Friday, November 16, 2018

पड़ताल 

"तुम्हारे जाने के बाद " कविता संग्रह ,लेखक मधु सक्सेना 




अनुभूतियों का संयोजन


मधु सक्सेना जी का काव्य-संग्रह "तुम्हारे जाने के बाद" बोधि प्रकाशन से जनवरी 2018 में आया है। एक ही भाव भूमि पर रचित 47 कविताएँ मानों माला के मनके हों।
संग्रह के शुरुआत में अहमद फ़राज़ साहब का एक शेर है पोस्टर में

"याद आया था बिछड़ना तेरा
फिर नहीं याद कि क्या याद आया"

यादें ही हैं जो इंसान को कभी तन्हा नहीं छोड़ती। यादों के भिन्न-भिन्न मरहलों से गुज़रती मधु जी की कविता जीवन से जुड़ी है। जीवन के कई रंग हैं जिनमें कुछ चटक तो कुछ धूसर भी हैं। इन्हीं धूसर रंगों के दिनों में चटक रंगों के दिनों की स्मृतियाँ एक नदी की भाँती बहती रहती हैं। यादों के पंछी कभी भी कहीं भी पर फड़फड़ा जाते हैं। प्रिय का अचानक बिछड़ना जीवन की गति रोक जाता है। अचानक हुए वज्रपात से सहज जीवन कहीं खो जाता है। मन यह मानने को तैयार नहीं कि प्रिय अब इस दुनिया में नहीं है

"दुविधा में हूँ
तुम हो या नहीं...?
सब एक बात नहीं कहते
बदलते रहते अपनी बात
सच बताओ...
तुम हो या नहीं?"

इन कविताओं में हृदय से उठी हुई टीस है। हार्दिक अनुभूतियों की मार्मिक व्यंजना है। अचानक आये परिवर्तन को जज़्ब कर पाना कई बार आसान नहीं होता। किसी एक के मिलने से जीवन में आया उत्साह दुनिया में जीवन जहाँ आसान बना देता है वहीं किसी एक का बिछड़ना कितना अकेला कर जाता है कि सब कुछ वीरान हो जाता है। एक-एक साँस स्मृतियाँ ओढ़े भारी हुई जाती है। वही यादें जो जीने का सहारा भी हैं, वही बार -बार आँखों से नमक बन बहती हैं। स्त्री जब किसी से प्रेम करती है तो वह अपने जीवन में अपने लिए कुछ बचाकर नहीं रखती, सब कुछ प्रिय को समर्पित कर देती है। वही ब्याहता स्त्री जब वैधव्य से गुज़रती है तो सामाजिक रस्मों-रिवाजों का पालन करते हुए कितना टूटती है, सब कुछ सहती है, उसकी पीड़ा का अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है। इस बिछोह में सध-जात प्रेम नहीं बल्कि एक उम्र साथ जीया हुआ प्रेम है। जीवन के उतार-चढ़ाव, हँसी-खुशी के साथ जीये हुए पल हैं। वही अब जीने का संबल हैं। यहाँ जज़्बातों का भँवर है जिससे गुज़रना मन को  गीला करना है। कविताएँ बार - बार भीगोती हैं, रुलाई कई बार गले तक आ रुँध जाती है। एक बगुला मन के मरुथल में उठता है और सब कुछ साथ लिए उड़ने लगता है। अनन्त बिछोह के बाद भी धैर्य की छड़ी थाम आगे बढ़ते रहना ही एकमात्र रास्ता है। इसी धैर्य का कभी -कभी चुक जाना प्रिय को उपालम्भ देता है।

"जब चले ही गए थे
तो चले ही जाना था ना
क्यों रह गए...
घर के कोने कोने में
पलंग पर, तकिए पर
किताबों में, कपड़ों में
और अपने रेकैट में
शॉट लगाते हुए..
क्यों रह गए...
कॉलर पलटी शर्ट में
चश्में के फ़्रेम में
धूसर जूतों में
और अंगूठे से फटे जुराबों में."

किसी के घर से जाने के बाद उससे जुड़ी तमाम चीज़ें उसका होना याद दिलाती हैं या शायद उसका न होना याद दिलाती हैं। जाने वाले की उपस्थिति अनवरत बनी रहती है, वह दृश्य न होकर अदृश्य रहती है, केवल महसूस की जा सकती है। मधु जी की हर कविता में वह उपस्थिति दर्ज है।

"वो रुमाल आज भी गीले क्यों हैं?
बहुत धूप दिखाई
पर सूखे ही नहीं आज तक
तुम्हारे जाने के बाद..."

खालीपन से उपजा दर्द जब शब्द बन बहता है कुछ यूँ होती है कविता

"ओह, कहाँ से आया
ये राख का अंधड़
सब कुछ राख राख
पर, तुम्हारी राख को तो
मैंने छुआ भी नहीं
मुझे दिखाया भी नहीं..."

जीवन और मृत्यु का दर्शन यहाँ महज़ दर्शन के रूप में नहीं आया। इसमें जीवन की अनुभूति भी है।

"ज़िंदगी भी ऐसी ही है
रिश्ते, प्रेम, स्नेह और परवाह
की सींकों से जुड़ी...

और मृत्यु...?
एक एक सिंक निकली
और सब अलग...
पर क्या अलग हो पाए?"

मृत्यु के बाद हो रहे आडम्बरों पर प्रश्नाकुल मन की व्यग्रता कितनी सही है
"जब ये संस्कार, रीति रिवाज़
और कर्म काण्ड दोहराये जा सकते हैं...
तो, जीवन क्यों नहीं?
एक बार जाने के बाद इंसान
दोबारा क्यों नहीं आता...
वहाँ दोहराव क्यों नहीं?"

जब मन ही कुछ मानने में अक्षम हो तब प्रवचन उपदेश सब निरर्थक हैं।
"कितने प्रश्न उग आते हैं मन में
क्या ये गीता धो पौंछ कर
मिटा सकेगी उन शब्दों को
जो चिपके पड़े हैं
मेरे तन, मन और आत्मा से..."

मधु जी की कविता समाज से सार्थक सवाल करती है। अपनी बिखरी शक्ति को बटोर फिर से जीवन की रवानी में शामिल होने की कोशिश व ख़ुद को हौसला देना इन कविताओं का सकारात्मक पक्ष है।

"यह सुनती हूँ बार-बार कि
अब इस उम्र में क्या करोगी?
समझ नहीं आता
साठ के बाद क्या करने को कुछ नहीं होता?"

शुरू से अंत तक यादों के बियाबान से गुज़रती बहती कविताएँ निःसन्देह हाथ पकड़ अपने साथ बहा ले जाती हैं। इनकी संवेदना देर तक अपने डुबोये रखती है। सहज सरल भाषा व अनावश्यक बिम्बों की उलझाहट से दूर कविताओं के लिए कवयित्री को सार्थक लेखन की बधाई।

-अनिता मंडा
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अनीता  मंडा




कविता का नीड़: तुम्हारे जाने के बाद
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रचना समय के  कविता विशेषांक में मदन कश्यप और मैनेजर पांडेय की बात चीत में बहुत अच्छी बात सामने आती है ।जब मैनेजर पांडेय कहते हैं कविता की संगीतात्मकता तीन स्तरों पर होती है भाषा, विचार और रचाव ,इसके बगैर कविता संभव नहीं

दरअसल जो कवि एक ही तरह के काव्य घटाटोप में रमे हुए हैं उन्हें पाठकों की मनोदशा और आवश्यकता का ख्याल तो रहता ही नहीं, साथ में उन्हें इस बात का भी बोध नहीं रहता कि उनके भीतर कौन सी कविता निरंतर अपने विचार और और रचाव के साथ बन रही है। ऐसा कुछ रचने के बजाय वे एक दबाव में ऐसी कविताएं लिखते रहते हैं जैसी   स्पर्धा में शामिल होने के लिए औपचारिक रूप से ज़रूरी सी लगती है।  हमारे हिंदी के संसार में ऐसे भी कवि हैं जो अपने अंदर चल रहे विचारों को कविता की शक्ल देने में कोई परहेज़ नहीं करते, उनके नाम भी  बहुतेरे लोग लेना पसंद नहीं करते, लेकिन उनके  पाठक कविता को पढ़कर द्रवित होते हैं। यही उनकी कामना भी होती है। यही उनके इनाम -इकराम होते हैं।

इनमें से एक कवियत्री हैं श्रीमती मधु सक्सेना। उनकी कविताओं में मुझे पर्याप्त मार्मिकता ,भावुकता विचार ,संगीतात्मकता और लयात्मकता और आत्म स्थिति दिखाई देती है।

मुस्कुराहटों के खाली डिब्बों में भरकर रख ली हैं स्मृतियां
ठूंस ठूंस कर भरने पर भी बिखरती रहीं स्मृतियां
और बिखराती रहे मुझे

तुम्हारे जाने के बाद

ऐसी ही कविताओं से भरा हुआ उनका एक संग्रह आया है जिसका नाम है तुम्हारे जाने के बाद। चर्चित प्रकाशक बोधि प्रकाशन ने इसे पेपर बैक में छापा है और आकर्षक कवर के साथ यह बहुत सुंदर लग रहा है। उपहार जैसी यह किताब एक ही बिछड़े शख्स की यादों का गुलदान है।
वैसे भी कविता का संचारी भाव वियोग होता है और उसे समान अनुभव कराने में कर्त्तव्य पालन सा सुख मिलता है। मधु सक्सेना के ये एकालाप ऐसे ही हैं।
ख़ास बात यह है कि इनमें नयापन भी है। भूमिका भी दिग्गज लेखकों
की नहीं है।उन सखियों की (प्रवेश सोनी और वर्षा रावल)हैं ,जिन्होंने कविता की दुनिया में लगातार अपने हिस्से का विनम्र योगदान दिया है।
किसी कवि का कविता संग्रह आ जाना , पक्षी का नीड़ बन जाने की तरह होता है। जिसमें कवि के विचार रैन बसेरा भी करते हैं और बाहर उड़ते भी हैं। आशा है कि यह संग्रह मन -मन को सहलाने के लिए क‌ई घरों तक पहुंचेगा।

ब्रज श्रीवास्तव
ब्रज श्रीवास्तव 




'तुम्हारे जाने के बाद' 
द्वारा   --    मधु सक्सेना

 मधु सक्सेना जी का काव्यसंग्रह 'तुम्हारे जाने के बाद'  पढ़ा जिसमे  शीर्षक को सार्थक करती रचनाएं  किसी सम्मान , पहचान की महात्वाकांक्षा के वगैर केवल अभिव्यक्त होना चाहती है | ये संग्रह अनूठी यादों का सफर है जिसमे भीगे मन से जीवन साथी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके ह्रदय की पीड़ा ने इस काव्य संग्रह को जन्म दिया जहां कोई  चमत्कारिक काव्य शिल्प , कल्पना की ऊंची उड़ाने व जटिल शब्दावली ना हो कर सहज , प्रवाहमयी और संवेदनाओं को गहराई तक स्पर्श करने की क्षमता  रखने वाली कवितायें है
सीने  के दर्द के बाद दूर होती जिंदगी से पढ़ते हुए अंतिम पृष्ठ  समय के बदलाव तक पहुँचते पहुँचते कितनी ही बार अक्षर  धुंधले से  हुए, फिर एक गिलास पानी पीकर हर पंक्ति में रचे इस दर्द को बर्दाश्त करने की कोशिश के साथ ही पुस्तक पूरी पढ़ सकी |

छोटे छोटे शब्दों के प्रयोग करके इतनी व्यावहारिकता  से वो अपना अहसास बयान कर गई की हतप्रभ हूँ
'वसीयतनामा, शपथ पत्र ,सब हैं ना ?
कैसे हुई मृत्यु ?
सवाल मुझसे किया गया 
जी...जी ..वो ..
आँख के साथ जुबान ने भी काम करना बंद  कर दिया था 
'हार्ट अटेक 'पीछे से आवाज आई 
और मैं उबर गई '
कितनी पीड़ा देता है दोबारा होंठों से  निका लना और तब 'उबर गई 'का इस्तेमाल उफ़ !

रूढ़िवादी रस्मो रिवाज के प्रति आक्रोश उनके कृतित्व के साथ व्यक्तित्व में भी मैंने हमेशा देखा है वे लिखतीं हैं
रोली ,अक्षत ,काले तिल कपडे बिस्तर छाता , चप्पल और जाने क्या क्या
 'मुझे भी करना है '
नहीं सब पुत्र करेंगे 
'नहीं यह तुम्हारा अधिकार नहीं '
'जिंदगी में तुम्हारा अधिकार था मौत पर नहीं '
ये सब कहा था मुझसे रस्मों ने ,समाज ने ' |

 वर्ष बीतने के बाद फिर एक प्रश्न -जब ये संस्कार ,कर्म काण्ड दोहराये जा सकते है तो जीवन क्यों नहीं ?
गंभीर घटना क्रम लिखते हुए अचानक अंत में  अचंभित हो  जाता है पाठक जैसे
'मैंने फूलों को आँखों से लगाया और उछाल दिए तस्वीर  पर ' 
'
ये क्या मेरे सूखे फूल'
 'तब याद आया सारी नमी तो आँखों ने ले ली '

गज़ब की गहनता वाह |
इसी तरह एक सींक में बंधे पत्तल दोना से जिंदगी को देखने का नज़रिया हतप्रभ करता है
मधु जी को बहुत करीब से देखा  और जाना है उस हिसाब से वे बेहद स्पष्टवादी और बिना लागलपेट के बेहिचक बल्कि मज़ाकिया अंदाज़ में अपनी बात कहने की आदी हैं और उनका यही स्वभाव उनकी रचनाओं में भी इतने दर्द के बावजूद यत्र तत्र दिख जाता है जैसे

 'बालों में चाँद और चांदनी दोनों शबाब पर है ऑपरेशन के बाद भी घुटनो के नखरे कम नहीं हुए' | 

अक्सर ऐसा ही माना गया की यादें ही जीने का आधार होती हैं मगर इस संग्रह के  हर शब्द , हर  पंक्ति में बस  यही लगा कि वे यादों से उबरना चाहती हैं

'ले ले कोई इन यादों का दान ,बिखरी तो पडी हैं '
और एक जगह लिखती हैं 
'चले ही गए तो चले जाना था
 'हाथ की लकीरों से , 
मेरी सोच से ,स्मृतियों से, मेरे दायरे से '

शायद  यादें अधिक पीड़ादायक हो गई और अब बर्दाश्त नहीं होतीं ,और सहसा कह उठती हैं
'कोई ऐसा तीर्थ हो जहां अर्पण कर दूँ यादें' यहां उनकी छटपटाहट साफ़ नज़र आती है |
 काव्यसंग्रह की समीक्षा के काबिल नहीं हूँ मैं ,बस  कवितायें पढ़ कर  अपनी प्रतिक्रिया सौंप रहीं हूँ | अपनी और से  चार पंक्तियाँ देना चाहूँगी

        'टीस वेदना पीड़ाएँ सब
         दिल में छुपी घटाएं बनकर  
         नयनों की राह मिली ना तो 
         बरसी वे कवितायें बनकर '

अंत में बस इतना ही कहूंगी कि अब आगे  जीवन के ढेरों कटु अनुभवों का अस्तित्व समेटे हुए, जटिल जीवन पहेली सुलझाती हुई,निष्कपट भाव से , नए  स्वाद और अंदाज़ लिए हुए, सतत चलती रहे मधुजी की  कलम |
 और हमारी दोस्ती उन्हें जीने का सम्बल देने का प्रयास करती रहेगी | ढेर सारी शुभकामनाएं सखी |


 नीता श्रीवास्तव , रायपुर

नीता श्रीवास्तव 


समीक्षा - निरुपमा शर्मा 

मधु जी हिंदी की जानी मानी कवयित्री हैं ।उनका दूसरा काव्य संग्रह 'तुम्हारे जाने के बाद' पिय से बिछुड़ने की पीड़ा और उनके साथ बिताए क्षणों का शिलालेख है ,उनके न रहने के बाद का इतिहास है जो अमिट है । इन कविताओं में प्रतीक और बिम्बों का समावेश सायास नही अनायास ही हुआ है जो भावावेश की अनुगामिनी है ।

प्रेम, बिछोह ,अंतर्द्वंद ,करुणा ,व्याकुलता जैसे भावों की भाषा अनुगामिनी होकर उनकी कविताओं में प्रयुक्त हुई हैं ।
कवितायें अतुकांत है ,मुक्तक भावों से ओतप्रोत है पर आश्चर्य है कि एक पदबन्ध से जुड़ी है --'तुम्हारे जाने के बाद ।

यह हर किसी के वश की बात नही है ।भावों का ऐसा विस्तारित वर्णन अंत मे कुछ शब्दों में सिमट कर कविता के कथ्य को पूर्ण करती है ----'तुम्हारे जाने के बाद' ।

संग्रह में 47 कवितायें है ।हर कविता प्रेम के प्रसंग ,पति के साथ बिताए क्षणों और तमाम सूक्ष्म स्थूल भावों को इन शब्दों के साथ जोड़ती है --- 'तुम्हारे जाने के बाद '।

संसार में ईश्वर ने स्त्री पुरुष को एक दूसरे का पूरक बनाया है ।जीवन के तमाम उत्तर- चढ़ाव , पारिवारिक ,सामाजिक दायित्वों का बोझ ,उहापोहजनक परिस्थितियां दौनो मिलकर झेलते है ,समाधान करते है .....पर नियति को कौन जीत सकता है ?विडंबना है विधि के विधान का, कि सबका साथ ,सबको सब समय बराबर नही मिलता। इसका भागी संसार मे कोई भी स्त्री या पुरुष हो सकता है ।मधु जी के साथ भी यही हुआ ।

'तुम्हारे जाने के बाद ' संग्रह में मधु जी ने पति के हार्ट अटैक के समय से उस प्रसंग के कशमकश से लेकर उनके उपचार ,स्वर्गारोहण ,मृत्योपरांत औपचारिकताएं ,समाज परिवार की मान्यताएं ,बड़ों के दिशानिर्देश ,धर्मानुगमन की शिक्षा,,उनकी प्रत्येक सूक्ष्म- स्थूल वस्तुओं के जुड़ी स्मृतियां ,अपने को सम्हालने का भगीरथ प्रयास ,हृदय की पीड़ा,आर्तनाद और आज तक एक- एक पल को नही भूल पाने की व्यथा कथा को अपने शब्दों में बांधकर कविताओं में उंडेल दिया है ।अद्भुत है कल्पनाशीलता ।

क्रोंच वध ने जिस तरह बाल्मीकि को रामायण लिखने की प्रेरणा दी उसी तरह मधु जी के प्रिय वियोग ने लिखने की प्रेरणा दी--- 'तुम्हारे जाने के बाद '। ये इतिहास कौन लिख पाता है भला ....।

मधु जी की यह कृति काव्य साहित्य में अनूठा प्रयोग है जो प्रेम के संयोग- वियोग के प्रसंग यज्ञ की पूर्णाहुति हुई है ----' तुम्हारे जाने के बाद '।


-- श्रीमती निरुपमा शर्मा 

रायपुर ( छत्तीसगढ़ )


मधु सक्सेना 



परिचय 
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श्रीमती मधु सक्सेना 
जन्म- खांचरोद जिला उज्जैन (म.प्र.)
कला , विधि और पत्रकारिता में स्नातक ।
हिंदी साहित्य में विशारद ।

प्रकाशन (1) मन माटी के अंकुर (2) तुम्हारे जाने के बाद - काव्य सन्ग्रह प्रकाशित 
आकाशवाणी से रचनाओं का प्रसारण 
मंचो पर काव्य पाठ ,कई साझा सग्रह में कविताएँ ।विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन ।सरगुजा और बस्तर में साहित्य समितियों की स्थापना । हिंदी कार्यक्रमों में कई देशों की यात्रायें ।
सम्मान..(1).नव लेखन ..(2)..शब्द माधुरी (3).रंजन कलश शिव सम्मान (4) सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान ।
पता .. सचिन सक्सेना 
H -3 ,व्ही आई पी सिटी 
उरकुरा रोड ,सड्डू 
रायपुर (छत्तीसगढ़ )
पिन -492-007 
मेल - saxenamadhu24@gmail. Com

फोन .9516089571

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