Thursday, June 21, 2018

।। पिरामिड के बिम्ब से जनपक्षधरता का शंखनाद ।।
मधु सक्सेना 



मधु सक्सेना 

मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन भोपाल का प्रतिष्ठित वागीश्वरी सम्मान-2017 सुरेन्द्र रघुवंशी जी  के कविता 
संग्रह "पिरामिड में हम "  को दिए जाने की घोषणा हुई |संग्रह पर मधु सक्सेना  की समीक्षा के साथ
कुछ कविताएँ "रचना प्रवेश " पर 



सुरेंद्र रघुवंशी का तीसरा कविता संग्रह ''पिरामिड में हम '" अपनी पूरी ऊर्जा ,साहस ,और उद्देश्य को लेकर हमारे सामने है ।कलम में आग भरकर लिखी ये कवितायें जितना झुलसाती है उतना ही पानी की तरह लिखीअपनी गहरी प्रेम कविताओं से मन को सुकून भी दे जाती हैं । असल मे आग और पानी का संतुलन ही जीवन है और ये कवितायें साहित्य के जीवन मे अपनी सांसों का योगदान है ।

मनुष्य को मनुष्य बनाये रखने की जद्दोजहद और ज़िद है कवि के मानस में ।हर विषय को समेट कर उनमे प्राणतत्व फूंक कर बुराई के खिलाफ शंखनाद करती है ये कवितायें । आसपास की विसंगतियों का पुरजोर विरोध और जनमानस के मन के दुख की पड़ताल करती हैं । सच की धरती से उठी ,निर्भय कवितायें शब्द -शब्द से अलख जगाती है ,लगता है पाश ,धूमिल नागार्जुन और दुष्यंत के शब्द गूंज उठे हैं दिशाओं में ।

कवि की चिंता में सत्ता , अन्याय ,जंगल ,नदी ,सागर आग ,प्रेम ,लड़की आदि सब हैं ।इसीलिए ये कवितायें समूचे समाज को बदल डालने और हर व्यक्ति के हक़ में अंगद के पांव की तरह खड़ी है ।
प्रतीक ,विम्ब ,भाषा ,भाव ,लय , सम्प्रेषणीयता आदि के ताने बाने से गुंथी ये कवितायें आज के समय के लिए बहुत ज़रूरी हैं । कुछ उदाहरण देखिये ...

1 .. जब दुनिया से गायब हो रहा है सत्य 
कवि तुम विश्वास के बाल पकड़ कर 
सत्य को चेहरे से झिझोड़कर जगा दोगे ।

2..प्राकृतिक सिद्धांत के बहाने ही सही 
पर विचार करो सरकार !
पेड़ों पर तो खुशियों के फूलों में 
समृद्धि के फल लगते आये हैं हमेशा से 
पर तुम ये कैसा विनाशकारी मौसम ले आये 
कि इन पर लाशें लटकने लगी ...

3..प्रेम की आवारा हवाएं
किसी मौसम की मोहताज़ नही होती 
इच्छाओं की बदलियां बरसकर मिटा देती हैं 
हृदय के संताप को ....

अपनी कुछ बेबाक कविताओं के बारे में कवि का कहना है " जब यथार्थ बहुत वीभत्स हो जाये ,जब अधिक समय न हो तो व्यंजनाओं के वस्त्र उतार कर उसे दिगम्बर रूप में ही आना चाहिए ।"

कवि की बात सही है ।सच हमेशा नँगा और कड़वा होता है । 'पिरामिड में हम ' , 'कार्यवाही ' आदि कुछ कविताएँ तल्खी और तेवर में सबसे अलग है ।

कवि की चिंता में उनकी फटकार भी शामिल है।समझाने सिखाने के हर तरीके को कविता में ले आते ।
व्यंग्यात्मक लहज़े में 'तुम्हारा डर 'और 'डरना होगा ' कविता के माध्यम से में कहते है -

" डरो सत्ता के शक्तिशाली निर्णयों से 
सहम जाओ कि उनके हाथ मे व्यवस्था का चाबुक है 
और कहने की ज़रूरत नही कि चाबुक
अपने अधिकारों की कमीज़ उतरवा कर 
पीठ की नंगी धरती को 
घावों की लहूलुहान फसल से भर देता है "

हर अन्याय ,अत्याचार का विरोध का स्वर इन रचनाओं में है । दिखावा, छल ,झूठ और आडम्बर पर शब्दों का मारक प्रहार करती है ।कविता अपने रचनाकर के मन की थाह होती है । हरेक सत्य पर असत्य के चढ़े आवरण को नोच कर फेंक देने की मंशा है सुरेंद्र की कवितायें ।' मुक्ति मार्ग ' में कुकुर मुत्ते के समान उग आए धर्म गुरुओं पर उनकी विलासिता, असंगत आचरण और धर्म ग्रन्थों की गलत विवेचना पर खूब फटकारा है ।
कवि पर कबीर का प्रभाव दिखता है ।

कवि में अद्भ्य साहस है, दृढ़ता है और सब कुछ बदल जाने का विश्वास है ।तभी तो कहा .-

" भट्टी की तरह तपते और सूखे दिनों में 
मैंने घनघोर बरसात के सपने देखने नही छोड़े "

यही ताक़त है इन कविताओं की ,कि ये सपने देखती है ।इसी ताक़त को हरी झंडी दिखाई है अपने समय के सशक्त हस्ताक्षर राजेश जोशी ने । अपने ब्लर्व में उन्होंने लिखा है 'कवि के लिए कविता और जीवन की नदी एक दूसरे से अलग नही ,उसकी धाराएं एक दूसरे में मिल रही हैं ।'

कवि का जन्म किसान परिवार में हुआ है ।वे किसानों की दशा से वाकिफ़ है ।किसान के हाथ जब कलम आ जाती है तो वो अव्यवस्था के खिलाफ विरोध को भी लिखती है । अपने आत्म सम्मान और अस्तित्व की लड़ाई शुरू करती हैं ।किसानों की आत्महत्या कवि को बहुत व्यथित करती है ।अन्नदाता का मरना मानवता की सबसे बड़ी हार है । मौसम की मार ,समय की बेरुखी और सत्ता के उदासीनता के कारण किसानों की बलि से कलम कब चुप रहने वाली थी ...अपनी बुलन्द आवाज में कह उठी ---

.प्राकृतिक सिद्धांत के बहाने ही सही 
पर विचार करो सरकार !
पेड़ों पर तो खुशियों के फूलों में 
समृद्धि के फल लगते आये हैं हमेशा से 
पर तुम ये कैसा विनाशकारी मौसम ले आये 
कि इन पर लाशें लटकने लगी ...

। ' तुम्हे लड़ना था साथी ' लिखते हुए ' पाश ' के छोड़े हुए काम को आगे बढ़ाने की मुहिम पर चल पड़ता है कवि ।अपनी कविताओं को ताक़त बनाकर हिम्मत के भाले से राह बना कर के एक नए संसार को गढ़ने की ओर अग्रसर है ।

" निराशा की अंधेरी लम्बी रात की नींद में 
प्राणघातक दैत्य से बचने के लिए 
जगाने से पहले ही जाग चुके " 

सुरेंद्र भूले नही अपने अग्रजों को जिन्हीने जीवन लगा दिया मनुष्यता के लिए ।भगत सिंह का प्रभाव स्पष्ट दिखता है इन कविताओं में । इप्टा के कार्यों को जीवन मानते है कवि ...तो अग्नि पुरुष के क़दमो में भी कव्यजंलि समर्पित की । भगत सिंह ,जितेंद्र रघुवंशी अब्दुल कलाम को कविता में बड़े सम्मान के साथ स्थान दिया ।
'सुनो शहीदों 'कविता में कवि ने लिखा ..--

"जिस फंदे पर झूल कर तुमने दी थी कुर्बानी 
वे उससे जनता का गला घोंट रहे हैं ।
देश भक्ति के कृतिम नगाड़ों को पीटकर
वे दबा रहे हैं जन स्वर को आसानी से "

एक शाश्वत सत्य है कि अन्याय के खिलाफ क्रांति की आवाज कभी नही मरती।
वह तो मिटने के बाद हज़ारों कण्ठों से ललकार बन कर निकलती है । एक उदाहरण ..

" कभी शरीर और कभी इससे इतर
हम अपने शब्दों और विचारों में 
निरन्तर ज़िंदा रहेगें 
जैसे हवा ज़िंदा रहती है हमेशा
और यूँही देती है प्राण शक्ति "

काव्य संग्रह का शीर्षक 'पिरामिड में हम ' एक कविता का शीर्षक भी है जो इस संग्रह की तीक्ष्ण और बेबाक कविता है ।इसे पढ़ते ही बहुत सी घटनाएं याद आ जायेगीं ।कवि का आक्रोश स्पष्ट है । शब्द चुभते है पर ये चुभन ज़रूरी है ..अन्याय ही न्याय की ओर धकेलता है ...

" व्यवस्था के गठजोड़ से आनन्द विभोर हो 
तुम मूतते हो पिरामिड के शीर्ष से 
और खारेपन के उन छीटों को 
ज़रूरी बताया जाता है हमारे उद्धार के लिए ।"

इस संग्रह में छियत्तर कवितायें है जो अपनी चमकदार उपस्थिति से पाठक को आंदोलित करती है ...राह सुझाती हैं ,सच की वकालत करती हैं और मानवता के पक्ष में निर्भीकता से खड़ी होती हैं । बधाई सुरेंद्र रधुवंशी जी को इस सार्थक लेखन के लिए ।उनके कलम की ताकत बनी रहे ।युगों तक रहे उनका लेखन ,विचार और कर्मशीलता ।

-- मधु सक्सेना







कविताएँ 

।।  विभाजित  ।।
                 
पूरा परिवार इकठ्ठा होकर
पडोसी से झगड़ता है
एक जाति झगड़ती है दूसरी जाति से
एक राय होकर

एक भाषा दूसरी भाषा से अकड़ती है
एक क्षेत्र दूसरे क्षेत्र से भिड़ता है
एक रिवाज़ टकराता है दूसरे रिवाज़ से
एक धर्म के लोग एकत्र होकर
टूट पड़ते हैं दूसरे धर्म के लोगों पर

एक देश आक्रमण कर देता है दूसरे देश पर
कहते हुए उस देश को अपना शत्रु देश

पर कोई नहीं लड़ता एकत्र होकर
मनुष्यता को बचाने के लिए

सबके गले में टँगे हैं पहचान पत्र
जिन्हें पढ़ा जाता है गम्भीरता से
और कभी नहीं पढ़ा जाता
ज़मीन से आसमान के बीच
हवा की लहराती स्लेट पर लिखी
संवेदनाओं की इबारत को

सबकी अपनी विभाजित पहचान है
कट्टरता की आग से जल रही है धरती

और लोग हरियाली के सपने पाले बैठे हैं।





।।  लड़की का सफ़र   ।।


जैसे पृथ्वी घूर्णन गति से
अन्तरिक्ष में सूर्य के चारों ओर घूमती है
उसने अपनी पतली गौरवर्णी उँगली में
चाबी छल्ले को घुमाया

माथे पर झलक पड़ी नैराश्य की थकन को
उसने आत्मविश्वास के रूमाल से पोंछा

उसने शोर को जाने ही नहीं दिया कानों में
और सपनों के संसार को आँखों में उतारकर
खुला छोड़ दिया इच्छाओं के लिए

उमँगों के क़दमों से सरपट चलकर
समय की सड़क को नापते हुए
वह कॉलेज की लड़की कुचलती जा रही है
भय, भ्रम और आशँकाओं को
अपने पैरो के नीचे निःसँकोच

इस तरह वह सौन्दर्य की इन्द्रधनुषी पाती से
आमन्त्रित करती जाती है
खुशियों की बदलियों को
जीवन की धरती पर ।






।।  तुमसे मिलते हुए  ।। 


तुम्हें देखकर लगता है
कि दुनिया की चमक अभी कम नहीं हुई है
घिसे नहीँ हैं अभी भी विश्वास के सभी बर्तन

कि ख़ुशी होती है पर्वतों से भी ऊँची
हर बार तुम्हारी आँखों में उगते दिखाई देते हैं
उम्मीदों के अनन्त सूरज
जिनके साथ विचारों के सिन्दूरी आसमान में
तुम्हारी मुस्कुराहट का विस्तार है

तुम्हारे आगमन की ख़बर
ख़ुशियों की नदी में बदल जाती है
तुमसे मिलना किसी साम्राज्य को प्राप्त कर लेना है

तुम्हारे मुलायम सुन्दर हाथों के स्पर्श से
हज़ारों अश्व शक्ति की ऊर्जा का संचार होता है
अभाव के गड्ढों को कौन देखता है
प्रेम में दौड़ते हुए लक्ष्य विहीन

विभाजन की दीवारों को ढहाते हुए
तुम गाती हो समता और सरसता के गीत
इस कोलाहल भरे विरुद्ध समय में
कानों को जिनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है





।।  चन्देरी   ।।

यह एक प्राचीन शहर है
कलात्मक साड़ियों की सुन्दरता में लिपटा हुआ
बुनता हुआ जीवन के वस्त्र, समय के ताने-बाने में

यहाँ घाटी की तरह कटी रह गईं इच्छाएँ
दिल्ली के रास्ते तक नहीं पहुँचाता यहाँ का दरवाज़ा

किलाकोठी वाली पहाड़ी पर मौजूद बैजू बाबरा
छेड़ते हैं रोज राग पर नहीं सुनता देश
वे अक्सर कहा करते हैं कि शासक बहरे हो गए
और जीवन की आपाधापी में बाबरे हो गए लोग

राजा शिशुपाल के अहंकारी अट्टाहास के नीचे दबा है
यहाँ इतिहास का गौरव
और कृष्ण की चेतावनियों को पढ़ रहा है संसार

यहाँ के पत्थर बोलते हैं इतिहास की भाषा
और यह भी कि अपने सतीत्व की रक्षा के लिए
आज भी स्त्री को देखा जा सकता है यहाँ से
जौहर करते हुए विडम्बनाओं की अग्नि-लपटों में

मुग़ल आक्रान्ताओं के घावों से सिहर उठी यह नायिका
विन्ध्याचल पर्वत शृंखला की गोद में विश्राम करते हुए
अपने लिए समतापूर्ण न्याय की प्रतीक्षा कर रही है





।।  चारण   ।।
 
अभी भी मौजूद हैं चारणों की कौम
विडम्बनाओं से भरे समय में भी

वे लिख रहे हैं स्तुति-गान
दरवारों में गा रहे हैं विरुदावली तन्मय होकर

कला इनके पास आकर होती है शर्मिंदा
शब्द रोते हैं और सिसकते हैं स्वर

प्रश्नों के अम्बार अपने उठाए जाने
और अनगिनित क्रान्ति-गीत 
अपने गाए जाने की प्रतीक्षा में हैं

और वे नतमस्तक होकर व्यस्त हैं चरण-वन्दना में
गिरवी रखकर अपने स्वाभिमान की दौलत
सत्ता की क्रूर तिजोरी में
सिक्कों की चन्द थैलियों के लिए





।।  रुको सरकार   ।।

अपनी कैबिनेट बैठक में
मनमाने प्रस्ताव पारित करने से पहले
रुको सरकार ! और देखो
खेत के उस पेड़ की ओर
जिस पर डाला जा रहा है एक और फन्दा
थककर हार चुके हाथों के द्वारा
देखते हुए अन्तिम दृश्य उन आँखों के द्वारा
जिनमें उम्मीद की कोई रोशनी नहीं बची

उस फन्दे की ही नहीं अपने मन की भी गाँठ खोलो
कि इस कृषक पुत्र के दादा ने
अपने खेत में यह पेड़ नहीं लगाया था
अपने नाती की आत्महत्या के लिए

सोचो सरकार ! कुछ सम्वेदनशील होकर सोचो
अपने ह्रदय से स्वार्थ की कीचड़ निकालकर
उसमें मनुष्यता का निर्मल जल भरो

कुर्ते की बजाय इरादों की सफ़ेदी बढ़ाओ
और अपनी फ़ैशन को बचाने के स्थान पर
जनाधिकारों सहित जनजीवन को बचाओ

प्राकृतिक सिद्धान्त के बहाने ही सही
पर विचार करो सरकार !
पेड़ों पर तो ख़ुशियों के फूलों में
समृद्धि के फल लगते आए हैं हमेशा से
पर तुम ये कैसा विनाशकारी मौसम ले आए
कि इन पर लाशें लटकने लगीं

अविलम्ब खोलो इस फन्दे की गाँठ को
और इस पेड़ की जड़ों में कर्तव्यनिष्ठा का
पानी डालो निरन्तर कि तुम माली हो
जिससे ख़त्म हो पतझड़ का मौसम
और फिर उतर आई आगत हरियाली पर
पड़ जाएँ विश्वास के झूले
गाते हुए लोकतन्त्र की विजय का गीत


सुरेन्द्र रघुवंशी 


परिचय 

सुरेन्द्र रघुवंशी


जन्म- 2 अप्रैल सन 1972
गनिहारी , जिला अशोकनगर मध्यप्रदेश में
शिक्षा- हिंदी साहित्य , अंग्रेजी साहित्य और राजनीति विज्ञान और  शिक्षा शास्त्र में स्नातकोत्तर ।
आकाश वाणी और दूरदर्शन से काव्य पाठ

देश की प्रमुख समकालीन साहित्यिक पत्रिकाओं ' समकालीन जनमत' , ' कथाबिम्ब' , ' कथन' , 'अक्षरा' , 'वसुधा' , ' युद्धरत आम आदमी' , 'हंस' , 'गुडिया' , ' वागर्थ', ' साक्षात्कार' , ' अब' , 'कादम्बिनी' , ' दस्तावेज' , ' काव्यम' , ' प्रगतिशील आकल्प' ' सदानीरा' ' समावर्तन ' एवं वेब पत्रिकाओं ' वेबदुनिया' , ' कृत्या', 'प्रतिलिपि ' ,  ' मातृ भारती और '७4७स्टोरी मिरर' 'सहित देश की तमाम प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में
कविताएँ , कहानी, आलोचना प्रकाशित ।

मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा ' जमीन जितना' काव्य संकलन प्रकाशित

कविता संकलन ' 
ज़मीन जितना'
 'स्त्री में समुद्र'
 ' पिरामिड में हम '  और          
 गुलमोहर हारा नहीं '                  
 ' साँच कहै तो मारन धावै ' (डायरी) प्रकाशित

शिक्षक आन्दोलन से गहरा जुडाव
विभिन्न जन आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारी
अपने नेतृत्व में मध्य प्रदेश में 11000/- सरकारी शिक्षकों की सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से नियुक्ति ।
मध्य प्रदेश शासन के स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षक के रूप में कार्यरत ।
विभिन्न सामाजिक और मानवीय सरोकारों के विषयों पर विभिन्न मंचों से व्याख्यान ।
कुछ कविताओं का अंग्रेजी और फिलीपीनी टेगालोग भाषा एवं मराठी , गुजराती एवं मलयालम आदि भारतीय भाषाओँ में अनुवाद ।

कविता कोष में कविताएँ शामिल ।
हाल ही में मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने सुरेन्द्र रघुवंशी को उनके काव्य संग्रह ' पिरामिड में हम ' के लिए 2017 का वागीश्वरी पुरस्कार देने की घोषणा की है।
हिंदुस्तान टाइम्स डॉट कॉम और नवभारत क्रॉनिकल का संयुक्त बोल्ट अवार्ड ।

एयर इंडिया का रैंक अवार्ड ।
मानवाधिकार जन निगरानी समिति में रास्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य के रूप में कार्य ।
प्रांतीय अध्यक्ष मध्य प्रदेश राज्य शिक्षक उत्थान संघ
जनवादी लेखक संघ में प्रांतीय संयुक्त सचिव (म. प्र.) एवं राष्ट्रीय कार्य परिषद में सदस्य ।
एडमिन/ सम्पादक-
'सृजन पक्ष' -वाट्स एप दैनिक एवं फेसबुक साहित्यिक पत्रिका
'जनवादी लेखक संघ'- फेसबुक साहित्यिक पत्रिका
'जनपक्ष'- फेसबुक साहित्यिक ग्रुप                                             '
नई किताब नई पत्रिका '  फेसबुक साहित्यिक पत्रिका/समूह
संपर्क -महात्मा बाड़े के पीछे , टीचर्स कॉलोनी अशोक नगर मध्य प्रदेश, 473331 ।
मोबाईल 09926625886


srijanpaksh@gmail.com






No comments:

Post a Comment

 साहित्य सम्मेलन,"साहित्य की बात" 17-18 september 2022 साकिबा  साकीबा रचना धर्मिता का जन मंच है -लीलाधर मंडलोई। यह कहा श्री लीलाधर...

पिछले पन्ने