Friday, July 8, 2016

अहसास की रवानी है ग़ज़ल ,मेरी अपनी कहानी है ग़ज़ल .....`

कभी यूँ  भी आ मिरी आँख में की मिरी नज़र को खबर न हो 
मुझे  एक  रात  नवाज़ दे  मगर  इस के  बाद  सहर न हो 

ग़ज़ल जजबात और अल्फाज़ का एक बेहतरीन गुलदस्ता है जिसको पढ़कर या लिख कर दिलो -दिमाग पर ताजगी  छा जाती  है |ग़ज़ल उर्दू काव्य का एक अत्यंत लोकप्रिय ,मधुर ,दिलकश और रसीला अंदाज़ है |
ग़ज़ल का जिक्र हो तो ग़ालिब ,मीर तकी मीर ,फैज़ , फराज़,फिराक  ,आदि कई चेहरे सामने आ जातें है |और साथ में उर्दू जुबां  भी ,......लेकिन आज हिंदी के कई  फनकारों ने अपने अशआरों से ग़ज़ल का श्रृंगार किया है जिनमे दुष्यंत ,बशीर बद्र जैसे कई नाम शामिल है |हिंदी में आज ग़ज़ल उतनी ही पसंद की जा रही है  जितना कभी उर्दू में इसका परचम था |बल्कि भाषाकी सहूलियत से हिंदी में आज ज्यादा गज़ले कही जाने लगी है |

आज ऐसे ही एक उभरते गज़लकार की गज़ले आपके सामने पेश है |  कहीं  नाजुक मिजाज के अशआर पिरोये है सुदिन जी ने अपनी गज़लों में  तो कही तल्खी भी शुमार की ...कुछ शिकवें भी जेहन में रहे तब धर्म के अमन चैन को चन्द  लोगो की खता का अंजाम बताया |


बड़े शायरों. को पढ़ते हुए उलझे भी ,तब नए शेर भी कहे .....देखिये क्या कहतें है सुदिन श्रीवास्तव जी ...

ऐक बार मैं बहुत तन्हा रह गया । परिवारी और पहचानने वाले सब किसी ना किसी वज़ह से दूर हो गये तब ऐक ख़याल आया नज़म की सूरत लिये
"वो ख़्वाब जिनके लिये तुमने मुझको छोड़ा था
  बता सबको तो बताना वो ख़ाब कैसे हैं


निदा फ़ाज़ली साहब की ऐक मशहूर ग़ज़ल है
"कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कभी ज़मीन तो कभी आसमां नहीं मिलता ।
     
 आदरणीय शलभ जी ने ग़ज़ल कही
"अगर लिया तो मुकम्मल जहान लूँगा मैं 
यही ज़मीन यही आसमान लूंगा मै 
 ऐक कह रहे हैं नहीं मिलता ।ऐक कह रहे हैं मुकम्मल जहान लूंगा मैं
मैंने दोनों ग़ज़लें सुनीं तो ज़ेहन में आया
"रट क्या लगा रखी है ज़मीं आसमान की
गिरने से पहले,छत तो बचाओ मकान की
                        1
जो कुछ दिखा है वो तो मुकम्मल नहीं लगा
सूरत है क्या बताओ मुकम्मल जहान की


सुदिन श्री वास्तव 

नाम -सुदिन श्रीवास्तव 
पिता -स्व•मथुरा मोहन श्रीवास्तव
शिक्षा-ऐम काॅम, ऐम•ऐ (शास्त्रीय गायन) बी•ऐड़
 शास्त्रीय गायन के ग्वालियर घराने से सम्बद्ध ।
 अखिल भारतीय सिविल सर्विसेज की प्रतियोगिता में म•प्र•का      प्रतिनिधित्व करते हुये राष्ट्रीय स्तर पर तृतीय स्थान प्राप्त ।
 आकाशवाणी भोपाल से गायन का प्रसारण भी हुआ।
 आकाशवाणी और दूरदर्शन से काव्यपाठ भी किया।

 पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन ।





उम्मीद की बयार है तो उनकी वज़ह से 
 सबकी नज़र में प्यार है तो उनकी वज़ह से 

 हमको हज़ार हाथ कोइ पूछता न था 
 अपना कहीं शुमार है तो उनकी वज़ह से 

 दुनियां के किसी शहर से दूरी नहीं रही 
 नज़दीक हर दयार है तो उनकी वज़ह से 

  इक सबसे बड़ी बात समझ आई के हमें 
  दुनियां पे ऐतबार है तो उनकी वज़ह से

  कहने को नज़म, गीत, ग़ज़ल और फ़साने 
  करने को इंतज़ार है तो उनकी वज़ह से
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▶चंद लोगों की ख़ता का दोस्तों अंजाम है
चैन से है न सनातन धर्म ना इस्लाम है

दोस्तो दुनियां को ये कहने का मौक़ा ना मिले
बटन रहा टुकड़ों में भारत वर्ष का आवाम है

फूलते फलते हैं सब मज़हब तमद्दुन जिस जगह
मुल्क हिन्दुस्तान दुनियां में उसी का नाम है

उसके सजदे के लिये मस्जिद ज़ुरूरी तो नहीं 
उसके दर्शन को ज़ुरूरी ना अयोध्या धाम है

दोस्ती वरदान है सारे ज़माने के लिये
दुश्मनी सारे ज़माने के लिये इल्ज़ाम है

इस ज़मीं पर प्यार से बढ़कर कोई मज़हब नहीं 
आप सबके वास्ते मेरा यही पैग़ाम है
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▶हर नयेपन से लगा तुम हो यहाँ 
अपने जीवन से लगा तुम हो यहाँ 

सारे रिश्तों पर जवानी आ गयी
सबके यौवन से लगा तुम हो यहाँ 

घर की हर दीवार उजली हो गयी
साफ़ आंगन से लगा तुम हो यहाँ 

पांव की छम छम ने भी जतला दिया
और खन खन से लगा तुम हो यहाँ 

ख़त्म सारे घर का राशन हो गया
ऐसे ज्ञापन से लगा तुम हो यहाँ 

कब लगा,कैसे लगा मत पूछिये
बस सनातन से लगा तुम हो यहाँ
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▶मुतमइन होने की सूरत अब तलक आयी नहीं 
हसरतों से या के अपनी ही शनासायी नहीं 

आरज़ूओं और उमीदों के लिये मशहूर है
इस जहाँ में कोई दिल जैसा तमाशायी नहीं 

सीख बस अपने तजुर्बों की मुझे देते रहे
मेरे अजदादों ने देखी मेरी गहरायी नहीं 

दिल को अब इसके लिये तैयार मैंने कर लिया
ऐ फ़रेबे आरज़ू लेती क्यूँ अंगड़ायी नहीं 

ग़ैर के दामन तलब वो हैं तो ख़ुद को रोक ले
इस दिले कमबख़्त में इतनी भी दानायी नहीं

सुदिन श्रीवास्तव



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