसका आत्मबल छीन लिया है ।चार साल एग्जाम नही दे पाता है वो मुश्किल से घर पर रहकर ही हायर सेकंडरी पास कर पाया है उसके सपनों को नज़र लग गयी है ..बी कॉम किया है उसने ...अवसाद में सब रंग फीके लगते हैं उसे रंग जिनमे ज़िंदगी थी, रंग जो उसे पसंद थे  उसके भीतर उत्साह भरते थे अब दीवारें ही बातें करती है और ....एक डर की स्थाई ज़द के भीतर कैद हो जाता है वो ....रात को आसमान में तारों से बातें करता है वो सप्तऋषि कथाएं सुनाने लगते हैं उसे ,ठीक जैसे माँ सुनाया करती थीं बचपन में ...ऑफिस जाती हुई माँ का आँचल पकड़ कर अक्सर रोका  है उसने ..माँ नही रुक पाती थी , बस कारण कुछ अलग थे घर चलाना है दोनों पा और माँ मिलकर काम ना करें तो कैसे चलेगा ...वह कहना चाहता है माँ से बहुत डर लगता है माँ मत जाओ मुझे कुछ नहीं चाहिए ....लेकिन कुछ भी नहीं रुक पाता माँ के कहने में अब दवाओं का खर्च भी जुड़ गए हैं ...अपने दादू के दादी के ...खुद उनके और मेरे भी ...एक ब्लैक होल है जहां की और सारे रास्ते जाते हुए लगते हैं उसे आजकल...।सपनो की दुनिया में वो एक ऊंचाई पर खड़ा है ...सपने देखने होते हैं तभी तो उन्हें प्राप्त किया जा सकता है...लेकिन जैसे एक बड़ी सी खाई है जो पार नही हो पा रही है उससे ...कदम बढानेे की ताकत ही खो चुका है वो अब आवाज़ें हैं पर उनमे नई नई आवाज़ें शामिल हो गईं हैं...बाहर से गुज़रती ट्रक की आवाज़ें ,मोटर सायकल की आवाज़ें कोई फेरी वाला जेसे जान बूझ कर उसे ही परेशान करने को चिल्ला रहा हो ...दवाईया... दवाईयां ...वो नहीं लेना चाहता ,जागे रहना  चाहता है हमेशा ,जीवन सिमट गया है उसका ...सौरभ की आँखें जैसे हर और उग आईं हैं हज़ार हज़ार आँखों  में तब्दील हो गईं हैं... छुप जाना चाहता है वो ...दूर कहीं चले जाना चाहता है ..घर की दीवारें काट खाने दौड़ती हैं उसे...लिफ्ट में रहता है वो वहाँ उसे सुरक्षित लगता है ऊपर जाना नीचे आना ...वही उसके अस्तित्व  की पहचान बन गयी है ।
 अपार्टमेंट के लोग आदी हो गए हैं उसकी वहां खामोश उपस्थिति के,कोइ सर थपथपा देता है ,कोइ हैलो कहता है वो भी मुस्कुरा देता है ।वीणा ऑन्टी को देखकर घबरा जाता है वो ,अक्सर वो उसे लिफ्ट से बाहर निकालने की कवायद कर चुकी हैं ...उन्हें भी डर लगता है ....शायद मुझसे ,एक डरे हुए व्यक्ति से डर ....?वो हंस पड़ता है ,धीरे-धीरे वीणा ऑन्टी की आँखें लिज़ी मिस की आँखों में बदल जाती हैं...अब वो उस समय अक्सर लिफ्ट में नहीं रहना चाहता ।कॉलेज जाने वाले लड़कों का झुण्ड लिफ्ट में चढ़ता है ,उतरता है ,वो घुटनों में सर दे देता है पसीना पसीना हो जाता है...सौरभ की उबलती आँखें उसकी गर्दन में उतर जाती हैं ।

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अकेलेपन  में ही अच्छा लगता है उसे ...पेड़ पर टँगी फुनागियां उचक कर छु लेना चाहता है तन्मय अपनी इच्छाओ की बनाना चाहता है पतंग ...पतंग जो कहीं खो गयी है ,उसे ढूंढ कर लाना चाहता है वो ...ट्रेन की खिड़की में बैठ यात्रा पर जाना चाहता है ठीक ....
बाईस साल पहले जब आया था इस दुनियां में उस लम्हे में रुक जाना चाहता है ....वो जो उस एक लम्हे में आज तक अपनी ज़िन्दगी का सिरा ...जो ख़्वाबों के जंगल में कहीं उलझ कर छूट गया है, उसे दौड़ कर पकड़ लेना चाहता है तन्मय....रंगों की बौछार में बदल लेना चाहता है अपना चेहरा ...चेहरा जिसमे डर एक स्थाई भाव बन कर रुक गया है..बदल लेना चाहता है।
 "दादी मुझे आज नहीं जाना कोचिंग "
 "दादी ,एक कप दही दो न खाने को ,अच्छा रहने दो "
 "माँ,मत जाओ ना ऑफिस"
 "खबरदार ...!!जो किसी से कहा तो ..."
"पा,नाराज़ मत हो ,अच्छे नंबर लाऊंगा इस बार"
 "माँ,मेरी दवाईयां ख़त्म हो जाएंगी न ?
 "ऐ ,आवले के पेड़ मुझे मेरी शक्तियां लौटा दो न "
"माँ ,मैं सक्सेसफुल हो जाऊंगा न ?"
,तनु,तन्मय....तैनु......ssss ओ ..तन्मय.....
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 ⭐संध्या कुलकर्णी
 A 76 रजत विहार कॉलोनी
 होशंगाबाद रोड
भोपाल (म  प्र  )
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प्रतिक्रियाएं
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[19/02 09:17] Padma Ji: संध्या कुलकर्णी को अच्छी सामयिक के लिए बधाई। वर्तमान में बच्चों पर पढाई का बोझ तो है ही पर इंग्लिश मीडियम स्कूल में इंग्लिश में बात करने का अतिरिक्त बोझ भी है। अनुशासन के नाम पर बच्चों के मन में भय व्याप्त जाता है फिर वे अपने अध्ययन पर पूरा ध्यान नही दे पाते। बच्चे की मनः स्थिति का चित्रण और स्वप्न के समय के प्रतीक कहानी को उत्कृष्टता प्रदान करते हैं। एडमिन त्रयी को बधाई
[19/02 11:54] ‪+91 94257 11784‬: आदरणीया संध्या कुलकर्णी की कहानी , उसे दूसरी दुनिया में भेज दिया गया है , कथ्य एवं शिल्प दोनों ही द्रष्टियो' से अत्यन्त उत्कृष्ट कहानी है ।हमारे समय की बेहद जरूरी कहानी भी ।
   आज अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूल हमारे बच्चों की रचनात्मक ऊर्जा पर तो  वज्राघात  कर ही रहे हैं,  वे हमारी भाषा और संस्कृति के संहार में भी संलग्न हैं । कैसा दुर्भाग्य है कि  इन स्कूलो मेकोमल मन तन्मय जैसे सहस्रों बलक बालिकाओं के लिए विद्यालय परिसर में मातृभाषा का प्रयोग पूर्णतः निषिद्ध रहता है और इस निषेधाज्ञा के तनिक उल्लंघन के परिणामस्वरूप उन्हें घनघोर उत्पीडन से गुजरना पडता है ।
     संध्या जी की यह कहानी वस्तुतः बालक के स्वाभाविक एवं मुक्त विकास में अवरोधक अनेक तत्वों की ओर बडी मार्मिकता से इंगित करती है । कहानी का तन्मय का बडे लडकों के आतंक के साये में रहना दूभर रहता  ।उसके माता पिता भी उसका कैरियर बनाने की धुन में उस पर अनेक आदेश,निर्देश,  चेतावनियां थोपकर उसका तनाव बढाते रहते हैं ।और इस तरह बेचारा बालक लगभग अर्द्ध विक्षेप की स्थिति में पहुंचने लग जाता है ।
  यह बडी भयंकर स्थिति है ।इससे  अपने देश और समाज को उबारना हमारी उच्च प्राथमिकता होना चाहिए । आदरणीया संध्या कुलकर्णी जी  की  कहानी हमारी इस बडी आवश्यकता को बहुत गहरे से रेखांकित करती है।
       अंत में इस अद्भुत और आवश्यक कथा के लिए कथाकार को बहुत बहुत बधाई  , अभिनंदन ।मंच के सुधी नियामकों, श्री राजेश झरपुरे जी , मधु जी , प्रवेश जी के प्रति हार्दिक आभार  ।
[19/02 12:36] Archana Mishra: बालमन पर लगी चोट ,किसी बात का  भय कब  धीरे-धीरे अंदर उथलपुथल कर मनोरोग से बच्चे को ग्रसित कर देता है और जब तक हमें पता चलता है तब तक  बहुत देर हो चुकी होती है।
बाल मन  के मनोविज्ञान पर आधारित, मन को विचलित करती कहानी।
बहुत बधाई संध्या।
[19/02 12:45] Niranjan Shotriy sir: संध्या जी की बहुत अच्छी कहानी।मासूम मन और बाहरी कर्कशता के द्वंद्व की कहानी। इस कहानी का शिल्प अद्भुत है गोया कोई फ़िल्म चल रही हो। Fractured narration के जरिये कहानी गहरे तक उद्वेलित करती है। कॉन्वेंटी संस्कृति पर भी सटीक वार। बधाई संध्या कुलकर्णी,बधाई मंच।
[19/02 13:28] Kavita Varma: युवा पीढ़ी कितने दबाव में जीती है ये आजकल कोई नही समझता । यही कहा जाता है हमारे समय मे    इन्हे तो सब सुलभ है   पर उसकी कीमत   ऐसी कहानियॉ लिखी जाना चाहिये जो मार्गदर्शक बनें । बधाई संध्या जी।
[19/02 13:37] Saksena Madhu: हाँ कविता .....मानसिक दबाव का क्रमबद्ध चित्रण किया लेखिका ने ..लिखी जानी चाहिए ऐसी कहानिया । आभार ।
[19/02 15:14] ‪+91 98260 44741‬: समसामयिक विषय पर लिखी गयी एक सशक्त कहानी। किशोर मन कितने तरह के डर और तनाव में रहता है और इन सबका उनके जीवन पर क्या प्रभाव हो सकता है इसका चित्रण बहुत ही सटीक और भावुकतापूर्ण किया है। स्कूल से लेकर घर, कोचिंग, खेल के मैदान तक रोज़ कितनी जगह कितने तरह के डर और तनाव हो सकते है यह बखूबी बताया है। ऐसी कहानिया किशोरों की मनोव्यथा को समझने में सहायक होती हैं। लेखिका संध्या जी को इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद एक जरुरी विषय पर उन्होंने संवेदनशील तरीके से ध्यान आकर्षित करवाया है। 🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼😊😊
[19/02 16:08] Pravesh: "तारे जमीन पे " पिच्चर याद आई आज इस कहानी को पढ़ते हुए ।किशोर से युवा होता मन भी इस तरह की दहशत से मुक्त नही हो पाता,जो अनायास ही उसके बाल मन को भयभीत कर चुकी होती है  ।  इस तरह के बच्चे विशेष योग्यता रखते है ,लेकिन वह योग्यता भय की बलि चढ़ जाती है ।बाल मनोविज्ञान की बेहतरीन कहानी लगी यह ।

शुभकामनाएं संध्या
🙏💐🙏
[19/02 17:31] Rachana Groaver: बहुत ध्यान से कहानी पढ़ी
1.ये कहानी उच्चमध्यमवर्गीय परिवार की कहानी है।
2.इस कहानी का मुख्य पात्र कान्वेंट स्कूल में पढता है।
3.जहाँ टीचर सीनियर सब्जेक्ट सबसेे भय हैं।
क्यों?
समस्या भाषा
हमारा इकलौता देश है जिसकी अपनी भाषा होते हुए भी वह दूसरी भाषा पर निर्भर करता आया है। कारण विवास्पद हैऔर लगातार वाद विवाद के पश्चात भी हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंचेंगे।
subject PCM?????
क्योंकि हर माँ बाप को बीटा इंजीनियर चाहिए जो करोडो काम सके
और ये माँ बाप कौन हैं???
आप और हम
कसम खा कर बताइए कि आप में से कितनों ने अपने बच्चों को कान्वेंट में नहीं पढ़ाया है???
[19/02 19:32] shivani sharma Ajmer: कहानी भी पढ़ी और आप सब विद्वजन के विचार भी।
शिक्षण कार्य से जुड़े रहने के कारण मैने इसे और भी नज़दीक से देखा है।
अभिभावकों की अतिमहत्वाकांक्षा का फायदा स्कूल वाले उठाते हैं और उसकी कीमत न सिर्फ अभिभावक स्वयं बल्कि बच्चे भी चुकाते हैं । कभी मशीन बनकर कभी अर्द्ध विक्षिप्त बनकर तो कभी जान देकर...
[19/02 20:06] Amitabh Mishra मंच: दबाब बच्चों को कहाँ से कहाँ पहुँचा देता हैं ये कहानी उसका सठिक वर्णन करती हैं l समाज का मानवीय चेहरा कहीं खो सा गया हैं l स्कूल,घर का मानसिक दबाब और खेल के मैदान की पिटाई उसे मानसिक रुप से तोड़ देती हैं और एक सुखद संभावना का त्रासद अंत होता हैं l इसके जिम्मेदार हमारा समाज हैं l स्कूल से लेकर घर तक माहौल बदलना होगा l जिससे बच्चे असमय मुरझाने ना पायें l याद रखना होगा  आज के बच्चे ही कल के भविष्य हैं l                                      अमिताभ मिश्र
[19/02 21:46] Rajnarayan Bohare: हाँ बहुतेरे पक्ष है इसमें। बस्स ठीक से संवर जाये  तो यादगार कहानी होगी।
[19/02 21:51] shivani sharma Ajmer: सभी पक्ष आपस में मकड़जाल की तरह उलझे हुए हैं । सभी पक्षों को मिलकर ही हल निकालना होता है। शुरुआत अपने आप से, अपने घर से और अपने संस्थान से ही होती है
[19/02 22:20] Sandhya: रचना जी  ,राजनारायण जी प्रज्ञा रोहिणी जी ,पद्मा ,संतोष जी ,जगदीश तोमर जी ,अर्चना ,निरंजन जी ,कविता जी ,विनीता ,भूपेंद्र कौर जी ,शिवानी जी ,अमिताभ जी सभी का बहुत शुक्रिया सकारात्मक टिप्पणियों सेबहुत अच्छा लगा कुछ सलाह भीमिली जिसे मैंने ह्रदय से ग्राह्य किया ।बहुत जल्दी में लिखी गयी कहानी है ।और प्रवाह में ज़रूर ही कुछ कमियांभी रह गयी है जिसे निश्चित रूप से दूर करने की कोशिश करूंगी ।
सभी को एक बार फिर शुक्रिया
विशेष रूप से प्रवेश और मधु का शुक्रिया जिन्होंने कहानी पर सतत अपने विचार रखे ।
राजेश जी और मंच दोनों का शुक्रिया 🙏💥
[19/02 22:22] Rajesh Jharpare: आज आप सभी ने मंच पर संध्या कुलकर्णी जी की कहानी '   उसे दूसरी दुनिया में भेज दिया गया है...'  पढ़ा और  अपनी महत्वपूर्ण  प्रतिक्रिया से अवगत कराया । एक सामयिक विषय पर उनकी कहानी  को बेहतर प्रयास के रूप में देखा जा सकता है । इन दिनों हमारे समाज और परिवार में सबसे अधिक तनाव ग्रस्त अध्ययनरत युवा पीड़ी ही है । यह तनाव कौन केन्द्रित कर रहा जैसी समस्या से रूबरू कराती कहानी के लिए सुधा जी को बधाई और सभी मित्रों का शुक्रिया ।

शनिवार और रविवार को सम्पूर्ण अवकाश के पश्चात सोमवार को अपने सदस्य  मित्रो की कहानी के साथ हभ फिर मंच पर होंगे।

शुभरात्रि मित्रो
[20/02 09:31] Braj Ji: कहानी पढ़ी..उम्दा लगी.कहानी लिखना और उसे मनोविष्लेषण के साथ निबाहना..
[20/02 15:19] ‪+91 95337 18860‬: संध्या जी की कहानी आज पढ़ी , एक दम आज के स्कूलों और जीवनशैली को टक्कर देती कहानी ।
बधाई संध्या जी
[20/02 22:59] Rakesh Bihari Ji: संध्या कुलकर्णी की कहानी कथावस्तु की प्रासंगिकता और शिल्प की सहजता के कारण सहज ही हमारा ध्यान खींचती है। कैसे स्कूल की कुछ व्यवस्थाएं बच्चों से उसका बचपन छीन रही हैं और बच्चे भय से कहीं बहुत आगे एक ख़ास तरह की इमोशनल ब्लैकमिंग का शिकार हो रहे हैं, उसकी बहुत ही प्रमाणिक छवियाँ पेश करती है यह कहानी। पात्र के तनाव को पाठक के तनाव में बदल पाना इस कहानी की बड़ी ताकत है। युवा होने की दहलीज पर खड़े किशोरों के मनोविज्ञान को संध्या ने बखूबी पकड़ा है। मैंने आज उनकी पहली कहानी पढ़ी है, मुझे उनकी आगामी कहानियों का इंतज़ार है।  बधाई और शुभकामनायें!

 साहित्य सम्मेलन,"साहित्य की बात" 17-18 september 2022 साकिबा  साकीबा रचना धर्मिता का जन मंच है -लीलाधर मंडलोई। यह कहा श्री लीलाधर...

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