Wednesday, November 22, 2017

रचना प्रवेश

रचना प्रवेश
आज हम एक ऐसे विषय पर *दीप्ति कुशवाह* का आलेख पढ़ेगें जिसके बारे में हम अपनी नई पीढ़ी को रत देखते है ,उन्हें टोकते भी है पर शायद उनकी दुनियां को समझने की कोशिश नही करते कि क्यों उन्होंने मनोरंजन के नाम पर अपनी पसंद  हमसे अलग कर ली ,क्यों उन्होंने अपनी नई दुनिया बना ली ।


जी हां मैं बात कर रही हूं *वेब दुनिया की वेब सीरीज* की
क्यों लुभा रही है यह सीरिज उन्हें ,टीवी ,थियेटर मूवी से हट कर वो खो देते है अपने आप को इस वेब दुनिया में | निर्माता का आर्थिक उपायोजन  कितना है |
जानते है  इस् दुनिया के प्रति आकर्षण को और कोशिश करते है युवा मन को समझने की ।उनके आनन्द और मनोरंजन को देखते है एक नई नज़र से ।





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परिचय


नाम : दीप्ति कुशवाह

कृतियाँ : कविता संग्रह – “आशाएँ हैं आयुध”,
        कला पुस्तिका – “मोतियन चौक पुराओ (भारतीय भूमि-भित्ति अलंकरण शैलियों पर)

उपलब्धियाँ :
-    आशाएँ हैं आयुध” को महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी का काव्य श्रेणी का प्रथम पुरस्कार – “संत नामदेव पुरस्कार”  (२०१६)
-    भारत सरकार के संस्कृति विभाग की ओर से लोककला के क्षेत्र में सीनियर फेलोशिप (२०१७-२०१८)
-    हिंदी पत्रकारिता दिवस पर कोलाज प्रदर्शनियाँ तस्वीरें बोलती हैं

कविता- पहल, समावर्तन, प्रगतिशील वसुधा, अहा ज़िन्दगी, ज्ञानोदय, वर्तमान साहित्य, कथाक्रम, नवनीत, सनदवागर्थ जैसी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन
लोककला के क्षेत्र में प्रचुर लेखन और अनेक सम्मान
लोकचित्रकार, एकल प्रदर्शनियाँ आयोजित
दैनिक भास्कर, नागपुर की हिंदी साप्ताहिक परिशिष्ट प्रभारी
संपर्क - पंचायतन, आर. पी. टी. एस. मार्ग, लक्ष्मीनगरनागपुर ()४४०-०२२महाराष्ट्र
मोबाइल  09922822699,      ई मेल 


मुश्किलें ही मुश्किलें हैं राहे-मंजिल में यहाँ, हौसले ही हौसले हैं आज़माने के लिए ...शलभ 

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फिल्में बेकार, वेब से प्यार
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अगर आपसे पूछें कि आपके घर के टीनेजर्स टीवी पर आने वाले, सो कॉल्ड सासबहू सीरियल्स देखते हैं ? यकीनन आपका उत्तर ‘नहीं’ होगा | सही है | भई, आज की पीढ़ी न तो ‘नागिन’ पर रीझेगी न जानबूझकर ‘मक्खी’ निगलेगी | मेंहदी-गरबा, जनम-पुनर्जनम, टेसुआपंती-ड्रामेबाजी...इनके फंदे में कैसे फंसेंगे वे !


कुल मिलाकर टीवी है मम्मियों-आंटियों के लिए...बचाखुचा पापाजी और दादाजी के लिए | इसीलिए, अब युवा खड़े दिखाई दे रहे हैं,  “वेब सीरीज़’’ के साथ | यही है नए जमाने का एंटरटेनमेंट | आपने युवाओं को, कानों पर हैडफोन चढ़ा कर, सिर से सिर चिपकाए या अकेले, मोबाइल, टैब, लैपटाप पर मशगूल देखा होगा | ये फिल्म नहीं, वेब सीरीज़ देख रहे हैं | युवाओं को सिनेमागृहों की दहलीज से खीँच कर, हाथ में थामी हुई छोटी स्क्रीन पर ला खड़ा करने वाले इस हंगामाखेज माध्यम में न मेलोड्रामा है, न मीलों लम्बे एडवरटाइजमेंट, न टीवी के सामने बंधे रहने की कवायद |


वेब सीरीज़, यू-ट्यूब की पापुलर संतानें हैं | स्क्रिप्टेड वीडियोज़ की इन श्रंखलाओं का ट्रेंड अब सिर्फ यू-ट्यूब पर ही नहीं, ट्विटर, इन्स्टाग्राम पर भी छा रहा है | फेसबुक ने भी इनसे प्रेरित होकर लाइव वीडियो की सुविधा एड की है |


जो लुभाता है


अगर एक चीज़ पर ऊँगली रखना चाहें जिसके कारण युवा वेब सीरीज़ की तरफ मुड़े हैं...तो वह है, इसमें बोल्ड कन्टेंट की उपस्थिति | यहाँ सेंसर बोर्ड की छन्नी नहीं जिससे कड़क कन्टेंट अलग कर दिया जाये | भगवा ब्रिगेड के खंजर भी बेकार यहाँ | समझ लीजिए, यहाँ कुछ वर्जित नहीं | अधिकांश वेब सीरीज में नॉनवेज मैटेरियल है, मुँहछूट गालियाँ हैं, खुले-उघड़े दृश्य हैं | जो वास्तविक जीवन में कठिन, वह सब मिल रहा यहाँ | इस मोर्चे पर तो टीवी को मात खाना ही है, और भी अनेक कारक हैं जिनसे वेब सीरीज़ का वज़न बढ़ता है | प्राय: सीरीज़ 5 या 6 एपिसोड्स में खत्म हो जाती है | बहुचर्चित पिचर्स, परमानेंट रूममेट्स, बैंग बाजा बारात,...ये सब ५-६ एपिसोड्स से आगे नहीं गयीं |  अमूमन ये एपिसोड्स 15-20 मिनट के होते हैं | आज यूथ के पास समय की कमी है और महीनों देखने का धीरज भी नहीं | एक क्लासरूम से दूसरे क्लासरूम तक जाते हुए, हैंगआउट्स पर दोस्त की राह देखते हुए या जब मॉल में गर्लफ्रेंड अपनी पसंद की ड्रेस चुन रही होती है...एपिसोड खत्म किया जा सकता है | इनमें मौजूद विज्ञापनों को स्किप या फॉरवर्ड करने के विकल्प भी होते हैं | लीजिए, अंधा क्या चाहे, दो आँखें |


एक एपिसोड के बाद अगला कुछ अंतराल के बाद आता है इसलिए यूज़र बेसब्री से उसका इंतज़ार करता है | इनका कोई तयशुदा समय नहीं | आपकी फुरसत, इनकी स्टार्टिंग है | जब अवसर मिला, जब ऑनलाइन हुए, शुरू कीजिए देखना |


वेब सीरीज की दूसरी बड़ी खासियत है इनके विषय युवा पीढ़ी के जीवन से जुड़ते हैं | इनमें मुच्छड़ बाप नहीं, पूजा करती अम्माँ नहीं |   


वेब सीरीज के पक्ष को और तगड़ा करने वाली बात यह है कि लोगों को अपनी क्रियेटिविटी दिखाने का एक नया प्लेटफार्म मिल गया है | वेब सीरीज़ बनाने के लिए बड़े उपकरणों की ज़रूरत नहीं | सबके हाथ में मोबाइल हैं और उनमें कैमरे | किसी प्रशिक्षण की ज़रूरत नहीं | कोई भी अपने मित्रों को लेकर वेब सीरीज़ निर्माता बन सकता है | इसे यू-ट्यूब पर दिखाने के लिए किसी कागजाती-कार्यवाही को पूरा करने की झंझट नहीं, दफ्तरों में मत्था टेकने की ज़रूरत नहीं, पब्लिसिटी के पापड़ भी यहाँ बेलने नहीं पड़ते | जो कभी नाटक के मंच पर न चढ़ा हो और जिसने कभी माइक को हाथ न लगाया हो वे भी अपनी क्रियेटिविटी को वेब सीरीज़ में माँज सकते हैं | अंतरराष्ट्रीय शोहरत और व्यूअरशिप पाने के लिए यह बढ़िया चैनल साबित हो रहा है |


यूं जुदा फिल्म से


फिल्मों के मामले में कई बार ऐसा होता है आप अपना महत्वपूर्ण काम छोड़ते हैं, महँगी टिकटें खरीदते हैं और यह सोचते हुए वापस लौटते हैं कि फिल्ममेकर मिल जाए तो धुनक के रख दें उसे | यह टेंशन वेब सीरीज़ के दरबार में नहीं है | यहाँ आप कमेंट कर सकते हैं, लाइक-डिसलाइक ज़ाहिर कर सकते हैं, सुझाव दे सकते हैं | इस तरह यूज़र के लिए, कहानी से सीधे कनेक्ट करना हासिल है | यह भी न करना चाहें तो किसी अन्य कहानी के झरोखे भी खुले हैं उसके लिए | सो भी मुफ्त में |  यह इंटरनेट की दुनिया में समाजवाद की स्थापना ही तो है | यहाँ सबसे बड़ी ताकत यूज़र स्वयं है |


खिलाड़ी बड़े-बड़े


शायद आप सोच रहे हैं कि वेबसीरीज़ बस नौसिखियों का रचाया मायाजाल है | नहीं | परिणीति चोपड़ा, कल्कि कोच्लिन, स्वरा भास्कर, कुणाल कपूर, भूमि पेडणेकर, ऋचा चड्ढा, अली फज़ल, करणवीर मेहरा जैसे कलाकार यहाँ एक्टिंग के मैदान में हैं | बालीवुड के नामी डायरेक्टर अनुराग कश्यप ने अपनी बहुप्रशंसित फिल्म “गैंग्स ऑफ वासेपुर’’ को वेब सीरीज़ में ढाला और अब इसके आठ एपिसोड्स विदेशों में भी देखे जा रहे हैं | टेलीविजन क्वीन एकता कपूर, फरहान अख्तर, रितेश सिधवानी और बड़े बैनर यशराज फिल्म ने भी यहाँ अपनी उपस्थिति दर्ज कराने कराई है | रामगोपाल वर्मा जैसा खिलाड़ी यहाँ Guns and Thighs लेकर मौजूद है | टीवीएफ, एआईबी, स्टार इंडिया, सोनी, इरोज़, वायकाम 18 जैसे प्रोडक्शन हाउजेस के लिए भी वेब सीरीज सोने के अंडे देने वाली मुर्गी साबित हो रही हैं |


वेब सीरीज पहले हिंदी में आयीं, अब पूरे देश से प्रादेशिक भाषाओं में भी ये अपलोड हो रही हैं | हिंदी, जैसा कि आप समझ ही सकते हैं वही खिचड़ी भाषा या हिंगलिश है जिसे युवा उपयोग में लाते हैं | टाईटिल अधिकतर अंग्रेजी में ही हैं |                 


वेब सीरीज़ एक उदाहरण है कि तकनीक सामाजिकता को किस तरह प्रभावित करती है | कैसे उसके मनोरंजन माध्यम, पसंद-नापसंद को बदल डालती है | दूसरी बात, भारतीय समाज में एडल्ट कंटेंट्स को लेकर यूँ तो बड़ा टैबू है पर अंदरूनी तौर पर यह सबको लुभाता है |  वेब सीरीज इसी मानसिकता को दुह रही हैं |


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कुछ चर्चित वेब सीरीज़ :


Parmanent Roommates (TVF) : यह कहानी रिलेशनशिप पर है | लिविंग व्यवस्था में रहने वाले दो प्रेमियों की उहापोह की कहानी कि शादी करें, न करें | इसका दूसरा सीजन आया |


Baked (Pech.&Skoop.) की कथावस्तु दिल्ली यूनिवर्सिटी है | तीन दोस्त – एक में खाना बनाने का हुनर, एक जुगाड़ू, एक प्लानिंग में चतुर | इन्हीं विशेषताओं के बल पर अपना स्टार्टअप खड़ा करते हैं | 


Pitchers (TVF):  में चार दोस्त अपने शौक को दिशा देने के लिए अपनी नौकरियाँ छोड़कर, संघर्ष करते हुए खुद की स्टार्टअप कम्पनी शुरू करते हैं | दूसरा सीज़न आ रहा |


Bang Baja Barat ( Y Films) : अलग अलग पृष्ठभूमि से आये दो लोग शादी के लिए अपने परिवारों से मिलते हैं | यह हास्य आधारित कथा है |


Tripling (TVF): तलाकशुदा, हताश और बेरोजगार तीन भाई बहन एक सड़कयात्रा पर निकलते हैं और जीवन और सम्बन्धों को समझते हैं  |


Ladies Room (Y Films): परिस्थितियों से लड़ रहीं दो लड़कियां रेस्ट रूम में बॉस को गाली देने से लेकर अपने सारे अनुभव साझा करती हैं, स्मोक करती हैं | टॉयलेट में शूट हुए हैं एपिसोड्स |


The Other Lovestory (JLT Films): दो समलैंगिक लड़कियों और उनकी दिक्कतों की कहानी |


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भेड़चाल बहुत अपने यहां


*अभय छाबड़ा*


(वेब सीरीज़ Cyber Squad  और देश की पहली वेब फ़िल्म You Me & Ghar के डायरेक्टर , Chinese Bhasad के कोडायरेक्टर )


वेबसीरीज़ का भविष्य क्या है - वेब की इंडस्ट्री में जिस तरह का बूम आया है, उससे लगता तो है कि अभीpositivity बनी रहेगी पर जिस तरहSony, एकता कपूर Balaji Alt, Color वाले Voot या और Star वाले अपना Hot Star लाकर... अपने-अपने एप बना कर सीरीज़ डाल रहे हैं उससे लगता है कि बड़े और बड़े बनेंगे और छोटों के लिए struggleबना रहेगा ।


 In short यह कहूँगा कि हमारे यहाँ भेड़चाल बहुत मचती है इसमें super content ही जमेगा । बाकी का बह जायेगा।


हमारी और विदेशी वेब सीरीज में अंतर क्या है – बहुत से factors हैं पर मुख्य अंतर बजट का है | मैं Amazon, Netflix आदि पर उन्हें देखता हूँ , उनका बजट हमारी फिल्म जितना हो जाता है | हमारे पास बजट कम, सोर्सेस कम तो अच्छे आइडियाज़ पर काम नहीं कर पाते जैसे sciencefiction  या periodfilm करना चाहें तो बजट आड़े आ जाता है |


फिल्ममेकर्स का वेब की तरफ आने का कारण – कुछ स्क्रिप्ट्स पर फिल्म हो नहीं सकती और आप सेंसर आदि के भय के बिना खुलकर कुछ कहना चाहते हो और यूथ में popularity चाहिए तो वेब की तरफ आना ही होता है | और वेब से फिल्मों में जाने के लिए…..आपमें हुनर हो, काबिलियत हो तो फिल्मों से लोग आपको बुलाएँगे और बालीवुड में एक कहावत बहुत चलती है... Youshould be in the right place onthe right time .



धंधा कैसा है ?


समीर नाफड़े( सिने-विशेषज्ञ ) : वेब सीरीज़ के साथ earning का टाईअप तो है ही | वरना क्यों सब उधर भागते ? परन्तु यह फिक्स्ड फार्मूले जैसा नहीं है | generalize करके देखें तो 1000 व्यूज़ पर youtube से एक डॉलर इशू होता है |लगभग 5000 views के बाद दो डॉलर.... | payment के तीन slabs होते हैं | इशू होते ही डॉलर तुरंत आपके अकाउंट में नहीं आ जाता | बहुत सारे नियम आदि हैं | वे एक तय अमाउंट हो चुकने के बाद आपके अकाउंट में ट्रांसफर करते हैं |


संक्षेप में, बहुत कठिन है डगर earning की !


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देवश्री फडनवीस ( आई टी इंजीनियर - रायसोनी कॉलेज)


हमारी भी है तैयारी 
Indian films और टीवी सीरियल्स दोनों महाबोर | वही घिसेपिटे दकियानूसी subjects को ये कब तक रगड़ेंगे, पता नहीं ! मैं और मेरे सारे फ्रेंड्स वेब देखते हैं | हम कुछ फ्रेंड्स भी वेब बनाने वाले हैं | हम लोगों को सुमित व्यास, शांतनु अनम बालीवुड हीरोज़ से अधिक पसंद हैं | कम्पनियों की आपसी रेस के कारण अब हमारे यहाँ इंटरनेट बेहद सस्ता हो गया है, इसलिए वेब सबकी पहुँच में हैं | YouTube, Amazon, Netflix के अलावा, मैं तो डायरेक्ट एप्स इंस्टाल करके रखती हूँ, इससे नये एपिसोड का नोटिफिकेशन तुरंत मिल जाता है |



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Saurabh Shandily: क्या खूब आलेख है। रिच आर्टिकल। अमीर आलेख। *परमानेंट रूममेट्स* तो कइयों को दिखा चुका हूँ। मुझे एक झगड़ालू प्रवृत्ति की मित्र ने कहा था देखने को।




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अनीता मंडा :साइंस, टेक्नोलॉज की प्रगति ने इंसानी जीवन में बड़ा परिवर्तन किया है। इंटरनेट युग ने तो सिनेमा साहित्य पलट कर रख दिया है। ऐसे समय में हमारी नई पीढ़ी क्या कर रही है, किसे पसंद कर रही है, किसे नहीं, आदि जानने के लिए दीप्ति जी का आलेख एकदम सटीक है।
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कोमल समोरवाल :वेब सीरीज डिजिटल जगत की नवीन क्रान्ति है। भारत में युवा वर्ग का ख़ासा प्रतिशत है, युवा केन्द्रित कार्यक्रमों की माँग इस कारण से तीव्र है। सास बहु के डेली शॉप से कुछ अलग आधुनिक समस्याओं पर व अपने समय की मानसिक एवं अन्य उलझनों पर केन्द्रित एक कनेक्टिव प्लेटफोर्म युवा वर्ग चाहता है। वेब सीरीज एक नये आस्वाद में बेहद ही सहूलियत के साथ ये सभी चीजें उपलब्ध करवाती है। दीप्ति जी का ये समसामयिक आलेख लगभग हर आयाम पर प्रकाश डालता है, वेब सीरीज की लोकप्रियता के कारकों से लेकर इसके वर्तमान और दूरगामी प्रभाव पर बिन्दुवार मंथन करता है.. !!

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