'दिल धड़कता है'
,सुभाष पाठक 'ज़िया' द्वारा उर्दू में लिखा गया ग़ज़ल संग्रह है |उर्दू से हिंदी में अनुदित ग़ज़लें" रचना प्रवेश" ब्लॉग पर आपके ध्यानार्थ प्रस्तुत हैं
सुभाष पाठक 'ज़िया' का ग़ज़ल संग्रह 'दिल धड़कता है' वर्ष 2020 में मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी के अनुदान से शेरी अकादमी द्वारा प्रकाशित हुआ है जिसकी भूमिका डॉ अशोक मिज़ाज बद्र साहब ने लिखी है और फ्लैप पर मोहतरम शारिक कैफ़ी साहब एवं मोहतरमा नुसरत मेहदी साहिबा ने अपनी दुआओं से नवाज़ा है। इनके अलावा डॉ महेंद्र अग्रवाल साहब, इशरत ग्वालियरी साहब और यूसुफ़ क़ुरैशी साहब ने ग़ज़लों पर विस्तृत बातें लिखी हैं। संग्रह का कवर पेज प्रवेश सोनी ने बनाया है।
ग़ज़ल कम शब्दों में बड़ी बात कह देने का हुनर है और इसमें सुभाष पाठक 'ज़िया' ने दो मिसरों में ज़िंदगी के तमाम रंगों को समेटने का प्रयास किया है। इनकी ग़ज़लें जहाँ भूख, ग़रीबी, बेबसी पर आवाज़ उठाती हैं वहीं प्रेम और सौहार्द का संदेश भी देती हैं और लोगों को अपनी ख़ुद्दारी के साथ दिलों में हौसले का चिराग़ लेकर चलने का जज़्बा भी देती हैं। ज़िया जी की ग़ज़लों में जहाँ एक ओर रिवायती शाइरी का रंग है, शेरियत है, तग़ज़्ज़ुल है, रवानी है ,वहीं दूसरी ओर ग़ज़ल का जदीद रंग भी है जहाँ तमाम क़ाफ़िये इस तरह से इस्तेमाल किये हैं जो पढ़ने वाले को चौंका देते हैं और सीधे उनके दिल पर असर करते हैं। इन ग़ज़लों में कुछ नई और लंबी रदीफ़ों के प्रयोग भी हैं जिन्हें वरिष्ठ ग़ज़लकारों , आलोचकों, समीक्षकों एवं समकालीन साहित्यकारों ने ख़ूब सराहा है और अपना स्नेह आशीर्वाद दिया है।
डॉ. नुसरत मेहदी- अपनी उम्र से ज़्यादा संजीदा शायर हैं सुभाष । ये पायमाल रदीफों का इस्तेमाल नहीं करते बल्कि अपना डिक्शन ख़ुद तैयार कर रहे हैं।
शारिक कैफ़ी- सुभाष पाठक 'ज़िया' की ग़ज़ल नई नस्ल के शायरों के जहन को एक ताबिन्दगी और तवानाई अता करने में पूरी तरह कामयाब है। उनकी ग़ज़ल में क्लासीकल अंदाज़ की बाज़गश्त भी है और बेपनाह हम असरियत के साथ एक नया तर्ज़े इज़हार एक जुदागाना फ़िक्र और इन्फिरादी असलूव भी हैं।
डॉ.अशोक मिज़ाज बद्र- हर मिसरे में बोलता है सुभाष पाठक 'ज़िया'। उनकी ग़ज़लों में कुछ चौकाने वाले प्रयोग देखने को मिलते हैं जिसमें कुछ अलग रदीफ़ क़ाफिये हैं ।
डॉ.महेंद्र अग्रवाल- सुभाष के शेरों में अयाँ मंज़र एक बड़े कैनवास या किसी मुकम्मल कहानी को ज़ाहिर करते हैं। इनकी इमेजरी बाकमाल होती है। ये जितना बाहर की दुनिया से मुख़ातिब रहते हैं उतना ही अंदरूनी दुनिया से भी। एक शेर में कोई दास्तां बयां करने का हुनर इन्हें बख़ूबी आता है।
डॉ.मुहम्मद आज़म- सुभाष की शायरी में हिंदुस्तान की मुश्तरका तहज़ीब की नुमाइंदगी मिलती है। इनकी ग़ज़लों में शगुफ़्ता लहजा , आसान लफ्ज़यात ख़ूबसूरत बंदिशें, मौजूं क़ाफ़ियों का इंतिख़ाब चस्पा होने वाली रदीफ़ों का चुनाव, सब उन्हें एक ज़ीहोश शायर की सफ़ में खड़ा करने के लिए काफ़ी है।
डॉ अफ़रोज़ आलम- सुभाष पाठक 'ज़िया' ने अपने दम पर अपनी शायरी के फ़लक को झिलमिलाने की कोशिश की है। 'ज़िया' की शायरी के समंदर में लहरों की जो हल्की धारियां नज़र आ रही हैं वो यक़ीनन एक रोज़ तूफ़ान का रुख़ इख़्तियार करेंगी।
ए. एफ. नज़र- दिल और दिमाग़ के तावाजुन का शायर है सुभाष पाठक 'ज़िया'।
ग़ज़ाला तबस्सुम- 'दिल धड़कता है' में रौशन ख़यालों की ज़िया है।
रूपेंद्र राज -रिवायती कशिश और जदीद रंग का मजमुआ है 'दिल धड़कता है'।
सुभाष पाठक 'जिया ' |
1.
हम कहां ज़िन्दगी से हारे हैं
रूह का पै'रहन उतारे हैं
अब चमकते नहीं तो क्या कीजै
होने को भाग्य में सितारे हैं
ज़िंदगी के लिए ये काफ़ी है
तुम हमारे हो हम तुम्हारे हैं
ज़ायक़ा तो चखो मुहब्बत का
दर्द मीठा है अश्क खारे हैं
कोई शिकवा नहीं है दरिया से
कश्तियों से ख़फ़ा किनारे हैं
क्या बिगाड़ेगी आपकी तलवार
हम तो पानी के बहते धारे हैं
बात बेबात हँस रहे हैं जो
ऐ 'ज़िया' वो भी ग़म के मारे हैं
**
2
तू चाहता है जो मंज़िल की दीद साँकल खोल
सदायें देने लगी है उमीद साँकल खोल
तुझे ख़बर भी नहीं कब गुज़र गया इक दौर
क़दीम था वो मैं दौरे जदीद साँकल खोल
बड़े मज़े में उदासी है बंद कमरे में
मगर हँसी तो हुई है शहीद साँकल खोल
फ़िज़ा बदलने से भर जाये ज़ख़्म ए दिल शायद
निकलना घर से हो अब के मुफ़ीद साँकल खोल
थकन से चूर हूँ , प्यासा हूँ मैं , अकेला भी
है उसपे धूप भी कितनी शदीद साँकल खोल
गया न छत पे तू तो चाँद आ गया दर पे
लगा गले से मना ले तू ईद साँकल खोल
तुझे है शम्स से नफ़रत, है धूप से शिकवा
ये रौशनी तो है तेरी मुरीद साँकल खोल
**
3
दुश्मनी में ही सही वो ये करम करता रहा
आइना मुझको दिखाकर ऐब कम करता रहा
वो तक़ाज़ा -ए-मुहब्बत था तो मैंने उफ़ न की
फिर तो ज़ालिम उम्रभर दिल पर सितम करता रहा
ख़ैरियत ही पूछने आयेगा तू ये सोचकर
मेरा दिल बीमार ख़ुद को ऐ सनम करता रहा
दुश्मनों की दुश्मनी भी उनके आगे कुछ नहीं
साज़िशें जो हरक़दम पर हमक़दम करता रहा
लाड़ले ने ख़त के बदले पैसे भिजवाये मगर
बाप मिलने की तमन्ना दम-ब-दम करता रहा
झूठ तो कर के दिखावा बन गया सच्चा वहाँ
सच मगर कोने में बैठा आँख नम करता रहा
लिख न पाया अब तलक तू बात दिल की ऐ 'ज़िया'
सिर्फ़ इसका उसका अफ़साना रक़म करता रहा
**
4.
दबा ली दाँत से उँगली कि ऐसा हो गया कैसे
हमारी जान का दुश्मन हमारा हो गया कैसे
ज़माना सोचता है चाँद कितना ख़ूबसूरत है
मगर मैं सोचता हूँ चाँद मैला हो गया कैसे
अब इसका ज़िक्र भी करने लगा है रूह को ज़ख़्मी
मुहब्बत का ये नाज़ुक फूल कांटा हो गया कैसे
सितम ये कुछ नहीं है ज़ह्र उसने दे दिया मुझको
सितम ये है कि पूछा जिस्म नीला हो गया कैसे
तुझे मैं अपना समझा था तुझे मेरा ही रहना था
ज़रा बतला दिले नादाँ तू उसका हो गया कैसे
हवा गर मिल न पाये कुछ नहीं फिर तेल बाती भी
दिया ये जानकर दुश्मन हवा का हो गया कैसे
**
5
क्यूँ न अब उसके रू ब रू रोयें
अब के आँसू नहीं लहू रोयें
मैं ज़ियादा न आप कम रोओ
पास आओ कि हू ब हू रोयें
कौन है, किसको फ़र्क़ पड़ता है
घर में रोयें कि कू ब कू रोयें
ख़ुश्क आँखों का रोना भी क्या है
आँसुओं से करें वुज़ू रोयें
वक़्त ए रुख़्सत है सो ख़ुदा के लिए
रख लें आँखों की आबरू रोयें
हाय छिन जायगा हमारा दर्द
ज़ख़्म होने लगे रफ़ू रोयें
हाँ अभी अश्क दर्द देते हैं
धीरे धीरे बनेगी ख़ू रोयें
ऐ 'ज़िया' तेरे ज़ख़्म की लज़्ज़त
दोस्त तो दोस्त हैं अदू रोयें
**
6
न आई जिसकी सहर, एक रात ऐसी भी
गुज़ार आये मगर , एक रात ऐसी भी
इधर गुज़रती हैं जैसे अज़ाब में रातें
गुज़रती काश उधर, एक रात ऐसी भी
बुझा सकूँ मैं दियों को ख़ुशी ख़ुशी जिसमें
तू मेरी नज़्र तो कर, एक रात ऐसी भी
जुदा है दश्त की शब तेरे शह्र की शब से
ले चल समेट के घर , एक रात ऐसी भी
मैं जानता हूँ न निकलेगा रात में सूरज
मैं चाहता हूँ मगर , एक रात ऐसी भी
वो जिसमें आँख ही ख़्वाबों से रश्क करती थी
'ज़िया' ने की है बसर , एक रात ऐसी भी
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7
ज़ब्त कर ग़म को कि जीने का हुनर आयेगा
बाद कांटों के ही फूलों का सफ़र आयेगा
राह सहरा की चला है तो ये भी सुन ले तू
सोचना छोड़ दे रस्ते में शजर आयेगा
आइना होना ही काफ़ी नहीं है कमरे में
साफ़ होगा वो तभी अक्स नज़र आयेगा
जिस पे हर सिम्त से ही आते रहे हों पत्थर
कैसे उस पेड़ पे फिर कोई समर आयेगा
इतना ख़ुश भी न हो तूफ़ान गुज़र जाने पर
ये समन्दर है यहाँ फिर से भंवर आयेगा
ले के इमदाद का झूठा सा बहाना कोई
मुझको औक़ात बताने वो इधर आयेगा
अपने आगोश में ले लूंगा 'ज़िया' मैं उसको
रात को चाँद जो दरिया में उतर आयेगा
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8
ज़मीं दिल के हसीं रिश्तों की बंजर हो गई अब तो
नदी मेरे ग़मों की भी समंदर हो गई अब तो
ये सुनकर जल उठे हैं लोग कुछ शोले शरारों से
कि चादर मेरे पैरों के बराबर हो गई अब तो
नदारद ख़्वाब हैं इससे, नदारद अश्क हैं इससे
यक़ीनन ये छलकती आँख पत्थर हो गई अब तो
न रखना रौशनी की आस इन बुझते चराग़ों से
सुना है तीरगी इनका मुक़द्दर हो गई अब तो
मचल जाती है कलियों का तबस्सुम देखकर अक्सर
ये नीयत है कि जैसे रेत का घर हो गई अब तो
किसी भी रास्ते निकले मगर मंज़िल को पायेगा
जवां-मर्दी 'ज़िया' की यार रहबर हो गई अब तो
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9
है तमन्ना अगर उजालों की
तो हिफ़ाज़त करो चराग़ों की
भूल मत जाना तुम ज़मीं अपनी
बात करते हुए सितारों की
ढूंढते हो दिलों में क्यूँ इसको
है वफ़ा चीज़ अब फ़सानों की
पास दरिया है प्यास फिर भी है
बेबसी देखिये किनारों की
आरियां भी चलाये पेड़ों पर
और उम्मीद भी बहारों की
दूर से जो लगे समन्दर सा
अस्ल में है डगर सराबों की
कुछ जले या बुझे हरिक सूरत
होगी मौजूदगी हवाओं की
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10
न बैठ चुप तू सुना दर्द, दर्द का क़िस्सा
किसी बहाने उठा दर्द, दर्द का क़िस्सा
मैं दास्तान तलक ही रहूँ तो अच्छा है
न कर दे मुझको मुआ दर्द, दर्द का क़िस्सा
बहार ने लिखी है दास्तान ख़ुशियों की
ख़िज़ाँ की रुत ने लिखा दर्द, दर्द का क़िस्सा
शबे फ़िराक़ उतरने लगी ढलान से जब
जवान होने लगा दर्द, दर्द का क़िस्सा
तुम्हारे जाने से इस पर शबाब आया था
तुम आये ख़त्म हुआ दर्द, दर्द का क़िस्सा
अलाव जिस पे गुजारीं ख़ुशी- ख़ुशी रातें
उसी अलाव में था दर्द, दर्द का क़िस्सा
सुना किसी को इसे बाँट ले किसी के साथ
कि बढ़ गया है 'ज़िया' दर्द, दर्द का क़िस्सा
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11
ये आँसू और दर्दे दिल मेरे हमदम नहीं होते
जो तेरा ग़म नहीं होता तो इतने ग़म नहीं होते
मज़ा क्या ज़िन्दगी में था अगर उल्फ़त की राहों में
हमारे तुम नहीं होते तुम्हारे हम नहीं होते
अगर ये आप कहते हैं तो शायद ठीक ही होगा
हक़ीक़त है यही शोले कभी शबनम नहीं होते
इधर कश्ती भी जर्जर है उधर तूफ़ान सर पर है
है साहिल दूर लेकिन हौसले भी कम नहीं होते
न होता फ़ख़्र यूँ महसूस ऐ मंज़िल तुझे पाकर
जो तेरी राह में इतने ये पेचो- ख़म नहीं होते
'ज़िया' ये सोचकर ही आज मौसम के मुताबिक़ हूँ
कि मर्ज़ी के मुताबिक़ तो कभी मौसम नहीं होते
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12
है कुछ अजीब सा आज़ार, दिल धड़कता है
हर इक सदा पे हरिक बार, दिल धड़कता है
करे न ज़िक्र भरी बज़्म में कोई उसका
मेरे हबीबो ख़बरदार, दिल धड़कता है
हमारा यार तो रहता है झील के उस पार
सदा जो आती है इस पार, दिल धड़कता है
कोई निगाह लगातार देखती है मुझे,
सो यूँ समझिये लगातार, दिल धड़कता है
है आज उससे मुलाक़ात की तमन्ना भी
कि उस पे आज है इतवार, दिल धड़कता है
लिखा था जिस पे मेरा नाम चॉक से तुमने
जो देखता हूँ वो दीवार, दिल धड़कता है
नये ख़याल की आमद से ज़ेहन है रोशन
कि होंगे कुछ नए अशआर, दिल धड़कता है
'ज़िया' के साथ शजर को उदास रहने दे
सो ऐ परिंदे न 'पर' मार, दिल धड़कता है
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13
कोई दामन कोई शाना होता
मेरे अश्कों का ठिकाना होता
तू नहीं कोई नहीं है जैसे
तू अगर होता ज़माना होता
ख़ार चुभते न अगर हाथों में
क़ीमत ए गुल को न जाना होता
इक ज़रा तेरी हँसी भर देती
ज़ख़्म कितना भी पुराना होता
लज़्ज़ते इश्क़ न जाती दिल से
काश वो छुपना छुपाना होता
होती पुरलुत्फ़ मुलाक़ात 'ज़िया'
उसके लब पे जो बहाना होता
**
14
धूप ढल जाती है घटाओं में
ये असर होता है दुआओं में
पत्थरों को भी मोम कर देंगी
इतनी तासीर है वफ़ाओं में
उसको महसूस करता है ये दिल
फूल तितली शजर हवाओं में
सांस लेना मुहाल है अब तो
है धुआँ ही धुआँ फ़िज़ाओं में
ऐ 'ज़िया' इतनी भी सज़ा मत दो
लुत्फ़ आने लगे सज़ाओं में
**
15
लुत्फ़ सारा मुहब्बत का जाता रहा
मैं उसे वो मुझे आज़माता रहा
अपना ग़म तो वो हँस कर उठाता रहा
मेरा ख़ुश रहना उसको सताता रहा
टुकड़े टुकड़े बिखर तो गया आइना
सच दिखाया था सच ही दिखाता रहा
दुश्मनी थी अँधेरों से उसकी मगर
रात भर दिल हमारा जलाता रहा
जीत में भी मज़ा जीत का था कहाँ
हारने वाला जब मुस्कुराता रहा
छू न पाई हँसी होंठ उसके कभी
उम्र भर जो सभी को हँसाता रहा
ऐ 'ज़िया' इन्तिहा है ये तन्हाई की
एक दर्दे जिगर था सो जाता रहा
**
16
हमारा दर्द ज़रा सख़्त था कि जैसे बर्फ़,
ग़मों की आँच से गलने लगा कि जैसे बर्फ़
बला की आग जिगर में छुपाई थी उसने
वो शख़्स शक्ल से जो सर्द था कि जैसे बर्फ़
रखे है हाथ वो कुछ देर हाथ पर हँसकर
मगर फिर ऐसे उसे छोड़ता कि जैसे बर्फ़
तू सर्दियों में किसी झील का सा आबे सर्द
मैं जमअ झील के ऊपर रहा कि जैसे बर्फ़
हरेक मोड़ पे वो रंग रूप बदले है
अभी है आब कभी संग था कि जैसे बर्फ़
तुम्हारा दर्द था भारी सो दिल में बैठ गया
ये ग़म तो आंख में ही तैरता कि जैसे बर्फ़
**
17
लहू गिरे तो करें 'वाह' कांच के टुकड़े
हमारे पाँव के हमराह कांच के टुकड़े
चलें जो एक पे तो दूसरा झुका ले सर
हमारे दर्द से आगाह कांच के टुकड़े
निकल रहे हैं सभी बच के पर उठाते नहीं
पड़े हुये हैं सरे राह कांच के टुकड़े
नहीं नहीं इसे उनका सितम नहीं कहिये
हमारे ज़ख़्म की हैं चाह कांच के टुकड़े
समझ गया वो सबब मेरे लड़खड़ाने का
कि मेरे होंठो पे था आह कांच के टुकड़े
कभी जिगर में कभी आंख में कभी दिल मे
'ज़िया' ने रक्खे हरिक गाह कांच के टुकड़े
**
18
महरूमियों का साथ निभाना पड़ा मुझे,
मजबूरियां थीं ज़िद पे तो जाना पड़ा मुझे
मैं कश्मकश में सोच न पाया कि क्या करूँ
हाँ रास्ते में एक ठिकाना पड़ा मुझे
ज़ख़्म ए जिगर को देख के हँसने लगी थी रात
बस इसलिये चराग़ बुझाना पड़ा मुझे
वो तितलियां बना रहा था इक वरक़ पे सो
इक फूल इक वरक़ पे बनाना पड़ा मुझे
दिल साफ़ था मगर ये ज़ुबाँ जब फिसल गई
इल्ज़ाम ए बेहयाई उठाना पड़ा मुझे
वो कह रहा था ख़्वाब हूँ ख़्वाबों का क्या वजूद
फिर यूँ हुआ कि ख़ुद को जगाना पड़ा मुझ
**
19
कहें तो कौन सुनेगा कि ख़ुश नहीं हैं हम,
न कहना ठीक रहेगा कि ख़ुश नहीं हैं हम,
तुम्हारे रुख़ पे चमक आएगी कि तुम ख़ुश हो
हमारा ख़ून जलेगा कि ख़ुश नहीं हैं हम
तलाशती हैं दवायें मरीज ए दिल में सुकून
कहाँ से ज़ख़्म भरेगा कि ख़ुश नहीं हैं हम
सुना है पुण्य मिलेगा उन्हें जो ख़ुश होंगे
हमें तो पाप लगेगा कि ख़ुश नहीं हैं हम
हरेक शख़्स यहाँ रंज ओ ग़म में डूबा है
सो कौन किससे कहेगा कि ख़ुश नहीं हैं हम
जो थी हमारी ख़ुशी वज्ह उसके जीने की
तो अब वो कैसे जियेगा कि ख़ुश नहीं हैं हम
तुम्हारी बज़्म में जायेंगे शादमा होकर
ये राज़ घर में रहेगा, कि ख़ुश नहीं हैं हम
'ज़िया' तमाम कहानी बनेगीं, अफ़साने
अगर कोई ये कहेगा कि ख़ुश नहीं हैं हम
**
20
क़त्ल करता है मुस्कुराहट का
उफ़ क़यामत है दर्द का झटका
सब गुज़रते हैं मेरे सीने से
मैं हूँ इक पायदान चौखट का
बादलों से बचा लिया मैंने
चाँद लेकिन शजर में जा अटका
एक मुद्दत हुई ये दरवाज़ा
मुन्तिज़र है तुम्हारी आहट का
मैं जो दीदार को तड़पता हूँ
ये करिश्मा है तेरे घूँघट का
पास हैं हम कि दूर क्या समझें
फ़ासिला है तो एक करवट का
जिस्म बिस्तर पे ही रहा शब् भर
दिल न जाने कहाँ कहाँ भटका
**
21
ज़ुबाँ तक बात भूखे पेट की आने नहीं देती
ये ख़ुद्दारी तो हरगिज़ हाथ फैलाने नहीं देती
बहाता है पसीना भूख जो अपनी मिटाने को
कभी भी रूह उसकी जिस्म को ताने नहीं देती
चला जाता मैं तुमको छोड़ कर यूँ ही मुसीबत में
मगर इंसानियत यूँ छोड़कर जाने नहीं देती
कोई उम्मीद बाक़ी अब नही है ज़ीस्त में फिर भी
न जाने दिल मे क्या है ज़हर जो खाने नहीं देती
मिलाना चाहते हैं हाथ हिन्दू और मुस्लिम पर
सियासत है कि इनको पास भी आने नहीं देती
**
22
किसे आवाज़ देता है, यहाँ पर कौन तेरा है
न रातें हैं सवेरों की न रातों का सवेरा है
बुरी शै भी कभी बाइस बनी है अच्छे कामों की
उजाला ढूँढ लाये हम सबब इसका अंधेरा है
ये आँखे हैं, नुमाइंदा तसव्वुर के जहानों की
यहाँ यादों की गलियां हैं यहाँ ख़्वाबों का डेरा है
यही मौसम तुम्हें जो दे रहा है वस्ल की लज़्ज़त
यही मौसम हमारी राहते जाँ का लुटेरा है
शजर से टूटते पत्ते, उतरता झील का पानी
ये कोई रुत नहीं है, दर्द कुदरत ने उकेरा है
'ज़िया' ये सोचना छोड़ो, ज़िया को देख पाओगे
चराग़ों ने तुम्हारी सिम्त से मुँह आज फेरा है,
**
सुभाष पाठक 'ज़िया'
परिचय:
नाम - सुभाष पाठक 'ज़िया'
पिता - श्री कमलकिशोर पाठक
जन्मतिथि- 15 सितम्बर 1990
शिक्षा- बी.एस.सी, बी .एड, एम. ए(हिंदी)
व्यवसाय- अध्यापक
सम्प्रति- शासकीय हाई स्कूल समोहा
प्रकाशन- शेरी मजमुआ 'दिल धड़कता है' (मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी भोपाल से उर्दू में 2020 में प्रकाशित)
देश-विदेश की तमाम साहित्यिक पत्रिकाओं, ग़ज़ल विशेषांकों में ग़ज़लें प्रकाशित
सम्पादन- ये नए मिज़ाज का शहर है (लोकोदय प्रकाशन)
प्रसारण- आकाशवाणी और दूरदर्शन से नियमित काव्य पाठ, साक्षात्कार प्रसारित
विशेष-
1.ग़ज़ल 'जाने क्यों दिल ये ख़ता करता है'
ग़ज़ल गायक अहमद रज़ा मुंबई द्वारा आकाशवाणी इंदौर से गाया गया
2.ग़ज़ल- 'कोई दामन कोई शाना होता' को मोहतरमा राखी चटर्जी साहिबा द्वारा केरल लिटरेचर फेस्टिवल में गाया गया
3.ग़ज़ल- 'क्यूँ न अब उसके रू ब रू रोयें'
को ग़ज़ल गायक अज़हर मेवान ने राष्ट्रीय कला महोत्सव दिल्ली में आवाज़ दी
4. ग़ज़ल 'अबके दिल बेहतरीन टूटा है',
ग़ज़ल 'मुझे सलीके से बर्बाद भी नहीं करते', आदि
को ग़ज़ल गायक अहमद रज़ा ने कई लाइव शो में गाया
5. 'टाइम्स ऑफ इंडिया' अलवर द्वारा मेरे गीत 'उम्मीद' को कोरोना एंथम में शामिल किया गया जिसे मो0 वकील द्वारा गाया गया
सम्मान- अदबी उड़ान संस्था द्वारा 2017 में 'अदबी उड़ान युवा ग़ज़लकार सम्मान '
पुनर्नवा सम्मान भोपाल 2018 (मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन भोपाल द्वारा)
हिंदी साहित्य सम्मेलन शताब्दी युवा साहित्यकार सम्मान, पटना 2019 (बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन पटना द्वारा)
शाद अज़ीमाबादी सम्मान 2021, पटना
विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित
पता-
ग्राम/ पोस्ट- समोहा
तहसील -करेरा
ज़िला -शिवपुरी , मध्यप्रदेश,
पिनकोड 473660
मो- 8878355676
ईमेल- subhashpathak817@gmail.com.
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