Friday, October 14, 2016

कविता साहित्य की सर्वाधिक प्राचीन विधा है।
कई युगों और साहित्य के कालों में अपने स्वरुप और व्यवहार में कई परिवर्तनों के साथ कई नाम उसे मिले। झंझावत मोड़ आये तब लगा कविता समाप्त हो गयी।

कविता मानव के रग रग में बह रही धार है। मनुष्य का उच्छ्वास है। जीवन की धड़कन है।

भाषाई तिलिस्म और लच्छेदार भाषा का प्रयोग कर कुछ कवि अल्पकाल के लिए भले ही उच्च सिंहासन पर आरूढ़ हो गए  हो पर सहज सरल भाषा में लिखी कविता मानसपटल पर अधिक समय तक स्थायी रहती है।

ब्रज श्रीवास्तव ऐसे ही समकालीन कवि हैं जो सादगी और सहजता से अपने मन के भाव कविता में व्यक्त करते हैं।
वर्तमान में  संचार  का सबसे ज्यादा चर्चित माध्यम  वाट्स अप  साबित हो रहा है ||यहाँ  पर कई साहित्यिक समूहों  में कविता ,कहानियों और भी कई लेखन विधाओं  पर विशद विमर्श होता है |सदस्यों की सक्रियता और रचनाओं पर त्वरित प्रतिक्रिया विमर्श के नए आयाम स्थापित कर रही है |रचना प्रवेश ब्लॉग पर अधिकाँश पोस्ट वाट्स अप समूह की होती है |
आज रचना प्रवेश पर  है साहित्य की बात समूह  के मुख्य एडमिन श्री ब्रज श्रीवास्तव  की कविताएं ,जिन्हें  प्रस्तुत किया है समूह की सह एडमिन  डॉ पदमा शर्मा  ने |

=====================================================

परिचय 
ब्रज श्रीवास्तव. 


जन्म :5 सितंबर 1966(विदिशा ) 
शिक्षा :एम. एस. सी. (गणित), एम. ए. हिन्दी, अंग्रेजी, बी. एड. 

प्रकाशन :साहित्य की पत्र-पत्रिकाओं, पहल, हंस, नया ज्ञानोदय, कथादेश, बया, वागर्थ, तदभव, आउटलुक, शुक्रवार, समकालीन भारतीय साहित्य, वर्तमान साहित्य,इंडिया टुडे, 
वसुधा, साक्षात्कार, संवेद, यथावत, अक्सर, रचना समय, कला समय, पूर्वग्रह,दस बरस, जनसत्ता, सहित अनेक अखबारों, रसरंग, लोकरंग, नवदुनिया, सहारा समय, राष्ट्रीय सहारा आदि में कविताएँ, समीक्षायें और अनुवाद प्रकाशित. 
कविता संग्रह :पहला संग्रह "तमाम गुमी हुई चीज़ें" म.प्र. साहित्य परिषद् भोपाल के आर्थिक सहयोग से2003में , रामकृष्ण प्रकाशन विदिशा से प्रकाशित (ब्लर्व, राजेश जोशी) दूसरा कविता संग्रह, "घर के भीतर घर" २०१३ में, शिल्पायन प्रकाशन से प्रकाशित. (ब्लर्व:मंगलेश डबराल,)

 हाल ही में "ऐसे दिन का इंतज़ार कविता संग्रह" बोधि प्रकाशन से आया है. 

संपादन :दैनिक विद्रोह धारा के साहित्यिक पृष्ठ का तीन वर्षों तक संपादन. 
काव्य संकलन, दिशा विदिशा.(वाणी प्रकाशन) से प्रकाशित. 
व्यवसाय :स्कूल शिक्षा विभाग में प्रधानाध्यापक( मा. शा.) के रूप में शासकीय नौकरी. विदिशा में ही. 

पता :२३३, हरिपुरा विदिशा. पिन464001 
मो.नं 9425034312. 

प्रसारण :दूरदर्शन भोपाल, और आकाशवाणी भोपाल से कविताओं का अनेक बार प्रसारण





       ✍खबरें.✍


खबरें 
बस खबरों के लिए थीं
कोई असर नहीं था
उनके हृदय में दबी बात का

वहाँ तयशुदा जवाबी जुमले थे
जैसे बधाई की खबर है तो
तुरंत धन्यवाद कहना है
बगैर महसूस किए
बधाई के भाव की शिद्दत

खबरें सिर्फ खबरें थीं
वहाँ किसी की आँख में आँसू 
या चेहरे पर अवसाद नहीं आया
मृत्यु की खबर सुनकर
तुरंत ही श्रद्धांजलि शब्द कह दिया गया
जैसे बहुत जरूरी हो 
जवाबी हमला करना.

खबरें परेशान थीं
इस जमाने में
कि वे बेअसर हुए जा रही थी
जबकि उन्होंने ने भी अपनी गति में इजाफा कर लिया था

जबकि वे भी
नई भाषा सीख चुकी थीं
जिसे कोई इस्तेमाल करने वाला
कोई आदमी ही होता था
जिसे इनसे व्यवहार करना
एक कौतुक था
और कुछ नहीं.





🤓 ||बगीचे में वृद्ध. ||🤓


शाम हो गई है और 
वृद्ध जन 
लिफ्ट से उतरकर
मल्टीप्लेक्सों
के अहाते में बने बगीचे में.
बैठ गए हैं. 


वे अलग अलग प्रांतों से हैं
अपनी अपनी बोलियों में बोलते हुए 
बहुत मज़ेदार लग रहे हैं. 

देखते हैं चारों ओर, तने ऊँचे भवन
वाहनों की चिल्लपों के बीच 
अपने - अपने कस्बों की 
याद कर रहे हैं 

जबकि जिंदगी भर के तजु़र्बे 
मुँह पर ही रखे हैं उनके
पर फ्लेट की कैद में 
उनसे बतियाने को कोई नहीं है 

बेटा और बहू तो 
बुरी तरह व्यस्त हैं नौकरी में
इन फ्लेटों में रिश्ते नहीं 
मशीनें रहती हैं 

बस ये वृद्ध ही हैं यहाँ 
जिन्होंने संबंधों का जीवन जिया है  
अपने ज़माने में 

आहें भरते हैं ये अक्सर 
अपने संवादों में 
और अपने कस्बों में लौटने के सपने देखते हैं. 







* एम्बुलेंस *


हट जा नाउम्मीदी रास्ते से हट जा,
मौत को मार डालने के लिये
घायल हुई जिंदगी जा रही है.

उसके पास वक्त की कमी है
तेज तेज जाना पड़ रहा है उसे
किसी के हिस्से का वक्त बचाने के लिये.

भूल जाओ अभी कुछ सोचना ,कुछ बोलना
सुनो ये सायरन की आवाज़
और बस दुआ करो

एक जरुरी
बहुत ज़रुरी आशाघोष करती हुई
एम्बुलेंस जा रही है.





   
    

🤔अपना पक्ष 🤔


अन्याय की खबर सुनकर तुम 
मुस्कराते हो

 आखिर तुम किस ओर हो
मानवता की तरफ
या सियासत की तरफ

अपना पक्ष तय करो
तुम्हारे बारे में कुछ तय होने से पहले..





||मित्र||


तुम जैसे कई आये 
मेरे जीवन में 
जिनके अंदर मित्र की 
आत्मा थी

तुम ही नहीं 
ऐसे और भी 
कुछ समय तक रहे 
मेरे प्रेम में 

और भी आये कुछ दिनों के लिए 
अपनेपन का उपहार लेकर 

मैं जब देखता हूँ 
तुम्हारी ओर 
तो सोचता  हूँ 
कैसे निकल गई 
तुम्हारे भीतर से 
मित्र की आत्मा 

और  
तुम खोखले मनुष्य 
रह गये. 
मेरे लिए. 







🙌 ||ऐसा करो || 🙌


इन अदालतों
इन थानों, 
इन मज़हबों, 
इन प्रवचनों, 
इन सत्संगों का
का क्या करें

जिनके होते हुये
भी अपराध होते रहे
क्रूरता अट्टहास करती रही

ऐसा करो
इन्हैं डाल दो कचरे के डब्बे में, 
और अब कुछ ऐसा करो
जैसा दोहाें  में लिखा है कबीर ने.




 ||सांवली ||

क्‍या क्या हुआ. 
अहमदाबाद जाते समय 
रेल में, 

कुछ हटकर नहीं हुआ 
खिड़की में से 
हरियाली दिखाई दी. 

सामने गर्भवती बैठी थी सफेद बुर्के में 
जो अपने पीहर गोदरा तक जाएगी 
शौहर उसकी बहुत परवाह कर रहा था. 

बर्थ पर से जबरन हटाने की 
बहस होती थी 

बिना रिजर्वेशन वालों को
टीटीई भी उपदेश दे रहा था 
एक लड़की ईयर फोन में 
मस्त थी. 

दो सांवली महिलाओं को 
सभी हटा रहे थे 
अपने पास से
पोटलियाँ लिए और एक गंदा सा 
बच्चा लिए गुहार कर रही थीं
बैठने के लिए वे 

वे जा रहीं थीं 
मजदूरी करने के लिए राजकोट. 
जहां से शायद ही वापस 
आ सकें अपने घर. 

यह एक सामान्य घटना नहीं थी
कि वे खानाबदोश थीं. 
इस विकासशील देश में 
और इस ज़माने में. 
हाँ, वे अब शायद ही लौटें अपने घर 
शायद ही रह पायें खुशी से. 





||कबूतर ||


मेरे शहर में नहीं दिखाई देते
कबूतर और कौए 
अलबत्ता अहमदाबाद में 
पांचवी मंजिल पर किचिन तक में
फर फर उड़कर आते जाते हैं कबूतर 


सामने एक गोदाम में बचपन में 
देखे थे


याद आया वो दुर्दिन
बुजुर्ग के लकवा के इलाज के लिए 
ओझा ने कबूतर के खून की 
मालिश की सलाह दी थी. 

इन कबूतरों ने 
पता नहीं प्रेमी-प्रेमिका के पत्र 
पहुंचाये होंगे या नहीं 
पता नहीं इतिहास में 
राजनीतिक  
संदेश भेजे होंगे या नहीं 

अलबत्ता 
इस वक्त ये कबूतर 
स्मृतियों को बांधकर 
लाये हैं अपने परों में 
मेरे लिए कि 
मैं खंगाल रहा हूँ अतीत. 



ब्रज श्रीवास्तव.

========================================







प्रतिक्रियायें 
मणि मोहन  मेहता 
उम्दा कविताएं ब्रज भाई की ।
उनके अपने डिक्शन वाले अंदाज की कविताएं । एम्बुलेंस और बगीचे में व्रद्ध बेहतरीन कविताएं हैं , सम्वेदना से लबरेज ....
कविता क्र. 4 , 5 और 6 ने मुझे प्रभावित नहीं किया , सपाट वक्तव्य भर लगीं । अपना पक्ष कविता में, जो अन्याय की खबर सुनकर मुस्कराता है उसका पक्ष तो पहले से ही तय है ।
सियासत और मानवता को भी बहुत सरलीकृत रूप में प्रस्तुत किया गया है।हो सकता है छोटी कविता की परिधि में वह बात आ नहीं पायी जो कवि कहना चाहता है ।

प्रवेश सोनी 
ब्रज जी की कविताओं का संसार बहुत ही सरल भाषा से रचा हुआ है ।लेकिन उनके अर्थ बहुत गहरी पैठ बनाये हुए है ।

खबरों की समझ पर  औपचारिकता  का सम्वादित होना कवि मन में  एक गूढ़ कविता का प्रारूप निर्मित कर देता है  ।वो सोचते है आखिर क्या हो गया ,वक़्त में  कैसा बदलाव आया की अब खबरों की संवेदनाये और उत्साह बदल गए ।

बगीचे में वृद्ध ,मल्टीस्टोरी  कल्चर  के चमकीले आवरण में  किसी एक कोने में छुपी उदासी को व्यक्त करती कविता है ।
कवि की नज़र हर उस छुपी हुई चीज को तलाश लेती है जो दृश्य में होते हुयें भी सदैव अदृश्य रहती है ।

मौत को मार डालने के लिए घायल जिंदगी जा रही है
एम्बुलेंस कविता का आशाघोष सभी कानों से उतर कर सीधा ह्रदय में पहुँचता है और हाथ उठ ही जाते है दुआ में की मौत की मृत्यु हो ही जाय, घायल जिंदगी जीत जाय ।कवि की संवेदना शब्दों के लिबास में आपसे कह उठती है कि यह मात्र कविता नही एक  प्रार्थना है जो स्वयं प्रस्फुटित हो जाती है जब गुजरती ही सायरन बजाती हुई एम्बुलेंस आपके करीब से ।

अन्याय की खबर पर यदि कोई मुस्कराता है ,उसका पक्ष उसी वक्त तय हो जाता है ।अच्छा चिंतन 

मित्र की आत्मा निकलकर खोखले मनुष्य रह जाना ...मित्रता जैसे रिश्तें पर कुठाराघात होना जैसा ही है ।भाव अच्छा है मगर कथ्य साधारण सा प्रतीत हुआ ।

ऐसा करो .....कवि मन की बैचेनी । क्यों आखिर कबीर के दोहों पर रुक जाता है कवि सारी अर्थ ,धर्म,और न्याय व्यवस्था से विमुख होकर ।सवाल छोड़ती अच्छी कविता ।
सावली और कबूतर  कवितायेँ भी परिवर्तन के गर्भ में छिपी दृश्यात्मक कवितायेँ है ।

घर के भीतर घर पढ़ रही हूँ ।नये संग्रह के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं 
🙏🌹


 Ghanshym Das
 ब्रज जी की पहली कविता ख़बरें आज भोथरी होती जा रहीं संवेदनाओं की सटीक व्याख्या , बगीचे में वृद्ध युवा पीढ़ी के अपनी नौकरी के कारण अन्य शहरों/प्रदेशों में रहने के कारण उनके पालक यदि उनके साथ रहने या कभी मिलने जाते है उनकी स्थिति का सचित्र विवरण क्योंकि मुझे खुद भी इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ता है । एम्बुलेंस जिस के सायरन की आवाज से ही किसी अनहोनी की आशंका होती है  उसे सकारात्मक दृष्टिकोण से रचना में प्रस्तुत करना ब्रज जी के घटनाओं को सकारात्मक दृष्टि से देखने की आदत को दर्शाता है । अपना पक्ष छोटी पर रचना पर बड़ा व्यंग , मित्र में बढ़ते मित्रों व घटती आत्मीयता को दर्शाती अच्छी रचना । अन्य सभी रचनायें भी समाज के प्रति कवि के सकारात्मक विचारों को दर्शाती हैं । बधाई ब्रज जी व प्रस्तुतकर्ता डॉ पद्मा शर्माजी । 

                        
Rajendr Shivastav Ji
: आज ब्रज जी की कविताएँ पटल पर हैं।अधिकांश पहिले पढ़ चुका हूँ ।अपने आसपास के परिदृश्य से ली गई, कवि की स्वाभाविक शैली में बुनी गई  कविताएँ प्रभावित करती हैं। मेरे पाठक मन की ओर से बधाई ।
पद्मा जी आज के चयन के लिये धन्यवाद ।                         
Dipti Kushwaha:
कविताएँ अगर एडमिन की हों तो हम न्यू ब्रांड कविताओं की अपेक्षा करते हैं । 
यह क्या एडमिन सर ! 😔 आप तो नवा-नवा परोसो हम भूखे आश्रितों को 😊
एकाध को छोड़कर सब हालिया पढ़ी कविताएँ हैं... बहरहाल, अच्छी कविताएँ हैं । दुबारा पाना भी भाया। 
और हाँ, कविताओं के साथ इलस्ट्रेशन्स भी ! एम्बुलेंस के साथ एम्बुलेंस, कबूतर के साथ कबूतर, वृद्ध के साथ चश्मिश अंकल जी, मित्र के साथ जोड़ियां, अपना पक्ष के साथ आपकी विचार-मुद्रा... गज़ब जी !! 😀
ओहो.... और ये साँवली !!! 
पद्मा जी, हमारा विशेष आभार स्वीकार करें । 
ब्रज साहब, अगली बार नये पकवान का वादा करें !  शुभकामनाएं मित्र !!



अलकनंदा साने 
कबूतर नई नवेली लग रही है  । बाकी  पढ़ी हुई लग रही है  । दीप्ति से सहमत होते हुए कहना चाहूंगी कि इन दिनों हम सभी अलग अलग कई माध्यमों और समूहों से जुड़े हुए हैं और इसी वजह से रचना पढ़ी हुई होती है । स्वाभाविक रूप से उस तादाद में सृजन संभव नहीं होता । खैर ।
कविताएं मिला जुला प्रभाव दे रही हैं । अच्छी कविताएं भी बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं कर पा रही हैं । यह भी हो सकता है कि कोई  नाम पढ़ने के बाद  उसके अनुरूप हमारी अपेक्षा बन जाती है । अनजाने में पहले पढ़ी हुई कविताओं से तुलना होने लगती है । खबरें बेहतर हैं , लेकिन कुल  मिलाकर बहुत मजा नही आया ।     

सईद अय्यूब 
अच्छी कविताओं पर दाद तो कई बार दी जा सकती है। यह क्या पुरानी और नयी की बहस है? यह इस पटल के लिये नई कविताएँ हैं। और अच्छी रचनायें कब पुरानी होती हैं। घनानंद ने सुजान के लिये कभी कहा था, ''रावरे रूप की रीति अनुप, नयो नयो लागत, जयो जयो निहारी।'' अच्छी रचनाओं के संदर्भ में भी यह बात सही है। जितनी बार पढ़ो वे नयी ही लगती हैं। बार-बार पढ़ने पर उसके नये-नये अर्थ भी खुलते हैं। निवेदन है कि यहाँ प्रस्तुत कविताओं पर चर्चा की जाये, नयी की माँग ब्रज जी से अलग से की जा सकती है। मैं ब्रज जी की इन कविताओं पर कुछ देर में उपस्थित होता हूँ।   


अर्चना नायडू 
कविताओं के भीतर रहती है कवितायें, 
आपके शब्दों में  गुंथी हुई है भावनायें,  
  गहराइयों में पैठ  लो दोस्तों, 
   खोजने से ही मिलती है, मोतियों की मालायें। 
सुंदर सोच, गहन चिंतन का परिचय देती है ये कविताएँ।। 🙏   

शरद कोकास 
ब्रज की कविता खबरें इस संवेदनहीन होते समाज की सच्चाई है । सनसनी और सम्वेदना का एक ऐसा समीकरण जो हर बार खबरों से नई भाषा की मांग करता है । कवि का संकेत इसी ओर है।   
बगीचे में वृद्ध महानगर की जीवन शैली और पीढ़ियों के अंतर्द्वंद्व की कविता है । यह भीड़ के बीच उपजी असुरक्षा और अकेलेपन की दास्ताँ कहती है ।  
एम्बुलेंस एक अलग विषय पर लिखी कविता है यहकविता और सशक्त होसकती है अगर इसमें कुछ और पहलू जोड़े जाएँ जैसे गर्भवती माँ को ले जाती हुई एम्बुलेंस ।

लक्ष्मीकांत कालूस्कर 
बृज जी की छोटी छोटी कविताएं कवि की व्यापक दृष्टि का परिचय कराती हुई.कविता हो या कहानी पुनर्पाठ करने पर अर्थों के नये नये आयाम खोलती है.कहा जाता है रोज गीता का पाठ करना चाहिये,हर बार कुछ नया मिलेगा. एक ही कथा के हजार पारायण किये जाते हैं, केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं साहित्य और चिंतन मनन के नजरिये से भी.
मुझे बुजुर्गों को लेकर लिखी रचना बहुत अच्छी लगी.
रचनाओं को पढ़कर यह बात खास तौर पर सामने आती है कि हर छोटी बड़ी घटना कवि को आकर्षित करती है,सोचने को विवश करती है.    

अखिलेश 
खबरे बस बात थी उनका कोई असर नहीं था हृदय में  ।इन पहली पंक्तियों से ही ये कविता मन मस्तिष्क को सोचने के काम पर लगा देतीं है ।सडक दुर्घटना मे घायल पडे व्यक्ति के किनारे व्यवस्था को कोसते हुए चाकलेट खाने की सेल्फि लेने की तरीको पर विमर्श तक पहुचता मानव, दर असल अपने फ्लैट के बाहर किसी समाज को नहीं जानता । वह इतनी जल्दी मे है कि सबसे पहले वो संवेदनशीलता का बोझा उतार फेकता है । वो समय मांगती मानव कर्म पर मौन है परन्तु मानव कहलाने का अधिकार छोडना नही चाहता सो वास्तविक मृत्यु को आभासी श्रृद्धाजंलि देता है और प्रति उत्तर को अनिवार्य हद तक साधता है ।वह उन उत्तरो के दायरे तक मे नही होता पर कर्तव्य श्री पूरा कर अपने आदमी होने का हलफनामा रखता है ताकि समय पलटे तो वक्त बेवक्त काम आये ।अगर वह इतनी जुमलेवाज प्रतिक्रिया न करे तो शायद ज्यादा मानवीय होने का भ्रम पैदा कर सकता था पर तुंरत जबाबी हमला जरूरी है क्यों कि वह आप मे शामिल न होने का मन खबर के पहले शुरुआती दो चार अक्षरों मे ही बना लेता है ।
ब्रज की कविताएँ वास्तव मे वजर् की कविताएं है जो पाताल तक फैली मानव असंवेदना के पठार को कोड़  कर भुरभुरी मांटी बनाती है और उसमे बीज रोप संवेदनशीलता के अंकुर उगा देती है। उन्हे इन कविताओं के लिए बधाई नहीं दूंगा क्योंकि अब इस शब्द मे थाली, चम्मच,ढोल,नगाडो की आवाज छुपी नहीं होती ।     


 Dr Mohan Nagar:
 भाई जी दिक्कत ये है कि ये पुरानी कविताएँ हैं और मुझे नहीं पता कि छप चुकी या नहीं .. छप चुकी तो कुछ संशोधन सुझाने का कोई फायदा नहीं। फिर भी बगीचे में व्रध्द कविता में  - बेहतर हो कि  स्थान - मल्टीस्टोरी अपार्टमेंट / डुप्लेक्स / फ्लेट से पटी कालोनी लिखा जाए जिसके छोटे से बगीचे में बैठने की बात हो .. कविता ज्यादा विश्वसनीय लगेगी क्योंकि शहर में लोग मल्टीप्लेक्स बूढ़ों को लेकर नहीं जाते  .. ऊपर से आपने स्थान मल्टीप्लेक्स का " अहाता " लिखा .. अहाते के अंदर से ऊंचे तने भवन नहीं देखे जा सकते न ही वाहनों की चिल्लपों सुनाई दे सकती है .. वैसे लिखना भी यही चाहते थे शायद आप क्योंकि अगले ड्राफ्ट में ही  " इन फ्लेटों में रहने वाले पंक्ति है .. पहले ड्राफ्ट में मल्टीप्लेक्स में बैठे बूढ़े अगले ड्राफ्ट में फ्लेट में ?                         
 जहां तक मुझे पता है मल्टीप्लेक्स वो जगह है जहां फिल्म लगती है                         
मैं दिन भर से देख रहा था कि कोई देखता है या नहीं           

आरती तिवारी 
पदमा जी ने अच्छा ही नही बहुत अच्छा किया है,.एडमिन को आप सबकी अदालत में खड़ा करके,..बाअदब बामुलाहिज़ा होशियार कि कवितायेँ छूकर बहुत कुछ कह गईं। जब भी पढ़ीं विटामिन की गोली सी स्वस्थ करती लगीं जी पदमा जी,..थैंकू है जी🌹🌹👏🏼👏🏼🍀🍀💐💐   


मधु सक्सेना 
ब्रज  जी की कविताएँ उनकी तरह ही संकोची है ।धीरे से अपनी महत्वपूर्ण बात को सरका देती है ।मैं इंतज़ार कर रही कोई तो कविता होती जो धमक के साथ अवतरित होती और उसकी आवाज़ कानों में गूंजने लगती ।अंगद के पांव की तरह जम जाती ।जैसे की जमी हुई है "ढोलक "। नही भूली उसे ।उस कविता की माँ भी तो अपनी ही थी ।आज भी उसकी थाप गूंजती है ।
खबरें ..बहुत सच्ची बात कहती है ।टूट पड़ते है बधाई या श्रद्धांजली देने ।भावहीन शब्द फेंकते रहते है ।बारीकी से पड़ताल करके लिखी हुई कविता ।

बगीचे में वृद्ध .... आज हर बड़े शहर की यही कहानी ।शिक्षा को कमाने की नीव मानने की बात इन्ही बुजुर्गों ने पढ़ाई होगी।खुद के अभावों ने यही तो चाहा पर अकेलापन भी सौगात में मिला ।जो भी हो वो अलग समस्या है पर आज का ये सच है ।अतीत की स्लेट पर शब्द लिख कर मिटाते रहते है । अच्छी कविता ।

एम्बुलेंस ...इस कविता में विस्तार होना था ।विषय अच्छा पर प्रभाव कमज़ोर ।

अपना पक्ष .... अच्छी कविता ।सियासत की चालों को चुपके से कहा हो मानों ।
मित्र ... शिकायत मित्र के बदल जाने से ।
हल्के फुल्के तरीके से मित्रता की बात ।

ऐसा करो ...आज की दुनिया की त्रासदी अलग तरह से बयान की ।कबीर को याद करना याने पूरी व्यवस्था में सुधार की उम्मीद करना ।अच्छी कविता ।

सांवली .... शीर्षक कुछ और होना था क्योकि कविता सांवलेपन से विस्थापन पर आ गई और कविता का मुख्य भाव  बन गया । 
"बर्थ से जबरन ......शायद ही रह पाएं ख़ुशी से ।"
ये कविता इतनी ही पूर्ण है ।

कबूतर ...कविता अच्छी है ।कबूतर और कौए की चिंता ,पक्षियों की चिंता है ।

ब्रज जी की कविताएँ ...धीमे से बात करती है और सम्वेदना जागृत करती है।बात करने जैसी कहन हैं । कवि  से कुछ ऐसी कविताओं की उम्मीद करती हूँ जो ऊधम मचा दे ।शुभकामनाएँ  ब्रज जी।
आभार पद्मा ...बहुत बढ़िया भूमिका के साथ सुंदर प्रस्तुतिकरण ।



रविन्द्र स्वप्निल 
ब्रज भाई अच्छी कविताएं लिख कर हमको चिड़ा रहे हो। ख़ासकर मणि और मुझे। बाकि सब लोग तारीफ कर रहे है। चलो किसी दिन विदिशा में घूंसा गोष्टी कर लें। सही बात ये है कि आप की उस दौर की और मेरी भी कविताएं प्रोसेस के बट्टे खाते में गई है, आज् जो कविताएं, घर के भितर से या नई पुराणी है, गजब की हैं। जैसे एम्बुलेंस बहुत अच्छी बनी। बधाइ पर जो है उसमें सामाजिक औपचारिकता को नाक से चने उठवाए है। इस ग्रुप में भी कितनी है, तारीफ कोई करे तो धन्यवाद दे दिया जाता है। नहीं दो तो मुह फूल जाता है, कविता केसी भी हो, इससे कोई मतलब नहीं, 
फ्लैट वाली कविता में आप अगर मानवीयता पर विश्वास के बड़े कवि हैं तो अपने इंसानो पर यकीन नहीं किया। जब इंसान छाल पहन के रहता था तब पहलीबार जिसने कपडे पहने होंगे या गांव बसा कर रहा होगा तो भी किसी ने यही नहीं तो लिखा होगा। ये छुपी हुई सूक्ष्म नाकारात्मकत आपकी कविता में है। 
ये तो कवि खुद की बेंड बजा कर ही पकड़ना सीखता है। खुद की निर्मम कुटाई। 

ऐसा नहीं की में तारीफ का भयानक विरोधी हूँ , में इस बात की आलोचना करता हूँ कि आपस में ही तारीफ और संतुष्टि रिश्तेदारी में तो ठीक पर हम कवियों के लिए यह प्रज्ञा अपराध है। हम अपने पाठकों के लिए ठगते हैं। 
ब्रज भाई आपकी कविताओं के किये बहुत कुछ है। पर आपसदारी के प्रोत्साहन से असंपृक्त रहना जरुरी है। तुम मुझे भी यूँ अलर्ट करोगे ऐसी उम्मीद है।

उदय ढोली 
बहुत कुछ कहती हुई कविताएँँ हैं ब्रज जी की ।अपनी जडो़ं से कटने का दर्द लिए एक तरह से विस्थापित बुज़ुर्गों की पीड़ा का अच्छा चित्रण ,एम्बुलेंस एक अभिनव प्रयोग


सईद अय्युब 
ब्रज श्रीवास्तव संकोची इंसान व संकोची कवि हैं। संकोच कई जगह पर अच्छा होता है पर कई जगहों पर बुरा। यह ब्रज श्रीवास्तव का संकोच ही है शायद कि इतने अच्छे कवि होने के बावजूद, हिन्दी कविता में उन्हें वह स्थान नहीं मिला है जो मिलना चाहिये था। पर उनका यह संकोच जब कविता में उतरता है तो कविताओं के कैनवास को बड़ा कर देता है। यह देखने और सीखने वाली बात है कि कविता लिखकर कवि उसे सबके सामने रख देने की हड़बड़ी में नहीं है बल्कि संकोच में है कि जो लिखा है वह कविता है भी या नहीं? है तो कैसी है? वह अपनी कविता को कई बार देखता है, माँझता है, शब्दों का चयन बहुत सावधानीपूर्वक करता है और चयन करने के बावजूद उनके इस्तेमाल में प्रयोग भी करता है। यद्यपि, इस चयन में कहीं कहीं कुछ गड़बड़ियाँ भी होती हैं जैसे मोहन नागर भाई ने ऊपर मल्टीप्लैक्स का उदाहरण दिया है। पर फिर भी, ब्रज श्रीवास्तव का कवि पाठकों को यह आश्वस्त करता है कि अच्छी कविताओं का कोई अकाल नहीं है।


Rekha Dube
: ब्रज  भाई की कविताएं पढ़ी ,"खबरें "जिसमें बड़ी ही खूबसूरती से हमारी मरती हुई संवेदनाओं पर कुठाराघात किया है ,जो दफन हो गई है हमारे ह्रदय के मशान में और सीमित रह गईं हैं फर्ज अदायगी तक बहुत मासूमियत से कह गए है ब्रज भाई बहुत बड़ी बात को बहुत सरल शब्दों में ।"बगीचे में वृद्ध " कहीं नियति की या हमारे युवा वर्ग का मजाक उड़ाती सी प्रतीत होती है क्यों की आजकल पुत्र के पास वृद्ध माता- पिता रह ही नहीं पाते वह पाते है तो एकाकी जीवन या वृद्धा आश्रम ,खुश किश्मत है वो लोग जी ब्रज भाई की कविता के बुजुर्गों की तरह जीवनयापन कर पाते हैं।बाकी सभी कविताएं एक व्यंग पुट के साथ बड़े सटीक लहजे में सटीक बात कह गईं हैं बधाई ब्रज जी और प्रवेश जी को                         
 Dinesh Mishra : ब्रज भाई
हमेशा की तरह मुझे आपकी कविताएं अच्छी लगीं, पहली कविता खबरें आज की ज़िन्दगी पर अच्छा ख़ासा तन्ज़ है, जहां औपचारिकता का निर्वाह करना भर ज़रूरी हो गया है, वरना बड़ी से बड़ी बात या घटना किसी को react ही नहीं करती, बृद्धों पर केंद्रित कविता उस अतीत को याद करती है, जो कस्बों में पसरे अपनेपन और लगाव को याद करके दुखी होती है।
ब्रज जी सभी कवितायें सादगी से भरपूर होते हुए भी हम तक पहुँचती हैं, छोटी छोटी सी चीज़ों पर इस तरह लिखना उनके संवेदंशील होने का प्रमाण है।
बधाई ब्रज भाई।

सुरेन
@Braj Shivastav  की कविताये पिछले 8 ,10 माह में काफी पढ़ी और उन सभी कविताओं को पढ़कर एक पाठकीय राय भी बनी । उसी पाठकीय मन से कुछ सामान्य बाते ब्रज जी की कविताओं और काव्य कर्म पर उपजती है ,जिन्हें साझा कर रहा हूँ ।


ब्रज जी की कविताओं पर मैंने पहले भी लिखा है कि वे सर्वेश्वर और कुंवर नारायन के जॉनर में अपना काव्य कर्म अंजाम देते है । अपनी बात को धीरे से कहते है, शब्दों का चयन भी मुलायम सा होता है और वाक्य विन्यास संप्रेषण के जल में डूबे हुए तरल सा  । इसके साथ ही  भाषाई चमत्कार से परहेज़ करते है । 


इन कविताओं के धीमे स्वर में भावो से भरे वाक्य और उन वाक्यों में संप्रेषित होने की क्षमता का आप्लावन सायास नही बल्कि अनायास शैलीगत  बाध्यता से उपजता है । इस प्रकार की कविताओं में एक जो खास बात होनी चाहिए वो ये कि अंततः अपने कहन में पाठक मन में एक मारक सा या कहे  अपने कहन में एक ऐसी प्रभावोत्कट जुम्बिश छोड़ने की क्षमता होनी चाहिए नही तो कविता बस ब्यौरे देने वाली विधा के रूप में पाठक ग्रहण करेगा ।


आज प्रस्तुत कविताओं को उपरोक्त आलोक में देखे  तो  आठ में से दो कविताएं  बागीचे में वृद्ध और एम्बुलेंस कविताये उनके अपने डिक्शन के तहत सुंदर कविताये है । भाषा गत दोष पर कहना  सुहाता नही है पर मल्टीप्लेक्स की जगह मल्टिस्टोरी अपार्टमेंट होना चाहिए ,जिसके सोसाइटी के बागीचे में वृद्ध जन शाम को मिलते है । 


अन्य कविताये विशेषकर 4 ,5 व् 6 क्रमांक की कविताये अपने कहन में कोई प्रभाव नही उत्पन्न करती पाठक मन में , जैसा की ऊपर कहा--  वे मात्र ब्यौरे सी उभरती है । 

कविताओं का स्वर धीमा होना , कविताओं का  पुनर्पाठ में स्वयं को खोल कर रख देना , किसी लाक्षणिकता को उत्पन्न करने की ललक का न होना , शब्द और वाक्य विन्यास का तरल होना , पाठक से पुनर्पाठ में कोई मेहनत न चाहना , कविता के  बिंम्ब और शिल्प को संकोच की हद तक सहज रखना , नारे बाज़ी और उत्कटता का न होना .......आदि आदि अच्छी बातें है परंतु यदि आप इन्हें अपने काव्य में समाहित करते है तो पुनः दोहराना चाहूंगा कि कविता के कहन में अंततः ऐसा प्रभाव लाना होगा जो पाठक मन में एक हल्की सी जुम्बिश छोड़ जाये ।


दरअसल उनको पढ़ पढ़ कर एक बढ़ती हुई  पाठकीय आकांक्षा  के तहत ये सब कहा है । 

अंततः ब्रज जी को हार्दिक शुभकामनायें और पदमा जी का शुक्रिया ।। 💐💐


] HarGovind Maithil : आज प्रस्तुत कवितायें बहुत भावपूर्ण और संप्रेषणीय है तथा कवि हृदय की संवेदनशीलता को व्यक्त करती है ।
ब्रज जी को बहुत बधाई और पद्मा जी का आभार 🙏🙏                         
 Mahendr Gagan Ji: अच्छी कविताएँ हैं । बधाई ब्रज जी                         
 Shaahnaaz: बहुत अच्छी प्रभावशाली और संवेदनशील कविताएँ सरल सीधी भाषा में धीरे से बहुत कुछ कह देती हैं । बधाई ब्रज जी और शुभकामनाएँ आभार पदमा जी का 🙏🏻                         
 Sandhya Kulkarni: पहली कविता आज के समय में बढ़ती हुई संवेदनहीनता की ओर इशारा करती हैं,जो मनुष्य को बस इस्तेमाल करना है खबरों का असर कुछ नहीं होता। बगीचे मेवृद्ध  कविता पढ़कर परसाई जी का वृद्धों पर लिखा व्यंग्य आलेख याद आया ।एम्बुलेंस कविता एक दृश्य सा खींच देती है एक विचार को कविता में बांधती  हुई। अपना पक्ष कविता अपना पक्ष सुदृढ़ रखने का आव्हान कर रही है । मित्र कवीर किसी मित्र की बेवफाई से दुःख प्राप्ति की कविता लगती है लेकिन एक भरे हुए दोस्त की कविता भी लिखना होगी अब । लेखन के उपयोग का कोई असर नहीं होने से दुखी हैं कवि और हताश हैं कुछ हल भी सूझ रहे हैं कि उम्मीद खत्म नहीं हुई है अभी ।
सांवली कविता में विस्थापन की समस्या से रूबरू करा रहे हैं ख़ास बात इनकी कविता की एक दृश्य सा खींच देते हैं ।शायद इसलिए इन्हें किसी ने कहानी लिखने की सलाह दी थी ।कबूतर देख  कर इन्हें अपना बचपन याद आता है जो संवेदना को दिखाता है ।कवि दृश्यत्मक्ता से अपनी बात संप्रेषित करता है ।
कुल मिलकर अपनी बात स्पष्ट रूप से कहती हुईं कुछ ज़रा जल्दबाज़ कवितायें 💥                         
 Dr D. N. Tiwari: आज की कविताएं :
ब्रज जी की सभी कविताओं का अध्ययन किया एक दम  शानदार शब्द संयोजन मगर "बगीचे में व्रद्ध बहुत प्रभावित कर गई ये कविता सवाल उठाती है आज के युवा वर्ग से जिनको कल इसी अवस्था से रूबरू होना है पूरी जिंदगी परिवार के लिये भागनेवाले वरिष्ठ लोगों के अनुभवों को लेने से आज का युवा कतराता है,जो कहीं टेबलेट के रूप में बाजार में नहीं मिलता,आखिरकार उनकी भी तो कुछ इच्छायें बाकी होंगी वे भी नौकरी के चलते रिश्तेदारों से अकारण बुरे बने होंगें ?आज वे सेवा में नहीं है मगर घरेलू खर्च उठाने को विवश हैं ऐसी कुंठा को ये कविता इंगित करती है ,इनकी हर कविता की समीक्षा बनती है पर विस्तार भय से ज्यादा लिखना उचित नहीं जान पडता बहरहाल अच्छी प्रस्तुति का धन्यवाद डॉ पद्माजी ✍🏻फिर होगी मुलाकात साकीबा ऐसे ही जगाते रहना वाहहह वाहहहह ✍🏻                         
Manjusha Man: ब्रज की कविताएं बड़े छू लेने वाले अंदाज़ में होतीं है। इन्हें जितनी बार पढ़ा जाये हर बार और और गहराई तक पहुँचती हैं। ब्रज जी जीवन के ऐसे विषयो को चुनते हैं जो बहुत आम होते हैं हर व्यक्ति  का विषय। 

आज की कविताएं भी गजब की हैं, एम्बुलेंस, अपना पक्ष, अहमदाबाद खास अच्छी लगीं। 

हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ब्रज जी     

Sayeed Ayub Delhi: मोहन नागर भाई, आपकी तटस्थता की नितांत आवश्यकता है आजकल। जानता हूँ कुछ लोगों को बातें चुभती हैं पर उसकी परवाह करके सबकुछ मीठा-मीठा करना भी ठीक नहीं होता। अपनी इमानदारी पर भरोसा कीजिये, बाकी चीज़ें गौण हैं, उपेक्षणीय हैं। मैं यह जो कुछ कह रहा हूँ इसका मतलब यह भी नहीं है कि मैं आपकी सारी आलोचनाओं से सहमत ही होऊँगा पर आपकी जो तटस्थता है उसका सम्मान हमेशा रहेगा।                         
Dr Mohan Nagar: अयूब भाई मगर बहुत ज्यादा उदास भी हो जाता हूँ अपने पाठन पर 😞  जैसे कबूतर वाली कविता में कौआ क्यों  ? समझ ही नहीं आया ? क्योंकि बाद में पूरी कविता में न उसका कोई वजूद न तारतम्य .. इस कौए को कायदे से कविता से उड़ जाना चाहिए पर उस पर भी तारीफ पढ़ी । मुझे ही क्यों खटकता है ये सब जिसे जताना मजबूरन पड़ता है डर डरकर .. ऐसा ही बहुत कुछ जो कविता की बेहतरी के लिए देखकर सुझाया जाना चाहिए पाठकों द्वारा जिनमें सभी हैं .. मैं चिंतित हो रहा हूँ अब खुद पर ही 😞                         
 Piyush Tiwari: ब्रज सर की कवितायें , मेरी नजर में 

खबरें 
एक अच्छी कविता ।
जैसे पुलिस के लिए एक्सीडेंट , 
डाॅक्टर के लिए मरणासन्न मरीज आदि सा ।
संवेदना का अभाव  आम आदमी में परिलक्षित होता हुआ ।


बगीचे में वृद्ध 
इस कविता में जात पात , आर्थिक सक्षमता आदि कोसों दूर है । सभी बुजुर्गों की एक सी परेशानी है । यहाँ से वे अपने कस्बों की ओर लौटने की बात कहते हैं मगर जब कस्बों में जाते हों , शायद यहाँ आने की बाट जोहते हों । इस कविता पर मैंने पहले भी अपनी राय दी थी , किन्तु मल्टीप्लेक्स पर ध्यान नही गया था । आज सुधिजनों द्वारा ध्यान दिलाया गया । 
आज की खूबसूरत हकीकत को बयां करती है यह कविता ।


एंबुलेंस 
अहा , बेहद उम्दा कविता । बेहद खूबसूरत ।
मैं कहा भी करता हूँ व्ही आई पी गाडियों के सायरन से डर नही लगता साहब एंबुलेंस के सायरन से लगता है ।
आज भी जब द्रुत गति से सायरन बजाती कोई एंबुलेंस जाती है तो हर संवेदनशील इंसान के मन में कई ख्याल  आते हैं मरीज की स्थिति को लेकर ।


अपना पक्ष
सफेद चेहरे के पीछे स्याह चेहरे । ये वे लोग वे नही हैं जो डांवाडोल होते हैं , बल्कि वे हैं जो होते तो कुछ और हैं किन्तु दिखते कुछ और ।
आज की स्थिति पर अच्छी कविता है । सहज रचना ।



मित्र
अच्छी कविता लगी ।
यहाँ मतलबीपन की बात कवि कहना चाह रहे हैं शायद ।


ऐसा करो 
अच्छी  अभिव्यक्ति है । 
जैसा दोहों में , यहाँ मुझे जमा नही ।



सांवली
जबर्दस्त कटाक्ष किया गया है बंधुआ मजदूरों पर व पलायन करने वाले मजदूरों आदि पर साथ ही बढ़िया चित्रण रेलयात्रा का भी 


कबूतर 
बहुत ही सुन्दर रचना है ।



शुभकामनायें , बधाईयाँ कविवर को ।
आभार डाॅ पद्मा जी का , शानदार संचालन हेतु ।
आभार  साकीबा व शरद सर का , जिन्होंने यहाँ मुझे शामिल करवाया ।
🙏🙏💐💐😊😊🍁🍁🙏🙏                         
 Dr Mohan Nagar: ब्रज भाई जी को सभी जानते हैं और अब तो ग्रुप में कोई आत्म मुग्धता में है या केवल तारीफ पसंद कर सही सुझाव या आलोचना पर कुपित तक हो जाता है ऐसा भी नहीं तो फिर  ? कुछ तो गड़बड़ है .. झिझक ? गंभीरता से पाठन न होना ? सही कहने पर अपमान का भय ? मैं जानना चाहूँगा कि क्या है जो शेष .. दुआ और विनम्र आग्रह भी कि इससे उबरें हम सभी  👏        

मीना शर्मा 
ब्रज जी की कविताओंपर खूब चर्चा हुई है !
कवि पटल पर जब कविता रखते हैं तब यह निर्णय कवि के हाथ होता है कि पटल पर वे,कौ  सी रचना रखना चाहते हैं ....नई या पुरानी या
दोनों ही !
बहरहाल  , एम्बुलेंस और बगीचे में वृध्द , संवेदना से भरी कविताएँ !
सरल शब्दों के साथ संप्रेषणीयता
बहुत खुब ! बधाई ब्रज जी ! आभार पद्मा जी !    


विनीता वाजपेयी 
ब्रज भाई की कविताएं सधे और धीमे कदमों से चलती हैं और छा जाती हैं मानस पटल पर , समय की क्रूर आहट को पहचानती और उसे ईमानदारी से व्यक्त करतीं , गम्भीरता और सादगी इनकी पहचान है , सभी बहुत 

अच्छी सम्भवतः नये संग्रह की हैं , अभी पढ़ा नहीं है मैने ,      

Piyush Tiwari: डाॅ साब , माफ कीजिएगा किंतु अक्सर  आपकी टिपण्णियाँ बेहद तीखी होती हैं । यह तो आप भी मानेंगे शायद कि कोई भी रचना पूरी तरह अच्छी या पूरी तरह बुरी नही हो सकती । बुरी से बुरी रचना में अच्छाई का कुछ तो अंश होता है उसी प्रकार  अच्छी से अच्छी में भी.....सादर 🙏🙏💐💐😊😊                         
 Dr Mohan Nagar: मैं तो बात ही उन्हीं रचनाओं पर करता हूँ पीयूष जिनमें कुछ अच्छाई हो या बहुत अच्छी हो और ये भी कि कुछ जरा बहुत जो बेहतर हो सकता है उसे जता दूं ताकि एक बेहतर रचना श्रेष्ठ से सर्वश्रेष्ठ हो जाए .. बुरी रचनाओं की तो बस तारीफ करता हूँ लपक के ( आत्ममुग्ध लेखक हो तो  .. या पीछा छुड़ाना हो ) या फिर उसपर बात ही नहीं करता । 👏                         
 आप कहकर तो देखिये कि किसी रचना की बस तारीफ करनी है .. कसम से .. इतनी अद्भुत करूँगा की शायद ही मार्केट में आई हो .. भले ही रचना गोबर हो 😋         

जीवन एस रजक 
ब्रज श्रीवास्तव जी की कविताएँ मुझे तो बहुत अच्छी लगीं, मैं तो उनकी कविताओं का पहले से पाठक रहा हूँ, बहुत शुभकामनायें..          


 Bhavna Sinha: ब्रज सर की कविताएँ  हमेशा पढती हूँ । सरल भाषा में  बहुत स्वाभाविक  तरीके से अपनी बात कहते हैं । इसलिए  उनकी कविताएं  मुझे बेहद  पसंद हैं ।
आज प्रस्तुत कविताओं में  बगीचे में वृद्ध, एम्बुलेंस और मित्र तीनों कविताओं ने बहुत प्रभावित किया । 
पद्मा जी का आभार और सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई । ब्रज सर को भी  बधाई ।🌹🌹                         
पदमा  शर्मा 
 आज आप सभी सदस्यों ने बहुत महत्वपूर्ण राय दी। वास्तव में कविता कभी पुरानी नही होती। कई महत्वपूर्ण कवितायेँ समय गुजरने के साथ साथ पुनर्पाठ की माँग करती हैं।

न कवि पुराना हुआ न ही उसकी कवितायेँ। तभी तो सूर,तुलसी कबीर आज भी पढ़े जा रहे और पढाये जा रहे। 

कवि की साधना निरंतर चलती रहती है। कवियों कई कई ग्रन्थ रचे ,कई कहानियाँ उपन्यास रचे। पर लोगों ने किसी किसी रचना को ही पसंद किया।

मुख्य बात है। रचा जाना। लिखा जाना। एक ही माता की संतान में भी भेद होता है - सौन्दर्य और गुण सभी में।


आभार आप सभी का।        




अविनाश तिवारी 


कल साकीबा में ब्रज श्रीवास्तव जी की कविताऐं पटल पर छाई रहीं।कविताओं के सभी पहलुओं पर साकीबाई मित्रों ने विस्तृत समीक्षा की है।मै कल अत्यधिक व्यस्त रहा और यात्रा के कारण इस चर्चा में शरीक नहीं हो पाया ।यह सही है कि सभी रचनाएं हमसे कई बार मिल चुकी है परंतु हर बार इनमें कुछ नयापन दिखता हैजिज्ञासा रहती है। खबरें बगीचे में वृद्ध एंबुलेंस अपना पक्ष मित्र ऐसा करो सांवली कबूतर यह सभी कविताएं अपने आसपास के अनदेखे अनछुए पहलुओं का रोचक चित्रण करती हैं ।बगीचे में वृद्ध आज के परिवेश में  वृद्धों के एकाकीपन और उनकी व्यथा का सजीव चित्रण है तो एंबुलेंस आशा घोष करती पहियों पर भागती उम्मीद है एंबुलेंस पर भी सोचना यह तो केवल  ब्रज जी के बूते की बात है मित्र भी बहुत अच्छी कविता है पढ़कर लगता है कि वह हमारे बारे में कह रहे हैं कभी लगता है कि वह अपने बारे में  कह रहे हैं हर व्यक्ति कभी न कभी किसी न किसी मोड़ पर मित्र कविता का पात्र नजर आता है ।ऐसा करो मैं कवि अनावश्यक रुप से कबीर का महिमा मंडन करते दिख रहे हैं मुझे लगता है सभी संतों की धर्म की संप्रदायों की  विचारकों की अपनी-अपनी उपयोगिता है सारा श्रेय सारा श्रेय कबीर के खाते में जाता नहीं दिखता क्योंकि उनके फालोअर्स ने समाज में बहुत बड़ा कोई क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया हो ऐसा बहुत ज्यादा नहीं दिखता ।तुलसी का अपना अलग समाजवाद है यदि हम देखना चाहें तो। सांवली बहुत ही अच्छी रचना लगी है जिसमें आर्थिक विषमता मजदूरों का पलायन आरक्षित डिब्बे में आरक्षित और अनारक्षित वर्ग के यात्रियों में अनायास ही सर उठाती एक अलग ही  मनोवृत्ति देखने को मिलती है अनारक्षित वर्ग के यात्रियों को हेय दृष्टि से देखना उसमें प्रमुख यह सब बातें कवि ने सांवली के माध्यम से कहने का प्रयास किया है कबूतर बड़े शहरों में पाए जाने लगे पता नहीं क्यों कबूतर को महानगर  रास  आने लगे हैं  कवि ने कबूतरों का काफी महत्त्व दर्शाया है सीमापार से भी कबूतर भड़काऊ संदेश लाते पाये गये है अगर प्रेम के संदेश भेजते तो वो ले आते। कबूतरों का फिल्मी गानो मे भी रोल रहा है जिस पर दिनेश मिश्र जी रोचक तरीके से प्रकाश डाल सकते हैं हमारे एक पंजाबी राक सिंगर भी कबूतरबाजी के शिकार  हो चुके हैं।ब्रज जी रचना को और विस्तार दे.सकते है अपने तरीके से। बरहाल मेरा मन नहीं मान रहा था आपलोगों कोअपने विचारों से अवगत कराये बिना।आप मित्रों का बहुत आभार संचालक जी और ब्रज जी अच्छी कविताओं के लिये आप दोनों का आभार।🙏💐
      

                      


       

3 comments:

  1. धन्यवाद प्रवेश जी, वाकई मेरी कविताओं पर जो टिप्पणी हैं वे मेरे लिए हौसला दे रही हैं, फिर इस ब्लॉग पर यह मसौदा पोस्ट हो जाना, याने सोने में सुहागा

    ReplyDelete
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 26 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. ब्रज जी की कबितायें हकीकत के करीब है
    खबरे - सच है बेअसर होती जा रही है ऐसा लगता है संवेदनाएं ख़त्म होती जा रही है ..
    बगीचे में वृद्ध - हकीकत के बहुत करीब है शहरों में सुबह शाम देखा जा सकता है .
    एम्बुलेंस - जीवन के प्रति आशा है
    ऐसा करो - अच्छी अभिव्क्ति है

    ReplyDelete

 साहित्य सम्मेलन,"साहित्य की बात" 17-18 september 2022 साकिबा  साकीबा रचना धर्मिता का जन मंच है -लीलाधर मंडलोई। यह कहा श्री लीलाधर...

पिछले पन्ने