Thursday, September 22, 2022

 साहित्य सम्मेलन,"साहित्य की बात" 17-18 september 2022

साकिबा 






साकीबा रचना धर्मिता का जन मंच है -लीलाधर मंडलोई।


यह कहा श्री लीलाधर मंडलोई 

ने जब वह साहित्यिक संवाद का साझा मंच,साहित्य की बात के आठवें वार्षिक समारोह में श्री घनश्याम मुरारी पुष्प सम्मान प्राप्त कर रहे थे।इस आयोजन की अध्यक्षता पूर्व अपर मुख्य सचिव श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव ने की। वरिष्ठ साहित्यकार श्री त्रिलोक महावर, समाजसेवी श्री अतुल शाह, गायिका एवं जनप्रिय नेता श्रीमती मंजरी जैन, सिरेमिक आर्टिस्ट भारत भवन श्री देवीलाल पाटीदार, रेलवे अधिकारी भोपाल कवि श्री अजय श्रीवास्तव अजेय  एवं साकीबा संचालक ब्रज श्रीवास्तव मंच पर उपस्थित रहे।दो दिवसीय आयोजन में 100 से अधिक साहित्यकारों ने सहभागिता की।इस आयोजन को श्री अविनाश तिवारी एवं दिनेश मिश्र की स्मृति को समर्पित किया गया।


प्रथम दिवस सांँची में बौद्ध स्तूपों का भ्रमण और कविता पाठ कार्यक्रम हुआ।





शाम छः बजे से सम्मेलन के उद्घाटन के मुख्य अतिथि पूर्व आयुक्त कवि और लेखक श्री त्रिलोक महावर थे।

 जमशेदपुर से आए कवि नरेश अग्रवाल, दिल्ली से आए श्री हीरालाल नागर और मधु सक्सेना की मंच पर उपस्थिति, वनिता वाजपेई एवं रेखा दुबे के संचालन में एक रचना पाठ का सत्र हुआ जिसमें अतिथि कवियों, शिवानी जयपुर, राकेश पाठक वाराणसी, प्रवेश सोनी,मधु सक्सेना, अर्चना नायडू, आशीष मोहन, मिथिलेश राय,गोप नवीन शुक्ल,खुदेज़ा खान, नरेश अग्रवाल, अनिता दुबे, सुनीता पाठक,पदमा शर्मा, पंकज राठोड़, शिरीन भावसार,आदि ने रचना पाठ किया। लक्ष्मी बख्शी, संजय जैन एवं मंजरी जैन ने साहित्यिक गीत गाए।

द्वितीय दिवस के पहले सत्र में सरस्वती वंदना -प्रतिष्ठा श्रीवास्तव ने की।इस सत्र में पांच शीर्ष और दस अन्य सम्मान अतिथियों द्वारा प्रदाय किए गए। विदिशा के कवि श्री घनश्याम मुरारी पुष्प की स्मृति में स्थापित पुष्प सम्मान श्री लीलाधर मंडलोई को उनके कविता संग्रह क्या बने बात के लिए,राज बोहरे के उपन्यास आड़ा वक्त के लिए बांके बिहारी लाल श्रीवास्तव उपन्यास सम्मान,श्री नरेश अग्रवाल को श्रीमती कमला देवी पाराशर हिन्दी सेवा सम्मान, श्रीमती वनिता वाजपेई को लक्ष्मण सीताराम भागवत भनिति सम्मान 22, श्रीमती शिवानी जयपुर को श्रीमती सावित्री बाई भागवत कथा सम्मान, श्रीमती अनिता दुबे को प्रस्तर कला के लिए श्री द्वारका प्रसाद सक्सेना कला सम्मान प्रदान किया गया। प्रथम मूलचंद रजक दार्शनिक साहित्य सृजन सम्मान श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव को उनके आध्यात्मिक एवं दार्शनिक साहित्य सृजन के लिए दिया गया। इसके अलावा श्री मती गायत्री देवी अग्रवाल की ओर से तीन सम्मान श्री ब्रज श्रीवास्तव, श्रीमती खुदेज़ा खान और मधु सक्सेना को भी दिये गए।श्री अविनाश तिवारी कृति सम्मान 22 श्री सुधीर देशपांडे को प्रदाय किया गया। नवकृति अभिनंदन सम्मान श्री राकेश पाठक को, प्रवेश सोनी को, श्रीमती सुनीता पाठक को, श्रीमती पदमा शर्मा को एवं श्रीमती अर्चना नायडू को दिया गया।साकीबा हेतु कविता पोस्टर बनाने के लिए श्री आशीष मोहन को भी प्रतीक चिन्ह प्रदाय किया गया।

इस सत्र का संचालन श्री पदमनाभ पाराशर ने किया।






दूसरा सत्र पुस्तक लोकार्पण के नाम रहा।

श्री राजेन्द्र श्रीवास्तव के खंडकाव्य लाक्षागृह, आनंद, पद्मनाभ पाराशर, मिथिलेश राय के कविता संग्रह त्रिपथ का, धरती होती है माँ संकलन का, सुनीता पाठक के कहानी संग्रह कार्नर वाले अंकल ब्रज श्रीवास्तव के कविता संग्रह समय ही ऐसा है का लोकार्पण श्री लीलाधर मंडलोई,श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव एवं श्री त्रिलोक महावर ने किया।सभी कवियों का कविता पाठ हुआ।सत्र का संचालन श्रीमती सुनीता पाठक ने किया।अपने उद्बोधन में श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव ने लाक्षागृह की विशेषता पर प्रकाश डाला एवं साकी बा के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि साहित्य को जन जन तक ऐसे ही मंच पहुंचा सकते हैं। उन्होंने जीवन एस रजक के पिता श्री मूलचंद रजक की भी चर्चा की।

अंतिम सत्र का संचालन किया भोपाल से आए शायर भवेश दिलशाद ने जिसमें कवि शायरों ने एक से बढ़कर एक कविताएं और ग़ज़लें सुनाईं।इस सत्र की अध्यक्षता श्री लीलाधर मंडलोई ने,श्री अशोक मिज़ाज, हीरालाल नागर, शिवरतन यादव और ब्रज श्रीवास्तव ने की। कविता पाठ किया,श्री सुधीर देशपांडे, मौसमी परिहार, कांता राय, रामशरण ताम्रकार, नीलिमा करैया आनंद सौरभ उपाध्याय, सुश्री पद्मा शर्मा, श्री सुदिन श्रीवास्तव,श्री प्रमोद चौहान,श्री अनिल श्रीवास्तव,श्री उदय ढोली,श्री हरगोविंद मैथिल,, लीलाधर मंडलोई, अशोक मिज़ाज, हरगोविंद मैथिल, ब्रज श्रीवास्तव ने किया।इन कविताओं पर टिप्पणी की श्री हीरालाल नागर एवं लीलाधर मंडलोई ने।

साहित्य की बात के ही छायाचित्रकार डाक्टर  नीरज शक्ति निगम के छायाचित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई गई।इन फोटोग्राफ्स पर सभी ने अपनी टिप्पणी और शीर्षक दिये। श्रेष्ठ शीर्षक देने वालों को पुरस्कृत किया गया।इस भव्य दो दिवसीय आयोजन में लगभग दो तीन सौ लोगों ने साहित्यिक कार्यक्रमों का लाभ लिया। आयोजन में श्री लोकेश वाजपेई,श्री देवेश आर्य, विजय श्रीवास्तव ,डा. राजेश बंसल, प्रकाश जोशी, लक्ष्मीकांत कालुस्कर , प्रदीप गवांदे,गोविन्द देवलिया,के.के साहू,संजय जैन, विवेक,वेद प्रकाश शर्मा, अभिलाष,कुंजेश श्रीवास्तव,विकास पचोरी,आदि उपस्थित रहे। आभार व्यक्त किया ब्रज श्रीवास्तव ने।

ब्रज श्रीवास्तव









आभासी दुनिया की विचार यात्रा -साकीबा सम्मेलन


जब से विश्व में सूचना क्रांति का आरम्भ हुआ तब से ही मानव जीवन में एक नवीन दुनिया का आविर्भाव हुआ । इस दुनिया को नाम दिया गया "आभासी दुनिया" । इस आभाषी दुनिया के घर बने फेसबुक , इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप ,ट्विटर इत्यादि अनेक तकनीकी प्लेटफॉर्म। ऐसा माना जाता रहा है कि इस आभासी दुनिया पर समय देना फ़िज़ूल है। यहाँ सब मतलब के मीत हैं जिनका व्यवहारिक दुनिया में कोई साम्य नहीं है। हालांकि इसने भौगोलिक दूरियों की सीमाओं के बंधन को तोड़ा परन्तु इस पर व्यक्तिगत स्नेहसिक्क्त मानवीय सम्बन्धों का सृजन नहीं हो सकता । 


इस धारणा को तोड़ा है साहित्य की बात -साकीबा साहित्यिक समूह ने। कैसे एक सृजनधर्मी विभूति की कल्पना से रची आभासी दुनिया , वास्तविक पारिवारिक दुनिया में बदल सकती है इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है साकीबा का आठवां वार्षिक सम्मेलन जो ऐतिहासिक विदिशा नगरी में आयोजित हुआ। वस्तुतः यह विचार की एक दीर्घ यात्रा है जिसने विदिशा से अपनी यात्रा आरम्भ की , जो भोपाल, ग्वालियर, आगरा, दिल्ली, कानपुर , जमशेदपुर , रायपुर , मुरैना, सिवनी , शहडोल , होशंगाबाद आदि -आदि परस्पर भौगोलिक सीमाओं में बंधे शहरों के बड़े रचनाधर्मियों को अपने साथ प्रेमपाश में जोड़कर विदिशा में आकर एक नई इबारत लिख दी। साहित्य की इबारत , विचार की इबारत , समर्पण की इबारत , प्रेम की इबारत , सम्मान की इबारत और सबसे बढ़कर सृजन साधना की इबारत। 


इस सम्मेलन में कुछ सम्मान दिए गए जिसमें कुछ धनराशि भी थी । पर यक्ष प्रश्न यह है कि साहित्य के जो हस्ताक्षर यहाँ पधारे वो क्या धनराशि और सम्मान के आकर्षण में पधारे। नहीं , कदापि नहीं। चूंकि ये विभूतियां आज जिस जगह पर हैं वह सम्मान और सम्मान राशि से कहीं अधिक परे है। ये महानुभाव यश, वैभव और कीर्ति के उस शिखर पर हैं जहां वे ऋषि अगस्त्य के आमंत्रण को अस्वीकार भी कर सकते हैं तो शबरी के झूंठे बेर भी खा सकते हैं । मेरा ऐसा सोचना है कि साकीबा के सृजनधर्म में ऐसा कुछ यथार्थवादी तत्व होगा , साधना का ऐसा कुछ प्रताप होगा , प्रेम का ऐसा कुछ परिमाण होगा कि साकीबा का मंच इन विभूतियों से समृद्ध हुआ।   





हमें पता है कि हम आतिथ्य के धर्म का पूर्णतः पालन करने में असमर्थ रहे । सुविधाएं उपलब्ध कराने में भी सफल न रहे । कहीं न कहीं कुछ न कुछ कमी अवश्य रही होगी पर आश्चर्य यह किसी के माथे पर कोई शिकन नहीं , कोई शिकायत नहीं अपितु प्रशंसा ही प्रशंसा । यह दृश्य विरला ही देखने को मिलता है। इस आत्मीय भाव के लिए साकीबा परिवार सभी अतिथियों का हार्दिक आभार व्यक्त करता है। 


सबसे अंत में आभार उस सूत्रधार का जिसने नींव को कंगूरे में बदल दिया । ऐसे समर्पित , ऐसे सरल -सहज , ऐसे सृजनशील ऐसे विनीत ऐसे मार्गदर्शक हमारे सबके प्रेरणाश्रोत श्री ब्रज श्रीवास्तव सर का आभार जिन्होंने मुझ जैसे अनगढ़ पत्थर को तराश कर अपने अस्तिव की सार्थकता सिद्ध करने का अप्रतिम अवसर दिया।


पद्मनाभ








"सा की बा"


1-विदिशा चलो 

"साहित्य की बात"  सदस्यों का सम्मेलन

जैसे वर्ष में कोई  ‌प्रिय त्यौहार  जिसकी तैयारी और इन्तज़ार पूरे वर्ष करते रहते हैं कि कब सभी साथियों से मिलना हो‌ तो साहित्य के आंगन‌ में  सोशल मीडिया  के आभासी दुनिया से जन्में जीवन्त अवसर साहित्यकारों के बीच एक और रिश्ते की कड़ी बन जाए जहां वरिष्ठ और युवा साथी एक दूसरे की साहित्यिक क्यारियों में खिले फूलों से नवाजे। जब इस त्यौहार को सितम्बर 17और 18  के दिन मनाया जाना तय हुआ तो सभी उमंग से भर गये थे । मैं पुणे से भोपाल एक सप्ताह पहले ही निकल पड़ी अभी भोपाल  पहुंची भी नहीं थी की मधु सक्सेना जी के फोन‌ ने भरोसा दिलाया की हम सब विदिशा साथ ही जायेंगे और फिर उस दिन 17 सितंबर की सुबह लगभग दस बजे हम निकल पड़े । मधु जी ने हम सभी को  शिवानी और मीना जी  और मुझे  एक साथ लिया।   हम सभी पहली बार एक दूसरे को मिल‌रहे थे परन्तु एक क्षण भी यह एहसास नहीं हुआ लगा  सभी बरसों  पुराने मित्र आज एक साथ हैं। हम सभी एक ही गाड़ी में  चाय,समोसे, जलेबी, पोहे,कचौरी खाते गुनगुनाते बतियाने प्रकृति की बिखरी  हरीहर छटा का आनन्द उठाते  खिलखिलाते सांची पहुंच गये।


 2-खुशनुमा सुबह से बीती दोपहर तक


 चूंकि पहले दिन सभी का यही मिलना तय था। हमारे मित्र  एडमिन ब्रज बिहारी पलकें बिछाए हाथों में नकली फूलों का ही सही पर स्नेह और खुशी की खुशबु से सराबोर गुलदस्ता लिए इन्तज़ार कर रहे थे। मेल मिलाप तस्वीरों के  साथ सभी मित्रों के चेहरे खिले हुए थे। पहली पहली बार ही मिलते हुए गले लगा कर अपने प्यार की प्रगाढ़ता  ने एक दूसरे को स्नेह बंधन से बांध लिया था।

लगभग दो घंटे की सांची यात्रा में सभी ने फोटोग्राफी के साथ भूले बिसरे गीतों के मंजर का लुत्फ़ बाकी सह दर्शको को भी उठाने दिया वहीं

 मैंने कुछ "पत्थर दिल" ढूंढ निकाले तो कुछ सांची स्तूप की तलछटी से खुरचन पत्थर भी अपने ख़जाने  के लिए संग्रहित कर लिए। जहां सखियां गलबहियां करने में  घर भूल गई थी । वहीं सभी भाई लोगों ‌ने अपनी दीदियों  की तस्वीरें खींचने में कोई कदम पीछे नहीं छोड़ा  सांची  के हर कोने घूमते हुए सभी नई दुनिया के खुशनुमा एहसास से भरे थे। वहीं सीमा सिंह ने अपनी प्रतिभा का परिचय हम सभी को सांची का एतिहासिक परिचय करते हुए दिया। हम सभी इसलिए भी  प्रसन्न हुए की गाइड के 700 रू की बचत भी हो गई। घर में ही गाइड ने ऐसा परचम लहराया की सीमा के पीछे पीछे रहने की सब सीमाओं को तोड़ दिया। अब तो हर स्तूप की दीवार  खंडहर  दृश्यों बिखरी मूर्तियों का परिचय सीमा हमें कराती रही । वहीं कुछ कठिन सीडियां चढ़कर हम एक ऐसे मैदान में पहुंच गए जहां बिखरी मूर्तियों, शिल्प ने हमें थाम लिया और एडमिन ब्रज "बिहारी"  के कहने पर हमने नये सदस्यों से उनकी कविताओं ‌को सुना।  काव्य पाठ, सामुहिक फोटो‌, गीतों की गुनगुनाहट और हंसी खुशी के साथ सबने सांची स्तूप के आसपास घूमने का रुख किया।   

दोपहर ढलने के पहले सभी ने मानों एक बोधि वृक्ष तलाश‌ लिया था जहां "साकीबा" के बैनर तले नमकीन,मीठे के अल्पाहार स्वाद से कुछ पेटपूजा और कविताओं से मनपूजा की रस्म अदायगी की गई तो आनन्द से चहुंओर रौनक बिखर गई की राष्ट्रीय पक्षी "मोर "भी  अवलोकन के लिए पधारे यही सबसे सुखद दृश्यों में से एक था। ब्रज बिहारी के साथ  आकाशवाणी के दिनों‌ के युववाणी के दिन याद करते हुए एक कार्यक्रम की झलकी का प्रस्तुतीकरण किया गया। गीतों की गुनगुनाहट में सभी मित्रों के स्वर एक हुए और सभी ने इस क्षणिक विश्राम से नई ऊर्जा का संचार किया। 

अब बारी थी विदिशा की ओर कूच करने की तो अपनी अपनी सवारियों पर बैठ पानी की चुस्कियां लेते हम सभी ने सांची के एतिहासिक प्रांगण से   विदा ली।



  3- चमकीली दोपहर और ढलती दोपहर 


 जैसे ही विदिशा के अभिनंदन गार्डन में पहुंचे तो पहले से मौजूद साथियों ने सभी का स्वागत नरेश अग्रवाल जी के साथ अन्य साथियों ने  मुस्कान की 100%  टॉनिक से ऐसा किया की बढ़ती उम्र की सारी थकान‌ गायब थी। अपने अपने निर्धारित कमरों में सामान‌ सहेजकर हम सभी दाल बाटी के आत्मसंतुष्टि सुस्वादु भोजन के स्वाद में रम गये। वहीं मित्र प्रवेश सोनी  अपने साथ कोटा से जो लड्डू लेकर आई थी उसका स्वाद तो स्वाद ग्रंथियों में अभी भी कैद है।

 साथियो‌ं से मेल‌मिलाप भी बदस्तूर ज़ारी रहा। पदमा जी, वनिता जी सभी से उनकी खैर खबर पूछती रही और व्यवस्था  बनाती गई।

 दोपहर ढलने के पहले हम सभी ने अपने अपने कमरों में प्रस्थान किया।

 सभी अपने अपने शहर से घर से बाहर निकल आये थे और आज सखियों और मित्रों के मिलन का त्यौहार था। जहां साहित्य की बात का आंगन  खिलखिला रहा था।  एडमिन मित्र  ब्रज बिहारी बीच बीच में आ कर सभी से निवेदन अनुरोध और अधिकार के साथ बतिया बतियाकर इस कार्यक्रम के आयोजन पर भी पूरी मुस्तैदी से आने वाली छोटी मोटी  उलझनों को सुलझाने में भी लगे थे।

  शाम चाय की दरकार हुई और सभी फिर अपने अपने कमरों से निकले ढलते सूरज के मनोहारी दृश्यों के साथ सभी सखियों ने उसका पीछा अपने अपने अंदाज से किया। किसी ने बांहों में तो किसी ने हथेलियों में ढलते सूरज को थामने की कोशिश की तभी गुलाबी परियों का का नृत्य मनमोहक हुआ शिवानी, प्रवेश और मधु जी ने एक ही रंग में रंगकर पूरे माहौल  को और गुलाबी  किया। सभी अपने अपने सुन्दर परिधान में सजे हुए थे। सामुहिक तस्वीर खींची गई और चाय बिस्किट के दौर चलने लगे।

बाहर सूरज ने हमसे विदा ली और हम सभी मित्र अन्दर जगमग करते हॉल में प्रवेश कर दिए। जहां मंच के दोनों दीवारों पर अथक प्रयासों से बने सभी सम्मानित होने वाले साथियों के पोस्टर देख सभी प्रसन्नता से गदगद हो उठे।

 मित्र ब्रज बिहारी एडमिन के माइक संभालते ही सभी उद्घाटन समारोह में शामिल हो गये। सामने‌

 वरिष्ठ साहित्यकार  हीरालाल नागर जी, त्रिलोक महावर जी, नरेश अग्रवाल जी, स्मिता तिवारी, मधु सक्सेना,वनिता वाजपेई , ब्रज श्रीवास्तव रेखा दुबे  से जगमग होता मंच था और देश के हर कोने से पधारे साथियों के गर्मजोशी से स्वागत के बाद उद्घाटन समारोह में कविता पाठ,संस्मरण, गीतों ग़ज़ल,व्यक्तव्यों के साथ सभी ने मंच साझा किया। तालियां बजती रही और सभी की उपस्थिति ने  विविध लेखन को सुना और एक दूसरे के लिखे को सराहा। वहीं सुखद प्रकृति और जीवन से जुड़ी  सुन्दर तस्वीरों की प्रदर्शनी भी नयनसुख के लिए तैयार थी । नीरज शक्ति निगम  जी की खींची गई तस्वीरें अपने रंग और भाव से बोलती तस्वीरें थी जहां हम कविता कहानी और विचार तलाश सकते थे और उसी को ध्यान रखते हुए वहां रखी कलम उठाकर हमें  अपने दो  शब्द से चित्रों की व्याख्या करनी थी।जो बेहद रोचक और सार्थक प्रयास था। 




वरिष्ठ लेखिका नीलिमा  करैया जी की उपस्थिति ने माहौल को और अधिक गरिमापूर्ण बना दिया तो मंजरी जी के स्वरों ने माधुर्य रस का संचार कर सभी को आनन्द के रस में भिगो दिया। सभी ने मुस्कुराते खुश‌दिल से "साकीबा "के इस उद्घाटन समारोह सत्र का भरपूर आनंद उठाते हुए स्वागत किया । रात चुपके से रात्रि के दूसरे प्रहर में प्रवेश कर रही थी। खुशी में भूख गायब थी मगर रात्रि का भोजन‌ अपने सिंहासन पर हल्की लौ पर विराजमान होकर हमें अपनी खुशबु से मन लुभा रहा था लगा धीमी धीमी खुशबु आवाज़ लगा लगाकर बुला रही है कि आइए आइए  अब शब्दों के बाद पेटपूजा को भी अवसर दिया जाए।  मित्र ब्रज सभी से विनम्र आग्रह करते हुए भोजन‌ ग्रहण  करने के लिए बुलाते रहे। विदिशा के कई और गणमान्य सदस्यों की उपस्थिति ने पूरे हॉल में साहित्यिक शादी के समारोह समान‌ रंग भर दिया था। मानों साहित्यकारों के लिए आज  का दिन‌  अपनी पाली पोसी  सहेजी संभाली  कविता कहानी शब्दों के संसार को जनसाधारण को सौंपने का उत्सव है।

सुस्वादु  रात्रि भोजन में घर की मिठास और नमक  दोनों की मौजूदगी ने छककर खाने के स्वाद से आत्मतृप्ति दी। इसी सुख के साथ सभी ने अपने अपने कमरों की ओर कदम बढ़ा दिए।

यहीं आज 17 सितंबर 2022 के साकीबा का उद्घाटन समारोह सत्र पूरा होते ही  दूसरे दिन के लिए शंखनाद कर दिया।


4- रात के हमसफ़र और कमरों के टूटे ताले 


अभी दिनभर की दौड़ धूप हंसी खुशी ने रात्रि के भोजन के बाद  विश्राम लेने का सोचा ही था कि  पता चला  किसी को कमरे में कुंडी या ताला लगाने का तो किसी को पाश्चात्य शैली का पख़ाना  (टायलेट ) तो किसी को तेज पंखे की तो किसी को एयरकंडीशन की जरूरत है तो किसी को कंबल  चादर, गर्म पानी ,पीने के पानी की जरूरत है । इसी उधेड़बुन में किसी को नींद नहीं थी तो किसी को थकान ने चूर कर दिया था वहीं   दोपहर की धूल गर्मी ने मेरी आंखों पर अपना प्रभाव कुछ ज्यादा डाला और जलन के साथ  खुजली  चलने से " एलर्जी " के कारण आंखें सूजने लगी थी भला हो खुंदेजा खान का जो अपनी आंख की दवाई मेरे‌ लिए छोड़ गई थी।  कमरे में मधु जी पूर्ण विश्राम की अवस्था में आ रही थी प्रवेश असमंजस में थी और कभी अपने  एसी पंखे बंद किये ‌वाले  कमरे से हवाखाने बतियाने हमारे कमरे में अपना डेरा जमा चुकी थी तभी दूसरे कमरों से खिलखिलाते स्वर हमें भी चेतन्य कर रहे थे।सभी सखियां एक दूसरे के कमरों में मनमौजी होकर घूम रही थी  अब कुण्डी या तालों की जरूरत नहीं थी। साथ एक दूसरे को भरोसा भी दे रहे थे कि जरूरत लगे तो एक आवाज़  देना बस हम सब आ जायेंगे।  सभी लगभग एक दूसरे से यही बातें कर रहे थे कि दूसरे दिन की क्या क्या तैयारियां है कल कौन क्या किसी रंग में सजेगा क्या पहनेगा और कल‌ कौन‌ - कौन आ रहा है। मीना जी के भूले बिसरे गीतों के स्वरों की मिठास भी गूंज रही थी अपने दुपट्टे से ठंड को बचाती वो भी इसी इन्तज़ार में थी कि वो  कब नींद के आगोश में जायें।  कवियत्री प्रवेश के रूप में मुझे आज एक कलाकार सखी मिली तो हम कुछ देर अपनी अपनी  कला पर भी बातचीत करते रहे। उधर मधु जी हूं हां करते करते नींद का पल्लू कंबल के साथ ओढ़ चुकी थी इधर मेरी आंखों में दो बूंद दवाई का असर आंखों को शीतल कर रहा था और मैं भी नींद के आंगन में विचरण करने लगी थी । हम दोनों को नींद के आगोश में जाने से प्रवेश ने हमारे कमरे से प्रस्थान किया और अपने कमरे में प्रवेश किया। जाते जाते बोल‌ गई  की दरवाज़े की कुण्डी लगा लो मगर हम दोनों बेखबर सपनों में ही डूब चुके थे जहां कोई चिटकनी या कुण्डी नहीं होती। गहरी नींद ने हमें जकड़ लिया था। 



5- सुबह पौ फूटते ही बुगल बजे

 

   अभी अलसाई सी सुबह हमारे दरवाजे़ पर दस्तक दे ही रही थी की हंसने बतियाने की गूंज ने झट आंखें खोल दी अपने अपने कमरों से हम सब निकल पड़े  देखा हंसी खुशी  की महक किधर से आ रही है तो पाया की कथाकार राजनारायण बोहरे जी और प्रख्यात मूर्तिकार देवीलाल‌ जी जिन्हें हम सभी दादा कहते हैं  भी सामने के कमरे में  सुबह सुबह पहुंच गए हैं और अपने चिरपरिचित अंदाज में हम सभी के साथ  अभिवादन करते हुए बुगुल‌बजा चुके हैं की आज का समारोह कितना गौरवशाली होगा।

सभी एक ही कमरें में इकट्ठा होकर खूब ठहाके लगाते  साहित्यिक बातचीत के दौर को बढ़ाते रहे वहीं चाय की तलब ने  नवगीत रचा "चाय नहीं तो सुरबाला के ...."हंसते हंसाते सभी ने चाय से ही उसका हाल पूछने का इरादा किया और कमरे से बाहर निकल पड़े। अभी अभी  सूरज अभिनंदन गार्डन के  हरे आंगन में उतरा ही था तो हम सभी विटामिन डी की तलाश में अपनी अपनी कुर्सियां लगाने लगे।  तभी चाय की देरी से सभी के मन में   प्रश्न उठे आखिर इतनी देर तो नहीं लगती चाय बनाने में ?पता चला की दूध फट गया है अत: चाय का इंतजार धूप सेंकते विटामिन डी से मन तृप्त किया । जल्दी ही  चाय का दौर शुरू हुआ पद्मा जी ने रसोई घर संभाल‌ लिया था सबकी मन मुताबिक चाय तैयार हो रही थी कम शक्कर से अदरक वाली और फिर चाय बिस्किट का आनंद उठाते हुए गपशप जारी रही।  तभी वरिष्ठ साहित्यकार लीलाधर मंडलोई जी के आगमन‌ से पूरे वातावरण में ऊर्जा का विस्तार हो गया  सभी से बातचीत करते हुए लगभग नौ बजने को थे।  इसी  बीच सभी स्नान करके बेहतरीन गर्मागर्म नाश्ते के लिए पुनः जमावड़ा कर चुके थे । गर्म जलेबी पोहा भजिए चटनी और मिठाई के नाश्ते  से तृप्त हो चुके थे। सजधजकर सभी  अपने अपने कमरों में इन्तज़ार कर रहे थे । वहीं कुछ लोग विदिशा में अपने स्थानीय परिचितों से मिलने चले गये थे।  सभी आमंत्रित साहित्यकार इन्तज़ार कर रहे थे की कार्यक्रम का आरंभ किया जाना चाहिए।  इस बीच  मैंने हाथ से बनाए बुक मार्क सभी सदस्यों को सौंप दिए।   अब  बस विशिष्ट अतिथि का इंतजार किया जा रहा था   सुबह का साढे़ दस बज चुका था समय   दूसरे दिन के सम्मान समारोह  के आरंभ होने का हो चला था।  वरिष्ठ कवि लीलाधर मंडलोई जी की एक कविता को प्रस्तर से प्रस्तुत करने का अवसर मिला तो मंच पर ही पांच दस मिनट में एक छोटी सी कविता को तैयार किया।

कविता थी

  


 टुक दुनिया है  

 टुक ज़िन्दगी है‌                          

 टुक प्यार करो 

 टुक तुम हो टुक मैं हूं 

          -लीलाधर मंडलोई 

          सभी को कविता का प्रस्तर कृति पसंद आया तस्वीरें खींची गई।


6- स बटा चार -साहित्य की बात है साकीबा

 सदभाव‌, समानता, सार्थकता और सम्मान 


  साहित्य प्रेमी वरिष्ठ अधिकारी रहे  श्री मनोज श्रीवास्तव के आगमन से कुछ देर पहले ही एडमिन ब्रज श्रीवास्तव ने सभी गणमान्य उपस्थित सदस्यों का परिचय देकर मंच को रोशन‌‌किया था । तत्पश्चात मां सरस्वती के चरणों में दीप जलाकर आमंत्रित विशिष्ट अतिथियों ने नमन किया और मां को वंदन करते हुए बिटिया प्रतीष्ठा श्रीवास्तव ने भजन प्रस्तुत किया।

  मंच पर एक और रेखा दुबे मधु सक्सेना, सामाजिक कार्यकर्ता मंजरी जी और समाजसेवी अतुल शाह जी मौजूद थे तो बीच में लीलाधर मंडलोई जी,  भूतपूर्व अपर सचिव मनोज श्रीवास्तव जी और अजय श्रीवास्तव जी भी मौजूद थे दूसरी और वरिष्ठ मूर्तिकार  देवीलाल‌ जी ब्रज श्रीवास्तव विनिता जी और सुनीता जी भी मंचासीन थे।

    सम्मान समारोह में पहले परिचय और फिर पुरूस्कार और सम्मान की घोषणा की गई ।  प्रशंसा श्रीवास्तव ने प्रशस्ति पत्रोंका वाचन किया।

  इस दिशा में  पांच शीर्ष और दस अन्य सम्मान प्रदान किए गए।  पहला सम्मान विदिशा के कवि श्री घनश्याम मुरारी पुष्प की स्मृति में स्थापित पुष्प सम्मान श्री लीलाधर मंडलोई को उनके कविता संग्रह "क्या बने बात" के लिए दिया गया। दूसरा सम्मान राज बोहरे के उपन्यास "आड़ा वक्त "के लिए बांके बिहारी लाल श्रीवास्तव उपन्यास सम्मान, दिया गया । जमशेदपुर से पधारे श्री नरेश अग्रवाल जी को श्रीमती कमला देवी पाराशर हिन्दी सेवा सम्मान दिया गया। श्रीमती वनिता वाजपेई को लक्ष्मण सीताराम भागवत भनिति सम्मान 22, और श्रीमती शिवानी जयपुर को श्रीमती सावित्री बाई भागवत कथा सम्मान से सम्मानित किया गया।

  साहित्य पुरूस्कारों की श्रंखला में कला को भी सम्मानित किया गया 

 श्रीमती अनिता दुबे को प्रस्तर कला के लिए श्री द्वारका प्रसाद सक्सेना कला सम्मान प्रदान किया गया। 

 प्रथम मूलचंद रजक दार्शनिक साहित्य सृजन सम्मान श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव को उनके आध्यात्मिक एवं दार्शनिक साहित्य सृजन के लिए दिया गया। इसके साथ ही श्रीमती गायत्री देवी अग्रवाल की ओर से तीन सम्मान श्री ब्रज श्रीवास्तव, श्रीमती खुदेज़ा खान और मधु सक्सेना को भी दिये गए। 

 अन्य सम्मानों में श्री अविनाश तिवारी कृति सम्मान 22 श्री सुधीर देशपांडे को प्रदान किया गया।  नवकृति अभिनंदन सम्मान श्री राकेश पाठक को, प्रवेश सोनी को, श्रीमती सुनीता पाठक को, श्रीमती पदमा शर्मा को एवं श्रीमती अर्चना नायडू को भी दिया गया।

 साकीबा हेतु कविता पोस्टर बनाने के लिए श्री आशीष मोहन को भी प्रतीक चिन्ह प्रदाय किया गया। सभी सदस्यों को साकीबा  और साहित्य की बात लिखे हुए झोले, कलम और पुस्तिका  भी भेंट की गई। जिसमें अपनी किताबें, सामान और सम्मान सभी को सुव्यवस्थित रख सकें।

इस सत्र का संचालन साथी श्री पदमनाभ पाराशर ने किया था।

 सम्मान समारोह में पुस्तक लोकार्पण भी शामिल था। सबसे पहले श्री राजेन्द्र श्रीवास्तव के खंडकाव्य लाक्षागृह,  फिर आनंद, पद्मनाभ पाराशर और मिथिलेश राय के कविता संग्रह त्रिपथ का,धरती होती है माँ संकलन का लोकार्पण हुआ ।

 कहानी कार सुनीता पाठक के कहानी संग्रह "कार्नर वाले अंकल" और ब्रज श्रीवास्तव के कविता संग्रह "समय ही ऐसा है" का लोकार्पण श्री लीलाधर मंडलोई,श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव एवं श्री त्रिलोक महावर जी ने मिलकर किया।






 तालियां बजती रही और अभिनंदन गार्डन का मंच उन‌ तालियों की गड़गड़ाहट के बीच सभी लेखकों लेखिकाओं को खुशियों से समृद्ध कर चला। सभी उपस्थित कवियों का कविता पाठ हुआ।  इस सत्र का संचालन श्रीमती सुनीता पाठक ने किया। अपने उद्बोधन में श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव ने महाभारत के साथ  लाक्षागृह संग्रह  की विशेषता पर प्रकाश डाला एवं साकीबा के सार्थक  साहित्यिक  प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि साहित्य को जन साधारण तक ऐसे ही  साहित्य के मंच  आसानी से पहुंचा सकते हैं। उन्होंने जीवन एस रजक के पिता श्री मूलचंद रजक की संघर्षपूर्ण जीवन से सीख लेने की  भी चर्चा की।

 सभी ने बड़े धैर्यवान होकर और समर्थन‌ के साथ उनकी बात सुनी।

लीलाधर मंडलोई जी, हीरालाल नागर जी, नरेश अग्रवाल जी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। 

लगभग दो बजे थे और सभी  विराम लेकर भोजनावकाश चाहते थे।  सभी ने साथ मिलकर सुस्वादु भोजन करते हुए समय बिताया।

तभी ब्रज जी की माता जी और परिवार से मेल मिलाप भी होता रहा। सभी कार्य सुचारू रूप से चलते रहे। आनंद सौरभ उपाध्याय ,अनिल‌ श्रीवास्तव, पद्मनाभ पाराशर और हरिगोविंद मैथिल‌ ने  सभी व्यवस्थाओं को संभाला हुआ था। जो ब्रज जी की विदिशा के साहित्यिक सैनिक थे।


7-  साकीबा समारोह के अन्तिम मगर‌ मजबूत पायदान ‌


थोड़ी देर के विश्राम के बाद‌ इस समारोह का अंतिम सत्र की शुरुआत हुई अंतिम सत्र के संचालन के लिए  शायर भवेश दिलशाद जो भोपाल से पधारे थे को आमंत्रित किया गया उन्होंने  उपस्थित कवि एवं शायरों को मंच पर आमंत्रित किया  सभी ने एक से बढ़कर एक कविताएं और ग़ज़लें सुनाईं‌‌। इसी बीच कानपुर से आये पंकज जी ने सभी की झोली‌ सुगंध से भर दी थी।  वहां के इत्र की शीशियां सभी के लिए भेंट स्वरूप सौंपी। 

   कुछ रचनाकारों की‌ हास्य व्यंग से भरी रचनाओं ने  ढलती शाम में भी हंसी के फुव्वारे छोड़ दिए।  इस सत्र की अध्यक्षता श्री लीलाधर मंडलोई ने,श्री अशोक मिज़ाज, हीरालाल नागर, शिवरतन यादव और ब्रज श्रीवास्तव ने की। 

मंच पर कविता पाठ करने आये कवि  श्री सुधीर देशपांडे, मौसमी परिहार, कांता राय, रामशरण ताम्रकार, आनंद सौरभ उपाध्याय, सुश्री पद्मा शर्मा, श्री सुदिन श्रीवास्तव,श्री प्रमोद चौहान,श्री अनिल श्रीवास्तव,श्री उदय ढोली,श्री हरगोविंद मैथिल,, लीलाधर मंडलोई, अशोक मिज़ाज, हरगोविंद मैथिल,  नीलिमा करैया जी ने  एक मार्मिक संस्मरण सुनाकर सभी का मन भीतर‌ तक भिगो दिया ।  कवि ब्रज श्रीवास्तव ने भी अपनी धारदार  कविताओं का पाठ किया। इन सभी कवियों की कविताओं पर टिप्पणी श्री हीरालाल नागर एवं  लीलाधर मंडलोई जी  ने की।साकीबा के  छाया चित्रकार डाक्टर  नीरज शक्ति निगम के छायाचित्रों की प्रदर्शनी जो पहले दिन से ही रोचकता बनाए थी के सभी फोटोग्राफ्स पर सभी ने अपनी टिप्पणी और शीर्षक  भी दिये थे‌ । इसीलिए  श्रेष्ठ शीर्षक देने वालों को पुरस्कृत भी  किया गया। सम्मानित साहित्यकारों‌ के समूह के चित्र खींचे गए। सभी तस्वीरें खींचने में  बेहद खुश थे। 

इन‌ दो दिन मंच संचालन रेखा दुबे, विनिता जी सुनीता जी और शीरीन ने सुव्यवस्थित रूचिकर ढंग से किया ।दोपहर में थोड़ी देर के लिए विश्राम करने बीचों बीच  सदस्य आते जाते भी रहे । तभी शीरीन‌ भावसार को मानों नज़र ही लग गई उल्टियां  करती शीरीनकी हालत देख हम सभी चिंतित हो गए थे कोई इलेक्ट्राल तो कोई नींबू पानी पिलाने की कोशिश कर रहा था। मगर‌ शीरीन‌ मस्तमौला सी अपने वापस घर पहुंच जाने के लिए  तैयार थी। मैंने नज़र भी उतार  दी थी तो कुछ देर में ही शीरीन आराम करने लगी थी । चूंकि शिवानी और प्रवेश का घर वापसी का समय हो चुका था तो शाम ढलते ही गले मिलकर उनकी विदाई  ने हम सभी को फिर मिलेंगे का वादा याद दिलाया। मीना जी इन‌ मित्रों से बिछड़ने के कारण बहुत गंभीर हो गई थी जिनके मूड को बदलने के लिए हम सभी मज़ाक करते रहे

इस भव्य दो दिवसीय आयोजन में लगभग दो तीन सौ लोगों ने साहित्यिक कार्यक्रमों का लाभ लिया। आयोजन में श्री लोकेश वाजपेई,श्री देवेश आर्य, विजय श्रीवास्तव ,डा. राजेश बंसल, प्रकाश जोशी, लक्ष्मीकांत कालुस्कर , प्रदीप गवांदे,गोविन्द देवलिया,के.के साहू,संजय जैन, विवेक,वेद प्रकाश शर्मा, अभिलाष,कुंजेश श्रीवास्तव, लक्ष्मीकांत कालुस्कर,विकास पचोरी,आदि उपस्थित रहे।  साकीबा की ओर से एडमिन ब्रज श्रीवास्तव ने आभार व्यक्त किया ।मंच पर पुनः तस्वीर खींची गई तस्वीरें खींचने का दौर चला कभी मंच पर विराजमान हुए तो कभी मंच से उतरकर‌ नीचे खड़े होकर तस्वीरें खींची गई।  समय की सुई पर नज़र‌ गई तो घर वापसी के लिए अपने आप को‌ मनाया गया । 

अपने अपने कमरों से सामान  गाड़ियों में चढ़ाया जाने लगा था मधु जी मीना जी और मुझे भोपाल घर  लेकर जाने का  जिम्मा भावेश दिलशाद  ने उठाया था। सभी से विदा लेकर हम लगभग शाम सात बजे विदिशा से भोपाल के लिए निकल‌ चले थे। 

 

8-‌ यादों के ताज सहित घर वापसी 

 विदिशा से भोपाल पूरे रास्ते सड़कों पर गाय माता अपने कुटुम्ब के साथ विराजमान थी । भावेश बहुत सतर्कता से गाड़ी चलाते रहे 

  हम बहुत से लोग पहली बार ही मिले थे मगर मिलकर सुखद यादें बन गये थे  

 घर लौटते हुए भी हम सभी पुराने गीतों को गुनगुनाते मीठी यादों के सरताज को संभाले थे  और भोपाल कोई रात के लगभग साढ़े आठ बजे पहुंच ही गए। पहले भावेश ने मीना जी को फिर मुझे  सुनिश्चित कर घर तक पहुंचाया । मधु जी ने फ़ोन करके यह सुनिश्चित किया की हम सभी ठीक से घर पहुंच गए हैं। इस तरह साकीबा समारोह के  "विदिशा चलो" की यात्रा का  सुखद अनुभव हुआ।  साहित्यकारों, मित्रों, कलाकारों, ‌वरिष्ठ सुधीजनों, सखियों से मेलमिलाप का दौर यूंही चलता रहे। इसी आशा से हम घर‌‌ पहुंच कर बेहद खुश थे‌।  इस तरह आठवें साकीबा समारोह का समापन‌ हुआ।   धन्यवाद साकीबा    

   अनिता दुबे






 सच हुए सपने 






एक आँख सपना देखती है और वही सपना जब दूसरों की आँखों  में भी पलने लगता तो कुछ  लोग उसी सपने को पूरा करने में लग जाते है ...क्योकि वो सपना उनका हो जाता है ।ऐसे ही एक आँख  के सपने को कई आंखों ने आंज लिया और चल पड़े ।सबल साथ और समुहिक प्रयास ने आखिर सपने को सच बना दिया ।

यही हुआ साहित्य की बात समूह के इन  दो दिवसीय साहित्यक सम्मेलन में ।यूँ इस काम को अंजाम देना आसान नही था पर विदिशा टीम ने कर दिखाया । नमन और दुआ । दूर -दूर से लोग चल पड़े ।मन में प्रेम और उमंग लिए । साहित्य के साथ आत्मीयता के पवित्र कुंड में गोता लगाने । 

17 और18 सितंबर को कार्यक्रम सम्पन्न हुआ ।  सब कार्यक्रम योजनानुसार सम्पन्न हुए । हर मोर्चे पर कोई न कोई खड़ा था खुद ही ।किसी ने नही कहा और काम होता गया ।

भ्रमण  में अतीत से मिले। सांची के न्यारे स्तूप हमारे प्रदेश का गर्व है । अतीत और वर्तमान का मिलन कैमरे में कैद हुआ । हँसी गूंजती रही ... खिलखिलाहट गीत गाती रही ।कविताओं ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई । दूर से आई खुशबू ने मन प्रफुल्लित किया ।  पेट भी संतुष्ट हुआ नमकीन और मीठे  के संग ....पत्थर भी  गुनगुनाने लगे । 

सबके ठहरने की उत्तम व्यवस्था से सभी खुश थे ।कमरों की व्यवस्था के साथ भोजन पानी की उचित व्यवस्था घर जैसा वातावरण पैदा कर रही थी ।साहित्य के साथ कला जुड़ कर अपनी दोस्ती की मिसाल दे रही थी । सभी उम्र के लोग जुड़े । जिनसे सिर्फ सोशल मिडियापर बातें हुईं थी उंन्हे साक्षात देखना ,मिलना, बात करना.….... स्नेहिल वातावरण का विस्तार कर रहा था । कई पुराने मित्र थे ,कुछ नए बने ,कुछ बड़ों ने लाड़ लड़ाया तो कुछ छोटो ने चुहलबाजी  से मोह लिया। उन लेखकों से मिलना अपने आप मे गर्व था जिनसे मिलने की उम्मीद नहीं कर सकते थे हम जैसे लोग ..सम्मान ,विमोचन और काव्य पाठ नियोजित तरीके से सम्पन्न होते गए । संचालकों  ने अपना काम मुस्तेदी से किया ।

सब अभिभूत ,सब खुश ,सब अनोखे प्रेमरस में डुबकियां लगा रहे थे ।

जो नही आ पाए वो संकल्प लेते दिख रहे थे अगले वर्ष आने के लिए। जीवन के एक महत्वपूर्ण समय को भरपूर जिया पर मन नही भरा ...।जाने कौन सी हाला थी नशे में थे सब .....फिर भी यूँही लगता रहा ... और ज़रा सी देदे साक़ी और ज़रासी ।

मन न ही भरे  । ये प्यास बनी रहे ।हम सब बार -बार मिलते रहें यही दुआ ..... 






नाम किसी के नही लिखे ... सबको समेट लिया यादों में ।यूँ भी प्रेम और आत्मीयता के जो गुरू हो उंन्हे नाम की क्या ज़रूरत ?बस मस्त रहना है .... ऊर्जावान रहना है .... इन पलों का विस्तार करना है .... और बेग जमा कर रख लेना है अगले मिलन समारोह के लिए ।

हार्दिक आभार और बहुत सी दुआ ....सब स्वस्थ रहे ......खुश रहें ..। 

  मधु सक्सेना  



साहित्य की बात" यानि साकीबा सम्मेलन 


17, 18सितम्बर (शनिवार,रविवार ) दो दिवसीय भव्य आयोजन  में सांची भ्रमण,वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ साहित्य और लेखन चर्चा का लाभ मिला ।जिनके नाम या नम्बर से अल्प परिचय था उनके रूबरू साथ ने आत्मिक अपनत्व का उपहार  दिया ।ऐसे आयोजनों में स्त्री विमर्श अछूता नहीं रहता है और आज स्त्रियों के लेखन ने और आयोजनों में की गई  सक्रियता ने सिद्ध कर दिया कि अब वह घर ,रसोई की चौहदी से बाहर आ चुकी है । चलते चलते उम्र के पड़ाव ने जो शारीरिक व्याधिया  दी, उन्हे भी साझी कर साथ साथ आगे बढ़ना सीख गई है  । दुखों की पोटली को उन्होंने कांख में दबाकर  खिलखिलाना शुरू कर दिया है ,कोई शिकन अब उनके चेहरे की लकीरों को गहरा नही करती है।मुख्य अतिथि ने भीअपने उद्धबोधन में  इस का समर्थन किया । विदिशा आई सखियों के साथ बात करके ,दो दिन साथ बिता कर मैने यही महसूस किया  ।





शहडोल से आई गोपी शुक्ला,इंदौर की शिरीन ,पुणे से आई अनिता दुबे,जयपुर से आई शिवानी शर्मा,भोपाल से अर्चना नायडू,उनकी सखी सीमा , जगदल पुर से खुदेजा खान , होशंगाबाद  से नीलिमा करैया दीदी ,भोपाल से कांता राय जी ,मौसमी परिहार ,मीना शर्मा ,मधु सक्सेना ,पदमा शर्मा, मुक्ता श्रीवास्तव उनकी दोनों प्यारी प्यारी बेटियां ,स्मिता तिवारी जी ,सुनीता पाठक,रेखा दुबे, बनिता बाजपाई, श्रीमती हीरालाल नागर सभी महिला साथियों ने अपने अपनत्व व्यवहार से खूब मन को मीठा किया ।

प्रथम दिवस 17 सितम्बर शनिवार को विदिशा पहुंचने पर आदरणीय ब्रज श्रीवास्तव जी ,आनंद सौरभ और आशीष मोहन जी मुझे स्टेशन पर लेने आए ।आशीष मोहन जी से यह मेरा पहला परिचय था तो थोड़ा संकोच शामिल रहा बातचीत में ।ब्रज जी रास्ते में मुझे पहुंच गए मित्रों के बारे में जानकारी देते रहे ।अभिनंदन गार्डन जो हमारा गंतव्य स्थल था वहा पहुंचने पर हीरालालजी नागर सपत्नीक मिले ,साथ में शहडोल से आई गोपी मिश्रा और मिथलेश राय जी मिले ।सबके कमरों के दरवाजों पर नाम की पर्ची लगाई हुई थी जिसकी सूचना हमें आने से पहले समूह में मिल चुकी थी कि किसको किसके साथ रहना है। पहला पड़ाव सांची भ्रमण था ।लगभग 10.30 तक हम तैयार होकर सांची के लिए निकल गए ,तब तक बाहर से आने वाले काफी मित्र विदिशा पहुंच चुके थे तो कुछ पहुंचने वाले थे। बौद्ध स्तूपों को देखने के बाद वहीं हरियाली में सुगम संगीत और काव्य पाठ का आनंद लिया । सभी बहुतआनंदित और प्रफुल्लित दिखाई दे रहे थे ।मोबाइल हर पल को क्लिक करने के लिए बैचेन था सबका ।स्मृतियों को ज्यादा से ज्यादा साथ ले जाने की कोशिश में थे सब ।


दोपहर में स्वादिष्ट दाल बाटी चूरमा खाकर,सब कुछ देर के लिए थकावट औढ़ कर  सुस्ताने अपने अपने कमरों में चले गए ।


शाम 5 बजे समारोह का शुभारंभ होना था ।

शिवानी ,मधु और मैरी एक सी ड्रेस सबके लिए चर्चा का विषय बन गई ।सूर्य देव पश्चिम गमन कर रहें थे तो उनकी सुनहरी रश्मियों की आभा हमारी छवियों के साथ कैमरे में कैद होने लगी ,हर पल को उल्लास से जी रहे थे हम सब ।

विधिवत मां सरस्वती वंदना के साथ सत्र का आरंभ हुआ ।बीते बरस में हम विदिशा के दो अजीज मित्रों (अविनाश तिवारी जी ,और दिनेश मिश्रा जी )को खो चुके थे,  Dr मोहन नागर और मुस्तफा खान साकिवा साथी भी काल का ग्रास बन चुके थे ,यह सत्र उन्हे समर्पित करके  परिचय प्रचारऔर काव्य पाठ की और अग्रसर हुए ।

मंचासीन  श्री त्रिलोक महावर जी,हीरालाल जी नागर ,ब्रज श्रीवास्तव जी ,मधु सक्सेना,स्मिता तिवारी  के सानिध्य में कार्यक्रम शुरू हुआ।

 रेखा दुबे और वनिता बाजपाई जी   के संचालन में  आशीष मोहन,मिथलेश राय, राकेश पाठक,राजा अवस्थी जी ,गोपी मिश्रा,शिरीन, मीना शर्मा , खुदेज़ा खान ,अनिता दुबे,शिवानी शर्मा,अर्चना नायडू ....आदि कवि मित्रों ने अपनी प्रस्तुति दी ।

दूसरे दिन  सुबह सुबह राजनारायण बोहरे, सुधीर देशपांडे,देवीलाल जी पाटीदार  और पदमा शर्मा ने आकर अपनी हँसी मजाक से माहौल और खुशनुमा बना दिया ।चाय की देरी ने एक शानदार चर्चा को मुकम्मल किया।

 दिवस 2- हाल में आज  पहले दिन से ज्यादा रौनक थी  ,नए चेहरे ज्यादा थे । यथोचित पुरस्कार और सम्मान पाकर चेहरे मुस्करा रहे थे ।पुस्तकों का विमोचन हुआ ।भोजन उपरांत भावेश दिलशाद के संचालन में कविता,गजल,संस्मरण सुनाए गए ।विदा लेने का समय आ गया था मन उदास भी था तो प्रफुल्लित भी कि कितना कुछ पाया दो दिन में ।समारोह सामाजिकता को बढ़ाते है साथ ही निकट भविष्य में स्मृतियों से ऊर्जित भी करते है ।

यह भले ही साहित्यिक समारोह था लेकिन इसमें अपनत्व के घनत्व ने पारिवारिकता में परिवर्तित कर दिया ।और यह आज के बदलते समय में जहां हर रिश्ता अपना आयाम खो रहा है ,उसमे सकारात्मक उम्मीद का बीज रोपित करता है ।




आयोजकों और प्रबंध समिति का पुनः पुनः आभार ,सब व्यवस्था परफेक्ट रही ।कोई भी फूफाजी नही बना 😀।


सभी को शुभ

प्रवेश सोनी ,कोटा, राजस्थान 








*मेरी विदिशा यात्रा*


साकीबा सदस्य सम्मेलन एवं सम्मान समारोह 2022

विदिशा, मध्य प्रदेश 



पता नहीं कितने लोगों ने हातिमताई को पढ़ा है! पढ़ा हो तो उन्हें पता होगा कि "एक बार देखा है बार-बार देखने की तमन्ना है…" का दर्द किस तरह बेकल करता है। 

विदिशा से लौटने पर मेरा भी यही हाल है कि "एक बार गई हूँ बार-बार जाने की तमन्ना है…" 

हातिमताई ने तो जान गँवा दी थी पर मेरे पास अवसर हैं और मैं अवश्य ही उनका लाभ लेना चाहूँगी।

मध्य प्रदेश का विदिशा जिला भारतवर्ष के प्रमुख प्राचीन नगरों में एक है, जो हिंदू तथा जैन धर्म के समृद्ध केन्द्र के रूप में जाना जाता है। इसी शहर में साहित्य की बात भी उतनी ही संजीदगी के साथ होती है जो कि एक समूह भी है जिसे हम प्यार से 'साकीबा' कहते हैं। विदिशा में वॉट्सएप पर शुरू हुआ ये काफिला कब कारवां बन गया पता ही नहीं चला। न केवल मध्य प्रदेश बल्कि राजस्थान, छत्तीसगढ़ और अन्य प्रदेशों के साहित्यिक मित्रों के जुड़ाव से साकीबा परिवार समृद्ध होता गया। पिछले आठ वर्षों से साकिबा सदस्य सम्मेलन और सम्मान समारोह सफलतापूर्वक आयोजित किया जा रहा है। इसमें सभी सदस्यों द्वारा तन-मन-धन से सहयोग किया जाता है जिसके लिए किसी पर भी कोई दबाव नहीं होता है। आपसी सहयोग और प्रेम की अनूठी मिसाल बन गया है साकिबा समारोह। मेरा सौभाग्य है कि पिछली कई बार चूक जाने के पश्चात इस बार मैं भी इसका हिस्सा बन पाई  और वह अपनापन और ऊर्जा कमा लाई जिसके चर्चे सुनती आई थी।

हालात तो ऐसे थे कि इस बार भी नहीं जाती। पर मेरे सद्य प्रकाशित पहले कहानी संग्रह को 'सावित्री बाई भागवत कथा सम्मान 2022' देने की घोषणा के बाद मेरा कर्तव्य बनता था कि मैं स्वयं उपस्थित रहकर इस सम्मान को ग्रहण करूँ। इतना सब  इसीलिए तो किया जाता है ना कि लोगों को आपस में मिलने जुलने का अवसर मिले! तो फिर इसीलिए मैं इस दो दिवसीय साहित्यिक और आत्मीय समारोह का हिस्सा बनी।

पहले दिन तो दिन भर सभी ने साँची भ्रमण किया और यादें संजोई। शाम को दो दिवसीय समारोह का विधिवत शुभारंभ हुआ। उसके पश्चात रचनापाठ हुआ। अगले दिन सुबह सम्मान समारोह, पुस्तक लोकार्पण समारोह सफलतापूर्वक आयोजित हुआ। फिर रचनापाठ हुआ। 


मुझे महसूस हुआ कि ब्रज श्रीवास्तव जी का अहंकाररहित स्नेहिल व्यवहार उनकी टीम का फेविकोल है जिसके कारण सभी आपस में आश्चर्यजनक रूप से तालमेल बैठाते हुए पूरी मुस्तैदी से व्यवस्थाएं सम्हाले हुए थे। पद्मा जी, वनिता जी,रेखा वशिष्ठ जी, सुनीता पाठक जी,भावेश, आनन्द और पद्मनाभन जी, सभी की कर्तव्यनिष्ठा और समर्पित व्यवहार देखते ही बनता था। मधु सक्सेना दीदी और ब्रज श्रीवास्तव जी और उनके परिवार की देखरेख में उनकी टीम ने इस साहित्यिक अनुष्ठान को पारिवारिक मिलन का रूप दे दिया था। आज के स्वार्थपरक परिदृश्य में ये एक विलक्षणता थी।




वरिष्ठ साहित्यकार और कलाकार इस कार्यक्रम के महत्वपूर्ण हिस्सा थे। कुछ नाम जिनसे हम सभी परिचित हैं , लीलाधर मंडलोई जी,राज नारायण बोहरे जी, सुधीर देशपांडे जी,नरेश अग्रवाल जी, मनोज कुमार श्रीवास्तव जी, त्रिलोक महावर जी, हीरालाल नागर जी,राजा अवस्थी जी, राजेन्द्र श्रीवास्तव जी, राकेश पाठक जी, मिथिलेश जी, भावेश दिलशाद, प्रस्तर कला के लिए सुप्रसिद्ध अनीता दुबे जी, चित्रकार और कवि प्रवेश सोनी जी, अर्चना नायडू जी, वनिता बाजपेई जी,कांता राय जी, खुदेजा खान जी, नीलिमा करैया जी और भी बहुत से प्रबुद्ध जन की उपस्थिति कार्यक्रम में चार चाँद लगा रही थी। शिरीन भावसार और गोपी शुक्ला को भला कैसे न याद करूँ! वो दो दिन मेरी रुम मेट रहीं और रुह तक पहुँचीं।

बिना किसी आडम्बर के ऐसा आयोजन साहित्य जगत में एक अपूर्व मिसाल है। 

मुझे भूलना मत विदिशा, मैं फिर आऊँगी…


शिवानी जयपुर



आपसी प्यार -मोहब्बत का यह तकाजा भी है साकीबा।





सोशल मीडिया में हम प्रतिदिन कुछ न कुछ पढ़ते ही रहते हैं-कविताएं, कहानियां, पुस्तक समीक्षाएं, डायरी-नोट्स, व्यंग्य , हास-परिहास, कला-कीर्तन, फिल्म, दर्शन, आत्म-रचनाएं,गीत-ग़ज़ल, लेख-प्रलेख आदि। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी रचना को पढ़कर आत्म-विस्मित हो उठते हैं। कोई रचना महीनों तक याद रहती है। राजनीति पर बात होती है और समाज नीति पर भी। यह सब सोशल मीडिया के खुले मंच पर होता है। ह्वाट्सएप पर संवाद की यह सांझी दुनिया एक -दूसरे को देखे बगैर बहुत नजदीक खिसक आती है। और हम अपनी रचना से ज्यादा दूसरे की रचना को प्यार करने लगते हैं। 

इस आलोक में सा की बा (साहित्य की बात ) ने एक ऐसा करिश्मा कर दिखाया कि मुग्ध रह जाना पड़ता है। 

पिछले 17-18 सितंबर 2022 को यही हुआ, जब विदिशा में दूर-दूर से आए दो-ढाई सौ नये-पुराने लेखक एक जगह एकत्रित हुए। सबने अपनी रचनात्मकता का खुला प्रदर्शन किया। कुछ लेखकों की नयी प्रकाशित  कृतियों का विमोचन हुआ। इतना ही नहीं कुछ लेखक की नयी-पुरानी कृतियों को पुरस्कार भी दिए गए। कुछ को सम्मानित किया। जो सा की बा के संपर्क में हमेशा से बने रहे , उसके संचालन में सहयोग करते रहे, उनका विशेष ध्यान रखा गया। जिनमें ख्यातिनामा कवि लेखक लीलाधर मंडलोई, त्रिलोक महावर,  कथाकार राजनारायण बोहरे, डाॅ. नरेश अग्रवाल, मनोज कुमार श्रीवास्तव, डाॅ. पद्मा शर्मा, डाॅ. अनिता दुबे, वनिता वाजपेयी, मधु सक्सेना और अन्य (जिनका इस समय नाम नहीं याद आ रहा) आदि प्रमुख है। ऐसे कार्यक्रमों में क्षेत्रीयता का विशेष ख्याल रखा जाता है। लेकिन आश्चर्य तब हुआ जब मेरे उपन्यास 'डेक पर अंधेरा' को सम्मानित करने के लिए मुझे भी बुलाया गया। इसके अलावा बाहर से आए रचनाकारों के रचनात्मकता को समझने, उसके मूल्यांकन करने और फिर उनको साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी भी सौंपी गयी।

मेरा उपन्यास 'डेक पर अंधेरा' भारतीय शांति सेना और श्रीलंका में तमिल टाइगर्स के बीच खूनी संघर्ष की कथा है। किताब घर से जब यह छपकर आया था, तब इसकी काफी चर्चा हुई थी। वरिष्ठ कवि भाई मदन कश्यप ने इसे अपने द्वारा संपादित पत्रिका (  ) में इसे धारावाहिक छापा।  पत्र-पत्रिकाओं में इस पर रेगुलर समीक्षाएं छपीं। भाई पल्लव ने अपनी पत्रिका 'बनास जन' में इसकी विस्तृत समीक्षा  भी छापी  थी। इसकी प्रसंशा प्रख्यात लेखक असग़र वज़ाहत साहब ने भी की थी। सुप्रसिद्ध लेखक व महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व कुलपति विभूतिनारायण राय जी ने इस पर विश्वविद्यालय परिसर में गोष्ठी  करवाई,उस पर चर्चा करवाई।  चर्चा में किताब पर सबसे अच्छी बातचीत उस समय वहां पर तैनात प्रो. सूरज पालीवाल और प्रख्यात कथाकार  दूधनाध सिंह ने की थी। इंदु शर्मा अंतराष्ट्रीय कथा सम्मान इसे मिलते-मिलते रह गया। यह बात मंच से भाई तेजेन्द्र शर्मा ने ही कही थी। 

बहरहाल, सा की बा ने एक बार फिर उपन्यास 'डेक पर अंधेरा' को चर्चा के केंद्र में ला खड़ा किया।

इस पुस्तक की भूमिका लिखने वाले प्रख्यात कवि-लेखक-संपादक-पत्रकार सुधीर सक्सेना कहते हैं कि तुम्हारा उपन्यास हिन्दी में अकेला उपन्यास है जो युद्ध की पृष्ठभूमि पर है, मगर साहित्य की राजनीति बड़ी अलबेली है। चंद आलोचक और कुछ वर्चस्वधारी लेखक ही यह तय कर लेते हैं -पुरस्कार किसे देना है। इस स्थिति में 'सा की बा ' यह की पहल महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय है। इसके लिए इसके अध्यक्ष ब्रज श्रीवास्तव, सचिव मधु सक्सेना, वनिता वाजपेयी आदि बधाई और धन्यवाद के पात्र हैं।

इस कार्यक्रम को सफल बनाने में विदिशा के सुधी गणमान्य और सुरुचिसंपन्न लोगों ने आगे बढ़कर जो कार्या किया उसकी जितनी भी तारीफ़ की जाए, कम है।

इसकी विस्तृत रिपोर्ट का इंतजार करें। फिलवक्त इतना ही।


हीरालाल नागर

20/09/2022









*अखिल भारतीय साकी बा (साहित्य की बात) वार्षिक सदस्य मिलन एवं सम्मान समारोह - 2022*


दो दिवसीय भव्य और अद्भुत कार्यक्रम के प्रथम दिन यानी १७.०९.२०२२ को सभी कवि व साहित्यकार साथी ऐतिहासिक नगरी विदिशा के ऐतिहासिक स्थल साँची भ्रमण में गए। जहाँ सर्वविदित सारीपुत्ता एवम् महामोदगलायन के अस्थि कलश सहेजे गए हैं।






          साँची भ्रमण के बाद विदिशा के भव्य अभिनन्दन गॉर्डन में साहित्यिक काव्यपाठ का मनभावन आयोजन सम्पन्न हुआ जहाँ देशभर से आए विभिन्न कवि व साहित्यकारों ने कविता पाठ किया।

        द्वितीय दिवस कार्यक्रम की अध्यक्षता की डोर सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव व मुख्य अतिथि का भार सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी वरिष्ठ कवि श्री त्रिलोक महावर और सेवानिवृत्त महानिदेशक आकाशवाणी व वरिष्ठ कवि श्री लीलाधर मंडलोई को दिया गया। साथ ही विशिष्ठ अतिथि रेलवे अधिकारी श्री अजय कुमार श्रीवास्तव"अजेय" और भारत भवन भोपाल के लोकप्रिय सिरेमिक कलाकार श्री देवीलाल पाटीदार को बनाया गया। इनके अलावा वरिष्ठ समाज सेवक श्री अतुल शाह और राजनेत्री श्रीमती मंजरी जैन व कवि श्री ब्रज श्रीवास्तव की गरिमामय उपस्तिथि ने मंच को समृद्ध बनाया।

              मंच संचालन का जिम्मा शहर की मीत आवाजें श्रीमती रेखा दुबे और वनिता बाजपेई ने उठाया।

       कार्यक्रम में विभिन्न सम्मान प्रदान किए गए जिनमें एक सम्मान मेरी झोली में भी आया। 

      साहित्य की बात अर्थात साकीबा को एक बगीचा मान लिया जाए तो रंचमात्र भी अतिशयोक्ति नहीं होगी की इस खुशहाल बगीचे के जिम्मेदार माली  ब्रज श्रीवास्तव हैं। उन्हें हर बड़े दरख़्त और नन्हें पौधे की खबर होती है, किसे कब पानी, खाद देना है, कब सहलाना है, कब माटी चढ़ाना है।

                  कवि नरेश अग्रवाल, मधु सक्सेना, पद्मा शर्मा, राज नारायण बोहरे, नीलिमा करैया और त्रिलोक महावर इस साकीबा रूपी बगीचे के वे दरख़्त हैं जो चारों कोनो में संरक्षक की भांति नन्हें पौधों को धूप, बारिश और आँधी से संजोए हुए हैं बचाए हुए हैं। 

          शिवानी जयपुर, शिरीन भावसार, मीना शर्मा, प्रवेश सोनी, अर्चना नायडू, गोपी शुक्ला आदि बेला, चमेली, चंपा की वे शर्मीली लताएँ हैं जो बगीचे की सुंदरता का कारण हैं। राजा जी अवस्थी, मिथलेश रॉय जास्वन और हरसिंगार के अद्भुत वृक्ष हैं जिनकी छटा निराली है। 

आनंद सौरभ उपाध्याय, अनिल श्रीवास्तव व पद्मनाभ पाराशर बगीचे के माली के वे जिम्मेदार साथी व सलाहकार हैं जो सदैव बगीचे को उन्नत बनाने की जुगत लगाए तन-मन-धन से तत्पर खड़े रहते हैं। 

        इस बड़े से, भव्य से, सौंदर्ययुक्त और अद्भुत बगीचे के माली ने मेरे जैसे छोटे कवि अर्थात बेशरम के फूल से भी परहेज नहीं किया बल्कि मेरे बेशरम होने को नकारा और फूल होने को स्वीकार किया। शायद इस लिए की बगीचे के काम भले न आ सकूँ किन्तु बगीचे की बाढ बनाने के काम तो आ ही जाऊँगा। ऐसी अद्भुत सोच के कारण इस बगीचे के माली ने मुझ बेशरम के फूल को भी स्वीकार किया और मुझे यथोचित स्थान दिया, जो माली की दूरदर्शिता का प्रमाण है।

मेरे पिता जी कहा करते हैं .. *"नकारात्मक सोच का व्यक्ति ज्यादा दूर चल नहीं सकता जबकि सकारात्मक व्यक्तित्व इस दुनिया में न रहने के बाद भी अनवरत चलता रहता है किसी के जेहन में, किसी यादों अनथक में हरदम...!"*

शायद यही सकारात्मक पहिया होगा ब्रज जी के मस्तिष्क में जो खींच लाया है इस कारबाँ को इतनी दूर...!

         आतिथ्य, एहसास और अपनेपन ने मानों स्वयं रूप धारण कर लिया था इन दो दिनों में। चमत्कृत करता है विदिशा वासियों का प्रेम, अपनापन और आतिथ्य।

            समर्पित होकर भी हाथ जोड़ सेवा का भाव हर हाथ, हर चेहरे में मुस्कुराहट मानों विदेहराज जनक स्वयं राजा दशरथ से करुण प्रार्थना कर रहे हों। आये थे खाली हाथ फकीरों की माफिक , जब लौटे तो इतना लेकर लौटे कि जहाँ-जहाँ से आए कुछ न कुछ वहाँ भी गिरा आए।

   

     हम सब विदिशा वासियों के ऋणी रहेंगे हमेशा-हमेशा

आशीष मोहन





साहित्यिक संवाद का साझा मंच,साहित्य की बात का आठवां वार्षिक समारोह  विदिशा में आयोजित हुआ।इस आयोजन की अध्यक्षता पूर्व अपर मुख्य सचिव श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव ने की। प्रसार भारती के पूर्व निदेशक श्री लीलाधर मंडलोई,वरिष्ठ साहित्यकार श्री त्रिलोक महावर, समाजसेवी श्री अतुल शाह, गायिका एवं जनप्रिय नेता श्रीमती मंजरी जैन, सिरेमिक आर्टिस्ट भारत भवन श्री देवीलाल पाटीदार, रेलवे अधिकारी भोपाल कवि श्री अजय श्रीवास्तव अजेय  एवं साकीबा संचालक ब्रज श्रीवास्तव मंच पर उपस्थित रहे।





दो दिवसीय इस आयोजन में मुझे नवकृति अभिनंदन सम्मान 2022 में मेरी कृति कॉर्नर वाले अंकल जी के लिए प्राप्त हुआ।

दूसरा सत्र पुस्तक लोकार्पण के नाम रहा।इस सत्र का संचालन आपकी मित्र  सुनीता पाठक ने किया।व्यासपीठ पर मंचासीन मां सरस्वती के मानस पुत्रों के करकमलों से लोकार्पित होकर मेरा बोधि प्रकाशन से प्रकाशित कहानी संग्रह *कॉर्नर वाले अंकल जी* अब आप सभी का स्नेह प्राप्त करने के लिए उपलब्ध है।

साहित्य की बात के ही छाया चित्रकार डाक्टर  नीरज शक्ति निगम द्वारा छायाचित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई गई। अनीता दुबे जी ने अपने प्रस्तर स्नेह से सभी को अविभूत कर दिया।

इस भव्य दो दिवसीय आयोजन में लगभग दो सौ साहित्य अनुरागियों ने साहित्यिक कार्यक्रम के विभिन्न सत्रों का आनंद लिया।सोशल मीडिया पर साहित्य के लिए समर्पित यह समूह स्नेह में बंध कर एक परिवार का स्वरूप ले चुका है।


*सुनीता पाठक*






























 साहित्य सम्मेलन,"साहित्य की बात" 17-18 september 2022 साकिबा  साकीबा रचना धर्मिता का जन मंच है -लीलाधर मंडलोई। यह कहा श्री लीलाधर...

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