व्यक्तित्व और कवित्व; डॉ मीरा चंद्रा
कंचन जायसवाल
क्या कहूं, दुख से कातर हूं. डॉ मीरा चंद्रा नहीं रहीं. 8 मार्च 2020 को उन्होंने इस नश्वर देह को त्याग दिया. वह हम सब को रोता बिलखता छोड़कर अनंत की यात्रा में लीन हो गईं. मीरा दीदी हम सबकी प्यारी थीं. वे बीमारियों से जूझ रही थीं फिर भी लिखने और रचने के प्रति उनकी जिजीविषा अप्रतिम थी .अपनी आखिरी बातचीत में उन्होंने मुझसे फोन पर कहा था “कंचन ,जल्दी से ठीक हो जाऊं फिर कुछ नया रचती हूं .मीरा दीदी की इच्छा अधूरी रह गई और काल के क्रूर हाथों ने उन्हें हमसे छीन लिया. गुलजार साहित्य समिति की वह अद्भुत सदस्य थीं.अपनी सौम्यता, विद्वता और मिलनसारिता के लिए वे हमेशा हमारे दिलों में रहेंगी .उनकी तीन किताबें; जिसमें कविता संग्रह- बूंद बूंद हो गए समुद्र तुम , कहानी संग्रह -कितनी गिरहें और निबंध संग्रह- सृजन के सरोकार और स्त्री साहित्य को उनकी अप्रतिम देन है.
अहर्निश चलती धौंकनी जब कभी थक जाएगी -काव्य- समीक्षा
बूंद- बूंद हो गए समुद्र तुम डॉ मीरा चंद्रा जी का यह पहला कविता संग्रह है मीरा जी अपनी भावनाओं को लेकर कविता संग्रह को साकार किया है .आरंभिक कविता अक्षर -अक्षर, शब्द, अभिव्यक्ति की चाह, में वे अपनी भावनाओं को शब्दों के रूप में ढालने में प्रयासरत हैं. शब्द कैसे कविता बन संवर जाते हैं परंतु इन्हीं शब्दों के अनावश्यक उद्वेलन से शोर भी पैदा होता है ;इसलिए वह शब्दों के सावधान प्रयोग पर बल देती हैं. स्मृतियां जीवन का स्थाई भाव हैं और अनुभव जीवन की प्रयोगशाला का वह रसायन है जो जीवन को माजता है .काल खंडों में बंटा, जीवन का बंजारापन ,तनी रीढ़ को भी अनुभव के पैने पन से खुरच जाता है ;यह काव्य पंक्तियां जीवन के यथार्थ से अवगत कराता है. मीरा जी कहती है ,शब्दों का खिलवाड़ भर नहीं ,जीवन के प्रति आदमी का प्यार है कविता .मीरा जी अपनी कविता बंद मुट्ठी बचपन की में अपने बचपन और बाल सखा जारा को याद करती हैं .वह कहती है- खा कर चोरी से एक दूजे का जूठा, प्यार और तकरार से कसती है दोस्ती |
दोस्ती में दो अलग धर्मों का दखल है जिस पर बचपन की मासूमियत हावी है .पर धर्म जो समाज को बांट रहा है वर्तमान समय में समाज का चेहरा बदलता जा रहा है और नफरत अपने पांव पसारने लगी है. मीरा जी धर्म के इस दखल पर चिंता जताती हैं .बरसात और बचपन कविता में मीरा जी एक बार फिर से अपने बचपन की नैया में सवार हो जाती हैं|
जीवन जो शाश्वत है उस ओर मीरा जी बार-बार लौटती हैं|अहर्निश चलती धौंकनी जब कभी थक जाएगी, कौन जाने वह घड़ी क्या छीन कर ले जाएग |मेरा -मेरा क्या है मेरा ,जीवन तो है भ्रम का घेरा|मीरा जी कहतीं हैं समाज में आज आदमी सामाजिकता से दूर होता जा रहा है और अपने अकेलेपन में सिमटता जा रहा है .मीरा जी कहती हैं ;अनचाहों की भीड़ में आदमी अकेला. व्यक्ति आज आजादी की छटपटाहट लिए जी रहा है. वह तमाम वर्जनाओं को तोड़ देना चाहता है. पर ऐसा कहां संभव है. बस किसी एक पल में उसे जरा सा सुख भर मिल पाता है .’अपना वजूद ‘कविता इसी आशय को व्यक्त करती है. गरीबी ,भूख ,विवशता व्यक्ति को अपनी तकदीर का कैदी बना देती है .दो मुट्ठी दाने -कविता समाज में गरीब वर्ग की रसोई की तस्वीर खींचती है .और मौत आती है- कविता व्यक्ति की व्यक्ति के भीतर जीवन के प्रति अनंत लालसा को दिखाती है. मजदूर -कविता में मजदूरों के मार्मिक जीवन का बयान है ;जिसमें वह अपनी भूख से विवश होकर केवल यंत्र की भांति काम करता जाता है |
.नई सदी की भाग्यविधाता, नववधू, घुंघट में गोरी,औ दुल्हन कविताओं में नारी के विविध रूपों का चित्रण है .मोहभंग -कविता स्त्री के स्वभावजन्य कोमलता, स्निग्धता और सौंदर्य का वर्णन करती है .पर यही सौंदर्य जब भाग्य से टकराता है तो आहत हो क्षत-विक्षत हो जाता है. कविता बूंद -बूंद हो गए समुद्र तुम- कवियत्री की मार्मिक संवेदना का दस्तावेज है .जिसकी काव्य पंक्तियां हैं ;,बूंद-बूंद हो गए समुद्र तुम ,प्यार के उजास से ,कोण-कोण तप गया है, दुख के प्रहार से |
समाज के बदलते हुए चेहरे का रंग है ‘बेचारा ‘कविता में; जिसमें मनुष्य के भीतर स्वार्थपरता की भक्ति भावना पर चिंता व्यक्त की गई है.तस्वीर -कविता नन्हे बालक के माधुर्य का वर्णन करती है .पंखुड़ी गुलाब की -कविता में नवजन्मे शिशु का सौंदर्य ,उसकी मासूम स्पर्श और उसके इस जग में आगमन की खुशियां हैं .पंछी अकेला, हवा, जाड़े की खिली धूप -कविता प्रकृति से संवाद करती है .सपनों के छंद ,डगर प्यार की ,सुधियां, बंधन कविताएं कवि के संवेदनशील हृदय की भाषा बोलती हैं|
कंठ से निकला मधुर ,जब नेह में भीगा हुआ स्वर, तब बना इस उम्र भर का प्यार... एक निस्वार्थ बंधन.
इस कविता संग्रह में क्षणिकाएं वक्त ,जीवन विहान ,स्पंदन, घर, जिंदगी ,कवि के कोमल मन की तस्वीरें हैं. जिनके भीतर कवि स्वयं कैद है.
इस कविता संग्रह में तीन ग़ज़लें भी हैं ,जो ‘गौहर’उपनाम से कवियत्री के द्वारा लिखी गई हैं कुछ गजल की पंक्तियां इस प्रकार है –
‘मोहब्बत की इन सख्त राहों में ‘गौहर’
मुकद्दर को हम आजमाने चलें हैं ‘.
‘आरजुओं की हद गर जान जाइए
जुस्तजू- ए -मंजिल सरेराह पाइए ‘.
‘फासला उम्र गर न भर पाए
दोस्त दुश्मन ही सही चलने दो .
कुल मिलाकर मीरा चंद्र जी का कविता संग्रह एक पठनीय संकलन है.
कंचन जयसवाल
परिचय
डा०मीरा चंद्रा
जन्म 14सितंबर1954 गाजीपुर उ०प्र०
प्रकाशित पुस्तक-नागार्जुन का कथा साहित्य(आलोचना)
कितनी गिरहें(कहानी संग्रह)
बूंद बूंद होगए समुद्र तुम(कविता संग्रह)
सृजन के सरोकार और स्त्री(आलोचना)
सम्मान-हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, इलाहाबाद का प्रज्ञा भारती सम्मान2006
मीरा चंद्रा की कविताएँ यहाँ पढ़े
कंचन जायसवाल
कंचन जायसवाल |
क्या कहूं, दुख से कातर हूं. डॉ मीरा चंद्रा नहीं रहीं. 8 मार्च 2020 को उन्होंने इस नश्वर देह को त्याग दिया. वह हम सब को रोता बिलखता छोड़कर अनंत की यात्रा में लीन हो गईं. मीरा दीदी हम सबकी प्यारी थीं. वे बीमारियों से जूझ रही थीं फिर भी लिखने और रचने के प्रति उनकी जिजीविषा अप्रतिम थी .अपनी आखिरी बातचीत में उन्होंने मुझसे फोन पर कहा था “कंचन ,जल्दी से ठीक हो जाऊं फिर कुछ नया रचती हूं .मीरा दीदी की इच्छा अधूरी रह गई और काल के क्रूर हाथों ने उन्हें हमसे छीन लिया. गुलजार साहित्य समिति की वह अद्भुत सदस्य थीं.अपनी सौम्यता, विद्वता और मिलनसारिता के लिए वे हमेशा हमारे दिलों में रहेंगी .उनकी तीन किताबें; जिसमें कविता संग्रह- बूंद बूंद हो गए समुद्र तुम , कहानी संग्रह -कितनी गिरहें और निबंध संग्रह- सृजन के सरोकार और स्त्री साहित्य को उनकी अप्रतिम देन है.
अहर्निश चलती धौंकनी जब कभी थक जाएगी -काव्य- समीक्षा
बूंद- बूंद हो गए समुद्र तुम डॉ मीरा चंद्रा जी का यह पहला कविता संग्रह है मीरा जी अपनी भावनाओं को लेकर कविता संग्रह को साकार किया है .आरंभिक कविता अक्षर -अक्षर, शब्द, अभिव्यक्ति की चाह, में वे अपनी भावनाओं को शब्दों के रूप में ढालने में प्रयासरत हैं. शब्द कैसे कविता बन संवर जाते हैं परंतु इन्हीं शब्दों के अनावश्यक उद्वेलन से शोर भी पैदा होता है ;इसलिए वह शब्दों के सावधान प्रयोग पर बल देती हैं. स्मृतियां जीवन का स्थाई भाव हैं और अनुभव जीवन की प्रयोगशाला का वह रसायन है जो जीवन को माजता है .काल खंडों में बंटा, जीवन का बंजारापन ,तनी रीढ़ को भी अनुभव के पैने पन से खुरच जाता है ;यह काव्य पंक्तियां जीवन के यथार्थ से अवगत कराता है. मीरा जी कहती है ,शब्दों का खिलवाड़ भर नहीं ,जीवन के प्रति आदमी का प्यार है कविता .मीरा जी अपनी कविता बंद मुट्ठी बचपन की में अपने बचपन और बाल सखा जारा को याद करती हैं .वह कहती है- खा कर चोरी से एक दूजे का जूठा, प्यार और तकरार से कसती है दोस्ती |
दोस्ती में दो अलग धर्मों का दखल है जिस पर बचपन की मासूमियत हावी है .पर धर्म जो समाज को बांट रहा है वर्तमान समय में समाज का चेहरा बदलता जा रहा है और नफरत अपने पांव पसारने लगी है. मीरा जी धर्म के इस दखल पर चिंता जताती हैं .बरसात और बचपन कविता में मीरा जी एक बार फिर से अपने बचपन की नैया में सवार हो जाती हैं|
जीवन जो शाश्वत है उस ओर मीरा जी बार-बार लौटती हैं|अहर्निश चलती धौंकनी जब कभी थक जाएगी, कौन जाने वह घड़ी क्या छीन कर ले जाएग |मेरा -मेरा क्या है मेरा ,जीवन तो है भ्रम का घेरा|मीरा जी कहतीं हैं समाज में आज आदमी सामाजिकता से दूर होता जा रहा है और अपने अकेलेपन में सिमटता जा रहा है .मीरा जी कहती हैं ;अनचाहों की भीड़ में आदमी अकेला. व्यक्ति आज आजादी की छटपटाहट लिए जी रहा है. वह तमाम वर्जनाओं को तोड़ देना चाहता है. पर ऐसा कहां संभव है. बस किसी एक पल में उसे जरा सा सुख भर मिल पाता है .’अपना वजूद ‘कविता इसी आशय को व्यक्त करती है. गरीबी ,भूख ,विवशता व्यक्ति को अपनी तकदीर का कैदी बना देती है .दो मुट्ठी दाने -कविता समाज में गरीब वर्ग की रसोई की तस्वीर खींचती है .और मौत आती है- कविता व्यक्ति की व्यक्ति के भीतर जीवन के प्रति अनंत लालसा को दिखाती है. मजदूर -कविता में मजदूरों के मार्मिक जीवन का बयान है ;जिसमें वह अपनी भूख से विवश होकर केवल यंत्र की भांति काम करता जाता है |
.नई सदी की भाग्यविधाता, नववधू, घुंघट में गोरी,औ दुल्हन कविताओं में नारी के विविध रूपों का चित्रण है .मोहभंग -कविता स्त्री के स्वभावजन्य कोमलता, स्निग्धता और सौंदर्य का वर्णन करती है .पर यही सौंदर्य जब भाग्य से टकराता है तो आहत हो क्षत-विक्षत हो जाता है. कविता बूंद -बूंद हो गए समुद्र तुम- कवियत्री की मार्मिक संवेदना का दस्तावेज है .जिसकी काव्य पंक्तियां हैं ;,बूंद-बूंद हो गए समुद्र तुम ,प्यार के उजास से ,कोण-कोण तप गया है, दुख के प्रहार से |
समाज के बदलते हुए चेहरे का रंग है ‘बेचारा ‘कविता में; जिसमें मनुष्य के भीतर स्वार्थपरता की भक्ति भावना पर चिंता व्यक्त की गई है.तस्वीर -कविता नन्हे बालक के माधुर्य का वर्णन करती है .पंखुड़ी गुलाब की -कविता में नवजन्मे शिशु का सौंदर्य ,उसकी मासूम स्पर्श और उसके इस जग में आगमन की खुशियां हैं .पंछी अकेला, हवा, जाड़े की खिली धूप -कविता प्रकृति से संवाद करती है .सपनों के छंद ,डगर प्यार की ,सुधियां, बंधन कविताएं कवि के संवेदनशील हृदय की भाषा बोलती हैं|
कंठ से निकला मधुर ,जब नेह में भीगा हुआ स्वर, तब बना इस उम्र भर का प्यार... एक निस्वार्थ बंधन.
इस कविता संग्रह में क्षणिकाएं वक्त ,जीवन विहान ,स्पंदन, घर, जिंदगी ,कवि के कोमल मन की तस्वीरें हैं. जिनके भीतर कवि स्वयं कैद है.
इस कविता संग्रह में तीन ग़ज़लें भी हैं ,जो ‘गौहर’उपनाम से कवियत्री के द्वारा लिखी गई हैं कुछ गजल की पंक्तियां इस प्रकार है –
‘मोहब्बत की इन सख्त राहों में ‘गौहर’
मुकद्दर को हम आजमाने चलें हैं ‘.
‘आरजुओं की हद गर जान जाइए
जुस्तजू- ए -मंजिल सरेराह पाइए ‘.
‘फासला उम्र गर न भर पाए
दोस्त दुश्मन ही सही चलने दो .
कुल मिलाकर मीरा चंद्र जी का कविता संग्रह एक पठनीय संकलन है.
कंचन जयसवाल
परिचय
डा०मीरा चंद्रा
जन्म 14सितंबर1954 गाजीपुर उ०प्र०
प्रकाशित पुस्तक-नागार्जुन का कथा साहित्य(आलोचना)
कितनी गिरहें(कहानी संग्रह)
बूंद बूंद होगए समुद्र तुम(कविता संग्रह)
सृजन के सरोकार और स्त्री(आलोचना)
सम्मान-हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, इलाहाबाद का प्रज्ञा भारती सम्मान2006
डॉ मीरा चंद्रा |
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