Thursday, July 4, 2019

 आशुतोष सोनी "आशु" की कविताएँ

आशुतोष सोनी "आशु "

एक 
भरी बज़्म में कोई ख़्वार नहीं होना चाहेगा।
रंज में भी मसर्रतों का अश'आर बाकी है।।

ना ठहर, पै-ब-पै हयाते-तजरबा बढ़ाता चल।
तिरे गाम पर खुदा का नाज़-बरदार बाकी है।।

सब्ज़ा-ओ-गुल के खुश्क की हियाकतें जानी।
अहल-ए-जहां से ने'मत ग़म-गुसार बाकी है।।

इंतिक़ामों के बीच तर्बियत की सुध कौन लेगा।
रँगजसी में भी मुसव्विर का ए'तिबार बाकी है।।

शब्दार्थ 
बज़्म : महफ़िल
ख़्वार : अपमानित
रंज : दुःख
मसर्रतें : खुशियाँ
अश'आर :ग़ज़ल के शेर
पै-ब-पै : बार -बार
हयाते-तरजबा : जिन्दगी का अनुभव
गाम : कदम
नाज़-बरदार : one who pampers
सब्ज़ा-ओ-गुल : घांस का फूल
खुश्क : सूखा
हियाकत : tale/story
अहल-ए-जहां : दुनिया
ने'मत : आशीर्वाद
ग़म-गुसार : हमदर्द
इंतिकाम : बदला
तर्बियत : शिक्षा
रंगजसी : चित्रकारी
मुसव्विर : चित्रकार
ए'तिबार : भरोसा





दो फूल...!!!


भविष्य के लिए
उम्मीदें
संजोती हुई
मासूम सी आंखें

उन उम्मीदों के
ताने बाने
बुनने के लिए
कशमकश में है
वृद्ध आवाज

टूटी हुई टहनी
सूखती हुई कली
जैसे
बिन माँ के बच्चे

खिलने दीजिए
नन्ही कली को
जरा खरीदकर
दो फूल...!!!






दीप गीत गाते हैं


हर दहलीज पर गूँजते हुए
दीप गीत के शब्द स्वर
उन दीपों की भांति
जीवन में जगमगाएं
खुशियां और सौभाग्य

उन मधुर ध्वनियों को
अर्पण कर अपने भीतर
अंतस देहरी पर लौ जलाकर
प्रण करता है तम हरने का
गाता हुआ दीप

माटी का दीया
कपास की बाती
दिव्यार्थ करती लौ
छेड़ती है समृद्धि की तान

स्नेह-सूत्र के दीपदान से
खिलखिलाती दीपमालिकाएँ
शाश्वत लौ के सहारे
गाती हैं सामूहिक गीत
आरती उतारता है
मावस का चांद

दीदार करते हुए वे गीत
अज्ञानता के अंधकार में
फैलाते हुए ज्ञान का प्रकाश
गूंजाते हैं वैभव गान

आंतरिक हो या ब्राह्य
अपने हर जगह
उजियारे को आतुर
दीप गीत गाते हैं।




चंद अश-आर 

जा उस आदम-ए-रश्क तक मिरा प़याम पहुंचा दे,
मिरे इल्म का तलबगार हो जहल-ए-मसरूफ हुआ..

मश्वरे करता है आदमी लिबास-ए-रूत बदलकर,
गर मुक़ाबिल जीता है तारीकी में शम्अ बुझाकर..

वे शख्स भी बारिश का तसव्वुर रखते है,
जिनके घर के दर-ओ-दीवार शिकस्ते है..






 नवनिर्माण

जब घर से निकले
नवनिर्माण करने को,
अपने अंतर्मन को
आह्वान करने को,
पले थे दोमुंहे सांप
व्यवधान करने को,
विफल हुए मंसूबे
जब अलख जगी है,
रसपान की जद पर
विषपान करने को...







एक टुकड़ा रोटी 

अमीर हो या गरीब
गुनगुनी धूप हो या
सर्द भरी रात
हर वर्गों को हर मौसम
श्रम परिश्रम के लिए
मजबूर करवा सकती है।
सूरज की किरणें भी
टक्कर नहीं ले पाती
हर श्रम परिश्रम के पीछे
एक ही जिम्मेदार है
एक टुकड़ा रोटी।





रास्ते

रास्ते बदलते गये
पर शख्स ना बदला
कंटीले हो या पथरीले
कोई परवाह नहीं...
जितने दूर के रास्ते
उतना ही ढीठ मुसाफिर
बस वो चलता ही रहा
मंजिले मिलती गयी।







आजा लाल कन्हैया (2013)


सच वो द्रौपदी की पुकार भारी थी,
सुन कन्हैया तुने लाज बचा ली थी।
आज उन हजारों पुकार का क्या हो गया,
आजा लाल कन्हैया तू कहां खो गया।।

(दामिनी रेप काण्ड पर)





 पर्यावरण दिवस (2013)

आज पर्यावरण दिवस पर
तथाकथित बुद्धजीवी
चंद मिनटों के लिए
पेड़ लगाओ
धरा बचाओ चिल्लायेंगे
पौधे लगाएंगे
फोटो खिंचवाएँगे
फिर चले जायेंगे
कल सुबह अख़बारों में
चेहरा देखकर
एसी में बैठे
पल-पल मुस्कराएँगे
इधर ये पौधा
ख्याल के लिए तरसेगा
सुख जायेगा मिट जायेगा
फिर अगले साल
वही नाटक रचाएंगे...



 मेरी कलम की धधकती स्याही.. (2014)

मेरी कलम की धधकती स्याही सोच रही है, क्या लिखूं...
विचारों के जलते अंगारे या कुदरत की बहारें, क्या लिखूं...
देश की हालात कहूँ या राजनीति की बात, क्या लिखूं...
शहीदों के बलिदान या प्यार के मीठे गान, क्या लिखूं...
लेखनी की ज्वलंत धार से मेरी पहचान जाहिर है मगर,
मालूम है "आशु" मेरे जज्बातों से ही हालात बदलते है, क्या लिखूं...






नवगीत 

निकलने लगे हैं फूलों से सुर्ख,
खुशबू भी अपना खो रही है।
खुशबुओं को खोजते-खोजते,
ये हवाएं भी नीरस हो रही है।।
भटकते-भटकते इक खुशबुओं के लिए,
हवाओं ने थककर साथ छोड़ दिया।
सहसा वक़्त आया खुशबुओं के तड़पने का,
उम्मीद लिए फूलों की तरफ रुख मोड़ दिया।।
सूखे फूलों ने इधर कलियों को पुकारा,
आँखे खोल गुञ्जन कर खिल जा जरा।।
सुर्ख को सुला दे आँगन में रास कर,
तितली तू गीत गा शब्द स्वर झरना बहा।।
सजने लगा जहां मधुर कली खिली संग अमित,
तितलियों का समूह आया गाते मंगलगीत।।
खुशबू ने प्रवेश किया तब हुआ नव परिवर्तन,
इक हवाओं ने भी पंख खोल किया नव अभिनन्दन।।
भरकर पंख खुशबुओं से, हवाएं चली सैर के लिए,
सहसा इक धरा की शुभकामना हुई, नव-संदेश लिए।।
चली आई खुशहाली कहीं से, हरियाली की ये आन देखकर,
हर्षाया मन 'आशु' तेरा, सृष्टि की ये मुस्कान देखकर।



परिचय 
नाम : आशुतोष सोनी
पिता : श्री पुरुषोत्तम सोनी
माता : श्रीमती उमा सोनी
जन्मतिथि : 17 जून, 1992
स्थान : कनवास, जिला कोटा
व्यवसाय : राजकीय सेवा (ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज विभाग)
योग्यता : डबल एम.ए. (अंग्रेजी साहित्य एवं लोक प्रशासन), NET (लोक प्रशासन)
विशेष रुचि : हिन्दी कविताएं, हिन्दी-उर्दू शायरी, फोटोग्राफी
रुचि : लिखना, पढ़ना, घूमना

5 comments:

  1. Narendra ChaudhariSaturday, July 06, 2019

    Hi dear Ashitosh,

    All your poems are too good. I'm really happy to see your dedication in social,environment as well as in poetry.

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  2. गजब का प्रयास है। शाबाश।।💐

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  3. 'दादू' विमलSaturday, July 06, 2019

    आशु रचनाओं के सागर में शब्दों की नन्ही कश्तियों में सवार काव्य जगत में स्तम्भ बनो। यही दुआएं है।

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  4. बहुत अच्छी सार्थक कविताएं ...

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  5. You are such a creative person ...your poetries are owsm

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