फेसबुक की आभासी दुनियाँ पर सूरज प्रकाश जी की लिखी गई एक शानदार कहानी ,......
सूरज प्रकाश
पहले
अपना परिचय दे दूं। निधि अग्रवाल। उम्र 24 बरस। रहने वाली पटियाला की हूं लेकिन
पिछले एक बरस से पुणे में हूं। साइकॉलोजी में एमए और एचआर में एमबीए हूं। एक बड़ी
कंपनी में काम करती हूं। अच्छा रुतबा, अच्छी सेलरी और
ढेर सारे पर्क्स। कार, लीज्ड फ्लैट, बढ़िया लैपटाप, आइपॉड, शानदार मोबाइल और भी दुनिया भर की ऐयाशियों की चीजें कंपनी के खाते में।
बस
ही दिक्कत है। मैं बहुत ज्यादा आउटगोइंग टाइप की नहीं हूं। ऑफिस से सीधे ही कहीं
बाहर निकल जाऊं या कलीग्स के साथ कहीं वक्त गुज़ार लूं तो ठीक वरना एक बार घर आ
जाने के बाद मैं कहीं नहीं जाती। वैसे भी घर आते-आते आठ बज ही जाते हैं। थोड़ा
बहुत पढ़ना, एकाध फिल्म, कुछ म्यूजिक, थोड़ी देर टीवी और मोबाइल पर दुनिया जहान
से गप्पबाजी। हां, छुट्टी के दिन इस रूटीन में कुछ बदलाव
आता है जब कुछ फ्रेंड्स के साथ एकाध मूवी देखने और बाहर डिनर के बहाने चार छ: घंटे
घर से बाहर बिता लेती हूं। बेशक कई रिक्वेस्ट आये लेकिन कोई पुरुष मित्र बना
नहीं। बने तो टिके नहीं। वैसे शहर में स्मार्ट, अकेले, इच्छुक और पसंद आने लायक नौजवानों की
कमी नहीं। मेरे ख्याल से मेरे जैसी जितनी लड़कियां पुणे में अकेली रहती होंगी
इतने ही एलिजिबल लड़के भी ऐसे होंगे जो अपनी शामें अकेले बिताने पर मजबूर होते
होंगे। कई बार संयोग भी अपना रोल अदा करते ही हैं।
वैसे
मुझे जि़ंदगी से कोई शिकायत नहीं। अपने तरीके से खूबसूरत जीवन जी रही हूं। फिर
फेसबुक है ही सही जो दुनिया में खुलने वाली सबसे खूबसूरत खिड़की है। इस खिड़की के
सहारे कभी भी कहीं भी आया जाया सकता है।
लेकिन
पिछले दिनों फेसबुक के कारण मेरे साथ एक ऐसी घटना घटी जो मैं न तो किसी से शेयर कर
पा रही हूं और न ही उस हादसे से बाहर ही आ पा रही हूं। ये एक तरह का हादसा ही था
जो खेल खेल में शुरू हुआ और कुछ ही दिनों में इसने मुझे इतनी गहराई से जकड़ लिया
कि न तो मैं उसे अधबीच छोड़ पायी और ही सच बता कर उससे बाहर ही आ पायी। सारा किस्सा
एक मासूम झूठ से शुरू हुआ और पता ही नहीं चला और मैं सच बोल कर उसे खत्म करने के
बजाये उसी झूठ को सहलाती पोसती बड़ा करती गयी और आज मेरी ये हालत है कि इतने दिन
बीत जाने के बाद भी उससे बाहर आ ही नहीं पा रही। बेशक एक रास्ता सूझा है मुझे
लेकिन वह भी उसी झूठ को और और आगे ही बढ़ाता है। एक बात और भी है कि उस उपाय को इस्तेमाल करने का सही वक्त भी अभी नहीं आया
है। कुछ दिन और इसी झूठ को सहलाते दुलराते रहना होगा। इस चक्कर में फेसबुक पर
अपनी वाल पर कोई मजेदार पोस्ट भी नहीं डाल पा रही हूं और न ऑनलाइन ही आ पा रही
हूं।
ये
झूठ कुछ वैसा ही है जैसा हम एमए के दिनों में पकाते थे। एसाइनमेंट्स और प्रोजेक्ट्स
के सिलसिले में कई तरह के सर्वे करने होते थे। अक्सर क्वश्चनेयर बना कर बीसियों
लोगों से एक जैसे सवाल पूछने होते थे। हम सब तब एक ही काम करते थे। कौन जाये 100 लोगों के पास और वही वही सवाल पूछे। हम कुल पांच लोगों के पास जाते, उनके जवाब ध्यान से नोट करते और उन 5 जवाबों के आधार पर ही ट्रेंड का
रुख भांप लेते थे और बाकी 95 जवाब मनगढ़ंत बनाते थे या हम स्टूडेंट्स आपस में पूछ
पाछ कर बाकी जवाब तैयार कर लेते थे। तब हमारी कल्पना शक्ति या किस्से बनाने या किस्से
सुनाने का हुनर हमारे खूब काम आता था। ये मामला भी कुछ कुछ किस्सागोई जैसा बनता
चला गया है।
अभी
दस ही दिन पहले की बात है। उस दिन शनिवार था। रात के वक्त बेडरूम में अधलेटे हुए
लैपटाप पर एक फिल्म देख रही थी – लव इन द आइम ऑफ कॉलेरा। गैब्रियल गार्सिया
मार्कवेज का ये बेहद मजेदार नॉवल मैं पढ़ चकी थी और पता चला था कि इस पर एक
खूबसूरत फिल्म भी बनी है। वही फिल्म उस दिन एक क्लीग ने पैन ड्राइव में दी थी।
फिल्म पूरी हुई तो रात के दो बजे होंगे। उससे पहले टीवी पर क्रिकेट मैच देख रही
थी। लैपटाप बंद करने लगी तो देखा फेसबुक खुला है। मुझे याद ही नहीं रहा था कि पीछे
फेसबुक ऑन है। देखा तो कुछ मैसेजेस थे, तीन चार इनबॉक्स
खुले थे और फ्रेंड लोग अपने-अपने हिसाब से खटखटा कर गुड नाइट कह कर जा चुके थे।
कुछ निशाचर और निशाचरियां ऐसे भी नज़र आये जिनकी हरी बत्ती जल रही थी। कुछ फार्मल
मित्र थे और कुछ अंतरंग, कुछ ऐसे भी थे जिनसे कभी हैलो नहीं हुई
थी लेकिन वे हमेशा ऑन लाइन ही नज़र आते हैं। वे भी अभी तक मेरी तरह रतजगा कर रहे
थे। एक इनबॉक्स मैसेज ऐसा भी मिला जिसमें दो तीन बार हाय और हैलो लिखा था। उसमें
आखिरी बार जो मैसेज आया था उसने मेरा ध्यान खींचा। एक तरह का अनुरोध था ये – कैन
आइ चैट विद यू!!! मैंने ध्यान से देखा - ये संदेश पचपन
मिनट पहले भेजा गया था। जनाब अभी भी ऑनलाइन थे।
मैं
हैरान हुई। नाम देखा - अजित सूद। उनसे कभी चैट नहीं हुई थी। पता नहीं इस शख्स को
कब और क्या सोच के फ्रेंड बनाया होगा या उसी की तरफ से आयी रिक्वेस्ट को कन्फर्म कर दिया होगा। प्रोफाइल पर डबल क्लिक
किया – नोयडा निवासी। रिटायर्ड सेंट्रल गवर्नमेंट आफिसर। अबाउट में डबल क्लिक
किया तो पता चला - उम्र 63 बरस। इंटरेस्टैड इन फ्रेंडशिप विद मेन एंड वीमेन।
पालिटिकल व्यू में ह्यूमैनिटी लिखा था। फोटो में क्लिक किया तो अच्छी
पर्सनैलिटी वाले आदमी की तस्वीरें नज़र आयीं। टाइमलाइन में देखा तो ढेर सारे
कोटेशंस और दुनिया भर की तस्वीरें। इसका मतलब बंदे को प्रोफाइल सेटिंग नहीं आती।
मैं हैरान, ये शख्स रात के दो बजे मुझसे क्यों चैट
करना चाहता है! वैसे गाहे बगाहे लोग बाग तंग करते ही
रहते हैं और अनफ्रेंड भी होते ही रहते हैं।
सोचा, चलो देखें तो सही, कौन बंदा है और क्या कहना चाहता है। कुछ
तो ह्यूमन बिहेवियर का पाठ पढ़ायेगा। वैसे भी इतनी जल्दी नींद नहीं आने वाली थी।
मैंने
उसके मैसेज बॉक्स में हाय लिखा और रवाना कर दिया। जैसे वह मेरे संदेश की राह ही
देख रहा था।
तुरंत
जवाब आ गया - थैंक्स फॉर रिप्लाई। हाउ आर यू?
-
मैं ठीक हूं अजित साहब, आप कैसे हैं और इतनी देर तक जाग कर आप
मुझसे क्या बात करना चाहते हैं?
- निधि जी, मेरी प्राब्लम है कि मुझे देर तक नींद नहीं
आती। करवटें बदलता रहता हूं। बार-बार उठता हूं। कभी किताब खोलता हूं, कभी फेसबुक ऑन
करता हूं तो कभी टीवी ऑन करता हूं। कहीं भी दिल नहीं लगता। आपका प्रोफाइल देखा तो
अच्छा लगा। आप ऑनलाइन नज़र आयीं तो सोचा शायद...। वैसे हम कई दिन से फ्रेंड हैं.. !
- सो नाइस आफॅ यू अजित जी, मुझे भी आपसे बात करके अच्छा लगेगा। अपने बारे
में कुछ बताइये तो बात करने में आसानी होगी। ये लिख कर मैंने एक स्माइली चिपका
दिया।
अजित साहब का तो दिन बन गया। वे जैसे इसके लिए तैयार
बैठे थे। अपने बारे में विस्तार से बताने लगे। मैं उनकी चैट में सिर्फ हममम से ही
रिएक्ट कर रही थी। वही घर घर की कहानी। बच्चे बाहर। बीवी तीन बरस पहले गुज़र
गयीं तो एकदम अकेला रह गया हूं। बाकी किसी से कम्यूनिकेशन रहा नहीं। दिन तो किसी
तरह गुज़र जाता है लेकिन कम्बख्त रात भारी पड़ती है। वगैरह वगैरह। पता नहीं कैसे
हुआ कि मैं बीच बीच में ओह एंड यू आर राइट लिख कर घर बैठे आधी रात को एक अनजान
आदमी के लिए काउंसलर की भूमिका निभाने लगी। वे फिर मेरे प्रति जैसे थैंक्स की
बरसात ही करने लगे कि मैं पहली ही बार उनसे इतनी अच्छी तरह से पेश आ रही हूं।
इस बीच मैं उनकी फ्रेंड लिस्ट देख चुकी थी। लगभग 4000
फ्रेंड थे उनके। हर उम्र के। लड़के और पुरुष कम और लड़कियां ज्यादा। मेरी ही उम्र
की और कुछ छोटी भी। महिलाएं भी। हर उम्र की।
अपनी या किसी की भी फ्रेंड लिस्ट देख कर ये तय करना
बहुत मुश्किल होता है कि फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट किसने भेजी होगी। अब तक ये समझ
में आने लगा था कि ये बूढ़ा आदमी बेहद
अकेला है। जीवन से हताश निराश है और कम्यूनिकेशन गैप का मारा है। उसे फेसबुक मिल
गया तो जैसे लॉटरी लग गयी। अपने टाइम को क्वालिटी टाइम में बदलने के लिए दिन रात
फेसबुक से चिपका बैठा रहता होगा। कोई तो उससे बात करे या वही दूसरों के इनबाक्स
में हाय और हैलो डाल कर इंतज़ार करे कि कोई उससे बात करने को राजी हो जाये।
मैंने उनसे पूछ ही लिया - अजित जी, मैं आपकी फ्रेंड लिस्ट देख रही थी। माशा अल्लाह
आप तो मुझसे भी ज्यादा अमीर हैं। मेरे तो मुश्किल से पांच सौ फ्रेंड होंगे और आप
तो 4000 की फौज ले कर किसी को भी मात दे सकते हैं। युनिवर्सिटी खोल सकते हैं अपने
दोस्तों के नाम पर। भला आपको अकेलापन कहां सताता होगा?
- आप सही कह रही
हैं निधि जी...।
- आप मुझे निधि कहेंगे तो भी चलेगा।
- थैंक्स निधि। ऐसा है कि कहने को तो फेसबुक बहुत
फ्रेंडली है और बेशक मेरे इतने सारे फ्रेंड बनते चले गये पर इसमें भी कई तरह के
झमेले हैं। अपनी ही उम्र के किसी आदमी से बात करो तो उसके पास भी वही दुखड़े होते
हैं तो मेरे पास हैं। तो इसका मतलब हुआ अपने ही दुखड़ों का एक्शन रिप्ले। हमसे
कम उम्र के लोगों या लड़कों को हमसे बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं होती। रही
लेडीज फ्रेंड्स की बात तो कभी तो उनसे अच्छी बात हो जाती हैं लेकिन बहुत दूर तक
नहीं चलती। बचती हैं निधि, आपकी उम्र की लड़कियां तो वे हमारी बहुत अच्छी दोस्त तो बनती हैं लेकिन
..
- लेकिन क्या? मुझे भी
अब उनसे बात करने में मज़ा आने लगा था। बंदा दिलचस्प बातें कर रहा था।
- आपको यकीन नहीं आयेगा, इसमें दोहरा खतरा रहता है। बेशक कुछ लड़कियां
बुजुर्गों से ही चैट करने में सेफ महसूस करती हैं और करती भी हैं लेकिन कई बार
हमें देर तक पता ही नहीं चल पाता कि हमें जिसने फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट भेजी है वो
लड़की है भी या नहीं। बहुत से आवारा लड़के लड़की बन कर हमें छकाते रहते हैं और
बेवकूफ बनाते रहते हैं।
- अरे वाह, ये तो मैं भी नहीं जानती थी कि फेसबुक पर इस
तरह के लोग भी हैं। हालांकि मैं इस तरह के कैरेक्टर्स को अच्छी तरह से जानती हूं
और आये दिन ऐसे लोगों से पाला भी पड़ता रहता है लेकिन मैं अजित जी के ही मुंह से
सुनना चाहती थी। मैंने पूछा - अच्छा आप लड़कियों के बारे में बता रहे थे कि वे
सीनियर्स से ही चैट करने में सेफ महसूस करती हैं, वो मामला क्या है। बेशक मेरी लिस्ट में अजित
जी जैसे कुछ लोग रहे होंगे लेकिन ये पहली बार हो रहा था कि कोई सीनियर सिटिजन
मुझसे चैट कर रहा था। अपनी ओर से मैंने कभी इस तरह की पहल नहीं की थी।
- अब निधि जी, आपसे पहली बार चैट हो रही है वो भी आधी रात को।
मैं कैसे बताऊं कि दरअसल..
- अरे अजित जी आप बिलकुल संकोच न करें। हम दो मैच्योर
लोग आपस में बात कर रहे हैं और इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है कि आपको परेशान होना
पड़े। मैंने उनकी हिम्मत बढ़ायी - आप कहें तो सही।
-
दो बातें हैं निधि जी। पहली बात ये है कि लड़कियां समझती हैं कि हम सीनियर
सिटिजन लोग लड़कियों से दोस्ती इसलिए करते हैं कि कुछ मज़ा मिल जाये, कुछ टिटिलेटिंग, कुछ फन और कुछ
एक्साइटमेंट। वे समझती हैं कि सारे बुड्ढे सैक्स स्टावर्ड होते हैं, ठरकी होते हैं, बात करते ही लार
टपकाने लगते हैं और न जाने क्या क्या!!
अरे ये आदमी तो खूब
मजेदार बातें बता रहा है! चैट जारी रखने में कोई हर्ज नहीं
लगा।
-
और!
-
आपको बतायें कि फेसबुक पर कई लड़कियां खुद ही सीनियर लोगों से ठीक इन्हीं कारणों
से चैट करना पसंद करती हैं और बदनामी हमारे हिस्से में आती है।
-
अच्छा एक बात बताइये अजित जी, आज आप रात के ढाई बजे तक जाग रहे हैं। कम
से कम डेढ़ घंटे से तो मुझसे ही चैट करने की राह देख रहे थे। सच बताना, अपनी उम्र से लगभग तिहाई उम्र की लड़की से चैट करने की आस रखना, इनमें से किस कैटेगरी में आयेगा? इसके साथ ही मैंने
एक स्माइली चिपका दिया।
थोड़ी
देर तक उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया। मुझे ही पूछना पड़ा - आर यू देयर अजित जी?
-
यस निधि जी, आपके सवाल का सही जवाब ही तलाश रहा हूं।
देखिये, ये तो तय है कि यहां पर फेसबुक पर जितने
भी जिस उम्र के भी लोग हैं, वे यहां पारिवारिक रिश्ते मसलन बेटी, बेटा, भाई, बहन या चाचा ताऊ तो बनाने के लिए नहीं ही बैठे हैं। कोई भी नहीं। मैं भी
झूठ ही बोलूंगा अगर मैं कहूं कि मैं यहां इसी तरीके के फैमिली रिलेशंस डेवलप करने
के लिए आधी आधी रात तक अपने पीसी के सामने बैठा रहता हूं।
-
वही तो मैं आपसे जानना चाहती हूं। लगा वे अपने असली मकसद पर बस, आने ही वाले हैं।
-
देखो निधि, सारे बेहतरीन रिश्तों के बावजूद हर आदमी
के मन के कुछ खाने खाली रह ही जाते हैं। कई बार तन की भी कुछ हसरतें, कुछ ज़रूरतें पूरी किये जाने की गुहार जैसी लगाने लगती हैं। अच्छा साथ
किसे अच्छा नहीं लगता। बेशक वर्चुअल ही क्यों न हो। मैं भी आखिर इन्सान ही हूं।
अब आपसे बात हो ही रही है तो खुदा झूठ न बुलवाये, कुछ नयी सोच, कुछ नयी बात या कुछ नया सुनने कहने का
लालच ही मुझे देर रात तक जगाये रखता है। मैं जानता हूं कि मैं इस तरह करने या
सोचने वाला अकेला नहीं हूं। वैसे एक बात बता दूं निधि जी कि मैं उस मायने में ठरकी
या लम्पट नहीं हूं। आइ एम ए रिस्पेक्टेड मैन इन माय सोसाइटी।
अरे, ये तो अच्छा खासा भाषण पिला गये। मैंने हिसाब लगाया - वे मेरे पापा से
कम से कम 10 बरस बड़े थे। ये तो उन्होंने जतला ही दिया कि वे दूध के धुले नहीं
हैं और रामायण की चौपाइयां सुनाने के लिए फेसबुक पर युवा लड़कियों की आधी आधी रात
तक बाट नहीं जोहते रहते। मौका मिले तो....। मुझे हँसी आ गयी - इस देश में वही
ईमानदार है जिसे बेईमानी का मौका नहीं मिलता। मुझे चुप देख कर पूछा अजित जी ने -
आर यू ऑन लाइन?
- जी कहिये सर, इस बार मैंने टोन बदली।
- आपको बुरा तो नहीं लगा निधि जी, पहली ही चैट में
आपसे इतनी सारी बातें कह गया!
- नहीं सर, ऐसी कोई बात नहीं हैं, आपसे इतनी सारी
बातें जानने को मिल रही हैं। मैंने कह तो दिया है लेकिन सोच रही हूं कि यह बहुत
बढ़िया मौका है कि इनके जरिये इस तरह के लोगों को नजदीक से जाना जाये। ये तय है कि
दो चार चैट में ये अपने मन की बात कह ही देंगे। बस, ट्रिक से हैंडल करने की जरूरत है।
- आपने अपने बारे में तो कुछ भी नहीं बताया निधि! आपके प्रोफाइल
पर आपकी कुछ बेहद शानदार तस्वीरों के अलावा कुछ भी नहीं है।
- जी सर, थैंक्स फार लाइकिंग माई पिक्चर्स। वैसे मेरे
पास बताने के लिए कुछ खास नहीं है। एक कॉमन गर्ल। बहुत इंट्रोवर्ट हूं। मैंने कह
तो दिया है लेकिन मैं साफ-साफ समझ पा रही हूं कि ये बंदा आज ही अपने पत्ते खेलने
के मूड में है। मैं भी तय कर लेती हूं कि मुझे आगे क्या कहना और करना है। ये तो बहुत
अच्छा हुआ कि मेरे प्रोफाइल पर मेरे जॉब वगैरह के बारे में कुछ भी नहीं दिया हुआ
है। मुझे अपने तरीके से खेल खेलने में या यूं कहें बंदे को राह पर लाने में आसानी
होगी।
- कुछ तो बताइये अपने बारे में। मैंने तो अपना सब कुछ
पहली ही बार में आपसे शेयर कर लिया।
मैं हँसी - वो भी आधी रात को!!!!! लेकिन कहा यही
है - सर इस समय सुबह के तीन बजने वाले हैं। मुझसे इतनी देर तक चैट करने के बाद अब
तो आपको नींद आ ही रही होगी। मुझे तो खैर आ ही रही है। आपसे बात करके मुझे बहुत
अच्छा लगा। आपसे फिर लम्बी बात करूंगी और अपने बारे में सब कुछ शेयर करूंगी। इस
समय बाय!
-
बाय निधि, इट वाज माय प्लेज़र टू टॉक टू यू। गुड नाइट।
-
टेक केयर, गुड नाइट।
अब मुझे सोचना था कि इस
बेमेल और आधी रात को शुरू हुई फ्रेंडशिप का क्या करना है। बिना सोचे समझे
अनफ्रेंड कर देना है ताकि रात बेरात उनकी लंतरानियां न सुननी पड़ें या फिर देखना
भालना है कि आखिर वह या इस तरह के अकेले बूढ़े जिंदगी से या फेसबुक से ही आखिर
चाहते क्या हैं।
मैं उस समय तो यही सोच
कर सो गयी थी कि जब की तब देखी जायेगी। उन्हें ऑनलाइन देख कर अपनी तरफ से मैं
हैलो नहीं करूंगी लेकिन अगर उन्होंने हैलो कि तो अपने बारे में कोई न कोई ऐसा
किस्सा छेड़ दूंगी कि वे ही अपनी परतें खोलें।
अगली दोपहर मोबाइल पर फेसबुक ऑन किया तो
जनाब हाजिर थे। मुझे देखते ही हैलो दाग दिया। जैसे वे बस मेरा ही इंतज़ार कर रहे
थे।
मैंने
जवाब दिया - हैलो!
-
कैसी
हैं निधि जी?
-
मैं ठीक
हूं आप सुनाइये, रात
नींद तो आ गयी थी आपको?
-
हां
आयी भी और फिर टूटती भी रही।
हो गयी मुसीबत। ये तो
अभी भी पिछली रात का बखेड़ा शुरू कर देंगे। जल्द ही टॉपिक बदलना होगा।
-
ओह
सो सैड, आज
तो छुट्टी है। कल की कसर आज पूरी कर लीजिये।
-
अजी
अपनी तो हर दिन ही छुट्टी होती है। खैर आप सुनाइये..
-
बस, आज
संडे है तो .. मैंने जानबूझ कर वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया।
-
वैसे
क्या करती हैं आप?
- मैं एक जिम में मैनेजर हूं। पता नहीं मेरे मुंह
से कैसे निकल गया। आज तक मैंने कोई जिम अंदर से नहीं देखा, कैसा होता है। कहीं कुछ उलटा सीधा पूछ न बैठे। उसे
अगला सवाल पूछने का मौका दिये बिना पूछ लिया मैंने - आप तो रिटायर्ड आफिसर हैं ना।
कहां से रिटायर हुए थे?
-
ग्रेट, तब
तो आप हैल्थ कांशियस भी होंगी। वे अभी मेरे जवाब पर ही अटके हैं।
-
जी
बस यूं। यही समझ लीजिये।
-
आपके
प्रोफाइल पर आपके फोटो देख रहा था। नाइस कलेक्शन।
-
जी
थैंक्स।
- शायद आपको काला रंग ज्यादा पसंद है। अरे, ये
बुड्ढा तो मेरे पीछे ही पड़ गया है। अभी बारह घंटे भी नहीं बीते परिचय को और जनाब
दूसरी ही चैट में अपने से तिहाई उम्र की कन्या की तस्वीरें भी छांटने लगे। चलो
यही सही। कुछ करना पड़ेगा। मैंने थैंक्स दागा और साथ में एक गुलदस्ते की इमेज
भेज दी।
-
आपको
लगता है रंगों और फूलों से बहुत लगाव है।
-
जी
बस..
- अपने बारे में कुछ और बताइये ना,
बेहतर अंडरस्टैंडिंग के लिए। तो जनाब मान कर चल रहे हैं कि ये दोस्ती लम्बी
चलने वाली है।
- मैंने बताया न कि जिम में मैनेजर हूं। पुणे में
मम्मी के साथ रहती हूं। आप अपने बारे में बताइये ना। जानना तो मुझे है इन्हें।
- नोयडा में रहता हूं। अकेला। दो बेटे हैं। एक
बेंगलूर में और दूसरा बनारस में। मैं डिफेंस मिनिस्ट्री से ऑडिट आफिसर रिटायर
हुआ।
मतलब जनाब जिंदगी भर
दूसरों के खातों में मीन मेख ही निकालते रहे। इसलिए अब बुढ़ापे में कोई दोस्त
नहीं।
- आज तो संडे हैं। क्या
खास आज? तो जनाब मेरा शेड्यूल जानना
चाहते हैं।
-
अभी थोड़ी देर पहले ही आयी हूं लंच के लिए। संडे तो ज्यादा टाइम देना पड़ता है
हमारे जॉब में।
-
ओह हां सो तो है। बहुत बोरिंग होता होगा सब?
-
नहीं ऐसा नहीं है। आय एन्जाय माइ जॉब। आप ही रोज रोज घर बैठे बोर हो जाते होंगे?
-
होते भी है नहीं भी। आज तो आपसे चैट हो रही है।
-
हां 12 घंटे में दो बार। मैंने एक स्माइली भेजा।
वे खुश हो गये। पूछने
लगे - आप मोबाइल से बात कर रही हैं क्या?
-
हां
और आप?
- पीसी से। फेसबुक के लिए मोबाइल बढ़िया रहता है।
हैंडी और कहीं भी, कभी
भी। लेकिन शायद मोबाइल से एक बार में एक ही फ्रेंड से चैट कर सकते हैं। पूछा उन्होंने।
- नहीं ऐसा नहीं है। हम एक से ज्यादा से भी चैट
कर सकते हैं। इस बार मैंने टैडी बीयर की इमेज भेजी।
-
यंग
जेनरेशन का जवाब नहीं, हर
काम में हमसे दस कदम आगे।
अरे ये तो लम्बी पारी
खेलने के मूड में लगता है। चलो अब तो मेरा झूठ ही मेरी मदद करेगा। बताती हूं - सर,
मुझे खाना खा कर ड्यूटी पर वापिस जाना है। हम बाद में बात करें, इफ
यू डोंट माइंड।
-
अरे
श्योर श्योर। मिलते हैं बाद में।
उस समय तो उनसे जान
छुड़वा ली थी लेकिन सोचती रही मैं कि मैं ये क्या बेवकूफी कर रही हूं। अब तो ये
बंदा मुझे लाइन पर देखते ही लाइन मारना शुरू कर देगा। मैंने भी बैठे बिठाये
झुनझुना थाम लिया। लेकिन फिर सोचा मैंने। सब कुछ तो वर्चुअल है। मैंने जो कहानी
शुरू की है, उसी
में इतने मोड़ डालूंगी कि वे ही गच्चा खा जायेंगे कि फेसबुक पर आधी रात को युवा
लड़कियों को घूरने का क्या मतलब होता है। कहानी तो इसी तरह से आगे बढ़नी चाहिये।
ज्यादा तंग करेंगे तो ब्लाक करना या अनफ्रेंड करना तो अपने हाथ में है।
Ø
रात को फेसबुक खोला तो जनाब फिर हाजिर थे।
मुझे देखते ही उनका हैलो आ गया। साथ में पहली बार स्माइली भी। मैं मुस्कुरायी।
जनाब फेसबुक की बारीकियां सीख कर मुझे इम्प्रेस करने की फिराक में हैं। मैंने स्माइली
कैक्टस की इमेज भेजी। लिखा कुछ नहीं।
-
थैंक्स
फॉर चिल्ड ड्रिंक।
-
ये
ड्रिंक नहीं सर, स्माइली
कैक्टस की इमेज है।
-
हाहा
हाहा। बुद्धू बन गये अपन राम।
मैं मुस्कुरायी - बने नहीं आप। अभी बनाये जायेंगे।
देखते रहें।
-
मैं
समझा गिलास में तरबूज की इमेज है। बहुत शरारती लगती हैं आप।
-
जी
मैं फूडी,
मूडी और गूडी हूं।
-
दैट्स
ग्रेट माय यंग फ्रेंड। गलती मेरी ही है। जल्दबाजी में जवाब दो तो इस तरह की
बेवकूफियां ही तो होंगी।
-
हममम
-
एक
काम करेंगी?
-
जी
कहिये!
-
इन
इमेजेज के साथ साथ अपनी कुछ तस्वीरें शेयर कीजिये ना! मैं भी
देखूं कि मेरी दोस्त कितनी खूबसूरत हैं। तारीफ करने का मौका तो हमें दीजिये। अगर
बुरा न मानें तो!
-
जी मेरे प्रोफाइल में सारी तस्वीरें मेरी ही हैं।
-
जानता हूं। आपके पर्सनल कलेक्शन में से कुछ और, अगर शेयर करना चाहें।
- अभी नहीं, जल्द भेजती हूं डीयर। ये डीयर शब्द तब तक उन्हें
चैन से बैठने नहीं देगा जब तक खुद मुझे डीयर न कह दें।
-
आप
कभी दिल्ली आयी हैं?
-
नहीं
जी,
किसी ने बुलाया ही नहीं। मेरी तरफ से एक उदास चेहरा साथ में।
-
हम
बुलायेंगे आपको दिल्ली।
-
कहीं
नहीं जा सकती मैं। मम्मी बीमार हैं। ये मेरे झूठ की अगली कड़ी।
-
ओह, मैं
दुआ करता हूं कि वे जल्द ठीक हो जायें। उन्हें हुआ क्या है?
-
जी, इलाज
चल ही रहा है।
-
आपके
लिए अफसोस हो रहा है।
इस बार मैंने कुछ न लिख कर एक और इमेज भेज दी है।
-
ये
क्या है?। अब अंदाजा लगाने की बेवकूफी नहीं करूंगा। हा हा!
-
इसका
मतलब है कि मैं थोड़ा अपसेट हूं।
-
ओह!। मेरी मदद की जरूरत है क्या निधि? किसी भी तरह की?
- मैं कैसे कहूं! अभी आपसे दो दिन पहले ही तो चैट होनी शुरू हुई है।
कहते हुए अच्छी नहीं लगूंगी।
-
बोलो
तो सही। पॉसिबल नहीं होगा तो मना कर देंगे।
-
एक्चुअली
मुझे कुछ कैश की जरूरत है। रेंट देना है और मम्मी का ट्रीटमेंट करवाना है।
-
हमममम
-
मैं
कैसे मदद कर सकता हूं?
- वैसे तो मेरी सेलरी से चल जाता था लेकिन मम्मी
अचानक बीमार पड़ गयी..। सब खतम हो गये। एक और उदास चेहरा टिकाया।
-
ओह!
-
मेरे
पापा भी साथ नहीं हैं।
-
जी!
-
हम
सिर्फ मां बेटी ही हैं।
-
ओह!
-
यही
है मेरी जिंदगी की कहानी!
-
मैं
समझ सकता हूं। देखता हूं कि मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं।
-
श्योर।
थैंक यू सो मच!
-
वैसे
मॉम को किस तरह के इलाज की जरूरत है?
- माम को अस्थमा है, ब्लड
शुगर है और सबसे बड़ी बात डिप्रेशन है। कई बार लेवल बहुत बढ़ जाता है तो ...।
-
ओके।
एक काम करेंगी निधि?
-
जी!
- पुणे में मेरा एक डॉक्टर दोस्त रहता है। उसके
पास मम्मी को ले जा सकती हैं तो वह मदद कर सकता है। चाहो तो मैं उसे फोन कर दूं?
-
लेकिन
दवाइयां?
-
वह
दवाइयां भी दिलवा देगा। जब तक जरूरत हो।
-
हम
महंगी दवाइयां एफोर्ड नहीं कर पायेंगे।
- चिंता न करो डीयर। वे दवायें भी देखेंगे और
देखभाल भी करेंगे। मेरे बहुत पुराने दोस्त हैं। उनका नम्बर और क्लिनिक का पता दे
रहा हूं।
तो जनाब डीयर पर आ ही
गये। अच्छा है,
मेरा पता नहीं पूछा। कहीं अपने दोस्त को ही मेरे घर भेज दिया मॉम को देखने तो अच्छी
खासी मुश्किल हो जायेगी।
-
जी
सो नाइस ऑफ यू। मैंने एक और स्माइली चिपकाया।
-
मैं
अपना ईमेल आइडी भी दे रहा हूं। मम्मी की सारी डिटेल्स भेज दो।
-
ओके
श्योर!
-
डिटेल्स
मिलते ही मैं उन्हें खबर कर दूंगा। तुम कल ही उन्हें दिखा सकती हो।
ग्रेट! जनाब आप से तुम पर आ ही गये!
-
जी
जरूर!
- एक काम करो। अपना ईमेल आइडी और मोबाइल नम्बर दे
दो। इन केस,
कांटैक्ट करने की या कुछ और जानने पूछने की जरूरत पड़ जाये तो!
मर गये! ये तो देवदूत बन कर मेरे सारे दुख दलिद्दर दूर करके
ही मानेंगे!
- जी आपको ईमेल भेजूंगी
तो मेरा आइडी आ ही जायेगा। साथ में मोबाइल नम्बर भी दे दूंगी।
-
श्योर
डीयर।
-
सो
नाइस ऑफ यू टू बी सो हेल्फुल।
-
डोंट
वरी। सब ठीक हो जायेगा।
-
जी
आपने मेरी काफी चिंता कम कर दी।
-
परेशान
होने की जरूरत नहीं। कभी भी फोन कर सकती हो!
-
ये आप सोचते हैं डीयर वरना आजकल.. !
-
कम ऑन। नाऊ स्माइल।
-
मुझे जाना होगा। मॉम की नींद खुल गयी है। उन्हें
मेरी जरूरत है।
-
ओह, श्योर श्योर। प्लीज टेक
केयर ऑफ हर। सी यू लेटर!
Ø
ओह गॉड!!!
मैंने बैठे बिठाये ये क्या मुसीबत मोल ले ली! अब एक के बाद एक झूठ
बोलने होंगे मुझे। पता नहीं कितना लम्बा चले ये मामला। चलो, देखें
ये भी करके। लेकिन बीच बीच में गुम हो जाना बेहतर रहेगा। मॉम की सेवा के नाम पर।
इस बहाने उनकी चिंता का ग्राफ भी ऊपर नीचे होता रहे तो बेहतर। कुल मिला कर अब तक
तो मजेदार ही चल रहा है। फेसबुक पर ऑफलाइन ही रहना होगा।
Ø
-
हैलो
निधि कैसी हैं?
-
फाइन
डीयर!
-
दो दिन
नजर नहीं आयीं फेसबुक पर?
- हां बस, नहीं आ पायी। अब मैं इन्हें कैसे बताऊं कि मैं
लगातार फेसबुक पर रही लेकिन ऑफलाइन जबकि जनाब लगातार बने रहे या आते जाते रहे।
-
आपने
डिटेल्स भेज दी क्या?
- नहीं भेज पायी। मम्मी की तबीयत ज्यादा खराब
हो गयी थी। उसी में उलझी रही।
-
अब
कैसी हैं?
-
आज
बेहतर हैं। थैंक्स डीयर फार केयरिंग।
-
डोंट
वरी, सब
ठीक हो जायेगा।
-
मम्मी
ठीक हों जायें, घर
का रेंट हो जाये बस,
मुझे और कुछ नहीं चाहिये।
-
सब
हो जायेगा। धीरे धीरे।
- आइ
नो। आप इतनी मदद कर ही रहे हैं। मैं ही आपके दोस्त से कांटैक्ट नहीं कर पायी।
- मैंने उन्हें तुम्हारी मम्मी के बारे में बता
दिया है। ही विल हेल्प यू।
- जी, थैंक्स अगेन डीयर।
-
मुझे सारी चिंताएं सता रही हैं। समझ नहीं आ रहा कैसे होगा ये सब!
- अब
सब तो मैं नहीं कर सकता ना! जो मेरे लिए पॉसिबल था, कर ही रहा हूं। देरी तुम्हारी ही तरफ से हो रही है।
-
पता
नहीं रेंट कहां से दूंगी घर का? हर हालत में परसों तक..।
-
वो
मैं कैसे बताऊं?
-
जी!
- कुछ चीजें पोस्ट पोन कर सकते हैं और कुछ नहीं।
और फिर रेंट तो एक बार की प्राब्लम नहीं है। हर महीने देना होगा।
- नहीं डीयर,
रेंट सिर्फ इसी महीने का देने की तकलीफ है। अगले महीने मेरे एक रिश्तेदार का घर
खाली हो रहा है। हम वहां शिफ्ट हो जायेंगे।
- निधि,
मुझसे जो हो सकता था, मैं
कर रहा हूं। मम्मी की डिटेल्स भेज देना जल्द।
- श्योर!
- मैं पुणे में होता तो
ज्यादा कर सकता था।
- कोई नहीं यार। मैंने
अब उन्हें यार कहा और एक स्माइली चिपका दी।
- मुझे पता है, तुम
कोई न कोई रास्ता निकाल ही लोगी। उन्होंने भी जवाब में एक स्माइली चिपका दी है।
- श्योर!
- वैसे तुम्हारी मॉम
के ट्रीटमेंट के पेपर्स अब तक न मेरे पास आये हैं ना डॉक्टर के पास।
..
Ø
-
गुड
मार्निंग. क्या हुआ?
-
वही
मम्मी की तबीयत।
-
कैसी
हैं अब?
-
कुछ
आराम है?
-
मॉम
के डिटेल्स भेजे? मेरे फ्रेंड से
कांटैक्ट किया क्या?
- नहीं कर पायी। सॉरी। अब मैं इन्हें कैसे बताऊं
कि मॉम मेरे पास हो और बीमार भी हो तो कुछ भेजूं। मम्मी को बताऊंगी तो हँस हँस के
पागल हो जायेंगी।
- मेरा दोस्त कई बार
पूछ चुका। तुमने अपना नम्बर या ईमेल आइडी भी नहीं दिया। मुझे ही सॉरी कहना पड़ा
उससे।
- आयम सो सॉरी यार। मम्मी को आधी रात को पास के सरकारी अस्पताल में ले
जाना पड़ा। अर्जेंट।
- अब मुझे बताओ कि मैं
तुम्हारी डीयर मॉम के लिए क्या कर सकता हूं?
- पहले आप मुझे माफ कर
दें।
- ओके किया अब?
- थैंक्स फार अंडरस्टैंडिंग।
मेरी हालत वाकई खराब है। इतनी अकेली हूं। रो भी नहीं सकती।
- हिम्मत मत हारो
डीयर। सब ठीक हो जायेगा। कहां हैं मम्मी इस समय?
- मेरे पास ही सो रही
हैं।
- ओके,
उनकी केयर करो। मेरे दोस्त से जरूर कांटैक्ट कर लेना। ही इज जेम ऑफ ए पर्सन।
- ओह श्योर डीयर, गुड
डे।
Ø
-
कैसे
हैं?
-
मैं
ठीक। आप कैसी हैं निधि?
-
मैं
ठीक हूं डीयर।
-
और
माम?
-
आराम
तो है लेकिन लगातार उनके पास ही रहना पड़ता है।
-
ओह
तो जॉब?
-
इस
चक्कर में जॉब भी गया। जान छुटी। हाहाहाह!
-
जॉब
गया और आप हँस रही हैं?
- हँसू नहीं तो क्या करूं डीयर? इधर मम्मी की हालत खराब। मकान मालिक रोज सवेरे ब्रश
करने से पहले सिर पा आ खड़ा होता है। घर का राशन कब का खत्म है। ऐसे में मैं
फेसबुक पर आपसे चैट कर रही हूं। हँसूं नहीं तो क्या करूं? मैं अपना कंधा थपथपाती हूं। क्या तो डायलाग मार रही
हूं!!
- मैं समझ सकता हूं।
इतनी तकलीफों में भी आप नार्मल हैं और बैलेंस बनाये हुए हैं।
- मेरी जाने दें। आपका
डिनर हो गया?
- जस्ट वेटिंग और आपका?
- कौन बनाता है खाना?
- एक फुल टाइम सर्वेंट
है। सब कामों के लिए। आपने खाया?
- मम्मी को दे दिया
है। मेरा अभी मन नहीं।
- मेरे ख्याल से आपको
चेंज चाहिये कुछ?
- आप चेंज की बात कर
रहे हैं दोस्त,
यहां सबकुछ उलटा पुलटा है। मम्मी को छोड़ कर जा पाती तो जॉब तो रहता।
- यस यू आर राइट। मैंने
आपको इससे पहले भी मैसेज भेजे थे। आपके जवाब नहीं आये तो खराब लग रहा था लेकिन अब
पता चला तो....लेकिन इट्स ओके।
- आपको बताया ना।
मोबाइल की वजह से फेसबुक ऑन नजर आता है लेकिन होश किसे रहता है? चेक करना इस हालत में?
- चिंता न करें डीयर।
सब ठीक हो जायेगा।
- हममम
- मैं हूं ना!! ?
- हाहाहाहा!!
- अब ये हँसी क्यों?
- हँसी आ रही है!!
- क्यों मैंने कुछ गलत कह दिया क्या?
- अब मुझे अच्छा लग
रहा है!!
- सच?
- जी हां!!
- मुझे भी बताओ अचानक
ऐसा क्या हो गया?
- हाहाहाहा!!
- अब दोबारा हँसी!!
- कहा ना आय एम फीलिंग
गुड। अच्छा लग रहा है!!
- मैं समझ नहीं पा रहा?
- आप समझ भी नहीं
पायेंगे डीयर!!
- आपकी मम्मा की तबीयत
जल्द ठीक हो जाये। वैसे पूछना नहीं चाहिये लेकिन
आपने डॉक्टर से अब तक कांटैक्ट नहीं किया है ना?
- सच बताऊं?
- कहिये ना!!
- आप मेरे दोस्त हैं।
मैं आपसे कुछ कह भी सकती हूं, शेयर भी कर ही रही हूं लेकिन आपके जरिये किसी और की
मदद मांगना नहीं हो पायेगा। हो ही नहीं पायेगा। चलो आज दोस्त के दोस्त से तो जान छूटी। हर बार वही सलाह
और वही सवाल।
- वैसी कोई बात नहीं थी
लेकिन ओके जैसा आप चाहें!!
-
बेशक मम्मी की बहुत चिंता है और जरूरत भी है फिर भी .. देखती हूं। आपके दोस्त की
जरूरत पड़ी तो.. !!
- मेरी दुआ है!!
- थैंक्स वंस अगेन। बस
घर का कुछ हो जाये तो चैन की बंसरी बजाऊं।
- हो जायेगा कुछ न कुछ!!
- पहली चिंता तो मम्मी
की ही है।
- चलो, मैं
डिनर के लिए चला। आओ आप भी!!
- थैंक्स आप लीजिये।
मैं आनलाइन ही हूं।
- ओके बाद में बात करते
हैं।
- श्योर वी विल कंटीन्यू।
….
..
Ø
-
कैसी
हैं निधि?
- मैं ठीक हूं, आप कैसे हैं? फेसबुक खोलते ही हातिम ताई हाजिर। लगता है वाशरूम
में भी एक डेस्क टाप रखा होगा इंटरनेट कनेक्शन के साथ। दिन रात का साथ।
-
आपकी
चिंता रहती है!!
-
सो
नाइस ऑफ यू फार केयरिंग। आप एक बात बतायेंगे?
-
जरूर
पूछिये!!
-
फेसबुक
पर फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट आपने भेजी थी या मैंने?
- ये तो पता नहीं जी लेकिन संजोगों की बात है,
इतने दिन से अच्छी ही निभ रही है। वैसे आपके मन में ये सवाल क्यों आया?
- मैं वैसे ही सोच रही
थी कि आज के जमाने में भी आप जैसे लोग होते हैं जो बिना जान पहचान के भी इतना करते
हैं,
केयर करते हैं, मदद
भरा हाथ बढ़ाते हैं।
- हाहाहाहा!!
- अब आप क्यूं हँसे?
- अरे निधि डीयर,
शुक्रगुजार तो मुझे तेरा होना चाहिये। तुमसे फ्रेंडिशप के बाद बहुत अच्छा लगने
लगा है। हर बार लगता है कि कोई अपना सा है जिससे मुझे कुछ पूछना है बताना है, कोई
है जिसे मेरी मदद की जरूरत है और जो मुझ पर भरोसा करती है। बेशक मैं तुमसे उम्र
में तीन गुना बड़ा हूं, मेरे लिये ये क्या कम है कि तुम देर रात तक मुझसे
बात करती हो। अपना कीमती टाइम देती हो और सबसे बड़ी बात मुझ पर भरोसा करती हो।
- हममम।
- अब ये तुम पर है निधि
कि इस बूढ़े आदमी के साथ कब तक दोस्ती निभाती हो! हाहाहाहा।
- श्योर डीयर,
मेरी तरफ से कभी नहीं टूटेगी। तो जनाब जनम जनम का साथ निभाने की बात पर बस, आने
ही वाले हैं।
- सच!!
- जी, सच और सच के सिवा कुछ नहीं।
- निधि, होता है ऐसा कि इस उम्र तक आते आते हम अपने आपको कई
बार अपने ही घर में,
सोसाइटी में और दोस्तों में इग्नोर महसूस करने लगते हैं। बहुत तकलीफदेह होता है
ये। ऐसे में फेसबुक हमारे लिए एक वरदान की तरह आया है जहां तुम जैसे प्यारे लोग
हमारी केयर करते हैं।
- आप तो सेंटी हो गये
डीयर। ऐसा कुछ नहीं हैं। सारे रिश्ते म्युचुअल अंडरस्टैंडिंग पर टिके होते हैं।
अब आपने मुझे खोजा या मैंने आपको खोजा ये मायने नहीं रखता। बात सिर्फ इतनी सी है
कि जब तक निभे शानदार निभे।
- सो नाइस ऑफ यू निधि!!
- वैसे भी आपकी उम्र ज्यादा
है या कम है इससे हमें क्या!! हमें कौन सा मैराथन में दौड़ लगानी है आपस में।
- हाहाहाहा!!
इस बार मैंने उन्हें
आइसक्रीम के कप की इमेज भेजी है।
-
ये
क्या है?
- मेरी तरफ से दोस्ती
के नये मतलब समझाने के लिए मेरी तरफ से आइसक्रीम पार्टी।
- वाह जी बल्ले बल्ले।
आइसक्रीम तो ले ली लेकिन आप मुझे अपनी एक फोटो भेजने वाली थीं?
- फोटो किसलिये?
- अपनी मित्र को देखना
है!
- हां कहा तो था लेकिन
फेसबुक पर कितनी सारी हैं।
- नहीं आपकी एक एक्सक्लूसिव
फोटो।
- आपको इंतजार करना
पड़ेगा।
- क्यों?
- अरे बाबा मैं ड्रेस
चेंज करके अपनी फोटो खींचूंगी, डाउन लोड करूंगी, फिर अपलोड करूंगी। इस सबमें टाइम तो लगेगा ना!!
- ओह समझा। आइ विल वेट!!
- ओके।
..
..
Ø
-
कैसी
हैं निधि जी?
-
मैं
बढ़िया। आप बतायें!
-
भई
मेरा तो हाल बेहाल है!
-
ऐसा
क्या हो गया जी?
-
रात
तीन बजे तक तो जाग रहा था। बाद में पता नहीं कब नींद आयी होगी!
-
अरे
11.30 तक तो मुझसे बात की आपने?
-
हां,
उसके बाद सोया कई बार लेकिन नींद नहीं आयी तो नहीं ही आयी।
-
क्या
करते रहे इतनी देर तक?
-
देर रात
को करने लायक क्या होता है? आप
ही बतायें!
-
मैं
क्या बताऊं! हो सकता है आदमियों के पास कुछ खास होता हो करने के
लिए!
-
ऐसा
कुछ नहीं होता, बस, रात
तो खराब होती ही है,
अगला दिन भी बेकार जाता है।
-
तो
कितने बजे सोये?
-
पता
नहीं,
आखिरी बार साढ़े तीन बजे घड़ी देखी थी।
-
मुझे
तो तभी नींद आ गयी थी जब आपको गुड नाइट कहा था।
-
आप
फोटो भेजने वाली थीं?
-
अरे
हां!!
-
रुकें!
-
जी!
..
-
इतनी
देर से भेजी,
लेकिन अच्छी है।
-
सर, अभी
क्लिक की,
डाइनलोड की,
अपलोड की। इतना टाइम तो लगता ही है!
-
अच्छी
है,
आपने मेरे लिए इतनी तकलीफ उठाई। घर पर हैं क्या?
-
जी
जनाब तभी तो फोटो खींची।
-
ओह!
-
और
बतायें।
-
क्या?
-
अपने
प्रेम संबंधों के बारे में।
- उम्र बीत गयी अब तो उन गलियों से गुजरे हुए। ऐसी
बातें तो आपको बतानी चाहिये। हमें भी पता चले कि हमारी दोस्त के कितने फ्रेंड हैं?
- कभी था एक। अभी कोई
नहीं।
- सो सैड!
- हमम आपने छोड़ा?
- जी!
- उसने कुछ किया था
इसलिए छोड़ा या उसने कुछ नहीं किया था इसलिए छोड़ा? हाहाहा।
- नाइस। कुछ किया तो
नहीं था लेकिन छोड़ने का यही कारण नहीं था।
- जाने दो। ये बेहद पर्सनल मामला है। कुछ और बात करें।
- जी!
- जानता हूं कुछ यादों
को भुलाना ही बेहतर होता है।
- एक बात कहूं आपके बाल
बहुत लम्बे और सुंदर हैं। जानता हूं निधि इस तरह की बचकानी बातें करने की मेरी
उम्र नहीं रही।
- लेकिन ये बचकानी बात
तो नहीं। आप तारीफ ही तो कर रहे हैं।
- अरे भई,
मुझे अपनी सीमा जाननी चाहिये। मैं 63 पार कर चुका और दो दिन बाद तुम्हारा 24वां
जनमदिन है।
- अरे आपको याद है?
- अभी से बधाई लें।
- क्या करूं बधाई ले
कर जबकि जानती हूं कि जो आज है वही परसों रहने वाला है। कहीं कोई लाटरी नहीं लगेगी
दो दिन में।
- मैं तुम्हारे साथ
आजकल इतना समय गुजारता हूं। आपको तो अपनी हमउम्र कंपनी में होना चाहिये।
- हां होना तो चाहिये
पर नहीं हूं। वैसे आप इतना क्यों सोच रहे हैं?
- होता है कई बार।
- कैसे?
- कि आपको कुछ देर के
लिए अपनी पसंद का हमउम्र पार्टनर नहीं मिलता।
- हमम
- लेकिन जब ऐसा दोस्त
मिलता है तो वह भरपूर प्यार देता है। देखना आपके साथ भी ऐसा ही होगा।
- हमम
- जो आपको समझेगा, प्यार
करेगा,
आपकी सुनेगा,
आपसे शेयर करेगा और ..।
- फिलहाल तो जो भी
मिलता है बस, एक
ही बात चाहता है। आप समझ रहे हैं ना?
- जी समझ रहा हूं।
- और वही बात मुझे पसंद
नहीं आती।
- आप संस्कार वाली हैं
कैसे पसंद आयेंगे ऐसे लड़के!
- जी, बेशक
अकेली हूं, कोई
नहीं है आसपास लेकिन कोई गलत भी नहीं है मेरी जिंदगी में।
- जी।
- और आप हैं ना हमारे
दोस्त।
- बेशक, आधी
रात को भी हुकम करेंगे हाजिर हो जायेंगे।
- हाहाहाहा क्या कहा?
- ओह, रात
में नहीं, गलत
कह गया किसी लड़की के घर रात को नहीं.. हहाहाहा।
- हाहाहाहा ओके दिन में
कभी।
- ओके ओके,
निधि एक बात बताओ।
- जी?
- तुम्हारा सपना क्या
है?
- एक गरीब लड़की का
सपना क्या हो सकता है! एक अदद अमीर लड़का!!
- वाह जरूर मिलेगा। और?
- और क्या। बस, यही इकलौता सपना।
- आपका ये इकलौता सपना
ज़रूर पूरा होगा और शानदार तरीके से होगा।
- थैंक्स जी
- जरा बाहर तक जा रहा
हूं। थोड़ी देर में मिलता हूं।
- जी मैं वेट करूंगी।
- हेहेहेहे वेटिंग
हाहाहा।
...
...
Ø
- कैसे
हैं आप?
- मैं ठीक आप?
- बस ठीक हूं, कुछ नहीं बस लेटी हूं।
- आज का शेड्यूल?
- कुछ नहीं।
- घर पर ही?
- जी और आप?
- मेरा भी होम स्वीट
होम।
- गुड।
- मॉम कैसी हैं?
- आराम है अभी। सोयी
हैं।
- अच्छा लगा जान कर।
..
..
..
- आज चुप क्यों हैं आप?
- ऐसा कुछ नहीं। बात
करो आप।
- दिन कैसा रहा?
- बेकार।
- ऐसा क्यों ?
- क्या बताऊं यार आपको?
- जानता हूं निधि
लेकिन..बेशक मैं मदद भी करना चाहता हूं ..।
- रेंट की प्राब्लम है
यार। आज फिर दो बार धमकी दे गया है मकान मालिक।
- ओह।
- आप जानते ही हैं कि मम्मी बीमार,
मेरा जॉब गया, ऊपर
से ये रेंट सिर पर ..।
- मम्मी की बीमारी इन सारी बातों से और बढ़ रही है।
- मैं तुम्हारे लिए
बैंक लोन का इंतजाम करवा सकता हूं।
- लेकिन डीयर यहां जमानत पर देने के लिए चार बरतन भी
नहीं है। घर का कुछ पुराना सामान और ले दे कर पुराने दिनों की निशानी ये मोबाइल, बस
यही है।
- चाहो तो मुझे इस नम्बर
पर कॉल कर सकती हो।
- नोट कर लिया है। कल
करूंगी फोन आपको। थैंक्स अगेन
- समझ सकता हूं तुम्हारी तकलीफ। मां बीमार और हाथ
में कुछ नहीं। चलो एक छोटी सी स्माइल शेयर करो।
- स्माइल।
- सब ठीक हो जायेगा।
- आपने खाना खाया?
- अभी खाऊंगा और तुमने?
- मन नहीं है।
- ऐसा न कहो। खाने से क्या दुश्मनी?
- यार ऐसी टेंशन में
कहां भूख लगती है?
- धीरज धरो। रास्ता
मिलेगा।
- पता है मुझे।
- मेरी दोस्त हो ना?
- पूछने की बात है क्या
- तो थोड़ा सा खा लो?
- सच में यार भूख नहीं
है।
- मेरा कहा मानो और
बताओ कि खा लिया।
- नहीं हो पायेगा।
- ठीक है, मैं
तुम्हारे खाने के बाद ही खाऊंगा।
- प्लीज यार आप खा लो।
- नो हनी।
- मुझसे नहीं खाया जा
रहा।
- मेरी दोस्त भूखी रहे
तो भला मैं कैसे खा सकता हूं?
- प्लीज आप खा लो।
- नहीं।
- मेरे लिए प्लीज।
- नहीं।
- यार मुझसे नहीं खाया
जा रहा।
- तुम..।
- सच्ची आप खा लो,
मुझे लगेगा मैंने भी खा लिया है।
- मैं सोने जा रहा हूं।
- क्यों?
- तुम भूखी सो सकती हो
तो मैं भी।
- मेरी प्राब्लम है
यार।
- क्या?
- खाना बनाया नहीं। घर
में कुछ खाने को ही नहीं है।
- ओह माय गॉड, फिर?
- फिर क्या?
- मॉम कैसे रहेंगी? अब तक क्या कर रही थी? कोई रिश्तेदार जानकार?
- कोई नहीं है यहां।
- तो जहां जॉब करती थी?
- वह भी कितना देगा? जब जॉब ही नहीं रहा?
- कोई अड़ोसी पड़ोसी?
- कोई नहीं देता पैसे।
- फिर?
- बस,
सुबह ही खाया था,
ब्रेड चाय।
- ओह!!
-
क्या करूं समझ नहीं आ
रहा!!
-
घर का कोई पुराना सामान
बेच कर?
- क्या बेचें? बस घर में जरूरत का ही सामान है। कोई गोल्ड भी नहीं
है।
- मम्मी भूखी सोयी हैं
क्या?
- हमम।
- सो सैड। दिन में
बताया होता तो। इस समय रात के साढ़े ग्यारह बज रहे हैं ..ब्रेड
वगैरह?
- सुबह लायी थी। अब तो
घर में सिर्फ 25 रुपये हैं। कहीं जाना पड़ गया तो।
- ओह।
- सोच रहा हूं। .. तुम्हारा
एकांउट है क्या?
- हां है।
- एकांउट की डिटेल्स
दो। मैं कुछ पैसे ट्रांसफर करता हूं।
- ओके वेट। चेक बुक
ढूंढती हूं।
..
- ये रही डिटेल्स।
- खाता तुम्हारे ही
नाम पर है ना?
- जी।
- एटीएम कार्ड है?
- जी है।
- अभी तुम्हारा नाम
एकाउंट फंड ट्रांसफर के लिए रजिस्टर कर रहा हूं। सुबह बैंक खुलने पर कुछ रकम
भेजता हूं। अपना मोबाइल नम्बर दे दो। इन केस जरूरत पड़े तो..।
- नोट कीजिये और आप
अपना नम्बर दोबारा दे दीजिये। पहले सेव नहीं कर पायी थी।
- अभी फोन करूं क्या?
- नहीं मम्मी पास में
सो रही हैं। कल सुबह मैं ही आपको फोन करूंगी।
- ओके।
- आप फोन पर बात करने
के बाद ही एकाउंट में पैसे डालना।
- सो सैड यार,
पहले बताना चाहिये था ना।
- क्या बताती यार?
- अब मैं क्या बोलूं?
- आपने मजबूर किया
इसलिए बताया।
- हद है,
तुम्हारा कोई सगा, कोई
अपना, कोई
दोस्त, कोई
सहेली?
- अब क्या कहें जनाब
ये दुनिया है ...।
- इतना बड़ा दर्द सीने
में छुपाये..।
- क्या करती यार? हमें
यहां शिफ्ट हुए ज्यादा अरसा नहीं हुआ। इसलिए आसपास या दूर दूर तक कोई नहीं।
- पहले कहां थे?
- लम्बी कहानी है। बाद
में आराम से बताऊंगी।
- अरे फेसबुक बता रहा है कि तुम्हारा बर्थ डे आ गया
है। मेनी हैप्पी रिटर्नंस आफ द डे।
- थैंक्स। जनम दिन भी
आया तो कैसा?
- हममम।
- सुबह पांच बजे मंदिर
जाना है। अब सोना चाहूंगी। थैंक्स फार ऑल गुड थिंग्स डीयर।
- गुड नाइट।
- देखा,
आपको चाकलेट भी वर्चुअल भेज रही हूं। असली चाकलेट खरीदने की हैसियत भी नहीं रही।
- आइ विश, सब जल्दी
ही ठीक हो जायेगा।
- कल बात करते हैं।
- चलो आराम करो। बाय
फार नाइट।
- ओके बाय गुड नाइट।
Ø
- गुड मार्निंग जी।
- कैसी हो हैप्पी बर्थडे
अगेन।
- थैंक्स अगेन।
- आपको 5000 रुपये
ट्रांसफर कर दिये हैं। ए बर्थ डे गिफ्ट फ्राम एननोन फ्रेंड।
- सो नाइस ऑफ यू लेकिन आप अननोन कहां है। यू आर ए
वेरी स्पेशल परसन फार मी। रीयली।
- अब जा के बैंक से पैसे निकालो। कुछ खाने का इंतजाम
करो और रिलेक्स करो ..
- जी जरूर।
- अभी जाती हूं। जरा
धूप कम हो जाये।
- निधि मैंने तुम पर
भरोसा किया है। मेरा भरोसा मत तोड़ना।
- कैसी बात कर रहे हैं डीयर। आप ये सोच भी कैसे सकते
हैं। आपने तो मुझे गुलाम बना लिया है अपना। वरना ...।
- अब मुझे पूरी बात
बताओ।
- बात आपको सारी पता तो
है।
- खुद बताओ अभी।
- जी मां बीमार, इलाज का जरिया नहीं। मकान मालिक आज फिर सुबह से दो
बार चक्कर काट चुका। रसोई खाली पड़ी है और जॉब का कोई ठिकाना नहीं।
- हममम लेकिन ये सब हुआ
कैसे? परिवार में और कौन हैं?
- मैं और मम्मी।
- और पापा?
- मम्मी पापा का तलाक
हो गया है। उसी चक्कर में तो ये सब..।
- कारण?
- दूसरी औरत।
..
- कोई एलिमनी नहीं दी पापा ने। पता नहीं सब कैसे होता
चला गया और हम बेघरबार हो गये।
..
- मां तलाक को सहन नहीं कर पायी। वैसे पहले भी बीमार
थी लेकिन सारी बातों को दिल से लगा बैठी और ये हालत हो गयी है उसकी।
..
- अब सारा दिल कलपती
रहती है और उस औरत को गालियां देती रहती है।
- अब क्या सोचा?
- मैं क्या सोचूं। कुछ समझ ही नहीं आता। एक दिन की
बात हो तो कोई सामने भी आये।
..
- किसी से कहते भी शरम
आती है।
- जॉब?
- जॉब मिले तो भी पहले
ही दिन तो कोई सेलेरी नहीं दे देगा।
- आइ नो यू आर ऐ ब्रेव
गर्ल।
- ब्रेव गर्ल तो ठीक जी
लेकिन घर चलाने के लिए मेरी ब्रेवरी क्या करे।
- कोई ठीक ठाक जाब देखो
शायद बात बने।
- बुलाया तो है एक ज्वेलरी
शॉप ने शाम को।
- पढ़ाई कितनी की है?
- बी काम हूं।
- ओके तुम पैसे निकालो बैंक से तब तक मैं भी कुछ काम
करूं। आज की पूरी सुबह तुम्हारे नाम हो गयी।
- जी जानती हूं। मैं
जल्द फोन करती हूं। टेक केयर एंड लवली थैंक्स अगेन।
- ये क्या भेजा था? फेसबुक ने ब्लाक कर दिया है।
- अरे, दो
स्वीट चेरीज़ भेजी थीं अपने स्वीट दोस्त के लिए।
- हाउ नाइस। लगता है अब
खुश हो?
- बहुत मैं बता नहीं
सकती।
- ओेके बाय।
- बाय।
Ø
- क्या कर रहे हैं?
- बस बैठे हैं?
- किसके साथ?
- अकेले जी।
- हा हा हम तो सोने
चले।
- पैसे निकाले क्या?
- नहीं जा पायी।
- आप तो कह रही थीं कि
घर में पैसे नहीं हैं। मैंने भेजे तो निकालने की फुर्सत नहीं?
- तबीयत ठीक नहीं है
मेरी। बिस्तर से उठा ही नहीं गया। नहीं जा पायी।
- अब क्या करेंगी!
खाना खाया?
- जी
- मम्मी की दवा?
- लायी थी।
- आप फोन करने वाली थीं?
- नहीं कर पायी। तबीयत
..।
- ओके आराम करो।
Ø
तो
जनाब, ये
है किस्सा। तब से उनके लगातार संदेश और फोन आ रहे हैं। जब भी फेसबुक खोलती हूं, हर
आधे घंटे में एक नया मैसेज और वही तीन सवाल नजर आते हैं। अब मैं ऑफ लाइन ही रहती
हूं। पैसे निकाले क्या?
खाना खाया? और मम्मी की दवा? मैंने भी बैठे बिठाये एक मुसीबत ले ली। न सच बोलते
बनता है न झूठ को आगे बढ़ाते। मैं न उनसे चैट कर पाने की हिम्मत कर पा रही हूं न
ही उनका फोन उठा पा रही हूं। बस, बीच में एक बार उनका फोन उठा लिया था। तब तक मैंने
उनका नम्बर सेव नहीं किया था। मेरी आवाज सुनते ही नाराज होने लगे कि मैं उन्हें इतनी
जल्दी भूल गयी। मेरे पास मां की बीमारी का स्थायी बहाना था ही। उन्हीं का रोना
ले कर बैठ गयी। अब तो वे मेरे ईमेल पर भी मेल भेज रहे हैं। मैं कभी फोन खराब होने
का बहाना बना रही हूं तो कभी मां की या अपनी तबीयत खराब होने का। बेशक उन्हें बता
दिया है कि बैंक से पैसे निकाल लिये हैं और उन पैसों से मेरी बहुत मदद हो गयी है
लेकिन अब उनसे पहले जैसी मजेदार चैट नहीं कर पा रही। हिम्मत ही नहीं होती। इस बीच
तीन दिन के लिए सिंगापुर जाना पड़ गया तो उनसे क्या किसी से भी बात नहीं हो पायी।
आज इस बात को चार दिन
बीत गये हैं। इस बीच उनके पचास मैसेज आ चुके। मैं समझ नहीं पा रही। क्या करूं कि
खुद को भी कनविंस कर सकूं और उन्हें भी। अभी थोड़ी देर पहले ही देखा – चैट बाक्स में उनका ये मैसेज था। भाषा से ये मैसेज
कम आडिट आब्जेशन ज्यादा लग रहे थे।
-
निधि
जी,
मेरी तरफ से कुछ बातें- 1. अब आप फोन करने पर फोन नहीं उठाती। न कॉल बैक करती हैं।
2. मैंने इतने सारे मैसेज भेजे, किसी का जवाब नहीं। 3. ऑन लाइन नज़र आती हैं लेकिन बात नहीं करतीं।
4. लगता है अब आपकी या मम्मी की तबीयत ज्यादा खराब हो गयी है। 5. लगता है आपका
फोन खराब हो गया है मिलता ही नहीं। 6. आखिरी बात- मैंने एक अनजान दोस्त की मदद की
थी। बिना जाने कि वो सच कह रही है या नहीं। इससे फर्क नहीं पड़ता। ये मामूली
एमाउंट तुम्हारे काम आया या नहीं, या तुम्हें इसकी जरूरत थी या नहीं,
मुझे इसकी परवाह नहीं। मैं सच पर विश्वास करता हूं। सच पर विश्वास किया और सच पर
विश्वास करता रहूंगा। कोई और भी मदद मांगेगा तो करता ही रहूंगा। बी हैप्पी। बाय
फॉर एवर।
ऐसा नहीं है कि मैं इन
6 सवालों के या उनके जितने भी सवाल हैं, उनके जवाब नहीं दे सकती या नहीं देना चाहती। मैं
मानती हूं कि वे मेरे लिए बेहद परेशान हैं। उनकी नीयत में तो कोई खोट नहीं था। मैं
ही इतने दिन उनके सेंटीमेंट्स से खेलती रही और उन्हें भरमाती भटकाती रही। अब मैं
उनके पांच हजार रुपये दाबे बैठी हूं और अब उनसे बात करना भी बंद कर दिया है।
दरअसल, बात
दूसरी है। सच कहूं तो मुझे ही नहीं सूझ रहा कि अब मैं इस नाटक का क्या करूं। सच
है कि मैं अब तक झूठ बोल कर उन्हें बेवकूफ बनाती रही। लेकिन ये बात उनसे कह नहीं
सकती। वे ये सुन कर जीते जी ही मर जायेंगे। ये ऑप्शन बचा नहीं। अब कहने को यही
बचता है कि फिलहाल उनके फोन पर एसएमएस भेजूं या चैट में ऑफलाइन मैसेज डालूं कि मां
अस्पताल में भरती हैं और मैं वहीं उनके साथ हूं। बीच बीच में हाल चाल पूछने वाला
एकाध मैसेज डालने के बारे में भी सोचा जा सकता है।
हां, कुछ
दिन बाद मैं उन्हें ये ऑफलाइन मैसेज देने की बात भी सोच रही हूं कि पापा ने मम्मी
की हालत का पता चलने पर अच्छा खासा एमाउंट भेज दिया है। मम्मी अब ठीक हैं। मेरा
जॉब भी लग गया है। हमने मकान बदल लिया है। अच्छे दिन बस आने ही वाले हैं।
याद आ रहा है कि एक बार
चैट करते समय उन्होंने अपने घर का पता दिया था। उसे लोकेट कर लूंगी। सोच रही हूं
कि सिंगापुर से लाये गिफ्ट्स में से एक अच्छा सा गिफ्ट, एक खूबसूरत थैंक्स कार्ड और पांच हजार रुपये का चैक
उन्हें भेज दूंगी।
अभी नहीं, दस
पंद्रह दिन के बाद। ये तो तय है कि अब उस भले आदमी से कभी चैट नहीं हो पायेगी।
मैं मानती हूं कि खेल
खेल में मैं एक बहुत ही बेहूदी हरकत कर चुकी हूं। अब भरपाई कर तो रही हूं।
आप क्या कहते हैं?
सूरज प्रकाश
एच1/101 रिद्धि गार्डन, फिल्म सिटी रोड, मालाड पूर्व
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