Tuesday, April 16, 2019

मधु सक्सेना की कविताएँ 
संग्रह "एक मुठ्ठी प्रेम" 







अधूरे की पूर्णता 

अधूरी होती है हर कविता
हर गीत और ग़ज़ल भी

आखिरी पैरा कभी लिखा नही जाता
इंतज़ार होता है गीत के अंतिम बन्ध का
ग़ज़ल तरसती रहती अपने आखिरी शेर को

प्रेम के ये अद्भुत रूप
नही मिलते अंतिम छोर को
नही मिल पाता दूसरा किनारा

किनारे की बालू की नमी प्रेम का आरंभ
और मझधार डुबोने को आतुर
डूबने और उबरने से परे
क्षितिज पर उगा
रंगहीन चाप में एक रंग बन जाना होगा
अपूर्णता में पूर्णता को संवारना होगा

अपनी अधूरी रचना को
डबडबाई आँखों से निहार कर
भीच लेना कलेजे में
करके देखना ..
शायद यही प्रेम है ......




प्रेम का अंतिम चरण

जो मन मे था
वो कहाँ लिख पाई
बहती नदी का वेग ही सम्हालने में लगी रही
नदी के साथ ही बह जाती तो मुक्त हो जाती

तुम्हे सोचती रही ...आँखो में भरती रही
सारी आराधनाएं रीती रही
कह ही नही पाई

धरी रह गई प्रार्थनाएं
प्रेम में रहे को कुछ दिखता भी तो नही
ईश्वर को पा चुकी थी फिर भी खोजती रही ..

प्रेम के उद्दात्त उछाल में प्रफुल्लित हुई
पर डर भी गई थोड़ा सा ..
वक़्त के हाथों कसी हमारी डोर
ये तो पता है
पर नही पता प्रेम का अंतिम चरण

क्या होता है सबसे महत्वपूर्ण ?
क्या है सत्य ....
प्रेम को खुद में रख लेना या
प्रेम में खुद को रख देना......?





खबर

खबरों का अलग ही होता है
अपना वज़न
कभी, बिना हाथ पैर लिए
उड़ पड़ती है हवा की तरह
इतिहास बदलती, कभी भूगोल ....

सतयुग से लेकर कलयुग तक
खबरों ने लड़ी लड़ाइयां
खबरों ने ही मारा रावण को
पन्ना धाय ने उजाड़ दी अपनी कोख
मीरा पी गई विष
चिनाब की गोद मे सो गई सोहणी
क्लाइव की मुठ्ठी में आया बंगाल ....

खबरों ने ही घर तोड़े
अपनों को किया बेगाना
बच्चे बेधर हुए और
आनन्द धाम के बहे आँसूं

खबरों में ही सांई बाबा की तस्वीर रोई
गणेशजी पी गए दूध
इंसान बन गए ईश्वर
बार बार बनी बिगड़ी धर्म की परिभाषा ..

खबरों की खबर कौन ले
सच झूठ को कौन आंके
बिना जड़ के फैली इस अमरबेल का
मुश्किल है सच जानना ..


पर सच तो कुनमुनाता है
खोज रहा बाहर आने की राह ..

कविता ही पाएगी खबर का सच
कभी मासूम बनकर
कभी आक्रोशित होकर.
थाम लेगी हाथ
जकड़ लेगी पांव ..

हृदय की शिराओं में बहते हुए
दे देगी सांत्वना
अपने विस्तृत आकाश में चमक भर
उतार रही धरती तक
उम्मीद की एक सरल रेखा ...

..दोस्तों ...!!
ये मात्र खबर नही सच है ......





कहीं ऐसा हो जाए तो 

बाज़ार में कहीं से मार्क्स आकर
पूछ बैठे हालचाल मज़दूरों का
बाबा नागार्जुन की लताड़ से
सहम जाएं सब अचानक

धूमिल डांटने लगे जोर से
पाश पूछ बैठे लड़ाई और सपनों के बारे में
दुष्यंत आकर छेड़ दे गज़लों की बात...

ये सच हो जाय तो ..?

शब्द साथ छोड़ देगें
उत्तर उखड़ने लगेगें
मूंछ पर ताव देने वाले
हाथ नीचे कर लेगें ।
कितने कवि कान पकड़ कर
माफी मांगने लगेगें ....

ये असम्भव सी बात
सम्भव हो जाये
ये दुनिया पलट जाए
उससे पहले ही
जाग जाना कवि ...

जाग जाग कर सबको
जगा जाना कवि .....




 अधूरे की पूर्णता 

अधूरी होती है हर कविता
हर गीत और ग़ज़ल भी

आखिरी पैरा कभी लिखा नही जाता
इंतज़ार होता है गीत के अंतिम बन्ध का
ग़ज़ल तरसती रहती अपने आखिरी शेर को

प्रेम के ये अद्भुत रूप
नही मिलते अंतिम छोर को
नही मिल पाता दूसरा किनारा

किनारे की बालू की नमी प्रेम का आरंभ
और मझधार डुबोने को आतुर
डूबने और उबरने से परे
क्षितिज पर उगा
रंगहीन चाप में एक रंग बन जाना होगा
अपूर्णता में पूर्णता को संवारना होगा

अपनी अधूरी रचना को
डबडबाई आँखों से निहार कर
भीच लेना कलेजे में
करके देखना ..
शायद यही प्रेम है ......




प्रेम का अंतिम चरण 

जो मन मे था
वो कहाँ लिख पाई
बहती नदी का वेग ही सम्हालने में लगी रही
नदी के साथ ही बह जाती तो मुक्त हो जाती

तुम्हे सोचती रही ...आँखो में भरती रही
सारी आराधनाएं रीती रही
कह ही नही पाई

धरी रह गई प्रार्थनाएं
प्रेम में रहे को कुछ दिखता भी तो नही
ईश्वर को पा चुकी थी फिर भी खोजती रही ..

प्रेम के उद्दात्त उछाल में प्रफुल्लित हुई
पर डर भी गई थोड़ा सा ..
वक़्त के हाथों कसी हमारी डोर
ये तो पता है
पर नही पता प्रेम का अंतिम चरण

क्या होता है सबसे महत्वपूर्ण ?
क्या है सत्य ....
प्रेम को खुद में रख लेना या
प्रेम में खुद को रख देना......?





मधु सक्सेना 




परिचय-
श्रीमती मधु सक्सेना 
जन्म- खांचरोद जिला उज्जैन मध्यप्रदेश
कला , विधि और पत्रकारिता में स्नातक ।
हिंदी साहित्य में विशारद ।
प्रकाशन (1) मन माटी के अंकुर (2) तुम्हारे जाने के बाद ( 3 ) एक मुट्ठी प्रेम ।सब काव्य संग्रह है ।
आकाशवाणी से रचनाओं का प्रसारण 
मंचो पर काव्य पाठ ,कई साझा सग्रह में कविताएँ ।विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन ।सरगुजा और बस्तर में साहित्य समितियों की स्थापना । हिंदी कार्यक्रमों में कई देशों की यात्रायें ।
सम्मान..(1).नव लेखन ..(2)..शब्द माधुरी (3).रंजन कलश शिव सम्मान (4) सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान (5) प्रोफे. ललित मोहन श्रीवास्तव सम्मान - 2018 ......
 पता .. सचिन सक्सेना H -3 ,व्ही आई पी सिटी, उरकुरा रोड ,सड्डू  रायपुर (छत्तीसगढ़ )पिन -492-007  मेल - saxenamadhu24@gmail. Com फोन .9516089571


प्रस्तुत कविताएँ "साहित्य की बात " वाट्स अप समूह पर ब्रज श्रीवास्तव जी द्वारा लगाईं  गई 
इन्हें पाठकों द्वारा  खूब पसंद किया गया |

पाठकीय प्रतिक्रियाएं 

Shikha Tiwari
बहुत सुन्दर कविताएं हैं। कोई एक चुनना कठिन है। सभी ने प्रभावित किया है।
कहीं ऐसा हो जाए तो शीर्षक कविता बिल्कुल अलहदा है।
सच में ऐसा हो गया तो...।



 नीता श्रीवास्तव
एक मुट्ठी प्रेम
द्वारा मधु सक्सेना

प्रतीक्षारत काव्यसंग्रह 'एक मुट्ठी प्रेम' मधु जी ने मुस्कुराते हुए यूं थमाया मेरे हाथ में जैसे सारे जहां का प्यार मुझ पर उड़ेल दिया हो और मैं अभिभूत हो गई |
इस काव्य संग्रह में प्रवाहमयी और संवेदनाओं को गहराई तक स्पर्श करने की क्षमता रखने वाली 104 रचनाएं हैं जहां हर एक रचना पढ़ कर यूं प्रतीत हुआ कि कवियित्री के ही जीवन के पृष्ठ खुले हैं या हम में से ही किसी के जीवन की कथा या व्यथा है |
समीक्षा करने का सामर्थ नहीं पर पढ़कर कुछ कहने को मन बेताब हुआ तो आपको अपनी बात सौंप रही हूँ |
मधु जी शब्दों के ताने बाने से रच कर रोशनाई के उजाले से कविताओं के रूप में अपनी स्मृतियों की गठरी से एक मुट्ठी प्रेम निकालकर बिखेर देती है कोरे कागज पर,जहां पर कभी कोई कविता फूलों पर बिखरी ओस  की नमी से पाठकों को भिगोती है तो कभी झील के रुमाल पर चांद का कशीदा टांक कर हतप्रभ कर देती है
      यूं तो मधु जी की सभी रचनाएं प्रेम और स्मृति से जुड़ी है जो कभी घर परिवार और समाज में नारी पर होते अन्याय पर कटाक्ष के रूप में है जहां उनका विरोध ना कर पाने का अफसोस समाया है |
जैसे 'मैं लिखूंगी जरूर' रचना में अंत में चुप्पी के खिलाफ लिखने का निर्णय भले ही छूट जाए मेरे अपने |
एक रचना 'अलाव' जहां अलाव  सेंकते  दादू के अलिफ लैला, अकबर बीरबल के किस्से, और आल्हा की तान, रसिया काआलाप में  नींद भी आंखों के बदले अलाव  किनारे बैठ जाती किस्से सुनने |
किसी ने सोचा नहीं था कभी कोई तकनीक और शहर बुझा देंगे सारे अलाव और दफन कर देंगे किस्सों की दुनिया |
 वाह लाजवाब सोच|
समाज की विसंगतियों से आहत मन आक्रोश उगलने बेताब दिखता है जैसे 'क्या लिखूं ' कविता में क्या होगा लिखकर- फिर जाने कितने बच्चे भीख मांगेंगे पता नहीं, निर्भया को न्याय मिलेगा या नहीं खेतों में फसलों के बदले लाश मिलेगी किसान की -उफ़ इतना दर्द?   कभी उनकी रचनाओं में प्रकृति के मानवीय भावों का अकूत खजाना मिलता है तो कभी बड़ी, पापड़, सत्तू की खुशबू और कहीं अंतर्मन में निखालिस प्रेम की टोह|
बढ़ती उम्र में भी मन की जमीन पर उगी नन्हीं कोंपलों से टपकता बचपन उड़ना चाहता है किलकार करना चाहता है मगर बार-बार सुनती है  'इस उम्र में क्या करोगी'?
 समझ नहीं आता क्या साठ के बाद करने को कुछ नहीं होता? एक प्रश्न परिवार से समाज से--
मधु जी कहीं चीले पकौड़े और भुट्टे की सुगंध में अपनी स्मृतियां तलाशती  हैं तो कहीं चांद, सूरज, झील,नदिया केअलौकिक सौंदर्य को गढ़ कर  विम्ब  के माध्यम से नया आकार प्रस्तुत करने से भी नहीं चूकती|
सबसे अधिक दिल को छू लेने वाली रचना जहां एक स्त्री के दर्द की पराकाष्ठा है
वह है 'सरहद'
जहां स्त्री समाप्त होती नदी के अस्तित्व की तरह कुछ बूंद आंखों में भर कर चार बाय छह के पलंग पर सिमटी सिकुड़ी इंतजार कर रही है अपनी पूरी तरह सूखने का |
 फलना फूलना और  सूख जाना यूं तो नियति है
 पर सदा रहेगा एक मुट्ठी प्रेम,
अंजुरी भर साध,
बूँद  भर करुणा ,
ये राह और दो पाँव
और यह कवियित्री की केंद्रीय रचना है संग्रह का नामकरण इसी से हुआ है  जहां से गुजरते हुए कथ्य के वैविध्य के एहसास के साथ गहन विम्ब और स्वाभाविक भाषा में डूबने उतराने का आनंद प्राप्त हुआ|
 इस संग्रह में गुजरते लम्हों को महसूसते हुए महीन कशीदाकारी ने एक ऐसी फुलवारी प्रस्तुत की है जहां पतझड़ के पेंतरों से बचते हुए अभिसार के गुलाबी रंगों के चटखने का इंतजार है|
 मधु जी के …



 Uday Basant Dholi:
सभी कविताएँ एक से बढ़कर एक हैं।
कहीं ऐसा हो जाए तो,और अधूरे की पूर्णता बहुत ही अच्छी लगीं प्रेम का अंतिम चरण में में जो प्रश्न उठाया है वह शाश्वत अनुत्तरित प्रश्न है।संवेदना से परिपूर्ण कविताएँ मन को छूने का सामर्थ्य रखती हैं।


 Aannd Saurabh:
 तुम्हारे जाने के बाद एक मुट्ठी भर प्रेम का जन्म लेना
निश्चित रूप से जीवन के सुख-दुख के बीच की कहानी को बयान करती कविताएं
स्त्री के संसार को बहुत ही बेबाकी से कह देना चाहती हैं
आदरणीय मधुर सक्सेना दी की प्रत्येक कविताओं में स्त्री विमर्श देखने को मिलता है
वास्तविक आत्म संघर्ष और एहसास का एक सघन अनुभव उनके एक मुट्ठी भर प्रेम में पाया गया है.

आज पटल पर प्रस्तुत कविता का शीर्षक अधूरे की पूर्णता अंदर से एक कौतूहल जगाता है वास्तव में यह कविता प्रेम को एक नई परिभाषा में परिमार्जित कर रही है
"प्रेम का अंतिम चरण" कहीं न कहीं मंजिल पा ही लेता है .
ईश्वर को पा चुकी थी फिर भी खोजती रही इन पंक्तियों ने मुझे अंदर से प्रभावित कर दिया
 उत्कृष्ट लेखन है आपका.
खबर शीर्षक की कविता बहुत ही मार्मिक और विचारोत्तेजक है
 अंधविश्वास पर कटाक्ष करती सामाजिक रूढ़ियों पर करारा प्रहार है
"कहीं ऐसा हो जाए" जरूर हो सकता है आप ऐसे ही समाज को बदलने वाली अपनी कविताओं से
 लोगों की सोच बदलने में कामयाब होंगी.
कुल मिलाकर कह सकता हूं कि
 अनावश्यक सनसनी और उत्तेजना उत्पन्न किए बगैर आप बहुत ही सरलता पूर्वक पाठक के हृदय तक पहुंचने में कामयाब हो जाती हैं.

मधु दीदी आपको इस संग्रह के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं
आपका लेखन उच्च कोटि का है
 पटल पर कविता प्रस्तुत करने के लिए आदरणीय  ब्रज श्रीवास्तव सर को बहुत-बहुत बधाई




सुरेन्द्र रघुवंशी 
मधु सक्सेना की कविताएं स्त्री मन की स्वाभाविक अभिव्यक्ति हैं। स्त्री जीवन के तमाम जाल इन कविताओं में हूबहू आये हैं। "साहित्य समाज का दर्पण है " इससे पहले वह रचनाकार का अपना दर्पण भी है जिसमें वह स्वयं अपना अक्स देखता और दिखाता भी है। मधु सक्सेना की ये कविताएँ अपनी और स्त्री जीवन और दिनचर्या की प्रतिध्वनि हैं। एक स्त्री का विस्थापन आजीवन चलता है और अघोषित रूप से वह पुरुष संसार से कहीं न कहीं बहिष्कृत कर दी जाती रही है। इसी बहिष्कार और दुनियाबी डबल स्टैंडर्ड से अभी तक स्त्री को मुक्ति नहीं मिल पाई है। इसी चोट के निशान स्त्री की कविताओं में बार-बार देखने को मिलते हैं। उसके भीतर कोई  अदृश्य गहरा घाव है जो निरन्तर रिसता रहता है। इसी सत्य पर सुनवाई करते हुए निर्णय में हमें पुरुष वर्चस्ववादी दुनिया को पाखण्डी और स्त्री के प्रति अन्यायी कहना होगा। मधु सक्सेना की कविता यात्रा परिष्कार और व्यंजनात्मक  परिपक्वता की माँग करती है। यहां अपेक्षाकृत और मुखरता और विद्रोह की जरूरत है। एक अनावश्यक पारम्परिकता का पुरातन मधु सक्सेना के कविता सृजन और पाठ में बाधक है। उम्मीद है वे जिस तरह कविता और जीवन में आगे बढ़ी हैं उसी तरह उनकी यह कविता यात्रा और भी आगे जायेगी।                     
 - सुरेन्द्र रघुवंशी





 Sunita Pathak: 
एक मुट्ठी प्रेम
मुट्ठी भर कहां है
समन्दर की तरह असीमित प्रेम को समेटे ये रचनाएंअपने साथ धीमे धीमे बहने को प्रेरित करती हैं

अधूरे की पूर्णता
कविता ने तो प्रेम का पूरा विस्तार ही प्रस्तुत कर दिया है
और अंतिम पंक्ति ने सारा सत्य सामने रख दिया है

अपनी अधूरी रचना को डबडबाई आंखों से निहार कभींच लेना कलेजे में
करके देखना
शायद यही प्रेम है
वाह बहुत खूब
और अंतिम चरण में
सत्य की खोज
प्रेम को खुद में रख लेना
या प्रेम में खुद को रख लेना

क्या बात है
प्रेम में जी भर जी लिए
खबरों में सारी दुनिया समाई है
नीरा श्रीवास्तव की समीक्षा ने
संग्रह को प्राप्त करने के लिए लालायित कर दिया


Vijay Panjwani:
मुझे भी लगता है कि इधर मधु जी ने
कविता की बुनावट पर बहुत ध्यान दिया है । यह दिल से की गई तारीफ़ है
रस्मन नहीँ । आज प्रस्तुत कविताओं में
" प्रेम का अन्तिम चरण " और
" ख़बर " कविताएँ भायीं ।


 Kumar Suresh: 
मधु जी की कविताएँ पढ़ कर अच्छा लगा । लगा जैसे ये वही कविताएँ हैं जो मेरे भीतर अनुगूँज करती हैं। शायद मेरी कविताओं में कहीं ऐसा ही कुछ होगा भी।
पहली ही कविता ने मन को पकड़ लिया । वस्तुतः सत्य कभी कहा नहीं जा सकता । यह संभव नहीं है । हम जो कुछ भी अनुभव करते हैं वस्तुतः वो भाव या अनुभव या अहसास होता है । शब्द उस भाव को अभिव्यक्त करने का हमेषा माध्यम ही होते हैं लेकिन वो पूरी तरह से अभिव्यक्त कभी नहीं कर पाते। कर भी नहीं सकते । यह वैसे ही है जैसे कि जिसने खीर नहीं चखी वह खीर को शब्दों से कभी नहीं समझ सकता । उसे समझाया भी नहीं जा सकता । जिसने खीर चखी है वो बार बार समझाने की कोशिश करेगा । कहेगा कि खीर मीठी होती है । पतली होती है । स्वादिष्ट होती है । लेकिन कहने वाले और सुनने वाले में हमेशा ही समझ का भेद बना रहेगा । कहने वाले को हमेषा लगेगा कि वो ठीक से कह नहीं पाया । उसकी कहन अधूरी है । कवि को हमेशा अपूर्णता में पूर्णता को संवारना होता है । और प्रेेेम करके और खीर खा के ही जानी जा सकती है । वाह ।
मेरी एक कविता का अंतिम भाग है -
‘‘मनुष्य होने की गरिमा से परिपूर्ण
आधा अधूरा हूँ मैं
हमेशा पूरा होने की कोशिश करता हुआ । ’’
यही पूर्णता की तलाश ही किसी इंसान  को कवि बनाती है ।

दूसरी कविता प्रेम का अंतिम चरण  पहली कविता का ही विस्तार है ।
कमोबेश मैंने भी अपनी कविताओं में इन्हीं प्रष्नों से मुठभेड़ की कोशिश की है -
‘शापित है यह खेल
भुगतनी होती है
खो देने की पीड़ा
खेल कर ही चलता है पता
संभव नहीं
कुछ भी पूरी तरह पाना। ’’
मुझे यह कहने के लिये मधु जी माफ करें कि अगली कविता ‘खबर’ अपनी बनक और विषय वस्तु में पृथक होने के बावजूद कवि की वही सत्य कह पाने की ललक लिये हुये है। ये जरूर है कि जो कहना है वो अब रूहानी नहीं दुनियावी है । उनका कहना है कि अगर सच कहा ही जाना है तो खबर नहीं कविता ही इस सच को अधिक सक्षमता से संप्रेषित कर सकती है ।
आखिरी कविता कव कर्म में आ गयी कथनी और करनी में अंतर को रेखाकिंत करते हुये कवि से सत्य के ही अन्वेषण का अनुरोध करती है ।
सत्य को संप्रेषित करने की प्रखर इच्छा से भरी सुंदर कविताओं के लिये मधु जी को बधाई ।
 यह कहना छूट गया कि इन कविताओं को लिखने वाले कवि मेँ दर्शन के प्रति जरूर गहरा रुझान होना चाहिए । इन कविताओं का आस्वाद स्त्री विमर्श कि द्रष्टि से न लेकर मनुष्य मात्र के विमर्श से ही लिया जा सकता है।




Anil Kumar Sharma:
एक मुठ्ठी प्रेम 💐
मधु जी की इस पुस्तक के विमोचन समारोह मे शामिल हुआ । बोधि प्रकाशन से पुस्तक ख़रीद कर उस पर महान लेखिका के हस्ताक्षर लिये । सुखद लगा मधु जी से मिलकर
प्रेम ,वह भी सिर्फ़ ,एक मुठ्ठी

बहुत ईमानदारी से मधु जी ने अपने उद्गगार के नग कविताओं के आभूषणों में जड़े हैं ।
प्रेम को इतनी ख़ूबसूरत तरीक़े से परोसना , लेखिका के पाक- विद्या में दक्ष होने का द्योतक है।सच में प्रेममय हो गया रोम रोम 🙏प्रेम भी एक मुट्ठी लिया
सही किया ,बाक़ी प्रेमियों के लिये छोड़ना ईमानदारी है
गम्भीर बात को इतनी सरलता से कहना कि समझने मे तनिक भी मेहनत न करनी पड़े ,कविताओं की विशेषता है
भूत को वर्तमान मे रचकर भविष्य के लेखन के लिये लेखक /कवियों को सावधान करना सराहनीय है ।
सिर व पैर नहीं होते खबर के  लेकिन जब चलती है तो हवा भी पीछे रह जाये , खबर की खबर तो बस खबर ही ले सकी है बाक़ी तो सब अफ़वाह है ।
पूर्णता को प्राप्त हो जाना बिरलों को ही नसीब है ,एक अधूरी सी जिदंगी जी कर ही तो चले जाना होता है दुनिया से
प्रेम,दर्शन के साथ आयना दिखाती हुई कवितायें हैं




ज्योति खरे 
 मधु जी की मन को छूती कवितायें हैं
मुठ्ठी भर प्रेम को मधु जी ने अपनी कविताओं के माध्यम से सागर जैसी गहराई दी है और सागर जैसा गंभीरता भी , जिसमे पाठक डूब जाता है गहरे तक.
मधु जी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं💐🌸🙏🙏




सुदर्शन  शर्मा :
शानदार कविताएं।बधाई मधु जी।

प्रेम को ख़ुद में रख लेना या प्रेम में ख़ुद में रख लेना  दोनों ही जगह एकात्मकता है,दोनों ही सत्य हैं और जो कविता यह गूढ़ प्रश्न उठाए वो भी सत्य।
हर युग में कविता के कंधों पर हस्तक्षेप का भार होता है। ये मात्र ख़बर नहीं सच है
कहीं ऐसा हो जाये सशक्त कविता।ज़रूरी विमर्श। बहुत पसंद आयी साधुवाद।



 Anita Manda:
 बहुत समय बाद संवेदनशील कविताएँ पढ़ी। मधु दी एक समर्थ कवि हैं, इनके एक काव्य संग्रह से गुज़र चुकी हूँ।
ये कविताएँ भी स्मृति में थी।
स्मृति में रह जाना ही बहुत कुछ कह देता है।
बहुत बधाई इस पुस्तक के लिए। ख़ूब सारी शुभकामनाएँ। रचते रहें।


Sudhir Deshpande 
हम कब पूर्ण हुए हैं। हर बार बाकी रह ही जाता है कुछ कहना। हर बार कोई इच्छा अधूरी ही रह जाती है। ज़िंदगी एक कविता एक ग़ज़ल एक गीत ही तो है। वहीं वे प्रेम को पूर्णता का पर्याय कह देती है। सच ही तो है प्रेम के वशीभूत व्यक्ति के उहापोह और प्राप्ति के बाद का आनंद उसी पूर्णता की अनुभूति देता है।



 Pravesh Soni: 
मधु और उसकी कविताएं दोनों एक दूसरे में गूथे हुए प्रेम के भाव है ।एक मुट्ठी प्रेम  जीवन में बचा रहे तो ऐसी ही सार्थक कविताओं की परिभाषा गढ़ता है ।

संग्रह हाथ मे है ,सुबह से इन कविताओं से गुजर रही हूं ।प्रेम की ऐसी अनुभूति इन कविताओं में पाती हूं जो बरबस जीवन दर्शन का सार समझा देती है ।

अक्सर  प्रेम में पूर्ण पाने  की अधीरता प्रेम को शून्य कर देती है जबकि अपूर्णता ही प्रेम को बचाये रखती है ।
एक मुट्ठी रेत हाथ से फिसल कर जीवन का अर्थ समझा देती है वही मुठ्ठी भर प्रेम मन को भर भर देता है ।

मधु के लेखन की विशेषता है वो एक शब्द को लेकर उसके समस्त भाव रच देती है ।और एक भाव को अनेक शब्दों की बंदिश में रख देती है ।प्रथम संग्रह तुम्हारे जाने के बाद की सृजन यात्रा से गुजर कर हैरान थी कि कोई विछोह को कितना और किस किस शब्दों से व्यक्त कर सकता है ,यह अनूठापन उन सब कविताओं को पढ़ते हुए महसूस हुआ था ।

कभी कभी इसकी कविताओं की प्रथम पाठक बन जाती हूं ,तब इसकी सृजनशीलता की गहराई मुझे भी अपने मे डुबो लेती है ।प्रतीक  और बिम्ब कविताओं की साज-सज्जा एक सधे शिल्पकार की तरह करते है ।

गर्व होता है कि मैं इसकी अजीज दोस्त हूं और यह मेरी  काव्य गुरु है ।
इसके जैसा लिखने की बहुत तमन्ना है दिल मे ।

शुभकामनाएं सखी ,लिखती रह 😍🌹


Naresh Agrawal:
मधु जी की सारी कविताएं बहुत ही सुंदर है, ज्ञानवर्धक हैं एवं मन को छूने वाली हैं।

 चाहे यह अधूरे की पूर्णता हो या प्रेम का अंतिम चरण खबर हो या अंतिम कविता कहीं ऐसा हो जाए तो।
इन सारी कविताओं में एक वरिष्ठ कवि की झलक मिलती है जो कि निश्चित रूप से मधु जी हैं और इन कविताओं को पढ़ने के बाद मुझे प्रेरणा मिली कि मैं उनकी पुस्तकों को अमेजॉन से  प्राप्त करूं, जिसके लिए मैंने उनको ऑर्डर दिया और उन्होंने यह पुस्तकें मुझे भेज भी दी है। शायद तीन-चार दिनों में मिल भी जाए।

 यह बड़े आश्चर्य की बात है कि इस विदिशा जैसी छोटी सी जगह में भी एक से एक बड़े कवि हैं, जैसे आदरणीय मणि मोहन जी, ब्रज जी, अखिलेश श्रीवास्तव, मधु जी आदि आदि ।

मैंने ब्रज जी की पुस्तकों को भी मंगाया है और मणि मोहन जी की और अखिलेश की पुस्तक तो मुझे पहले ही मिल चुकी है।

 मुझे बहुत खुशी होगी अगर आपलोगों की कविताएं देश में प्रकाशित सारी पत्रिकाओं में छपती रहे ताकि आप जैसे विद्वानों को सभी  लोग जान सके। बहुत-बहुत धन्यवाद इतनी सुंदर कविताएं पढ़वाने के लिए।🙏🙏🙏



Archana Naidu:
 एक मुट्ठी प्रेम ।
जितना गूढ़ शीर्षक उतनी ही गहराई।
मधु दीदी  ने कविताओं को जी भर जिया है ,क्योकि वे खुद प्रेम की गहराई में डूब कर लिखती हैं। खूबसूरत ,परिपक्व और खूब मंझी हुई कलम है दीदी की। जहाँ हर शब्द मोती है हर भाव पारस हैं ।एक छोटा सा मेरा भी सलाम ।गर्व होता है हम आपके स्नेह से बंधे है ।
अभी ट्रेलर देखा है पूरी पिक्चर अभी बाकी हैं । क्योकि हम अभी भी नर्सरी में ही है ।
दीदी  बहुत दूर तक ले जायेंगी ये कविताये ।हमारी भी शुभकामनाये ।🙏🙏🙏🙏🙏


हरगोविंद मैथिल 
आज पटल पर प्रस्तुत कविताएँ  मधु सक्सेना जी के सद्य प्रकाशित कविता संग्रह एक मुट्ठी प्रेम से चुने हुए नायाब मोती हैं ।
इनकी खूबसूरती यह है कि ये बहुत ही मार्मिक और संवेदनशील है तथा पाठक के अंतस तक अपनी चमक बिखेर कर उसे आलोकित करते हैं ।




बबिता
 अपने अंद र की  अनुभूतियों, अनुगूँज को शब्दों के मोतियों में पिरोकर, अवतरित कविताये,प्रेम आकंठ में डूबी,दुःख-सुख की नदी में डूबती-उतराती
प्रेम की पूर्णता-अपूर्णता की यथार्थपरकता का परिलक्षित करना अद्भुत प्रतीकात्मक  शब्दों से सृजन
वक्त के हाथों कसी डोरी,धरी रह गई  प्रार्थनाएं, भींच लेना कलेजे में ,सब कुछ कह देते हैं जीवन दर्शन का

खबरों की व्यापक, विश्लेषणात्मक सूचना
सही हैं खबर ने ही रावण मारा और खबरें ही अंधविश्वास फैलाने की घनी सूचक,लेकिन यह भी सच हैं, झूठ के पाँव नहीं होते,सो सट जानने को कुलबुलाती हैं, झकझोर देती है,खबरों की खबर लेने पर ही चैन की सांस मिलती हैं, फिर स्त्रोत कविता ही क्यों न हो ।

अंतिम कविता, समाज की विसंगतियों पर अपनी बात कहने वाले सुधारक मार्क्स हो या धूमिल  या नागार्जुन या दुष्यंत  आकर पूछ बैठे तो बस हब की खटिया खड़ी हो जाये इससे पूर्व चेतावनी देती कवियों की।
बेहतरीन कविताओं को पढवाने के लिए धन्यवाद ब्रज सरजी
बधाई  मधु दी।



ज्योति गजभिये 
 एक मुट्ठी प्रेम ने तो सर से पाँव तक भिंगो दिया | प्रेम के विविध स्वरूप हैं | अपूर्णता में पूर्णता खोजना, प्रेम का सत्य इत्यादि बातें दर्शन उत्पन्न करती हैं | किताब भी मैं एक दिन में पढ़ गई थी | सुंदर कविताएँ ! बधाई मधु जी ! धन्यवाद ब्रज जी



 Mustafa Khan: 8871447166
   मधु सक्सेना जी की कविताएं अपने समय के सुख-दुःख का सीधा सरल बयान है ।
    अधूरे की पूर्णता - अधूरी होती है हर कविता जैसे कोई ज़िंदगी रह जाती अधूरी,पूरी का कोई समय तय नहीं ।
   प्रेम का अंतिम चरण- बहुत कुछ अधूरा रहा जो मन में रह अलिखा रह गया इच्छाएं शेष रह गईं ।अंतिम दोनों बातें महत्वपूर्ण हैं।
   ख़बर - याद आया कि ,
कभी कहा न किसी से तेरे फसाने को न जाने कैसे ख़बर हो गई ज़माने को ।
 पर सच तो कुनमुनाता है ।
     कहीं ऐसा हो जाए तो- जग जाना कवि /जाग जाग कर सबको/ जगा जाना कवि,,,,।
    उल्लेखनीय कविताएं ,बधाई मधु जी ।आभार प्रस्तुति व संचालन ।

नयना कानिटकर : बहुत स्वाभाविक कविताएँ हैं मधु जी. स्त्री मन को बखूबी अपने शब्दों में रचती हुई. बहुत अच्छी कविताएँ

वनिता बाजपाई:
बहुत अच्छी कविताएं
मधु जी अपने समय की महत्वपूर्ण रचनाकार हैं जो दुनिया को देखने का विरल अंदाज रखती हैं , प्रस्तुत सभी कविताएं इस बात का उदाहरण हैं
बार बार पढ़ने को जी चाहता है



राजेन्द्र श्रीवास्तव 
मधु जी की यह कविताएँ संवेदनाओं की सरिता जैसी हैं। हल्के से उद्दीपन  मात्र से भावनाओं के उद्दीप्त बर्तुल विस्तार पाने लगते हैं। कहीं स्पष्ट व मुखर तो कहीं अव्यक्त वेदना पाठक अनुभूत कर सकता है।
 प्रेम को अलग अलग तरह से अभिव्यक्त करती कोमल स्वर की कविताएँ तो हैं ही, 'खबर..' जैसी कविता भी पाठक को आगाह सी करती लगती है।
ब्रज जी के सोजन्य से कुछ दिन पहले 'एक मुठ्ठी प्रेम' की एक प्रति पा गया हूँ।
क्रमशः पाठ जारी है।
मुझे विश्वास है, यह संग्रह सुधी पाठकों से भरपूर सराहना व अपेक्षित प्रतिसाद प्राप्त करेगा।
बहुत बहुत बधाई





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