साहित्य की बात 'व्हाट्स अप समूह पर प्रस्तुत हुई आज मुकेश कुमार सिन्हा की कवितायें | जिसके मुख्य एडमिन है ब्रज श्रीवास्तव
यह कवितायें आम आदमी की भाषा से गुजरती है |अपनी ही विशेष शैली में लिखी गई कविताओं की आधार भूमि कभी रेखागणित के समकोण त्रिभुज होते है तो कभी रिश्तों की बायोलोजिकल कैमिस्ट्री ...कभी कभी ये डस्टबिन से भी कविता का उद्गम कर लेते है तो कभी मनीप्लांट की बेल में भी जीवन की जिजीविषा तलाश कर कविता रच लेते है |सामान्य से दिखने वाले प्रतिक इनकी कविताओं को असामान्य अर्थ प्रदान करते है |जीवन की तमाम उलझनों से गुजरते हुए भी इनकी कविताई द्रष्टि प्रेम की उस संरचना को पहचान लेती है जहाँ प्रेम कविता की सुवास पाठक को ठहरने पर मजबूर कर देती है |ठीक उसी प्रकार जेसे कंटीली झाड़ियो में सुगन्धित गुलाब पथिक की द्रष्टि को बाँध लेता है .....
.रचना प्रवेश पर प्रस्तुत है कुछ कविताये और साथ ही पाठकों की त्वरित प्रतिक्रियाएं .....
परिचय
नाम : मुकेश कुमार सिन्हा
जन्म : 4 सितम्बर 1971 (बेगुसराय, बिहार)
शिक्षा : बी.एस.सी. (गणित) (बैद्यनाथधाम, झारखण्ड)
इ-मेल: mukeshsaheb@gmail.com
ब्लॉग: "जिंदगी की राहें" (http://jindagikeerahen.blogspot.in/ )
( 2014-15 के सौ श्रेष्ठ हिंदी ब्लॉग में शामिल )
“मन के पंख” (http://mankepankh.blogspot.in/ )
फेसबुक पेज: मुकेश कुमार सिन्हा (https://www.facebook.com/mukeshjindagikeerahen)
ट्विटर हैंडल : https://twitter.com/Tweetmukesh
मोबाइल: +91-9971379996
निवास: लक्ष्मी बाई नगर, नई दिल्ली 110023
वर्तमान: सम्प्रति कृषि राज्य मंत्री, भारत सरकार, नई दिल्ली के साथ सम्बद्ध I
संग्रह : “हमिंग बर्ड” कविता संग्रह (सभी ई-स्टोर पर उपलब्ध) (बेस्ट सेलर)
सह- संपादन: "कस्तूरी", "पगडंडियाँ", “गुलमोहर”, “तुहिन” एवं “गूँज” (साझा कविता संग्रह)
प्रकाशित साझा काव्य संग्रह:
1.अनमोल संचयन, 2.अनुगूँज, 3.खामोश, ख़ामोशी और हम, 4.प्रतिभाओं की कमी नहीं (अवलोकन 2011), 5.शब्दों के अरण्य में , 6.अरुणिमा, 7.शब्दो की चहलकदमी, 8.पुष्प पांखुड़ी
9. मुट्ठी भर अक्षर (साझा लघु कथा संग्रह), 10. काव्या
सम्मान: 1. तस्लीम परिकल्पना ब्लोगोत्सव (अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स एसोसिएशन) द्वारा वर्ष 2011 के
लिए सर्वश्रेष्ठ युवा कवि का पुरुस्कार.
2. शोभना वेलफेयर सोसाइटी द्वारा वर्ष 2012 के लिए "शोभना काव्य सृजन सम्मान"
3. परिकल्पना (अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स एसोसिएशन) द्वारा ‘ब्लॉग गौरव युवा सम्मान’ वर्ष
2013 के लिए
4. विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ से हिंदी सेवा के लिए ‘विद्या वाचस्पति’ 2014 में
5. दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल 2015 में ‘पोएट ऑफ़ द इयर’ का अवार्ड
6. प्रतिमा रक्षा सम्मान समिति, करनाल द्वारा ‘शेर-ए-भारत’ अवार्ड मार्च, 2016 में
🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈
🔯पिता
पिता का बेटे के साथ संबंध
होता है सिर्फ बायोलोजिकल -
खून का रिश्ता तो होता है सिर्फ माँ के साथ
समझाया था डॉक्टर ने
जब पापा थे किडनी डोनर
और डोनर के सारे टेस्ट से
गुजर रहे थे पापा
"अपने मंझले बेटे के लिए"
जितना हमने पापा को पहचाना
वो कोई बलशाली या शक्तिशाली तो
कत्तई नहीं थे
पर किडनी डोनेट करते वक़्त
पूरी प्रक्रिया के दौरान
कभी नहीं दिखी उनके चेहरे पे शिक़न
शायद बेटे के जाने का डर
भारी पड़ रहा था स्वयं की जान पर
पापा नहीं रहे मेरे आयडल कभी
आखिर कोई आयडल चेन स्मोकर तो हो नहीं सकता
और मुझे उनकी इस आदत से
रही बराबर चिढ !
पर उनका सिगरेट पीने का स्टाइल
और धुएं का छल्ला बनाना लगता गजब
आखिर पापा स्टायलिस्ट जो थे !
फिर एक चेन स्मोकर ने
अपने बेटे की जिंदगी के लिए
छोड़ दी सिगरेट, ये मन में कहीं संजो लिया था मैंने !
पापा के आँखों में आंसू भी देखे मैंने
कई बार, पर
जो यादगार है, वो ये कि
जब वो मुझे पहलीबार
दिल्ली भेजने के लिए
पटना तक आये छोड़ने, तो
ट्रेन का चलना और उनके आंसू का टपकना
दोनों एकसाथ, कुछ हुआ ऐसा
जैसे उन्होंने सोचा, मुझे पता तक नहीं और
मैंने भी एक पल फिर से किया अनदेखा !
ये बात थी दीगर कि वो ट्रेन मेरे शहर से ही आती थी
लेकिन कुछ स्टेशन आगे आ कर
छोड़ने पहुंचे. किया 'सी ऑफ' !
पाप की बुढ़ाती आँखों में
इनदिनों रहता है खालीपन
कुछ उम्मीदें, कुछ कसक
पर शायद मैं उन नजरों से बचता हूँ
कभी कभी सोच कहती है मैं भी अच्छा बेटा कहलाऊं
लेकिन
'अच्छा पापा' कहलाने की मेरी सनक
'अच्छे बेटे' पर,पड़ जाती है भारी
स्मृतियों में नहीं कुछ ऐसा कि
कह सकूँ, पापा हैं मेरे लिए सब कुछ
पर ढेरों ऐसे झिलमिलाते पल
छमक छमक कर सामने तैरते नजर आते हैं
ताकि
कह सकूँ, पापा के लिए बहुत बार मैं था 'सब कुछ'
पर अन्दर है गुस्सा कि
'बहुतों बार' तो कह सकता हूँ,
पर हर समय या 'हर बार' क्यों नहीं ?
रही मुझमे चाहत कि
मैं पापा के लिए
हर समय रहूँ "सब कुछ"
आखिर उम्मीदें ही तो जान मारती है न !!
🔯पाइथोगोरस प्रमेय
सुनो
पाइथोगोरस प्रमेय के
तहत
क्या प्रेम भरा रिश्ता
हो सकता है सिद्ध?
किसी ने बताया
गणित में कुछ भी सिद्ध करने से पहले
"मान लिया"
शब्द का करते हैं प्रयोग
तो सुनो
मान लो तुम हो समकोण त्रिभुज की
सबसे छोटी भुजा
तो भी हो अकड़ी,
चुप चाप खड़ी
और चलो मैंने माना
स्वयं को
सबसे बड़ी भुजा,
यानी कर्ण या विकर्ण
आखिर हूँ न बलिष्ठऔर वरिष्ठ
पर फिर भी मेरा पूर्णतया झुकाव
न्यूनकोनिक सा
है तुम्हारे प्रति !
दोनों के आधार के बीच की दूरी
यानी
प्रेम व आकर्षण का परिमाण
है लम्बाई में इतना
ताकि
संभव हो मिलन
पूर्णतया
ऐसे कह लो
अधरों का मिलन है संभव
यानी
पाइथोगोरस का प्रेम सिद्धांत
कहेगा
तुम्हरे प्रेम का परिमाण
व हम दोनों के बीच के
आकर्षण का परिमाण
का वर्गफल
है मेरे प्रेम के बराबर
खालिस प्यार
समझी न
ख़ाक समझोगी
पहले पहाड़ा पढो
दो का
दो मने
मैं और तुम...........!
दो दुनी चार का मतलब मत निकाल लेना
बेवकूफ !
🔯. राखी
ईमेल एसएमएस की दुनिया में
डाकिये ने पकड़ाया लिफाफा
22 रुपए के स्टेम्प से सुसज्जित
भेजा गया था रजिस्टर्ड पोस्ट
पते के जगह, जैसे ही दिखी
वही पुरानी घिसी पिटी लिखावट
जग गए, एक दम से एहसास
सामने आ गए, सहेजे हुए दृश्य
वो झगड़ा, बकबक, मारपीट
सब साथ ही दिखा,
प्यार के छौंक से सना वो
मनभावन, अलबेला चेहरा
उसकी वो छोटी सी चोटी,
उसमे लगा काला क्लिप जो होती थी,
मेरे हाथों कभी
एक दम से आ गया सामने
उसकी फ्रॉक, उसका सैंडल
ढाई सौ ग्राम पाउडर से पूता चेहरा
खूबसूरत दिखने की ललक
एक सुरीली पंक्ति भी कानों में गूंजी
“भैया! खूबसूरत हूँ न मैं??”
हाँ! समझ गया था,
लिफाफा में था
मेरे नकचढ़ी बहना का भेजा हुआ
रेशमी धागे का बंधन
था साथ में, रोली व चन्दन
थी चिट्ठी.....
था जिसमे निवेदन
“भैया! भाभी से ही बँधवा लेना !
मिठाई भी मँगवा लेना !!”
हाँ! ये भी पता चल चुका था
आने वाला है रक्षा बंधन
आखिर भाई-बहन का प्यारा रिश्ता
दिख रहा था लिफाफे में ......
सिमटा हुआ...........!!!
🔯सुट्टे के अंतिम कश से पहले सोचता हूँ
सुट्टे के अंतिम कश से पहले सोचता हूँ
कि क्या सोचूं ?
जी.एस.टी. के उपरान्त लगने वाले टैक्स पर करूँ बहस,
या, फिर सेवेंथ पे कमिशन से मिलने वाले एरियर का
लगाऊं लेखा जोखा
या, सरकारी आयल पूल अकाउंट से
पेट्रोल या गैस पर मिलने वाली सब्सिडी पर तरेरूं नजर
पर, दिमाग का फितूर कह उठता है
क्या पैसा ही जिंदगी है ?
या पैसा भगवान् नहीं है,
पर भगवान की तुलना में है ज्यादा अहम् !
और, अंततः, बस अपने भोजपुरी सिनेमा के रविकिशन को
करता हूँ, याद, और कह उठता हूँ
"जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा"
अब, अंतिम कश लेने के दौरान
चिंगारी पहुँचती है फ़िल्टर वाले रुई तक
भक्क से जल उठता है
तर्जनी और मध्यमा के मध्य का हिस्सा
और फिर बिना सोचे समझे कह उठता हूँ
भक्क साला .....
जबकि कईयों के फेसबुक स्टेटस से पा चुका हूँ ज्ञान
गाली देना पाप है
रहने दो, डेली पढ़ते हैं, डब्बे पर स्मोकिंग इज इन्ज्युरिअस टू हेल्थ
जलते गलते जिगर की तस्वीर के साथ
फिर भी, वो धुएं का अन्दर जाना,
आँखों को बाहर निकलते हुए महसूसना
है न ओशो के कथन जैसा
बिलिफ़ इज ए बैरियर, ट्रस्ट इज ए ब्रिज !
लहराता हूँ हाथ
छमक कर उड़ जाती है सिगरेट, साथ ही
हवाओं के थपेड़े से मिलता है आराम
फिर बिना सोचे समझे महसूसता हूँ
उसके मुंह से निकलने वाले जल मिश्रित भाप की ठंडक
देती है कंपकपी
ऐसे भी सोचा, उसकी दी हुई गर्मी ने भी दी थी कंपकंपी
अंततः
दिमाग कह उठा, कल का दिन डेटिंग के लिए करो फिक्स
प्यार समय मांगता है
बिना धुंआ बिना कंपन
बेटर विदाउट सिगरेट ... है न !!!!
🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯
प्रतिक्रियायें
Saksena Madhu: मुकेश की कविताएँ आत्मीयता से बात करती प्रतीत होती हैं ...अपने पढ़े हुए विषयों को कविता के घोल कर कर अलग रंग चढ़ा कर काव्य में नए समीकरणों को स्थापित किया है । पिता और राखी कविता लिखने में पूरी सच्चाई और ईमानदारी दिखती है नाटकीय महानता का जाम पहन कर आदर्श स्थापित करने का प्रयास किया नही किया ... मुकेश के काव्य सन्ग्रह ' हमिंग बर्ड की ' समीक्षा लिखते समय भी मुझे मुकेश के काव्य में सच्चाई , अवगुणों स्वीकारोक्ति और बेबाकी बहुत अच्छी लगी ..'जस की तस धर दीन्ही चुनरिया ' वाली सहजता प्रभावित करती है । 'सुट्टे के अंतिम कश ' में एक आम आदमी की चिंता और पीड़ा है ।
अच्छी और अलग सी कविताओं के लिए बधाई मुकेश को ...
आभार प्रवेश .....
Chandrashekhar Ji: मुकेश जी की कविताएँ कसी हुई लगीं...लगा की बार बार काम करते हैँ वे अपनी कविताओं पर...राखी मुझे सबसे अच्छी लगी..
बधाई मुकेश जी।
अपर्णा: मुकेश जी की कविताओं का संसार हमारे आस-पास का संसार है। मनीप्लांट का पौधा,ऑफ़िस की घड़ी, दरवाज़ो की दरारें, प्रदूषित यमुना, गृहनगर का पुल, सिगरेट के छल्लों के पीछे का मन और उसका विज्ञान, सड़क, लिफ्ट सीढ़ियाँ ये सब इनकी कविताओं का विषय बनते आए हैं। और हर कविता में टंका होता है एक सरोकार। मैंने इनकी कविताई को परिपक्व होते देखा है।
आज की कविताओं में 'पिता' और 'सुट्टे के कश..' बहुत अच्छी लगीं। कहीं कहीं तनिक कसाव की ज़रूरत लगी मुझे। कहीं तनिक गद्यात्मकता की ओर भी झुकती हैं कविताएँ। पर एक निराले अंदाज़ को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
सृजनशीलता को प्रतिबद्ध इस 'ज़िद्दी' कवि को मेरी ढेरों शुभकामनाएँ।
साकीबा पर इस प्रथम प्रस्तुति की बधाई दोस्त।
😊👍🏽
Sharad Kokas Ji: पिता पर लिखी कविता एक संस्मरण की तरह है । इसमें ब्यौरों की अधिकता है जो कविता में रूचि तो उत्पन्न करती है लेकिन कथ्य में अपनी बात शामिल करने से कवि को रोकती है । यह बात कविता के अंत में आ पाती है । पायथागोरस प्रमेय निस्संदेह अच्छी कविता है और बिम्बो का इसमें बेहतरीन प्रयोग है जो कविता के प्रारंभ से ही अपनी विषय वस्तु में स्पष्ट है । यहाँ निर्वाह ठीक ढंग से हुआ है ।
Nasir Ahamad Sikandar: बी एस सी गणित से हूँ सो पाइथागोरस प्रमेय कविता पसन्द आई।
Braj Ji: कविता का एक अर्थ होता है भाव भरे वाक्य का संप्रेषित होने योग्य प्रवाह से भी भरा होना. ऐसा जुमला जो हमें बार बार अनन्य कल्पना लोक में ले जाये और कविता की अगली पंक्ति हमें फिर मुस्कराते हुए बुला ले, हम चकित से होते रहें, संवेदित होते रहें, और हाँ पढ़ते समय हमारा आलोचना वाला दिमाग कुछ न कहे, रसिक वाला दिल ही धड़कता रहे.
ऐसे विचार मेरे मन में तब आये, जब मैं मुकेश कुमार सिन्हा की प्रस्तुत कविताएँ पढ चुका, इन कविताओं के विषय कोई नये नहीं, लेकिन कहन अलग है, अंदाज़ ए बयां और है, कवि के विचार जिस शिद्दत से मन में आते हैं वह सघन होकर आते हैं, पिता पर कविता की मौलिकता ध्यान खींचती है, पायथागोरस की प्रमेय को कविता में इतने अच्छे से गठित करने का प्रयास विफल हो सकता था. पर कमाल हुआ.
थोड़ा और गठन पर ध्यान दीजिए, वैसे बायोडाटा कहता है कि यह अभ्यासी और सिद्ध कवि हो चले हैं.
प्रस्तुत ठीक से किया गया है. समूह पर ऐसी ही पेशकश होना चाहिए.
शुभकामनायें ||
ब्रज श्रीवास्तव.
Anita Manda: मुकेश जी की सभी कविताएँ बहुत अच्छी लगी
Archana Naidu: मुकेश जी, की कविताएँ यानि ताजगी भरा सुकूनी झोका।
जहां प्यारी सी फिलिंग को शेयर करने के लिए आसपास की तमाम चीजों को बिम्ब उपलब्ध रहते हैं। पाइथागोरस, के फार्मूले, डस्टबिन, सिगरेट और न जाने क्या क्या। सच, कवि की सोच का जवाब नहीं। आपकी उपलब्धियां और आपकी कलम की अच्छी दोस्ती है। सारी की सारी कविताएँ अच्छी लगी। आप बहुत ऊंचे जायेंगे,। दुआयें है हमारी 😊
Arti Tivari: सारी कवितायेँ बहुत सुंदर पर..पाइथोगोरस प्रमेय सबसे अच्छी लगी। इस कविता को कवि ने जैसे साधा है👌🏼👌🏼👌🏼👌🏼👌🏼 लाजवाब है🍀🌸😊
Mukesh Kumar Sinha: सबसे पहले तो शुक्रिया और फिर माफ़ी, मुझे जरा भी भान नहीं था कि मेरी कवितायेँ साकीबा के विस्तृत फलक पर सुशोभित होगी ! बहुत दिनों पहले प्रवेश ने मेरी कुछ कवितायेँ ली थी, पर ये नहीं बताया था कि उन कविताओं का क्या प्रयोग होगा साथ ही अंतिम कविता मैंने प्रवेश को बस दिखाने भर के उद्देश्य से कल थी ............बहुत बहुत धन्यवाद मित्र !!
Mukesh Kumar Sinha: दिल से आभार व्यक्त करता हूँ पीयूष जी, के.के.श्रीवास्तव सर, मधु जी, चंद्रशेखर सर, अपर्णा , शरद सर, नासिर अहमद जी, ब्रज श्रीवास्तव सर, अनीता जी, अर्चना व आरती जी ......... | आप सबका तहे दिल से शुक्रिया जो मेरे जैसे नए रचनाकार के लिए आप सबने समय निकला !
Hariom Rajoriyaa Ji: मैंने मुकेश की कवितायें पहली बार पढ़ीं । इन कविताओं में भविष्य की एक उम्मीद है । हम जो सोचते हैं उसे भाषा के माध्यम से पकड़ने का प्रयास कराटे हैं , कई बार घनीभूत अनुभव बेचैनी के साथ हमसे कविता लिखवा लेते हैं और शिल्प अपने आप बन जाता है । मुकेश की कवितायें उसी तरह की हैं । ये ऐसी नहीं , ऐसी होतीं ? जैसी कोई बात नहीं , ये जैसी हैं , बैसी ही हैं । मुकेश को बधाई ।
+91 80850 96010: मुकेश जी मेरी भी बधाई स्वीकार कीजिए । अब आप नए रचनाकार नहीं अनुभवी हो चले हैं तभी तो जीवन की इतनी हलचल और आपाधापी में एक हल्की लरज के साथ आप प्रयोग कर पाते हैं भले ही गद्य भाग थोड़ा ज्यादा हावी रहता है पर बात तो दिल तक पहुँच ही जाती है । आपकी कविता ठन्डे पानी का झोंका जो चेहरे पर मुस्कान ला देता है । मुझे भी पाइथोगारस कविता सबसे अच्छी लगी। । बधाई आपको । । हमिंग बर्ड की उड़ान जारी रहे ।
धन्यवाद प्रवेश जी ।
Meena Sharma Sakiba: मुकेश जी की कविताएँ कुछ अलग अन्दाज में गणित और प्रेम
का भूगोल के साथ उत्सुकता से बाँध लेने में सफल.
अच्छी या बहुत अच्छी की बात
नहीं..बस पढ़कर जरा मुस्कुराएँ..
पिता के सिगरेट के छल्ले आँखों मं
घूम गये..! मनीप्लाँट से लेकर राखी तक के रिश्ते पर बेबाक कलम
चलाकर खूबसूरत गठन में कसी कविताएँ...बधाई मुकेश जी
धन्यवाद प्रवेश जी.
Bhavna Sinha Sakiba: मुकेश जी की सारी कविताएँ बहुत कोमल और संवाद करती हुई है। इनके कविता को बयान करने का अंदाज अनोखा है। यहाँ प्रस्तुत कविताओं में राखी मेरी पसंदीदा कविता हैं --ढाई सौ ग्राम पाउडर से पूता चेहरा -- बस वाह वाह ।
अच्छी प्रस्तुतिकरण के लिए प्रवेश जी को बधाई ।
Mukesh Kumar Sinha: आभार हरीओम राजोरिया जी का ............ये ऐसी नहीं , ऐसी होतीं ? जैसी कोई बात नहीं , ये जैसी हैं , बैसी ही हैं । ..........आपका ये स्टेटमेंट दिल में लगा, बेहद शुक्रिया !!
Mukesh Kumar Sinha: आभा .......आपको तो पता है, मेरी कविताओं के शब्द कैसे किस तरह से जूझते हैं, तभी तो वो समय दर समय संस्मरणात्मक से लगने लगते हैं ............कोशिश जारी है...शुक्रिया मित्र ! ..........अपर्णा ने सही कहा था, जिद्दी कवि😜 ! तभी तो एक व्यक्ति जो क से सिर्फ कहानी ही समझता था, वो भी पाठक के तौर पर, आज बेवजह की कवितायेँ रचने लगा है ........!! दिल से शुक्रिया
Meena Sharma Sakiba: जूझते हुए शब्द ही कविता को
नए अंदाज़ देते हैं.
Mukesh Kumar Sinha: बेहद शुक्रिया मीना शर्मा जी ...........अगर मेरी कविता एक पल के लिए भी मुस्कान लाने में सफल है, तो मैं स्वयं को सफल ही समझूंगा ! दिल से आभार
Dr Mohan Nagar Sakiba: मैंने मुकेश जी की पायथागोरस प्रमेय शायद फेसबुक पर पढ़ी है और अन्य कविताएँ भी कुछ या हो सकता है भ्रम हो .. एकदम नये कलेवर की कविताएँ .. शैली और लेखन पर किसी भी तरह की छाप नहीं बल्कि अपनी ही मुकम्मल होती शैली अद्भुत लेकर आते दीखते हैं वे .... तमाम कविताएँ सरल सहज छूटी हुई लगती हैं .. लिखने की कोई कोशिश या ड्राफ्ट मिला मिलाकर तैयार हुई तो कतई ही नहीं। मेरी शुभकामनाएं उनकी आगे की यात्रा के लिए .. अद्भुत रचनाएँ
नरेश अग्रवाल ,....मुकेश जी की सारी कविताएँ पिता, पाइथोगोरस प्रमेय, राखी, सुट्टे के अंतिम कश से पहले सोचता हूँ , सभी अच्छी हैं।
हां यह तो महत्त्वपूर्ण है की इन चारों कविताओं के शीर्षक याद करते ही कविता की कोई न कोई पंक्ति याद आने लगती है जो कवि के प्रतिभाशाली होने का संकेत है। बधाई मुकेशजी को। पूरी उम्मीद है भविष्य में वे और भी अच्छा लिखेंगे।
साथ ही अच्छी प्रस्तुतिकरण के लिए प्रवेश जी को बधाई ।
Saiyd ayyub इससे पहले कि आज की पोस्ट आ जाये, थोड़ा मुकेश कुमार सिन्हा भाई और उनकी कविता पर। मुकेश भाई मित्र हैं, बड़े भाई की तरह है। जहाँ-तहाँ हम लोग टकराते रहते हैं। दिल्ली की सभा-गोष्ठियों से लेकर फेसबुक तक। फेसबुक पर एक-दो बार बहुत तीखी नोक-झोंक भी हुई है। उसके बावजूद हम मित्र हैं। मुकेश भाई निहायत ही सज्जन आदमी हैं। अक्सर लड़ाई-बहस आदि से दूर रहने वाले। प्रधामंत्री कार्यालय में पोस्टेड हैं और कई प्रधानमंत्रियों के साथ फोटो खिंचवा चुके हैं। 😊 आपकी पत्नी अंजू सिन्हा जी बहुत ही भली महिला हैं। आप संपादक हैं और अपने संपादन में दो (या संभवतः चार) कविता संग्रह निकाल चुके हैं। एक का नाम है ''गूँज'' और दूसरे का संभवतः ''गुलमोहर।'' कुछ कविता केंद्रित कार्यक्रम भी आपने आयोजित किये, करवायें हैं और मेरे द्वारा आयोजित कुछ कार्यक्रमों में आपने कवि और श्रोता दोनों के रूप में भाग लिया है।
अब आपकी कविता पर। यह तुलना थोड़ी अजीब होगी और शायद मैं तुलना कर भी नहीं रहा पर इस समय मुझे चेखव की वह प्रसिद्ध कहानी याद आ रही है जिसका मुख्य किरदार एक टाँगे वाला है। वह कहानी इसलिये महत्वपूर्ण है कि उसमें कुछ भी असाधारण नहीं है। वह साधारणता की असाधारण कहानी है। मुकेश भाई की कविताओं के बारे में यह तो नहीं कहूँगा कि वे साधारणता की असाधारण कविताएँ हैं पर इतना ज़रूर कहूँगा कि वे साधारणता की अच्छी और आवश्यक कविताएँ लिखते हैं। यहाँ प्रस्तुत की गयी उनकी कविताएँ और उनकी जो कविताएँ पहले पढ़-सुन चुका हूँ, उसके आधार पर यह बात कह रहा हूँ। जिस तरह उनकी कविताओं के विषय साधारण हैं उसी प्रकार कविता को लिख ही देने के उनके प्रयास भी साधारण हैं और इसी साधारणता में एक जादू है जो खींचता है, एक चुम्बक है जो चिपका लेता है, एक आकर्षण है जो आकर्षित करता है। उनकी कवितओं में कविता लिख देने का कहीं संघर्ष नहीं है, बिम्ब-प्रतीकों के प्रयोग को लेकर कहीं सायासता नहीं है, बस जो कुछ भी है, सहज-सरल रूप में रच दिया गया है। यह सहजता और साधारणता का जादू बना रहे, यही दुआ है।
Hargovind maithili मुकेश कुमार जी की सुन्दर कवितायें ।पाइथोगोरस प्रमेय कविता अच्छी लगी ।बधाई मुकेश कुमार जी व प्रवेश जी का आभार ।
Alaknanda sane Taai पहली कविता छोडकर सभी पसंद आईं । सुट्टे का अंतिम कश बेहतरीन है । पायथागोरस भी अच्छी है । ताजी हवा का झोंका ।
Mani mohan mehata ji मुकेश भाई की कविताओं में एक ताजगी दिखी ।शेष वक्तव्य भाई मोहन नागर जी का जस का तस , कवि को बधाई ।
Sudhir desh paande प्रवेश का आजमुकेश कुमार सिन्हा की कविताओं को प्रस्तुत करने का अंदाज ईर्ष्या भर गया।
रश्क करने लायक मनोज की कविताएं भी हैं। विषय विषयवस्तु अंदाजे बयां अलहदा है। प्रस्तोता और कवि दोनों को बधाई।
यह कवितायें आम आदमी की भाषा से गुजरती है |अपनी ही विशेष शैली में लिखी गई कविताओं की आधार भूमि कभी रेखागणित के समकोण त्रिभुज होते है तो कभी रिश्तों की बायोलोजिकल कैमिस्ट्री ...कभी कभी ये डस्टबिन से भी कविता का उद्गम कर लेते है तो कभी मनीप्लांट की बेल में भी जीवन की जिजीविषा तलाश कर कविता रच लेते है |सामान्य से दिखने वाले प्रतिक इनकी कविताओं को असामान्य अर्थ प्रदान करते है |जीवन की तमाम उलझनों से गुजरते हुए भी इनकी कविताई द्रष्टि प्रेम की उस संरचना को पहचान लेती है जहाँ प्रेम कविता की सुवास पाठक को ठहरने पर मजबूर कर देती है |ठीक उसी प्रकार जेसे कंटीली झाड़ियो में सुगन्धित गुलाब पथिक की द्रष्टि को बाँध लेता है .....
.रचना प्रवेश पर प्रस्तुत है कुछ कविताये और साथ ही पाठकों की त्वरित प्रतिक्रियाएं .....
परिचय
नाम : मुकेश कुमार सिन्हा
जन्म : 4 सितम्बर 1971 (बेगुसराय, बिहार)
शिक्षा : बी.एस.सी. (गणित) (बैद्यनाथधाम, झारखण्ड)
इ-मेल: mukeshsaheb@gmail.com
ब्लॉग: "जिंदगी की राहें" (http://jindagikeerahen.blogspot.in/ )
( 2014-15 के सौ श्रेष्ठ हिंदी ब्लॉग में शामिल )
“मन के पंख” (http://mankepankh.blogspot.in/ )
फेसबुक पेज: मुकेश कुमार सिन्हा (https://www.facebook.com/mukeshjindagikeerahen)
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निवास: लक्ष्मी बाई नगर, नई दिल्ली 110023
वर्तमान: सम्प्रति कृषि राज्य मंत्री, भारत सरकार, नई दिल्ली के साथ सम्बद्ध I
संग्रह : “हमिंग बर्ड” कविता संग्रह (सभी ई-स्टोर पर उपलब्ध) (बेस्ट सेलर)
सह- संपादन: "कस्तूरी", "पगडंडियाँ", “गुलमोहर”, “तुहिन” एवं “गूँज” (साझा कविता संग्रह)
प्रकाशित साझा काव्य संग्रह:
1.अनमोल संचयन, 2.अनुगूँज, 3.खामोश, ख़ामोशी और हम, 4.प्रतिभाओं की कमी नहीं (अवलोकन 2011), 5.शब्दों के अरण्य में , 6.अरुणिमा, 7.शब्दो की चहलकदमी, 8.पुष्प पांखुड़ी
9. मुट्ठी भर अक्षर (साझा लघु कथा संग्रह), 10. काव्या
सम्मान: 1. तस्लीम परिकल्पना ब्लोगोत्सव (अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स एसोसिएशन) द्वारा वर्ष 2011 के
लिए सर्वश्रेष्ठ युवा कवि का पुरुस्कार.
2. शोभना वेलफेयर सोसाइटी द्वारा वर्ष 2012 के लिए "शोभना काव्य सृजन सम्मान"
3. परिकल्पना (अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स एसोसिएशन) द्वारा ‘ब्लॉग गौरव युवा सम्मान’ वर्ष
2013 के लिए
4. विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ से हिंदी सेवा के लिए ‘विद्या वाचस्पति’ 2014 में
5. दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल 2015 में ‘पोएट ऑफ़ द इयर’ का अवार्ड
6. प्रतिमा रक्षा सम्मान समिति, करनाल द्वारा ‘शेर-ए-भारत’ अवार्ड मार्च, 2016 में
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🔯पिता
पिता का बेटे के साथ संबंध
होता है सिर्फ बायोलोजिकल -
खून का रिश्ता तो होता है सिर्फ माँ के साथ
समझाया था डॉक्टर ने
जब पापा थे किडनी डोनर
और डोनर के सारे टेस्ट से
गुजर रहे थे पापा
"अपने मंझले बेटे के लिए"
जितना हमने पापा को पहचाना
वो कोई बलशाली या शक्तिशाली तो
कत्तई नहीं थे
पर किडनी डोनेट करते वक़्त
पूरी प्रक्रिया के दौरान
कभी नहीं दिखी उनके चेहरे पे शिक़न
शायद बेटे के जाने का डर
भारी पड़ रहा था स्वयं की जान पर
पापा नहीं रहे मेरे आयडल कभी
आखिर कोई आयडल चेन स्मोकर तो हो नहीं सकता
और मुझे उनकी इस आदत से
रही बराबर चिढ !
पर उनका सिगरेट पीने का स्टाइल
और धुएं का छल्ला बनाना लगता गजब
आखिर पापा स्टायलिस्ट जो थे !
फिर एक चेन स्मोकर ने
अपने बेटे की जिंदगी के लिए
छोड़ दी सिगरेट, ये मन में कहीं संजो लिया था मैंने !
पापा के आँखों में आंसू भी देखे मैंने
कई बार, पर
जो यादगार है, वो ये कि
जब वो मुझे पहलीबार
दिल्ली भेजने के लिए
पटना तक आये छोड़ने, तो
ट्रेन का चलना और उनके आंसू का टपकना
दोनों एकसाथ, कुछ हुआ ऐसा
जैसे उन्होंने सोचा, मुझे पता तक नहीं और
मैंने भी एक पल फिर से किया अनदेखा !
ये बात थी दीगर कि वो ट्रेन मेरे शहर से ही आती थी
लेकिन कुछ स्टेशन आगे आ कर
छोड़ने पहुंचे. किया 'सी ऑफ' !
पाप की बुढ़ाती आँखों में
इनदिनों रहता है खालीपन
कुछ उम्मीदें, कुछ कसक
पर शायद मैं उन नजरों से बचता हूँ
कभी कभी सोच कहती है मैं भी अच्छा बेटा कहलाऊं
लेकिन
'अच्छा पापा' कहलाने की मेरी सनक
'अच्छे बेटे' पर,पड़ जाती है भारी
स्मृतियों में नहीं कुछ ऐसा कि
कह सकूँ, पापा हैं मेरे लिए सब कुछ
पर ढेरों ऐसे झिलमिलाते पल
छमक छमक कर सामने तैरते नजर आते हैं
ताकि
कह सकूँ, पापा के लिए बहुत बार मैं था 'सब कुछ'
पर अन्दर है गुस्सा कि
'बहुतों बार' तो कह सकता हूँ,
पर हर समय या 'हर बार' क्यों नहीं ?
रही मुझमे चाहत कि
मैं पापा के लिए
हर समय रहूँ "सब कुछ"
आखिर उम्मीदें ही तो जान मारती है न !!
🔯पाइथोगोरस प्रमेय
सुनो
पाइथोगोरस प्रमेय के
तहत
क्या प्रेम भरा रिश्ता
हो सकता है सिद्ध?
किसी ने बताया
गणित में कुछ भी सिद्ध करने से पहले
"मान लिया"
शब्द का करते हैं प्रयोग
तो सुनो
मान लो तुम हो समकोण त्रिभुज की
सबसे छोटी भुजा
तो भी हो अकड़ी,
चुप चाप खड़ी
और चलो मैंने माना
स्वयं को
सबसे बड़ी भुजा,
यानी कर्ण या विकर्ण
आखिर हूँ न बलिष्ठऔर वरिष्ठ
पर फिर भी मेरा पूर्णतया झुकाव
न्यूनकोनिक सा
है तुम्हारे प्रति !
दोनों के आधार के बीच की दूरी
यानी
प्रेम व आकर्षण का परिमाण
है लम्बाई में इतना
ताकि
संभव हो मिलन
पूर्णतया
ऐसे कह लो
अधरों का मिलन है संभव
यानी
पाइथोगोरस का प्रेम सिद्धांत
कहेगा
तुम्हरे प्रेम का परिमाण
व हम दोनों के बीच के
आकर्षण का परिमाण
का वर्गफल
है मेरे प्रेम के बराबर
खालिस प्यार
समझी न
ख़ाक समझोगी
पहले पहाड़ा पढो
दो का
दो मने
मैं और तुम...........!
दो दुनी चार का मतलब मत निकाल लेना
बेवकूफ !
🔯. राखी
ईमेल एसएमएस की दुनिया में
डाकिये ने पकड़ाया लिफाफा
22 रुपए के स्टेम्प से सुसज्जित
भेजा गया था रजिस्टर्ड पोस्ट
पते के जगह, जैसे ही दिखी
वही पुरानी घिसी पिटी लिखावट
जग गए, एक दम से एहसास
सामने आ गए, सहेजे हुए दृश्य
वो झगड़ा, बकबक, मारपीट
सब साथ ही दिखा,
प्यार के छौंक से सना वो
मनभावन, अलबेला चेहरा
उसकी वो छोटी सी चोटी,
उसमे लगा काला क्लिप जो होती थी,
मेरे हाथों कभी
एक दम से आ गया सामने
उसकी फ्रॉक, उसका सैंडल
ढाई सौ ग्राम पाउडर से पूता चेहरा
खूबसूरत दिखने की ललक
एक सुरीली पंक्ति भी कानों में गूंजी
“भैया! खूबसूरत हूँ न मैं??”
हाँ! समझ गया था,
लिफाफा में था
मेरे नकचढ़ी बहना का भेजा हुआ
रेशमी धागे का बंधन
था साथ में, रोली व चन्दन
थी चिट्ठी.....
था जिसमे निवेदन
“भैया! भाभी से ही बँधवा लेना !
मिठाई भी मँगवा लेना !!”
हाँ! ये भी पता चल चुका था
आने वाला है रक्षा बंधन
आखिर भाई-बहन का प्यारा रिश्ता
दिख रहा था लिफाफे में ......
सिमटा हुआ...........!!!
🔯सुट्टे के अंतिम कश से पहले सोचता हूँ
सुट्टे के अंतिम कश से पहले सोचता हूँ
कि क्या सोचूं ?
जी.एस.टी. के उपरान्त लगने वाले टैक्स पर करूँ बहस,
या, फिर सेवेंथ पे कमिशन से मिलने वाले एरियर का
लगाऊं लेखा जोखा
या, सरकारी आयल पूल अकाउंट से
पेट्रोल या गैस पर मिलने वाली सब्सिडी पर तरेरूं नजर
पर, दिमाग का फितूर कह उठता है
क्या पैसा ही जिंदगी है ?
या पैसा भगवान् नहीं है,
पर भगवान की तुलना में है ज्यादा अहम् !
और, अंततः, बस अपने भोजपुरी सिनेमा के रविकिशन को
करता हूँ, याद, और कह उठता हूँ
"जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा"
अब, अंतिम कश लेने के दौरान
चिंगारी पहुँचती है फ़िल्टर वाले रुई तक
भक्क से जल उठता है
तर्जनी और मध्यमा के मध्य का हिस्सा
और फिर बिना सोचे समझे कह उठता हूँ
भक्क साला .....
जबकि कईयों के फेसबुक स्टेटस से पा चुका हूँ ज्ञान
गाली देना पाप है
रहने दो, डेली पढ़ते हैं, डब्बे पर स्मोकिंग इज इन्ज्युरिअस टू हेल्थ
जलते गलते जिगर की तस्वीर के साथ
फिर भी, वो धुएं का अन्दर जाना,
आँखों को बाहर निकलते हुए महसूसना
है न ओशो के कथन जैसा
बिलिफ़ इज ए बैरियर, ट्रस्ट इज ए ब्रिज !
लहराता हूँ हाथ
छमक कर उड़ जाती है सिगरेट, साथ ही
हवाओं के थपेड़े से मिलता है आराम
फिर बिना सोचे समझे महसूसता हूँ
उसके मुंह से निकलने वाले जल मिश्रित भाप की ठंडक
देती है कंपकपी
ऐसे भी सोचा, उसकी दी हुई गर्मी ने भी दी थी कंपकंपी
अंततः
दिमाग कह उठा, कल का दिन डेटिंग के लिए करो फिक्स
प्यार समय मांगता है
बिना धुंआ बिना कंपन
बेटर विदाउट सिगरेट ... है न !!!!
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प्रतिक्रियायें
Saksena Madhu: मुकेश की कविताएँ आत्मीयता से बात करती प्रतीत होती हैं ...अपने पढ़े हुए विषयों को कविता के घोल कर कर अलग रंग चढ़ा कर काव्य में नए समीकरणों को स्थापित किया है । पिता और राखी कविता लिखने में पूरी सच्चाई और ईमानदारी दिखती है नाटकीय महानता का जाम पहन कर आदर्श स्थापित करने का प्रयास किया नही किया ... मुकेश के काव्य सन्ग्रह ' हमिंग बर्ड की ' समीक्षा लिखते समय भी मुझे मुकेश के काव्य में सच्चाई , अवगुणों स्वीकारोक्ति और बेबाकी बहुत अच्छी लगी ..'जस की तस धर दीन्ही चुनरिया ' वाली सहजता प्रभावित करती है । 'सुट्टे के अंतिम कश ' में एक आम आदमी की चिंता और पीड़ा है ।
अच्छी और अलग सी कविताओं के लिए बधाई मुकेश को ...
आभार प्रवेश .....
Chandrashekhar Ji: मुकेश जी की कविताएँ कसी हुई लगीं...लगा की बार बार काम करते हैँ वे अपनी कविताओं पर...राखी मुझे सबसे अच्छी लगी..
बधाई मुकेश जी।
अपर्णा: मुकेश जी की कविताओं का संसार हमारे आस-पास का संसार है। मनीप्लांट का पौधा,ऑफ़िस की घड़ी, दरवाज़ो की दरारें, प्रदूषित यमुना, गृहनगर का पुल, सिगरेट के छल्लों के पीछे का मन और उसका विज्ञान, सड़क, लिफ्ट सीढ़ियाँ ये सब इनकी कविताओं का विषय बनते आए हैं। और हर कविता में टंका होता है एक सरोकार। मैंने इनकी कविताई को परिपक्व होते देखा है।
आज की कविताओं में 'पिता' और 'सुट्टे के कश..' बहुत अच्छी लगीं। कहीं कहीं तनिक कसाव की ज़रूरत लगी मुझे। कहीं तनिक गद्यात्मकता की ओर भी झुकती हैं कविताएँ। पर एक निराले अंदाज़ को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
सृजनशीलता को प्रतिबद्ध इस 'ज़िद्दी' कवि को मेरी ढेरों शुभकामनाएँ।
साकीबा पर इस प्रथम प्रस्तुति की बधाई दोस्त।
😊👍🏽
Sharad Kokas Ji: पिता पर लिखी कविता एक संस्मरण की तरह है । इसमें ब्यौरों की अधिकता है जो कविता में रूचि तो उत्पन्न करती है लेकिन कथ्य में अपनी बात शामिल करने से कवि को रोकती है । यह बात कविता के अंत में आ पाती है । पायथागोरस प्रमेय निस्संदेह अच्छी कविता है और बिम्बो का इसमें बेहतरीन प्रयोग है जो कविता के प्रारंभ से ही अपनी विषय वस्तु में स्पष्ट है । यहाँ निर्वाह ठीक ढंग से हुआ है ।
Nasir Ahamad Sikandar: बी एस सी गणित से हूँ सो पाइथागोरस प्रमेय कविता पसन्द आई।
Braj Ji: कविता का एक अर्थ होता है भाव भरे वाक्य का संप्रेषित होने योग्य प्रवाह से भी भरा होना. ऐसा जुमला जो हमें बार बार अनन्य कल्पना लोक में ले जाये और कविता की अगली पंक्ति हमें फिर मुस्कराते हुए बुला ले, हम चकित से होते रहें, संवेदित होते रहें, और हाँ पढ़ते समय हमारा आलोचना वाला दिमाग कुछ न कहे, रसिक वाला दिल ही धड़कता रहे.
ऐसे विचार मेरे मन में तब आये, जब मैं मुकेश कुमार सिन्हा की प्रस्तुत कविताएँ पढ चुका, इन कविताओं के विषय कोई नये नहीं, लेकिन कहन अलग है, अंदाज़ ए बयां और है, कवि के विचार जिस शिद्दत से मन में आते हैं वह सघन होकर आते हैं, पिता पर कविता की मौलिकता ध्यान खींचती है, पायथागोरस की प्रमेय को कविता में इतने अच्छे से गठित करने का प्रयास विफल हो सकता था. पर कमाल हुआ.
थोड़ा और गठन पर ध्यान दीजिए, वैसे बायोडाटा कहता है कि यह अभ्यासी और सिद्ध कवि हो चले हैं.
प्रस्तुत ठीक से किया गया है. समूह पर ऐसी ही पेशकश होना चाहिए.
शुभकामनायें ||
ब्रज श्रीवास्तव.
Anita Manda: मुकेश जी की सभी कविताएँ बहुत अच्छी लगी
Archana Naidu: मुकेश जी, की कविताएँ यानि ताजगी भरा सुकूनी झोका।
जहां प्यारी सी फिलिंग को शेयर करने के लिए आसपास की तमाम चीजों को बिम्ब उपलब्ध रहते हैं। पाइथागोरस, के फार्मूले, डस्टबिन, सिगरेट और न जाने क्या क्या। सच, कवि की सोच का जवाब नहीं। आपकी उपलब्धियां और आपकी कलम की अच्छी दोस्ती है। सारी की सारी कविताएँ अच्छी लगी। आप बहुत ऊंचे जायेंगे,। दुआयें है हमारी 😊
Arti Tivari: सारी कवितायेँ बहुत सुंदर पर..पाइथोगोरस प्रमेय सबसे अच्छी लगी। इस कविता को कवि ने जैसे साधा है👌🏼👌🏼👌🏼👌🏼👌🏼 लाजवाब है🍀🌸😊
Mukesh Kumar Sinha: सबसे पहले तो शुक्रिया और फिर माफ़ी, मुझे जरा भी भान नहीं था कि मेरी कवितायेँ साकीबा के विस्तृत फलक पर सुशोभित होगी ! बहुत दिनों पहले प्रवेश ने मेरी कुछ कवितायेँ ली थी, पर ये नहीं बताया था कि उन कविताओं का क्या प्रयोग होगा साथ ही अंतिम कविता मैंने प्रवेश को बस दिखाने भर के उद्देश्य से कल थी ............बहुत बहुत धन्यवाद मित्र !!
Mukesh Kumar Sinha: दिल से आभार व्यक्त करता हूँ पीयूष जी, के.के.श्रीवास्तव सर, मधु जी, चंद्रशेखर सर, अपर्णा , शरद सर, नासिर अहमद जी, ब्रज श्रीवास्तव सर, अनीता जी, अर्चना व आरती जी ......... | आप सबका तहे दिल से शुक्रिया जो मेरे जैसे नए रचनाकार के लिए आप सबने समय निकला !
Hariom Rajoriyaa Ji: मैंने मुकेश की कवितायें पहली बार पढ़ीं । इन कविताओं में भविष्य की एक उम्मीद है । हम जो सोचते हैं उसे भाषा के माध्यम से पकड़ने का प्रयास कराटे हैं , कई बार घनीभूत अनुभव बेचैनी के साथ हमसे कविता लिखवा लेते हैं और शिल्प अपने आप बन जाता है । मुकेश की कवितायें उसी तरह की हैं । ये ऐसी नहीं , ऐसी होतीं ? जैसी कोई बात नहीं , ये जैसी हैं , बैसी ही हैं । मुकेश को बधाई ।
+91 80850 96010: मुकेश जी मेरी भी बधाई स्वीकार कीजिए । अब आप नए रचनाकार नहीं अनुभवी हो चले हैं तभी तो जीवन की इतनी हलचल और आपाधापी में एक हल्की लरज के साथ आप प्रयोग कर पाते हैं भले ही गद्य भाग थोड़ा ज्यादा हावी रहता है पर बात तो दिल तक पहुँच ही जाती है । आपकी कविता ठन्डे पानी का झोंका जो चेहरे पर मुस्कान ला देता है । मुझे भी पाइथोगारस कविता सबसे अच्छी लगी। । बधाई आपको । । हमिंग बर्ड की उड़ान जारी रहे ।
धन्यवाद प्रवेश जी ।
Meena Sharma Sakiba: मुकेश जी की कविताएँ कुछ अलग अन्दाज में गणित और प्रेम
का भूगोल के साथ उत्सुकता से बाँध लेने में सफल.
अच्छी या बहुत अच्छी की बात
नहीं..बस पढ़कर जरा मुस्कुराएँ..
पिता के सिगरेट के छल्ले आँखों मं
घूम गये..! मनीप्लाँट से लेकर राखी तक के रिश्ते पर बेबाक कलम
चलाकर खूबसूरत गठन में कसी कविताएँ...बधाई मुकेश जी
धन्यवाद प्रवेश जी.
Bhavna Sinha Sakiba: मुकेश जी की सारी कविताएँ बहुत कोमल और संवाद करती हुई है। इनके कविता को बयान करने का अंदाज अनोखा है। यहाँ प्रस्तुत कविताओं में राखी मेरी पसंदीदा कविता हैं --ढाई सौ ग्राम पाउडर से पूता चेहरा -- बस वाह वाह ।
अच्छी प्रस्तुतिकरण के लिए प्रवेश जी को बधाई ।
Mukesh Kumar Sinha: आभार हरीओम राजोरिया जी का ............ये ऐसी नहीं , ऐसी होतीं ? जैसी कोई बात नहीं , ये जैसी हैं , बैसी ही हैं । ..........आपका ये स्टेटमेंट दिल में लगा, बेहद शुक्रिया !!
Mukesh Kumar Sinha: आभा .......आपको तो पता है, मेरी कविताओं के शब्द कैसे किस तरह से जूझते हैं, तभी तो वो समय दर समय संस्मरणात्मक से लगने लगते हैं ............कोशिश जारी है...शुक्रिया मित्र ! ..........अपर्णा ने सही कहा था, जिद्दी कवि😜 ! तभी तो एक व्यक्ति जो क से सिर्फ कहानी ही समझता था, वो भी पाठक के तौर पर, आज बेवजह की कवितायेँ रचने लगा है ........!! दिल से शुक्रिया
Meena Sharma Sakiba: जूझते हुए शब्द ही कविता को
नए अंदाज़ देते हैं.
Mukesh Kumar Sinha: बेहद शुक्रिया मीना शर्मा जी ...........अगर मेरी कविता एक पल के लिए भी मुस्कान लाने में सफल है, तो मैं स्वयं को सफल ही समझूंगा ! दिल से आभार
Dr Mohan Nagar Sakiba: मैंने मुकेश जी की पायथागोरस प्रमेय शायद फेसबुक पर पढ़ी है और अन्य कविताएँ भी कुछ या हो सकता है भ्रम हो .. एकदम नये कलेवर की कविताएँ .. शैली और लेखन पर किसी भी तरह की छाप नहीं बल्कि अपनी ही मुकम्मल होती शैली अद्भुत लेकर आते दीखते हैं वे .... तमाम कविताएँ सरल सहज छूटी हुई लगती हैं .. लिखने की कोई कोशिश या ड्राफ्ट मिला मिलाकर तैयार हुई तो कतई ही नहीं। मेरी शुभकामनाएं उनकी आगे की यात्रा के लिए .. अद्भुत रचनाएँ
नरेश अग्रवाल ,....मुकेश जी की सारी कविताएँ पिता, पाइथोगोरस प्रमेय, राखी, सुट्टे के अंतिम कश से पहले सोचता हूँ , सभी अच्छी हैं।
हां यह तो महत्त्वपूर्ण है की इन चारों कविताओं के शीर्षक याद करते ही कविता की कोई न कोई पंक्ति याद आने लगती है जो कवि के प्रतिभाशाली होने का संकेत है। बधाई मुकेशजी को। पूरी उम्मीद है भविष्य में वे और भी अच्छा लिखेंगे।
साथ ही अच्छी प्रस्तुतिकरण के लिए प्रवेश जी को बधाई ।
Saiyd ayyub इससे पहले कि आज की पोस्ट आ जाये, थोड़ा मुकेश कुमार सिन्हा भाई और उनकी कविता पर। मुकेश भाई मित्र हैं, बड़े भाई की तरह है। जहाँ-तहाँ हम लोग टकराते रहते हैं। दिल्ली की सभा-गोष्ठियों से लेकर फेसबुक तक। फेसबुक पर एक-दो बार बहुत तीखी नोक-झोंक भी हुई है। उसके बावजूद हम मित्र हैं। मुकेश भाई निहायत ही सज्जन आदमी हैं। अक्सर लड़ाई-बहस आदि से दूर रहने वाले। प्रधामंत्री कार्यालय में पोस्टेड हैं और कई प्रधानमंत्रियों के साथ फोटो खिंचवा चुके हैं। 😊 आपकी पत्नी अंजू सिन्हा जी बहुत ही भली महिला हैं। आप संपादक हैं और अपने संपादन में दो (या संभवतः चार) कविता संग्रह निकाल चुके हैं। एक का नाम है ''गूँज'' और दूसरे का संभवतः ''गुलमोहर।'' कुछ कविता केंद्रित कार्यक्रम भी आपने आयोजित किये, करवायें हैं और मेरे द्वारा आयोजित कुछ कार्यक्रमों में आपने कवि और श्रोता दोनों के रूप में भाग लिया है।
अब आपकी कविता पर। यह तुलना थोड़ी अजीब होगी और शायद मैं तुलना कर भी नहीं रहा पर इस समय मुझे चेखव की वह प्रसिद्ध कहानी याद आ रही है जिसका मुख्य किरदार एक टाँगे वाला है। वह कहानी इसलिये महत्वपूर्ण है कि उसमें कुछ भी असाधारण नहीं है। वह साधारणता की असाधारण कहानी है। मुकेश भाई की कविताओं के बारे में यह तो नहीं कहूँगा कि वे साधारणता की असाधारण कविताएँ हैं पर इतना ज़रूर कहूँगा कि वे साधारणता की अच्छी और आवश्यक कविताएँ लिखते हैं। यहाँ प्रस्तुत की गयी उनकी कविताएँ और उनकी जो कविताएँ पहले पढ़-सुन चुका हूँ, उसके आधार पर यह बात कह रहा हूँ। जिस तरह उनकी कविताओं के विषय साधारण हैं उसी प्रकार कविता को लिख ही देने के उनके प्रयास भी साधारण हैं और इसी साधारणता में एक जादू है जो खींचता है, एक चुम्बक है जो चिपका लेता है, एक आकर्षण है जो आकर्षित करता है। उनकी कवितओं में कविता लिख देने का कहीं संघर्ष नहीं है, बिम्ब-प्रतीकों के प्रयोग को लेकर कहीं सायासता नहीं है, बस जो कुछ भी है, सहज-सरल रूप में रच दिया गया है। यह सहजता और साधारणता का जादू बना रहे, यही दुआ है।
Hargovind maithili मुकेश कुमार जी की सुन्दर कवितायें ।पाइथोगोरस प्रमेय कविता अच्छी लगी ।बधाई मुकेश कुमार जी व प्रवेश जी का आभार ।
Alaknanda sane Taai पहली कविता छोडकर सभी पसंद आईं । सुट्टे का अंतिम कश बेहतरीन है । पायथागोरस भी अच्छी है । ताजी हवा का झोंका ।
Mani mohan mehata ji मुकेश भाई की कविताओं में एक ताजगी दिखी ।शेष वक्तव्य भाई मोहन नागर जी का जस का तस , कवि को बधाई ।
Sudhir desh paande प्रवेश का आजमुकेश कुमार सिन्हा की कविताओं को प्रस्तुत करने का अंदाज ईर्ष्या भर गया।
रश्क करने लायक मनोज की कविताएं भी हैं। विषय विषयवस्तु अंदाजे बयां अलहदा है। प्रस्तोता और कवि दोनों को बधाई।
इस पोस्ट के लिए दिल से शुक्रिया !
ReplyDeleteशुक्रिया सकीबा/प्रवेश और ब्रज सर का ......आप सबने मुझ जैसे औसत कवि का दिन बना दिया, दिल से खुश हूँ ...........!!
thanks Mukesh
Deleteकुछ कमेंट्स रह गए हैं, हो सके तो उन्हें भी एडिट कर के डाल दें.......
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी कविताएँ, कविताओं में विज्ञान और गणित के शब्दों का जीवन के सार्थक संदेशों के साथ फ्यूजन बेमिसाल हैं, पिता कविता मुझे संवेदनाओं से भर गया
ReplyDeletedhanywaad Anil kumar singh ji
Deleteसबसे अलग बहुत ही साधारण और रोजमर्रा की चीजों या विषयों पर असाधारण रचनाएँ
ReplyDeleteसबसे अलग बहुत ही साधारण और रोजमर्रा की चीजों या विषयों पर असाधारण रचनाएँ
ReplyDeleteDaisy Jaiswal ji dhanywaad aapka
Deleteमुकेश जी की सारी कविताएँ बहुत कोमल और संवाद करती हुई है ..हमेशा से इनकी कविताओं की प्रशंसक रही हूँ, इनके कविता को बयान करने का अंदाज अनोखा है.. सभी कवितायें अच्छी हैं ...
ReplyDeletedhanywaad Abha khare ji
Delete