Thursday, September 23, 2021


रिपोर्ताज 

 


श्रीमती आशा सक्सेना 


                                      

नारी मन को आवाज़ देती हैं आशा सक्सेना और मोनी माथुर की रचनाएं : मेहरुन्निसा परवेज़



हिंदी लेखिका संघ के 'पुस्तक पर्व' आयोजन में साहित्य सागर की पूर्व सह संपादक एवं 'लोकगीत श्री' आशा सक्सेना के दोहा संग्रह एवं पूर्व प्राध्यापक व शिक्षाविद डॉ. मोनी माथुर की पहली कृतियों का ऑनलाइन विमोचन एवं पुस्तक विमर्श संपन्न हुआ.








"स्त्रियों ने संघर्ष की लंबी लड़ाई लड़ी है, अब उन्हें अपने दर्द का बयान करना चाहिए. उनकी बहुत उपेक्षा इतिहास और पहले के लेखकों ने की है और महिलाओं को बोलना चाहिए. नारी मन की आवाज़ उठाती ये दोनों ही किताबें महत्वपूर्ण हैं, जिनमें डॉ. मोनी माथुर ने बारीक बातों को दर्ज किया है और आशा सक्सेना ने बहुत आशा पैदा की है." पद्मश्री से सम्मानित प्रसिद्ध लेखिका मेहरुन्निसा परवेज़ ने यह बात हिंदी लेखिका संघ, मप्र के तत्वावधान में आयोजित पुस्तक पर्व में कही, जिसके अंतर्गत आशा सक्सेना के सद्य: प्रकाशित दोहा संग्रह 'आशा के कमल' और डॉ. मोनी माथुर कृत कथा संग्रह 'गुलाबी दुपट्टे की आभा' का ऑनलाइन लोकार्पण एवं पुस्तक चर्चा का आयोजन हुआ.


"हम अपने आसपास घट रहे सच को देखकर भी उसे लिखने से डरते हैं. हालांकि मैं कभी डरी नहीं, भले मुझ पर मामले मुकदमे तक दर्ज होते रहे. किसी से कुछ छुपा हुआ नहीं है, सबको खुलकर अपनी और आसपास की बातें बयान करना चाहिए." शनिवार शाम दो पुस्तकों पर चर्चा के इस आयोजन की अध्यक्षता कर रहीं श्रीमती परवेज़ ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए लेखिकाओं को बधाई और शुभकामनाएं दीं. इस कार्यक्रम में हिंदी लेखिका संघ की अध्यक्ष अनीता सक्सेना जी सारस्वत अतिथि, संस्था की पूर्व अध्यक्ष डॉ. राजश्री रावत राज मुख्य अतिथि और संस्था से सम्मानित रचनाकार श्रीमती मधु सक्सेना विशेष अतिथि के तौर पर उपस्थित थीं.



जीवन के नूतन बिम्ब हैं आशा के दोहे

पुस्तक चर्चा सत्र में आशा सक्सेना के दोहा संग्रह 'आशा के कमल' पर समीक्षात्मक चर्चा करते हुए चर्चित लेखिका डॉ. कुमकुम गुप्ता ने कहा, "जीवन के संघर्ष, सुख दुख, सौंदर्य आदि को इन दोहों में मार्मिक अभिव्यक्ति मिली है. आशा सक्सेना के दोहा संग्रह में विविधता है, जो कथ्य से लेकर भाषा के स्तर तक दिखती है." 

वहीं, उन्नाव से कार्यक्रम में जुड़ीं समीक्षक एवं रचनाकार जयप्रभा यादव ने इस संग्रह पर केंद्रित वक्तव्य में कहा, "संवेदनाओं से समादृत ये दोहे समाज को संदेश देते हैं, जिनमें देश राग है तो प्रीति के पहलू भी, प्रकृति के तत्व हैं तो नैतिकता के पक्ष भी. जीवन के हर भाव को आशा जी ने सरलता और सुंदरता से व्यक्त किया है. इन दोहों के बिम्ब और प्रतीक नूतन और मनोरम हैं."



नारी संबंधी विषयों की सशक्त कहानियां

पुस्तक चर्चा सत्र में इससे पहले, डॉ. मोनी माथुर की पुस्तक 'गुलाबी दुपट्टे की आभा' पर चर्चा हुई. पुस्तक समीक्षा करते हुए वरिष्ठ लेखिका डॉ. सुमन ओबेरॉय ने कहा, "इस कथा संग्रह के मूल विषय स्त्री प्रताड़ना, स्त्री समर्पण, त्याग और स्त्री शक्ति जैसे पहलुओं को उठाते हैं यानी यह कथा संग्रह स्त्री विमर्श के संदर्भ में महत्वपूर्ण है. वहीं, वरिष्ठ रचनाकार कुलतार कौर कक्कर ने अपने उद्बोधन में महत्वपूर्ण बात रखी कि "ये कहानियां इतनी नारी सुलभ हैं कि इनमें कहीं हिंसा की झलक नहीं हैं. भावना और संवेदना को ये कहानियां केंद्र में रखती हैं."




डॉ मोनी माथुर 




सारगर्भित कोट्स : अतिथियों ने क्या कहा?


"आशा जी और दोहा एकरूप हो चुके हैं. वर्षों से लेखिका संघ के सारस्वत मंच की संचालक आशा जी की पुस्तक परिवार की भावनाओं और मूल्यों को चरितार्थ करती है. श्रीमती प्रवेश सोनी रचित इस पुस्तक के मनोरम मुखपृष्ठ पर एक नैन और और कमल पुष्प, इस किताब के शीर्षक के कई अर्थ खोलते हैं.  वहीं, शांत रहकर समाज की सेवा करने वाली मोनी जी की कहानियां शांति से मुखर बयान देती हैं."

 — अनीता सक्सेना, सारस्वत अतिथि


"आशा जी ने अपने संग्रह के माध्यम से हिंदी साहित्य को सशक्त दोहे प्रदान किये हैं. ये दोहे नारी मन की निश्चल अनुभूतियां और एक पत्नी के कोमल भावों की विनम्र अभिव्यक्तियां हैं. वहीं, मोनी जी की कहानियों में कविता जैसी लय और संवेदना के बारीक तत्व हैं. उनका साहित्य सृजन प्रणम्य है."

 — डॉ. राजश्री रावत राज, मुख्य अतिथि


"मोनी जी अपनी कहानियों में नये विचार और नये रास्ते दिखाती हैं. दूसरी ओर, आशा जी के दोहों में चारों वेदों के सार की तरह विभिन्न विषयों पर गहन दृष्टि नज़र आती है." 

— मधु सक्सेना, विशेष अतिथि



ऐसे संपन्न हुआ सरस रचनात्मक आयोजन

सुमधुर कवयित्री एवं लेखिका राधारानी चौहान ने कार्यक्रम का प्रवाहमान एवम् सरस संचालन करते हुए सबसे पहले सरस्वती वंदना के लिए आशा श्रीवास्तव जी को आमंत्रित किया. श्रीमती महिमा वर्मा के तकनीकी सहयोग से आयोजित कार्यक्रम में अतिथियों का वर्चुअल स्वागत किया गया. चर्चा सत्र के बाद दोनों उत्सव मूर्ति रचनाकारों श्रीमती सक्सेना एवं डॉ. माथुर ने अपने संग्रहों के चुनिंदा अंश के तौर पर रचनापाठ भी किया. कार्यक्रम के अंत में दोनों ध्रुव रचनाकारों ने आभार प्रदर्शन किया. साथ ही, शायर एवं पत्रकार भवेश दिलशाद एवं सिंगापुर से जुड़ीं अदिति माथुर ने भी आभार स्वरूप अपने संक्षिप्त विचार रखे.



 साहित्य सम्मेलन,"साहित्य की बात" 17-18 september 2022 साकिबा  साकीबा रचना धर्मिता का जन मंच है -लीलाधर मंडलोई। यह कहा श्री लीलाधर...

पिछले पन्ने