Saturday, April 7, 2018


साकीबा का तीसरा साहित्यिक सम्मलेन

रचना ,संवाद और मुलाक़ात
दिनांक -१ अप्रेल २०१८
स्थान – होटल रॉयल पैलेस ,विदिशा







“दुनिया में साहित्य तो बहुत है पर आपसी प्रेम बहुत कम है |हम चाहते है कि प्रेम ज्यादा हो साहित्य भले ही थोडा कम हो |”

यह कहना है साहित्य की बात समूह के संचालक श्री ब्रज श्रीवास्तव जी का |
जहाँ तक मेरा सोचना है साहित्य यथार्थ का आईना है ,यह  सबके हितार्थ  ही होता है |साहित्य है  तो प्रेम है ,और जहां प्रेम है वहाँ साहित्य की सुगंध अवश्य है |यह  जरुर   है  कि आज साहित्य लेखन थोडा ज्यादा  ही विस्तार पा गया है | डायरियों और मन के गहन तल में समाधिस्थ रचनाओं को फेसबुक और वाट्स अप जैसे सशक्त मंच हासिल हुए है |रचनाओं को पाठक का मिलना रचनाओं को जीवन दान मिलना होता है |
इसमें महती भूमिका निभाई है सोशल मीडिया ने |बहुत से नव लेखक सामने आये हैं  , आपसी संवाद मुखर हुए हैं  | आभासी जान-पहचान ने प्रत्यक्ष मेल –मुलाक़ात से आपसी अपनत्व भरे रिश्तों को जमीन प्रदान की है |







साहित्य की बात यानि साकीबा के सदस्यों ने तीसरा साहित्य सम्मलेन  १ अप्रेल २०१८  ,रविवार को विदिशा के रॉयल पैलेस होटल में मनाया  गया |और कवि घनश्याम मुरारी पुष्प  का स्मरण किया। |
विदिशा में यह आयोजन इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि ...

कालिदास ने मेघदूत में इसका नगर ‌का ज़िक्र किया,
सम्राट अशोक की ससुराल यहाँ रही,
यहाँ नागार्जुन, शलभ श्रीराम सिंह, वेणु गोपाल खूब रहे हैं।
अभी भी नरेंद्र जैन और विजय बहादुर सिंह का यह शहर प्रिय हैं


सईद अय्यूब और ब्रज श्रीवास्तव  



ऐसे शहर में  इस  सहित्यिक सम्मेलन का होना  ,और नए कलमकारों का इसमें शामिल होना अपनेआप में गौरव की बात हैं |


इस आयोजन में शामिल हस्तियों  में प्रमुख रहे -कलाकार देवीलाल पाटीदार,प्रो.प्रज्ञा रावत, नवल शुक्ल ,प्रदीप मिश्र, उत्तम राव बिजवे ,डा.पदमा शर्मा, एवं  जिला शिक्षा अधिकारी श्री  एच.एन.नेमा.

कार्यक्रम के पहले सत्र में रचना पाठ और संगोष्ठी की गई  जिसमें साहित्य और संप्रेषणीयता विषय पर विचार विमर्श किया गया।

डा.मोहन नागर ने कहा कि हम लोग फैशन की तरह स्थापित रचनाकारों को प्रोत्साहित और नव रचना कारों को हतोत्साहित करते हैं।  नव लेखको को लिखना और लिखना भर काफी नहीं है, भाषा और कंटेंट की तार्किकता और गंभीरता के लिए लगातार पढ़ना और बहुत ज्यादा पढ़ना  चाहिए |यदि हम यह नहीं जानते तो अच्छे लेखक नहीं बन सकते हैं  |







संजीव जैन ने वर्तमान हालात की  विद्रूपता से आहत होकर अपने कविता पाठ में बैचेनी व्यक्त की |

प्रज्ञा रावत ने कहा , लंबी कवितायें कम आ रही हैं । समाजवाद के प्रभाव में क्षणिकायें ज्यादा लिखी जा रहीं हैं|

प्रदीप मिश्र जी ने कहा, व्हाट्सएप्प समूह एकतरफ तो जनतांत्रिक मंच प्रदान करता है दूसरी तरफ यह बाजार का उत्पाद है। अतः यहाँ पर बहुत सावधान रहना जरूरी है । मैं इसको एक चौपाल की तरह मानता हूँ जहाँ मित्र लोग चर्चा करते हैं। यहाँ गंभीर साहित्य की गुंजाइश नहीं है। 


पुष्प स्मरण सत्र में कहा , पुष्प जी अपनी भाषा, विचार, जीवनदृष्टि और शिल्प में मुकम्मल कवि थे। उनका पक्ष समाज का कमजोर वर्ग था । वे विविध स्वरूपों और फॉर्म में सार्थक सृजन किये। वे अभी भी हमारे बीच हैं। उनके ही सृजन की ताकत है जो हम सबको यहाँ जोड़े हुए है। उनके सरोकार और जिम्मेदारी का परिणाम है कि उनकी अगली पीढ़ी यानी ब्रज हमारे साथ कविताएँ लिख रहे हैं। ब्रज की कविताएं पुष्प जी सृजन का विस्तार है।




प्रवेश सोनी को सम्मानित करते हुए 



इस सत्र में कोटा की चित्रकार और कवियत्री प्रवेश सोनी का साकीबा समूह द्वारा अभिनंदन किया गया । इसके अलावा शिवपुरी की डॉक्टर पदमा शर्मा एवं मधु सक्सेना का भी  अभिनंदन किया गया।
कविता पाठ किया  संतोष तिवारी, कुंजेश श्रीवास्तव आनंद सौरभ उपाध्याय, नीलिमा,संतोष श्रीवास्तव , प्रो संजीव जैन , स‌ईद अय्यूब ने । इसके बाद सभी को  छायाकार और इतिहास के जानकार अरविंद शर्मा की रचना उदयेश्वर मंदिर की तस्वीर प्रतीक चिन्ह देकर सम्मान किया गया।

 कार्यक्रम का संचालन किया दिल्ली से आए युवा कथाकार स‌ईद अय्यूब और विंग कमांडर अनुमा आचार्य ने। साकीबा के संचालक एवं कवि ब्रज श्रीवास्तव ने आभार  प्रकट किया । सईद अय्यूब का साहित्यिक संचालन उल्लेखनीय रहा |

 
साकिबियंस




दूसरा सत्र शहर के कवि घनश्याम मुरारी पुष्प की स्मृति को समर्पित रहा, जिसमें मंच पर उपस्थित साहित्यकारों ने पुष्पजी की स्मृतियों को साझा किया।
उनकी याद करते हुए जिला शिक्षा अधिकारी श्री एच.एन.नेमा ने कहा की पुष्प जी की बाल कविताएं हमारी धरोहर हैं------


बिजवे जी ने कहा कि पुष्प जी स्वास्थ्य सजग और सक्रिय समाज सेवी भी थे । इस सत्र में महेन्द्र वर्मा, अविनाश तिवारी, डॉक्टर पद्मा शर्मा, दिनेश मिश्र के उदबोधन के बाद  मोहन नागर,प्रज्ञा रावत, प्रदीप मिश्र, मधु सक्सेना, मंजूषा मन ,उदय ढोली ,रेखा दुबे,हरगोविंद मैथिल और प्रवेश सोनी ने कविता पाठ किया ।
इस अवसर पर कामरेड माधोसिंह,  दफैरून, जगदीश श्रीवास्तव, अतुल शाह, रेखा दुबे , सुलखान सिंह हाड़ा






निसार मालवी, शैलेंद्र भावसार, राम किशन असहाय,महेश पाण्डे,आनंद श्रीवास्तव, रामशरण ताम्रकार ,मुकेश खरे प्राचार्य,एम.सी.शर्मा,शरद श्रीवास्तव, सुनील शर्मा,भानु प्रकाश शर्मा, ज्योति शर्मा,सुरेश चंद्र शर्मा, कोमल सिंह, शाहिद, व पुष्प जी के परिजनों सहित नगर के कई साहित्य प्रेमी उपस्थित थे ।
कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर वनिता वाजपेई और सुदिन श्रीवास्तव ने किया।
आभार व्यक्त किया राजेन्द्र श्रीवास्तव ने।

रात्रि भोज का आयोजन सह्रदयी मित्र श्याम गर्ग जी  के आवास पर रहा ,जहां भोजन के साथ गीत गायन ,हंसी  उल्लास के साथ सभी मित्रों ने आह्लादित होकर समय गुजारा |एक यादगार शाम को स्मृति में दर्ज किया |



२ अप्रैल को

परमार कालीन एवं स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना एतिहासिक स्थल  बीजामंडल का भ्रमण किया गया ।आभा बोधिसत्व, मधु सक्सेना और प्रवेश सोनी के साथ ब्रज श्रीवास्तव ने फोटो ग्राफी का लुत्फ उठाया। सदियों पुरानी बावड़ी के नीरव नीर को देखकर मन रोमांचित हो उठा |पाषाण भग्न प्रतिमाएं अपने एक एक अंश से कई कहानियां कह रही थी | बेशकीमती पुरा सम्पदा देखने को मिली |यह भी आभास हुआ कि सदियाँ करवटें बदलती है ,लेकिन उनके निशाँ धरती अपनी कोख में सहेज लेती है |



बीजामंडल 



साकीबा में पुरातत्व ज्ञाता और प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता डॉ वाकणकर के शिष्य श्री शरद कोकास अपनी पुरातत्ववेत्ता की डायरी श्रंखला में इनके बारे रोचक जानकारियाँ देते रहे  है |

बाद में कवि रेखा दुबे के घर पर ये सब और स‌ईद अय्यूब, कामरेड माधोसिंह पहूंचे और उनके आतिथ्य में गोष्ठी की। माधोसिंह जी ने बीजामंडल ,उदयेश्वर मंदिर और साँची स्तूप की कई अनूठी जानकारियों से अवगत कराया |
माधोसिंह जी के साथ कई मुद्दों पर विमर्श किये ,जिनमे स्त्री  -विमर्श अहम मुद्दा रहा |आभा बोधिसत्व ने अपने विचार रखे | प्रकृति की गोद  में बना उनका वैभवशाली आवास और चारो और उनके द्वारा निर्मित  प्राक्रतिक वातावरण  ने एक बारगी तो मन को वही बाँध लिया |
दोपहर भोजन का आतिथ्य माधोसिंह जी ने ही किया |





विदिशा के सुधिजनों की मेजबानी भी अविस्मरिणीय  प्रेरक व अनुकरणीय है । स्मृतिचिन्ह तो सहायक है ही ।सभी का तहेदिल से बहुत आभार ।


फिर कभी फिर कहीं इस रँगेमहफिल का मुक़ाम होगा
चलते हैं दोस्त मिलेंगे फिर जब  तुमसे सलाम होगा ।
मुस्तफ़ा खान




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