हत्या-पुरस्कार के लिए प्रेस-विज्ञप्ति
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वे कि जिनकी आँखों में घृणा
समुद्र सी फैली है अनंत नीली-काली
जिनके हृदय के गर्भ-गृह
विधर्मियों की चीख
किसी राग की तरह सध रही है सदी के भोर ही से
सिर्फ और सिर्फ वही होंगें योग्य इस पुरस्कार के
जुलूस हो या शान्ति-मार्च
श्रद्धांजलि हो या प्रार्थना-सभा
जो कहीं भी , कभी भी
अपनी आत्मा को कुचलते हुए पहुँच जाए
उतार दे गर्दन में खंजर
दाग दे छाती पर गोली
इससे तनिक भी नहीं पड़े फर्क
गर्दन आठ साल की बच्ची की थी
छाती अठहत्तर साल के साधू की थी
देश के ख्यात हत्यारे आएँ
अपना-अपना कौशल दिखाएँ
अलग-अलग प्रारूपों में भिन्न-भिन्न पुरस्कार पाएँ
मसलन
बच्चों की हत्या करें चिकित्साधिकारी बनें
स्त्रियों की हत्या करें , सुरक्षाधिकारी बनें
विधर्मियों की लाशें कब्रों से निकालें फिर हत्या करें
मुख्यमंत्री बनें
देश की छाती में धर्म का धुँआ भरकर देश की हत्या करें
प्रधानमंत्री बनें
इच्छुक अभ्यर्थी हत्या-पुरस्कार के लिए
निःशुल्क आवेदन करें और आश्वस्त रहें
पुरस्कार-निर्णय की प्रक्रिया में
बरती जाएगी पूरी लोकतांत्रिकता ।
मृत्यु की भूमिका के कुछ शब्द
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परिवार के सीने पर पहाड़ रखकर
गर मर जाऊँ साथी
तो जलाना मत
दफ़नाना मत
बहाना मत
फेंक देना किसी बीहड़ में निचाट नंगा मुझे
कौन जाने किस जंगल का हाथ काटा जाये
मुझे राख और धुँआ बनाने के क्रम में
कि जो डाल मेरी चिता के साथ जल रही हो
वह किसी कठफोड़वा का घर उजाड़ कर लायी गयी हो
या फिर उस डाल पर हर रोज
सुस्ताने आता हो कोई शकरखोरा जोड़ा
और एक दिन उदास वापस लौट जाए
हमेशा-हमेशा के लिए
यह कितना पीड़ादायक होगा
चूँकि मैंने इस धरती पर तनिक भी जमीन नहीं जन्मा
तो लाठे भर जगह लेने का कोई अधिकार नहीं बनता मेरा
सड़ी हुई लाश बनकर बह भी गया तो
किसी हिरण या हाथी के पेट मे समा जाऊँगा
प्यास में मृत्यु बनकर
और यह वह अपराध होगा
जिसके लिए
किसी मरे हुए इंसान को भी फाँसी की सजा दी जानी चाहिए
तुम मेरी मिट्टी को उठाना
और फेंक देना किसी दूर मैदान में
कुछ गिद्धों और कौवों का निवाला हो जाने देना
इसतरह मुझे सुकून से मरने में मदद मिलेगी
अच्छा लगेगा किसी का स्वाद होकर
बस इसी स्वाद के लिए साथी
गर मैं मर जाऊँ
तो जलाना मत
दफ़नाना मत
बहाना मत
फेंक देना किसी बीहड़ में निचाट नंगा मुझे ।
देश के बारे में शुभ-शुभ सोचते हुए
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अभी हमें देखना है कि
पहाड़ों के शीर्ष से
खून के बड़े-बड़े फव्वारे छूटेंगें
बड़े व्यापारी और राजा
तर होकर नहायेंगें उसमें
पहाड़ों के कुण्ड में जमा खून
हमारा , आपका , इसका और उसका होगा
अभी हम देखेंगें कि
दूसरे बस्ती की
गर्भवती महिलाओं के पेट से
तलवारों के नाखूनों से खींचकर बाहर
पँचमासी बच्चे का सिर काट दिया जाएगा
और इस तरह से धर्म की साख बचा ली जाएगी
अभी हम देखेंगें कि
बहुत काली अंधेरी रात के बाद
एक खूँखार भोर का पूरब
विधर्मियों के रक्त से गाढ़ा लाल होगा
धीरे-धीरे और चमकदार होती हुई तलवारें
खनकते स्वरों में गाएंगीं प्रार्थना -
सर्वे भवन्तु सुखिनः
वसुधैव कुटुम्बकम
अभी सौहार्द और अधिकारों की बातें करने वाली जीभ को
एक काँटे में फँसाकर लटकाया जाएगा
जब तक कि पूरी जीभ
आहार नली से फड़फड़ाते हुए बाहर नहीं आ जाती
( इस पर सत्तापक्ष के लोग ताली बनायेंगें )
अभी राज्य का प्रचण्ड हत्यारा
ससम्मान न्यायाधीश नियुक्त होगा
अभी राज्य के कुख्यात चोरों के हाथों
सौंप दिया जाएगा
देश का वित्त मंत्रालय
अभी देश की जनता
देवताओं से रक्षा के लिए
असुरों के पाँव पर गिरकर गिड़गिड़ायेगी
विधर्मियों का गोश्त प्रसाद में बँटेगा
भेड़िये अपने नाखून गिरवी रखकर नियामकों के पास
चले जाएँगें अनन्त गुफा की ओर सिर झुकाए
असंख्य हत्याकांडों का पुण्य घोषित होना बचा हुआ है अभी
अभी इस देश ने
अपने भाग्य और इतिहास के
सबसे बुरे दिन नहीं देखे हैं ।
सपने
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विशाल तोप की पीठ पर चित्त लेटकर
दंगों के के बीच तलवार ओढ़कर सोते हुए
मणिकर्णिका पर जलाते हुए अपने जवान भाई की लाश
उठते , बैठते , जागते , दौड़ते हुए
हममें से हर किसी को सपने देखने ही चाहिए
सपने , राख होती इस दुनियाँ की आखिरी उम्मीद हैं
सपने देखने चाहिए लड़कियों को -
सभ्यता के बचपने उम्र
आत्मा के पूरबी उजास में गुम लड़कियों ने
जरा कम देखे सपने
नतीजन , धकेल दी गईं चूल्हे चौके के तहखाने
गले में बाँध दिया गया परिवार का पगहा
भोग ली गईं थाली में पड़ी अतिरिक्त चटनी की तरह
गिन ली गईं दशमलव के बाद की संख्याओं जैसीं
मगर अब
जब लड़कियाँ भर भर आँख
देख रही हैं बहुरंगी सपने
तो ऐसे कि
दौड़कर लड़खड़ाते कदम चढ़ रही हैं मेट्रो
लौट रही हैं ऑफिस से
धकियाते , अपनी जगह बनाते भीड़ में
ऐसे कि लड़कियों का एक जत्था
विश्वविद्यालयों के गेट पर हवा में लहराते दुपट्टा
अपना वाजिब हिस्सा माँग रहा है
ऐसे कि
पिता को फोन पर कह दी हैं वो बात
जिसे वे पत्र में लिखकर कई दफा
जला चुकी हैं कई उम्र
जिसमें प्रेमी को पति बनाने का जिक्र आया था अभिधा में
सपने हमें नयी दुनियाँ रचने का हौसला देते हैं
हममें से हर किसी को सपने देखने ही चाहिए
सपने देखने चाहिए आदिवासियों को -
देखने चाहिए कि
उनके जंगल की जाँघ चिचोरने आया बुल्डोजरी भूत का शरीर
जहर बुझी तीर की वार से नीला पड़ गया है
देखने चाहिए कि
उनकी बेटीयाँ बाजार गयी हैं लकड़ियाँ बेचने
और बाजार ने उन्हें बेच नहीं दिया है
और यह भी कि
मीडिया , गाय को भूल
कैमरा लेकर पहुँच गया है उनके रसोईघरों में
और घेर लिया है सरकार को भूख के मुद्दे पर
सपने हमें हमारा हक दें या न दें
हक के लिए लड़ने का माद्दा जरूर देते हैं
सपने देखने चाहिए उन प्रेमियों को -
जो आज अपनी प्रेमिकाओं से आखिरी बार मिल रहे हैं
आज के बाद ये प्रेमी
रो-रोकर अपना गला सुजा लेंगें
जिससे साँस लेना भी दुष्कर हो जायेगा
आज के बाद ये प्रेमी
बिलख- बिलखकर पागल हो जायेंगें
और आस-पास के जिलों में
युध्द के गीत गाते फिरेंगें
इन प्रेमियों को भी सपने देखने चाहिए
सपने भी ऐसे कि
ये प्रेमी लड़के डूबने उतरते ही तालाब में
कोई हंस हो गए हों
और बहुत पुरानी तालाब की गाढ़ी काई को चीरते हुए
बढ़ रहे हों दूसरे घाट की तरफ
कि वहाँ इनका इन्तजार किसी और को भी है
इन प्रेमियों को सपने देखने चाहिए ऐसे कि -
इनके समर्पण की कथाएँ
जा पहुँची हैं दूर देश
और यूनान का कोई देवता
इनसे हाथ मिलाने के लिए बेताब है
सपने हमें पागल होने से बचा लेते हैं
एक सामूहिक सपना देखना चाहिए इस देश को -
यह देश जो भाले की तरह चन्दन को माथे पर सजाए
विधर्मियों की लाशों पर
भारतमाता का झण्डा गाड़ते हुए
आगे बढ़ने के भ्रम में
किसी जंगली दलदल में फँसा जा रहा है
या जब धर्म चरस की तरह चढ़ रहा है मस्तिष्क पर
और छींक में आ रहा है विकलांग राष्ट्रवाद
तो ऐसे में
सपने देखना इस देश की जवान पीढ़ी की जिम्मेदारी हो जाती है
एक सपना बनता है कि
तुम भी जियो
हम भी जियें
एक ही मटके से पियें
मगर भ्रष्ट करने के आरोप में
किसी का गला न काट लिया जाये
एक सपना बनता है कि
तुम अपने मस्जिद से निकलो
मैं निकलता हूँ अपने मन्दिर से
दोनों चलते हैं किसी नदी के एकांत
और बैठकर गाते हों कोई लोकगीत
जिसमें हमारी पत्नियां गले भेंट गाती हों गारी
सपने देश को रचने में हिस्सेदारी देते हैं भरपूर
और अब
यह समय जो धूर्त है
इसमें
राजा गिरे हुए मस्जिद की गाद पर बैठकर
सत्ता में बने रहने का सपना देख रहा है
उल्लू देख रहे हैं सपने
सालों साल लम्बी अँधेरी रात का
दुनियाँ को खरगोश भरा जंगल हो जाने का सपना
भेड़िए देख रहे हैं
और गिद्धों के सपने में देश
एक मरी हुयी गाय की तरह आता है
तो ऐसे में हमें इस कविता को
किसी प्रार्थना या युद्धगीत की तरह गाया जाना चाहिए -
कि विशाल तोप की पीठ पर चित्त लेटकर
दंगों के के बीच तलवार ओढ़कर सोते हुए
मणिकर्णिका पर जलाते हुए अपने जवान भाई की लाश
उठते , बैठते , जागते , दौड़ते हुए
हममें से हर किसी को सपने देखने ही चाहिए
सपने , राख होती इस दुनियाँ की आखिरी उम्मीद हैं ।
ओझौती जारी है
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तपते तवे पर डिग्रियाँ रखकर
जवान लड़के जोर से चिल्लाये - रोजगार
बिखरे चेहरे वाली अधनंगी लड़की
हवा में खून सना सलवार लहराई
और रोकर चीखी - न्याय
मोहर लगे बोरे को लालच से देख
हँसिया जड़े हाथों को जोड़
किसान गिड़गिड़ाया - अन्न
उस सफेद कुर्ते वाले मोटे आदमी ने
योजना भर राख दे मारी इनके मुँह पर
मुस्कुराकर कहा - भभूत ।
तलवारों का शोकगीत
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कलिंग की तलवारें
स्पार्टन तलवारों के गले लगकर
खूब रोयीं इक रोज फफक फफक
रोयीं तलवारें कि उन्होंने मृत्यु भेंट दिया
कितने ही शानदार जवान लड़को के
रेशेदार चिकने गर्दनों पर नंगी दौड़कर
और उनकी प्रेमिकाएँ
बाजुओं पर बाँधें
वादों का काला कपड़ा
पूजती रह गयीं अपना अपना प्रेम
चूमती रह गयीं बेतहाशा
कटे गर्दन के होंठ
तलवारों ने याद किये अपने अपने पाप
भीतर तक भर गयीं
मृत्यु- बोध से जन्मी जीवन पीड़ा से
तलवारों ने याद किया
कैसे उस वीर योद्धा के सीने से खून
धुले हुए सिन्दूर की तरह से बह निकला था छलक छलक
और योद्धा की आँखों में दौड़ गयी थी
कोई सात आठ साल की खुश
बाँह फैलाये , दौड़ती पास आती हुई लड़की
कलिंग और स्पार्टन तलवारों ने
विनाश की यन्त्रणा लिए
याद किया सिसकते हुए
यदि घृणा , बदले और लोभ से भरे हाथ
उन्हें हथेली पर जबरन न उठाते तो
वे कभी भी अनिष्ट के लिए
उत्तरदायी न रही होतीं
दोनों तलवारों ने सांत्वना के स्वर में
एक दूसरे को ढाँढस बँधाया -
तलवारें लोहे की होती हैं
तलवारें बोल नहीं सकतीं
तलवारें खुद लड़ नहीं सकतीं ।
छद्म संवेदनाओं को भुना लो साथी
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छद्म संवेदनाओं को भुना लो साथी
कहीं दुर्घटनाओं का यह सुअवसर निकल न जाये
भीतर से जरा और दम साधो
आंखों में तनिक और नमी लाओ
चेहरे पर पोत लो रोना और भी अधिक
कि भुक्तभोगी जान जाय कि तुम उसके दुख में उससे अधिक दुखी हो
उसकी माँ को अँकवार में भींच लो बच्चे की तरह
और अपनी शर्तिया वेदना से उसे तृप्त कर दो
जबतक की वह तुम्हारी धूर्त संवेदना को पहचान न ले
उसके दुख में सर्वाधिक करुणा उगलो
और उसका सबसे बड़ा हितकारी बनने की प्रतियोगिता में प्रथम आओ
दुर्घटना की एक-एक जानकारी बहुत करीने से लो ऐसे
कि जैसे तुम देवता हो और उसमें कुछ जरूरी बदलाव कर सकते हो ।
इन सबके बीच एक जरूरी काम यह भी करना कि
वह जो भीड़ से अलग खड़ा अपनी ही खामोशी में विलखता जा रहा है
उसे परिदृश्य से बाहर ही धकेले रखना
कहीं वह फूट पड़ा तो
तुम्हारे आँसुओं का नकलीपन पहचान में आ जायेगा ।
उसके फूटने के पहले
छद्म संवेदनाओं को भुना लो साथी
कहीं दुर्घटनाओं का यह सुअवसर निकल न जाये ।
चाय पर शत्रु - सैनिक
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उस शाम हमारे बीच किसी युद्ध का रिश्ता नही था
मैनें उसे पुकार दिया -
आओ भीतर चले आओ बेधड़क
अपनी बंदूक और असलहे वहीं बाहर रख दो
आस-पड़ोस के बच्चे खेलेंगें उससे
यह बंदूकों के भविष्य के लिए अच्छा होगा
वह एक बहादुर सैनिक की तरह
मेरे सामने की कुर्सी पर आ बैठा
और मेरे आग्रह पर होंठों को चाय का स्वाद भेंट किया
मैंनें कहा -
कहो कहाँ से शुरुआत करें ?
उसने एक गहरी साँस ली , जैसे वह बेहद थका हुआ हो
और बोला - उसके बारे में कुछ बताओ
मैंनें उसके चेहरे पर एक भय लटका हुआ पाया
पर नजरअंदाज किया और बोला -
उसका नाम समसारा है
उसकी बातें मजबूत इरादों से भरी होती हैं
उसकी आँखों में महान करुणा का अथाह जल छलकता रहता है
जब भी मैं उसे देखता हूँ
मुझे अपने पेशे से घृणा होने लगती है
वह जिंदगी के हर लम्हें में इतनी मुलायम होती है कि
जब भी धूप भरे छत पर वह निकल जाती है नंगे पाँव
तो सूरज को गुदगुदी होने लगती है
धूप खिलखिलाने लगता है
वह दुनियाँ की सबसे खूबसूरत पत्नियों में से एक है
मैंनें उससे पलट पूछा
और तुम्हारी अपनी के बारे में कुछ बताओ ..
वह अचकचा सा गया और उदास भी हुआ
उसने कुछ शब्दों को जोड़ने की कोशिस की -
मैं उसका नाम नहीं लेना चाहता
वह बेहद बेहूदा औरत है और बदचलन भी
जीवन का दूसरा युद्ध जीतकर जब मैं घर लौटा था
तब मैंनें पाया कि मैं उसे हार गया हूँ
वह किसी अनजाने मर्द की बाहों में थी
यह दृश्य देखकर मेरे जंग के घाव में अचानक दर्द उठने लगा
मैं हारा हुआ और हताश महसूस करने लगा
मेरी आत्मा किसी अदृश्य आग में झुलसने लगी
युद्ध अचानक मुझे अच्छा लगने लगा था
मैंनें उसके कंधे पर हाथ रखा और और बोला -
नहीं मेरे दुश्मन ऐसे तो ठीक नहीं है
ऐसे तो वह बदचलन नहीं हो जाती
जैसे तुम्हारे सैनिक होने के लिए युद्ध जरूरी है
वैसे ही उसके स्त्री होने के लिए वह अनजाना लड़का
वह मेरे तर्क के आगे समर्पण कर दिया
और किसी भारी दुख में सिर झुका दिया
मैंनें विषय बदल दिया ताकि उसके सीने में
जो एक जहरीली गोली अभी घुसी है
उसका कोई काट मिले -
मैं तो विकल्पहीनता की राह चलते यहाँ पहुँचा
पर तुम सैनिक कैसे बने ?
क्या तुम बचपन से देशभक्त थे ?
वह इस मुलाकात में पहली बार हँसा
मेरे इस देशभक्त वाले प्रश्न पर
और स्मृतियों को टटोलते हुए बोला -
मैं एक रोज भूख से बेहाल अपने शहर में भटक रहा था
तभी उधर से कुछ सिपाही गुजरे
उन्होंने मुझे कुछ अच्छे खाने और पहनने का लालच दिया
और अपने साथ उठा ले गए
उन्होंने मुझे हत्या करने का प्रशिक्षण दिया
हत्यारा बनाया
हमला करने का प्रशिक्षण दिया
आततायी बनाया
उन्होनें बताया कि कैसे मैं तुम्हारे जैसे दुश्मनों का सिर
उनके धड़ से उतार लूँ
पर मेरा मन दया और करुणा से न भरने पाए
उन्होंने मेरे चेहरे पर खून पोत दिया
कहा कि यही तुम्हारी आत्मा का रंग है
मेरे कानों में हृदयविदारक चीख भर दी
कहा कि यही तुम्हारे कर्तव्यों की आवाज है
मेरी पुतलियों पर टाँग दिया लाशों से पटा युद्ध-भूमि
और कहा कि यही तुम्हारी आँखों का आदर्श दृश्य है
उन्होंने मुझे क्रूर होने में ही मेरे अस्तित्व की जानकारी दी
यह सब कहते हुए वह लगभग रो रहा था
आवाज में संयम लाते हुए उसने मुझसे पूछा -
और तुम किसके लिए लड़ते हो ?
मैं इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं था
पर खुद को स्थिर और मजबूत करते हुए कहा -
हम दोनों अपने राजा की हवश के लिए लड़ते हैं
हम लड़ते हैं क्यों कि हमें लड़ना ही सिखाया गया है
हम लड़ते हैं कि लड़ना हमारा रोजगार है
वह हल्की हँसी मुस्कुराते मेरी बात को पूरा किया -
दुनियाँ का हर सैनिक इसी लिए लड़ता है मेरे भाई
वह चाय के लिए शुक्रिया कहते हुए उठा
और दरवाजे का रुख किया
उसे अपने बंदूक का खयाल न रहा
या शायद वह जानबूझकर वहाँ छोड़ गया
बच्चों के खिलौने के लिए
बंदूक के भविष्य के लिए
वह आखिरी बार मुड़कर देखा तब मैंनें कहा -
मैं तुम्हें कल युद्ध में मार दूँगा
वह मुस्कुराया और जवाब दिया -
यही तो हमें सिखाया गया है ।
सीरिया के मुसलमान बच्चे
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अल्लाह के बागान में जिन्हें
उधम कर दौड़ जाना था अगले आँगन
वे बम से फ़टे सड़क पर गला फाड़ रोते हुए
अपनी माँ के चिथे स्तन चूम रहे हैं
जिन्हें इतनी बड़ी विशाल दुनिया को गेंद की तरह उछाल खिलखिला देना था चहकते हुए
वे अपने घरों में भाई के जिस्म का टुकड़ा बटोर रहे हैं
जिन्हें एक डोरी के सहारे पृथ्वी को खींचकर उठा लेना था हथेली पर
वे अपने संगियों की लाशों को झकझोर रहे हैं , अनन्त नींद से उठाने के लिए ।
सीरिया के मुसलमान बच्चे
जिन्हें अपने मुसलमान होने की भी खबर न थी
न ही कोई मतलब था सीरिया या अमेरिका के होने से
सीरिया के मुसलमान बच्चे अमेरिका की थाली में परोसे गए हैं
उनका गला फटा जा रहा है रोकर कि उनके अब्बू की सिर्फ जाँघ मीली चिपककर बिलखने के लिए
सीरिया के बच्चे पाँव में अपनी लाश बाँध
बदहवाश भटक रहे हैं अपने मोहल्ले के रास्तों पर
अमेरिका हँस रहा है
अमेरिका बहुत बड़ा देश है
अमेरिका राजा देश है
जैसे जंगल का सबसे खूँखार , क्रूर और बदमिजाज जानवर हो जाता है राजा
सीरिया के बच्चे आज भटक रहे हैं
सीरिया के आज से बचे बच्चे
एक रोज जवान हो जायेंगें
उनसे महात्मा के व्यवहार की उम्मीद मत करना
ये बचे हुए बच्चे एक रोज बड़े हो जायेगें
वे ईश्वर का कलेजा चबा जायेंगें पलक झपकते ही
वे तुम्हारे आलीशान गगनचुंबी इमारतों को एक फूँक से उड़ा देंगें
तुम्हारी परछाइयों तक की राख तक नहीं देंगें तुम्हारी पीढ़ियों को
वे तुम्हारे किले में घुसते ही खून और पानी का भेद मिटा देंगें
ये लोरियों की उम्र में मर्शिया गाते हुए बच्चे
हर साँस में जहर पीते हुए बच्चे
हर चीख में मौत रोते हुए बच्चे
तुम देखना
एक दिन जवान हो जायेंगे
ये सीरिया के मुसलमान बच्चे ।
लड़ने के लिए चाहिए
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लड़ने के लिए चाहिए
थोड़ी सी सनक , थोड़ा सा पागलपन
और एक आवाज को बुलंद करते हुए
मुफ्त में मर जाने का हुनर
बहुत समझदार और सुलझे हुए लोग
नहीं लड़ सकते कोई लड़ाई
नहीं कर सकते कोई क्रांति
जब घर मे लगी हो भीषण आग
आग की जद में हों बहनें और बेटियाँ
तो आग के सीने पर पाँव रखकर
बढ़कर आगे उन्हें बचा लेने के लिए
नहीं चाहिए कोई दर्शन या कोई महान विचार
चाहिए तो बस
थोड़ी सी सनक , थोड़ा सा पागलपन
और एक खिलखिलाहट को बचाते हुए
बेवजह झुलस जाने का हुनर
जब मनुष्यता डूब रही हो
बहुत काली आत्माओं के पाटों के बीच बहने वाली नदी , तो
नहीं चाहिए कोई तैराकी का कौशल-ज्ञान
साँसों को छाती के बीच रोक
नदी में लगाकर छलाँग
डूबते हुए को बचा लेने के लिए
चाहिए तो बस
थोड़ी सी सनक , थोड़ा सा पागलपन
और एक आवाज की पुकार पर
बेवजह डूब जाने का हुनर ।
बहुत समझदार और सुलझे हुए लोग
नहीं सोख सकते कोई नदी
नहीं हर सकते कोई आग
नहीं लड़ सकते कोई लड़ाई ।
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परिचय-
विहाग वैभव
शोध-छात्र : हिंदी विभाग , बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी ,
नया ज्ञानोदय , वागर्थ , आजकल , अदहन पत्रिकाओं सहित अनेक ब्लॉगों और और वेबसाइटों पर कविताएँ प्रकशित ।
मोबाइल- 8858356891
विहाग की कविताएं पहले भी देखता रहा हूँ।वे उन कवियों में हैं जो अपने समय को पहचानते है और जिनमें कविता का भविष्य दिखता है।उन्हें बधाई और आपको साधुवाद
ReplyDeleteआभार सर
Deleteविहाग की कविताएं बैचेनी पैदा करने वाली हैं। अंदर तक कचोटती भाषा व्यवस्था के प्रति वितृष्णा से भर दे रही है।
ReplyDeleteधन्यवाद संजीव जी
Deleteविहाग वैभव की कवितायें सचमुच एक अलग स्वाद की हैं , कसी हुई ओर मुखर , हर बीड़ा उठाने को तैयार । लड़ने के लिये और हत्या - पुरष्कार के लिये प्रेस विज्ञप्ति झंझोड़ती हैं ।
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