Friday, March 17, 2017

‘स्त्री  विमर्श’ शब्द हिन्दी साहित्य के केन्द्र में पर्याप्त रूप से चर्चित रहा है, इसकी अभिव्यक्ति का मूल स्वर नारियों की आत्मनिर्भरता एवं नारी-पुरूष की समानता के आस-पास घूमता हुआ दिखाई देता है  |रचनाओं में नारी स्वर स्व की मुक्ति के लिए मुखर  हुआ है तो कही उनका भोगा हुआ शोषण का सच भी उजागर हुआ |अंजू शर्मा ने अपनी कविताओं में स्त्री के लिए अलग ही आकाश की संरचना की |वो देह की कैद से परे आत्मा की अनंत उड़ान को भाषित करती है |एक अलग ही मुहावरा गढ़ा है स्त्री केन्द्रित रचनाओं का| कुछ अरसे पहले इनकी बेहद चर्चित  चालीस साला औरते  ने फेसबुक पर गज़ब का शौर मचाया था |वुमन्स डे पर वाट्स अप के विश्व मैत्री मंच पर इनकी कविताओं को पढ़ा गया |रचना प्रवेश पर अंजू शर्मा की कविताये सदस्य पाठको की प्रतिक्रियाओं के साथ प्रस्तुत है |



परिचय 
नाम : अंजू शर्मा
पता : 41-A, आनंद नगर,
इंद्रलोक मेट्रो स्टेशन के सामने 
दिल्ली 110035 विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं और ब्लोगस में कवितायें, कहानियां, लेख, रिपोर्ट्स, फिल्म समीक्षा और पुस्तक समीक्षाएं प्रकाशित!    उर्दू, पंजाबी, मराठी, गुजराती, राजस्थानी, उड़िया और नेपाली में कवितायें अनूदित!  कई साझा संकलनों में कवितायें प्रकाशित!  हिंदी समय, कविता कोश आदि अनेक साइट्स पर कवितायेँ प्रकाशित!  

परिकथा में प्रकाशित  कहानी 'आज शाम है बहुत उदास'  पंजाबी और उर्दू में अनूदित हुई!  जनसत्ता में प्रकाशित कहानी 'पत्ता टूटा डाल से' का अनुवाद हो रहा है। कहानी 'गली नंबर दो' का norwich writers centre में अनुवाद लेखकों के लिए अंग्रेजी में अनूदित अंश का शोकेस बुकलेट के तौर पर प्रस्तुतिकरण। 
2014 में कविता-संग्रह "कल्पनाओं से परे  का समय" बोधि प्रकाशन जयपुर  से प्रकाशित!   देश के कई प्रतिष्ठित मंचों सहित आकाशवाणी से कई बार कविता पाठ!  

कविता 'बेटी के लिए' चीन के 'क्वांगचो हिंदी विश्वविद्यालय, क्वांगचो, चीन'  में स्नातक स्तर के पाठकों के लिए पाठ्यक्रम में पढाई जा रही है!
 
पुरस्कार                     

*'इला त्रिवेणी सम्मान 2012' से सम्मानित।
*'राजीव गाँधी एक्सीलेंस अवार्ड 2013' से सम्मानित
*स्त्री शक्ति सम्मान 2014 से सम्मानित
*कविता संग्रह 'कल्पनाओं से परे का समय' के लिए 2015 में 'राजेन्द्र बोहरा कविता पुरस्कार 2014' द्वारा जयपुर में सम्मानित
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 आत्मा 
मैं सिर्फ 
एक देह नहीं हूँ,
देह के पिंजरे में कैद
एक मुक्ति की कामना में लीन
आत्मा हूँ,
नृत्यरत हूँ निरंतर,
बांधे हुए सलीके के घुँघरू,
लौटा सकती हूँ मैं अब देवदूत को भी 
मेरे स्वर्ग की रचना 
मैं खुद करुँगी,

मैं बेअसर हूँ
किसी भी परिवर्तन से,
उम्र के साथ कल
पिंजरा तब्दील हो जायेगा झुर्रियों से भरे एक जर्जर खंडहर में, पर मैं उतार कर, समय की केंचुली, बन जाऊँगी चिर-यौवना, मैं बेअसर हूँ उन बाजुओं में उभरी नसों की आकर्षण से, जो पिंजरे के मोह में बंधी घेरती हैं उसे, मैं अछूती हूँ, श्वांसों के उस स्पंदन से जो सम्मोहित कर मुझे कैद करना चाहता है अपने मोहपाश में, मैंने बांध लिया है चाँद और सूरज को अपने बैंगनी स्कार्फ में, जो अब नियत नहीं करेंगे मेरी दिनचर्या, और आसमान के सिरे खोल दिए हैं मैंने, अब मेरी उड़ान में कोई सीमा की बाधा नहीं है, विचरती हूँ मैं निरंतर ब्रह्माण्ड में ओढ़े हुए मुक्ति का लबादा, क्योंकि नियमों और अपेक्षाओं के आवरण टांग दिए हैं मैंने कल्पवृक्ष पर......
फोन की कांटेक्ट लिस्ट कितना अजीब है न, वह सोच रहा था, हरेक नंबर केवल कुछ अंकों का समूह भर नहीं न ही केवल इसे कहा जा सकता है महज एक संख्या हर फोन नंबर के साथ जुड़ी होती है स्मृतियों की जाने कितनी ही अलग-अलग शक्लें कुछ नम्बरों का अर्थ मिठास है , कुछ घोलते हैं जेहन में कड़वाहट, कुछ स्रोत हैं अंतहीन आत्मीयता के, और कुछ बिन बुलाये अतिथि से अजनबी जाने कब सेव कर लिए गए फोन में जैसे यह नंबर सामने आते ही, मानो बदल जाता है मन का मौसम भीने वसंत में एक मुक्त हंसी की खनखनाहट एक उत्तेजक देह-गंध के साथ रफ्ता-रफ्ता वजूद को घेर लेती है और यह नंबर जिसके सामने आते ही भूलकर सारी आपाधापी वह नन्हें शिशु में बदल जाता है, छुप जाना चाहता है माँ के आंचल में मानों ये अंक नहीं माँ का आशीष हों इस एक नंबर को भूल जाने या डिलीट करने का साहस तो वह शायद ही कभी कर पाए गो कि वह जानता है डिलीट करने से नंबर भर डिलीट होता है स्मृतियाँ नहीं तो ये लिस्ट महज एक लिस्ट नहीं बटनों की एक जुम्बिश या ऊँगली के अग्रभाग का स्पर्श खोल देता है द्वार एक भरी-पूरी दुनिया का जो धीमे-धीमे आन बसी है आपके मोबाइल फ़ोन में ..... *धर्म* जानवर दीन से नावाकिफ़ थे किसी ने सिखाया ही नहीं न भौंकने की कोई बोली हुई न मिमियाने का कोई धर्म कूँकने, चहचहाने, हिनहिनाने तक की भाषा अनजान रही धर्म की पाबंदी से प्रकृति मज़हब नहीं जानती किसी ने बताया ही नहीं चमकते चाँद की शीतलता को कि वह हिन्दू है या मुसलमान सूरज की तपिश ने कभी तवज्जो ही नहीं दी किसी खास धर्म को मचलकर झमाझम बरसती मूसलाधार बारिशें तय नही करना सीखी थीं कि बूंदों पर किस धर्म का हक़ ज्यादा है
मौसम भी बिंदास से चले आते रहे एक के बाद एक बिना जाने कि ये ईद का वक़्त है या ये दिवाली की रुत है या समय है बड़े दिन का न ज़मीन को मालूम था न ही जानता था आसमां कि किस धर्म की वजह से हरिया जाती थी जमीन और भगवा हो जाता था सुनहरा आसमान सनसनाती हवा सब के पसीने से तर जिस्मों को अब भी एक सी तासीर से सहलाती बस जानने लगे थे अभी तक साथ खेलते आये कुछ बच्चे कि वे ख़ुदा के बंदे हैं या भगवान के अनुयायी कि उन्हें याद करनी हैं क़ुरान की आयतें या कण्ठस्थ करने हैं श्लोक और मंत्र कि वे इंसान से बढ़कर अगर कुछ हैं तो हैं एक हिन्दू और दूसरा मुसलमान......





*माएं कभी नहीं मरा करतीं*
जाने कौन सा अमरफल खा
पैदा होती हैं ये माएं
जाने चख लेतीं हैं कहाँ से अमृतकलश से
छलकती बूंदे 
कि माएं अमर हो जाती हैं
उनके लिए भी नहीं, जिनके लिए
माँ और मृत्यु समानार्थी शब्द होते हैं

वे जिन्दा रहती हैं तो प्रेत बनी रहती हैं
और मरती हैं तो सदा के लिए जिन्दा हो जाती हैं
शापती हैं बुरे वक्त को
भिड जाती हैं मृत्यु से
हर तूफान में पतवार हो जाती हैं माएं

जादूगरनी होती हैं माएं
धर लेती हैं कोई भी रूप
पल में उदास धूसर से चटख लाल हो जाती हैं
चुपके से आले में धरकर सारे संताप
बटोरती हैं सन्तान के लिए झोली भर खुशियाँ
पलाश के फूल हो जाती हैं माएं

सहेजती हैं आंसुओं से चुटकी-चुटकी नमक
उँगलियों पर नाख़ून-सी जड़ी
जानती हैं झट से मौसम को बदलने का हुनर
बिछ जाती हैं कुसमय के कदमों में
दुर्दिनों में भी उत्सव हो जाती हैं माएं

जन्म और मृत्यु के सारे रहस्य जानती हैं वे
एक दिन जन्म और मृत्यु की दीवार तोड़
काल की छाती पर पांव धर
कालजयी हो जाती हैं
लौटती हैं बार-बार बिना पुकारे
भूत, वर्तमान और भविष्य की
देहरियों पर अनवरत घूमती
एक दिन कागज पर कविता बन सो जाती हैं माएं.........






चालीस साला औरतें 
इन अलसाई आँखों ने
रात भर जाग कर खरीदे हैं
कुछ बंजारा सपने
सालों से पोस्टपोन की गई
उम्मीदें उफान पर हैं
कि पूरे होने का यही वक्त
तय हुआ होगा शायद

अभी नन्हीं उँगलियों से जरा ढीली ही हुई है
इन हाथों की पकड़
कि थिरक रहे हैं वे कीबोर्ड पर
उड़ाने लगे हैं उमंगों की पतंगे
लिखने लगे हैं बगावतों की नित नई दास्तान,
सँभालो उन्हे कि घी-तेल लगा आँचल
अब बनने को ही है परचम

कंधों को छूने लगी नौनिहालों की लंबाई
और साथ बढ़ने लगा है सुसुप्त उम्मीदों का भी कद
और जिनके जूतों में समाने लगे है नन्हें नन्हें पाँव
वे पाँव नापने को तैयार हैं यथार्थ के धरातल का नया सफर बेफिक्र हैं कलमों में घुलती चाँदी से चश्मे के बदलते नंबर से हार्मोन्स के असंतुलन से अवसाद से अक्सर बदलते मूड से मीनोपाज की आहट के साइड एफेक्ट्स से किसे परवाह है, ये मस्ती, ये बेपरवाही, गवाह है कि बदलने लगी है ख्वाबों की लिपि वे उठा चुकी हैं दबी हँसी से पहरे वे मुक्त हैं अब प्रसूतिगृहों से, मुक्त हैं जागकर कटी नेपी बदलती रातों से, मुक्त हैं पति और बच्चों की व्यस्तताओं की चिंता से, ये जो फैली हुई कमर का घेरा है न ये दरअसल अनुभवों के वलयों का स्थायी पता है और ये आँखों के इर्द गिर्द लकीरों का जाल है वह हिसाब है उन सालों का जो अनाज बन समाते रहे गृहस्थी की चक्की में ये चर्बी नहीं ये सेलुलाइड नहीं ये स्ट्रेच मार्क्स नहीं ये दरअसल छुपी, दमित इच्छाओं की पोटलियाँ हैं जिनकी पदचापें अब नई दुनिया का द्वार ठकठकाने लगीं हैं ये अलमारी के भीतर के चोर-खाने में छुपे प्रेमपत्र हैं जिसकी तहों में असफल प्रेम की आहें हैं ये किसी कोने में चुपके से चखी गई शराब की घूँटें है जिसके कड़वेपन से बँधी हैं कई अकेली रातें, ये उपवास के दिनों का वक्त गिनता सलाद है जिसकी निगाहें सिर्फ अब चाँद नहीं सितारों पर है, ये अंगवस्त्रों की उधड़ी सीवनें हैं जिनके पास कई खामोश किस्से हैं ये भगोने में अंत में बची तरकारी है जिसने मैगी के साथ रतजगा काटा है अपनी पूर्ववर्तियों से ठीक अलग वे नहीं ढूँढ़ती हैं देवालयों में देह की अनसुनी पुकार का समाधान अपनी कामनाओं के ज्वार पर अब वे हँस देती हैं ठठाकर, भूल जाती हैं जिंदगी की आपाधापी कर देती शेयर एक रोमांटिक सा गाना, मशगूल हो जाती हैं लिखने में एक प्रेम कविता, पढ़ पाओ तो पढ़ो उन्हें कि वे औरतें इतनी बार दोहराई गई कहानियाँ हैं कि उनके चेहरों पर लिखा है उनका सारांश भी, उनके प्रोफाइल पिक सा रंगीन न भी हो उनका जीवन तो भी वे भरने को प्रतिबद्ध हैं अपने आभासी जीवन में इंद्रधनुष के सातों रंग, जी हाँ, वे फेसबुक पर मौजूद चालीस साला औरतें हैं... ---अंजू शर्मा

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प्रतिक्रियायें

विजय राठौर 
अंजू शर्मा को पहली बार पढ़ रहा हूँ।बहुत परिपक्व रचनायें हैं।आत्मा में स्त्री की अस्मिता की अच्छी पड़ताल की गई है।बहुत अच्छी भाषा ,शिल्प और कहन की नई शैली पाठक को चमत्कृत करती है।स्त्री की नियति और सामर्थ्य दोनों का शानदार चित्रण।एक दम नये विषय फोन की काँटेक्ट लिस्ट पर नये रिश्तों की खोज अद्भुत है।
धर्म एक नये दृष्टिकोण सुझाती है।इसमें भी कहन की ताजगी है।इनकी कवितायें पाठक पर असर करती है।शिल्प का नयापन और भाषा की बुनावट उन्हें नये कवियों से अलग करती है।
पलाश के फूल हो जाती हैं माएँ
वाह।क्या उपमा है।ऐसी कई नई उपमाओं,प्रतीकों और नये बिंबों की बहुतायत उनकी कविताओं में हैं जो सहसा बाँध लेती हैं पाठकों को।
एक दिन कागज पर कविता बन सो जाती हैं माएँ
वाह अद्भुत।
अंजु शर्मा को पढ़ कर आज का दिन अच्छा गुजरेगा।उन्हें बहुत बहुत बधाई।विश्व मैत्री मंच की जितनी तारीफ की जाय कम है।
विजय राठौर
 ‪+91 96620 95464‬: आत्मा,बेहद प्रभावशाली  कविता ,ऐसा लगा जैसे विशाल समुद्र में से अनगिनत रत्न प्राप्त कर लिये हों.अपेक्षाओं और नियमों को  कल्पवृक्ष पर टाँग कर मुक्त विचरने वाली कवियित्री को मेरा साधुवाद .
धर्म कविता भी बहुत सुन्दरता के साथ अभिव्यक्त की गयी है इन्सानियत के कैनवास पर बडी भावपूर्ण व्यंजना.प्रतिकों और बिंम्बो के माध्यम से बहुत प्रभावशाली ढंग से कविता रूपी चित्र उकेरे हैं.अंजू जी इसके लिए बधाई की पात्र हैं .
सुरेन्द्र कुमार सिंह चांस  आज पटल पर अंजू जी है उनकी कवितायेँ उस एहसास का प्रतिनधत्व कर रही है जिसे हम महसूस करते हैं।हम कल महिला दिवस की बातो से कितना दूर है आज ये दुरी होनी नही चाहिए।यहां जहां हम है आज इन कविताओ में अगर अगर हम इनसे इत्तिफ़ाक रखते है तो हमे यहीं से आगे चलना है आगे चलने का आसय इतना सा है कि इस एहसास के साथ जीना है अपने लिए परिवार के लिए समाज के लिए और पूरी दुनिया के लिए।
बहुत बहुत अंजू  जी
का और धन्यबाद पटल का इस एहसास से हमे रूबरू कराने के लिए।
सुरेन्द्र कुमार सिंह चांस

‪+91 81099 90582‬: बधाई अंजू बेहतरीन कविताओं के लिए।
माँ, आत्मा और धर्म तीनों हमारे जीवन के यथार्थ से जुड़ी रचनाएँ।
आत्मा के रहस्यमयी अस्तित्व को आकार देती रचना आत्मा
जादूगरनी होती हैं माँएँ। तभी तो अपने बच्चों के मन की जानकर फौरन जवाब देती हैं।
सत्य कहा अंजू जो धर्म नहीं जानते वे ही जानवर होते हैं।

डॉ.लता 
 अंजू शर्मा जी कविताओं पर 
1 आत्मा
नारी की आत्मा का मुक्त स्वर मुखर करती कविता 
* मेरे स्वर्ग की रचना मैं खुद करूंगी।
स्वाभिमान के साथ आत्मबल को प्रस्तुत करती पंक्ति।
* उम्र के साथ पिंजरा तब्दील हो जायेगा।
रूढ़ि के बंधन की छटपटाहट दर्शाती पंक्ति।
*आसमान के सिरे खोल दिए हैं मैंने।
स्वयम के बूते अपना अस्तित्व तलाशती नारी ।
2 फोन की कांटेस्ट लिस्ट 
फोन नम्बर बिम्ब बनाते मानस पर तभी तो फोन नंबर देखते ही मुखाकृति लेने लगती है भिन्न आकार सुन्दर अभिव्यक्ति।
 हर फोन नम्बर के साथ जुड़ी होती हैं स्मृतियां।
 नम्बर सामने आते ही बदल जाता है मन का मौसम।
3 धर्म
वास्तविक धर्म से एकाकार करती कविता
* चाँद और सूरज , बूंदों का धर्म निरपेक्ष होना।
सीख है धर्म के नाम पर वैमनस्यता फ़ैलाने वालीं के लिए।
वे इंसानियत से बढकर अगर कुछ हैं तो एक हिन्दू दूसरा मुसलमान।
व्यंग्य है उक्त पंक्तियों में ।
4 माँ कभी मर नहीं करती
* माँ  और मृत्यु में भेद, माँ की कभी मृत्यु नहीं होती। बच्चों की चिंता देह मिटने पर भी उसे मिटने नहीं देती। यही कारण है माँ
* तूफान में पतवार, जादूगरनी है माँ, दुर्दिन में उत्सव माँ,कालजयी है माँ। 
सभी कविताएँ बहुत ही सुंदर, जीवन से ज्यादे सन्देश देती ।
बधाई अंजू जी🌹
डॉ लता
 ‪+91 70326 13786‬: अंजू शर्मा की की कविताएं प्रभवशाली और दिल तक उतरने वाली है ,खास तौर पर धर्म के ऊपर उनकी कविता सच्चाई को आइना दिखाती है,चाँद की शीतलता और बारिश की बूदें कभी इंसानो में फर्क नही करती,,और माँ की जीवटता उन्हें मरने नही देती,,,अच्छी कविताएं ,,,बधाई हो अंजू जी
- ‪+91 94258 43940‬: मैने बाॅध लिया है चाॅद और सूरज को अपने बैगनी स्कार्फ में.....बहुत अच्छी रचना ।इसके अलावा फोन के अंकों संबंधी रचना में छुपी हुई अनुभूतियाॅ और यादें वाह बधाई
- ‪+91 97129 21614‬: सुप्रभात vmm🌄🙏 आज विभिन्न विषयों पर अंजू जी की मुक्त छंद में भी लय में बहती बेहतरीन कवितायेँ और उतना ही अदभुत निदा जी की पंक्ति!
मैं सिर्फ 
एक देह नहीं हूँ,
देह के पिंजरे में कैद
एक मुक्ति की कामना में लीन
आत्मा हूँ, मैं बेअसर हूँ
किसी भी परिवर्तन से..
और आसमान के सिरे खोल
दिए हैं मैंने,
अब मेरी उड़ान में कोई 
सीमा की बाधा नहीं है। अमर्त्य आत्मा की सही परिभाषा।
'फोन की कांटेक्ट लिस्ट' में एक ऐसा विषय छू लिया जो सभी का है। हर फोन नंबर के साथ जुड़ी होती है
स्मृतियों की जाने कितनी ही अलग-अलग शक्लें! कितना सही!
ऊँगली के अग्रभाग का स्पर्श
खोल देता है द्वार 
एक भरी-पूरी दुनिया का
जो धीमे-धीमे 
आन बसी है आपके मोबाइल फ़ोन में .....सही बात बिलकुल सही अंदाज में कही गई।
'धर्म' कविता में समाहित सांप्रदायिक सदभाव के विचार मन मस्तिस्क पर गहरा प्रभाव छोडते हैं। पशु पंखियों का कोई धर्म
नहीं होता।प्रकृति मज़हब नहीं जानती, पर मानव ने
धर्म को इजाद किया कुछ मानव से बढ़कर बन गए हिन्दू या मुसलमान......इस कविता में हर पंक्ति के मध्य एक छुपी पंक्ति है जो पठन के वक्त दिख जाती है। मानव ही एक ऐसा प्राणी है जो प्रकृति के विनाश के साथ अपना विनाश करने पर तुला है।

‪+91 97129 21614‬: 'माँ' समस्त ब्रह्माण्ड को हिला देने वाला एक ही शब्द है।
'वे जिन्दा रहती हैं तो प्रेत बनी रहती हैं
और मरती हैं तो सदा के लिए जिन्दा हो जाती हैं' इस पंक्ति में एक दर्द भी छिपा है कहीं। 
कविता के माध्यम से इतनी सुन्दर मन के भावों को उकेरा है। 💐💐💐💐
Saras Darbaari:
 वाह ...वाह ....वाह ...!... हर कविता जोरदार ..
आत्मा की कितनी सुंदर व्याख्या ...
उम्र के साथ कल
पिंजरा तब्दील हो जायेगा
झुर्रियों से भरे
एक जर्जर खंडहर में,
पर मैं उतार कर,
समय की केंचुली,
बन जाऊँगी 
चिर-यौवना....बेहतरीन ...!
फोन की कांटैक्ट लिस्ट ....गजब की रचना ...!
कितना खूबसूरत खयाल ...!! वाकई हर नंबर के साथ एक स्मृति, एक चेहरा , और कुछ एहसास जुड़े रहते हैं जो अनायास ही वह नंबर देखकर चेहरे पर उभर आते हैं । कितना सुंदर अवलोकन ....!
तो ये लिस्ट महज एक लिस्ट नहीं
बटनों की एक जुम्बिश या
ऊँगली के अग्रभाग का स्पर्श
खोल देता है द्वार 
एक भरी-पूरी दुनिया का
जो धीमे-धीमे 
आन बसी है आपके मोबाइल फ़ोन में .....कितनी प्यारी बात ...!!
एक प्रकृति ही तो है जिसने कभी भेद भाव नहीं किया ....सबको एकसा ...'बाँटा' है ....
और धर्म ने भी  'बाँटा' है ...इंसान को ....मजहबों में ....!
माएँ कभी मारा नहीं करतीं ....एक अल्टिमेट कविता ...माँ पर इतनी सुंदर कविता नहीं पढ़ी 
जादूगरनी होती हैं माएं
धर लेती हैं कोई भी रूप....वाह !
जानती हैं झट से मौसम को बदलने का हुनर....अद्भुत !
एक दिन कागज पर कविता बन सो जाती हैं माएं....जो गुद जाती है दिल पर ...!!!
अंजु जी हम तो आजसे आपके ज़बरदस्त फ़ैन हो गए ....सच ....!
शुक्रिया संतोष दी , अंजु से मिलाने के लिए 

91 94310 94596‬: अंजू शर्मा की कहानियों से पहले वाकिफ हुआ । बाद में कविताओं से । वह कहानी, कविता दोनो विधाओं में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करती हैं। यहां प्रस्तुत तमाम कविताएं अपने कहन के टटकेपन से नये आस्वाद का असर पैदा करती हैं। पहली कविता ' आत्मा' को पढ़ते हुए मेरी आंखों में इजोरा डंकन की नृत्यरत छवि, उसकी मुक्ति की कामना की बेलौस अभिव्यक्ति घूम गई। अगर इस कविता को स्त्री की मुक्ति की कामना में रूपायित करके देखें तो पूरी कविता न सिर्फ खुल जाती है अपने कहन में भी विस्तार पा जाती है। ' और आसमान के सिरे खोल / दिये हैं मैंने / अब मेरी उड़ान में कोई/ सीमा बाधा नहीं है। ' यह आसमान का सिरा खोल लेने , नियमों और अपेक्षाओं के आवरण कल्पवृक्ष पर टांग देने नये संयोजन अद्भुत हैं। दूसरी कविता ' फोन की कांटेक्ट लिस्ट ' अपने विषय की नवीनता और कहन की सघनता से हमारे समय की आधुनिकताबोध को डिपिक्ट करती हे। यह मोबाइल के बहाने हर आधुनिकता पर स्यापा के बजाय ,उसके होने को नई अर्थ छवियों से भरती है। ' धर्म' कविता में धर्म को लेकर किसी यूटोपिया को रचने के बजाय अंजू शर्मा ने कहीं ज्यादा हकीकी बात कही है। यह कविता  प्रकृति के तमाम उपादानो के जरिये धर्म के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़े  करती है और प्रकारांतर से इंसानी फितरत पर गहरे तंज भी करती है। ' माएं कभी नहीं मरा करतीं' भी एक महत्वपूर्ण कविता है। हिन्दी में मां को लेकर बहुत सारी कविताएं लिखी गई हैं। यह कविता अपने कहन की ताजगी से और नये बिंबों से संवेदित करती है, ',सहेजती हैं आंसुओं से चुटकी- चुटकी नमक / उंगलियों पर नाख़ून सी जड़ी।'
इन कविता में जो अंतर्लय है, वह पाठक को बांधती है और सप्रयास की गई कसीदाकारी नहीं होने से इसकी संप्रेषणीयता सहज बन पड़ी है। 
इन बेहतरीन कविताओं के लिए अंजू शर्मा को बधाई । विमैमं को धन्यवाद ।
 - ‪+91 76919 85478‬: सभी को सादर अभिवादन ।  आज पटल पर अंजू शर्मा जी की रचनाएँ पढ़ने का सुअवसर है। ऐसे -ऐसे तो रत्न छिपे हैं हमारे इस मंच में और इनको हमारे समक्ष लाने का श्रेय और साधुवाद हमारी प्रिय संतोष जी को। 
आदरणीया अंजू की सभी रचनाएँ बहुत ही भावप्रवण और सशक्त हैं । माँ, धर्म,  फोन कांटेक्ट लिस्ट,  आत्मा सभी विषयों पर इनकी लेखनी प्रखर और प्रभावी बन पड़ी है। बहुत ही सुंदर बिंबों के साथ सहज प्रवाह सभी कविताओं में परिलक्षित है। आपको बहुत -बहुत बधाई और शुभकामनाएँ ।🙏😊🌹🌹🌹
आदरणीया और प्रिय सखी रत्ना जी का उजास बिखेरता संचालन और मुझे इस बात की उत्सुकता है कि आज कौन सा नवीन शब्द शब्दावली में जोड़़ने वाली हैं हमारी "रत्नावली" ।🌹🌹🌹😊
इस मंच पर इतनी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ना,  अपनी लेखनी को परिमार्जित करने के लिये प्रेरणा देता और उत्साहित करता है।
91 84005 45999‬: आत्मा
एक सुंदर कविता है और ये आत्मा अगर शरीर धारण करे तो वो होगी एक स्त्री।
सचमुच दुनिया की सबसे सुंदर और शक्तिशाली स्त्री।
ऐसा न हो पाने में किसी का दोष नही है ये तो उस पर निर्भर करता है कि उसे देह पसन्द है या नही।अगर पसन्द है तो वो है जिदगी नही पसन्द है तो बस आत्मा और आत्मा बिना देह के कुछ करने की स्थिति में नही है इस दुनिया में।है भी तो बहुत सीमित।
सुरेंद्र कुमार सिंह चांस
- ‪+91 89895 45762‬: पिंजरे में फङफङाते परिंदों की बेचैनी से हमारे इस समय के दुंरगे व्यवहार को उघाङती काव्यचिंताऔ ने महिलाऔ के नाम पर दर्ज इस दिन को सार्थकता ,पदान की.अंजू शर्मा जी को हार्दिक बधाई

91 94222 02645‬: आत्मा- 
"मेरे स्वर्ग की रचना मैं ख़ुद करूँगी"
इन पंक्तियों में स्त्री स्वर्ग की कामना तो कर रही है लेकिन स्वर्ग की संरचना नितांत अपनी रखने की तमन्ना लिये।
उसकी यही ज़िद मुझे भा गयी
जहाँ उसका स्व अनमोल है।
धर्म 
सच में यही आस्थाएँ हमारी भी क्यों नहीं हो सकतीं।
मॉंएं......,
माएँ कालजयी होती हैं। वाह क्या सोच 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻

सतीश कुमार सिंह 
अंजू शर्मा की कविताएं अभी चल रहे स्त्री लेखन से इतर अपनी विशिष्ट मौलिक छवि उकेरने में समर्थ हैं । इन कविताओं की खासियत यह है कि यहाँ शिल्प ,कथ्य और संवेदना को लेकर किसी टेक्निक का सहारा नहीं लिया गया है । जो विचार और भाव गुम्फित हुए हैं उसने कविता के रूप में बाहर आने का रास्ता खुद तलाश लिया है । अच्छी बात यह है कि कहीं पर भी इन कविताओं पर कोई आक्षेप नहीं है बस सहज सरल और तरल विचार भावबोध बनकर रूपायित हो उठा है । आत्मा कविता में भारतीय वांगमय के चिरंतन दर्शन का उद्घोष है और नए मनुष्य की अनुभूति और उसे आत्मिक स्वतंत्रता के साथ समझने का इशारा भी है । फोन की कांटेक्ट लिस्ट के साथ मनुष्य के संबंधो का मनोविज्ञान उसकी सोच के साथ खुलता प्रतीत होता है वहीं धर्म पर जो प्रकृति और पशु पक्षियों के माध्यम से जो बात कही है वह नया नहीं है बल्कि कहने का शिल्प बिल्कुल अलहदा है जो प्रभावित करती हैं । माँ को लेकर सभी भाषा साहित्य में ढेर सारे रूपक हैं । उसमें ममत्व का प्राधान्य है किंतु अंजू शर्मा ने अपने जायों के लिए मृत्यु से भी होड़ लेकर अमरता पद की अधिकारिणी जिस माँ का चित्र इस कविता में खींचा है वह अद्भुत है । संभवतः अंजू शर्मा के काव्य लेखन से मैं भी पहली बार गुजर रहा हूँ । इन दिनों कविता के क्षेत्र में महिला लेखन में रेखा चमोली की रचनाओं से मैं आश्वस्त रहा आज अंजू शर्मा ने भी आश्वस्त किया कि समकालीन कविता में नई कवयित्रियों की एक नई काव्य भूमि हिंदी में तैयार हो रही है । बधाई  अंजू जी । पटल का आभार इन कविताओं से रूबरू कराने के लिए ।
सतीश कुमार सिंह

 ‪+91 98108 38832‬: अंजु शर्माजी की सभी कविताएँ सम्वेदना के धरातल पर गहरा स्पर्श करने वाली और रचाव के स्पर्श पर परिपक्व कवयित्री की रचनाएँ हैं।उनकी पहली कविता पढ़कर ऋग्वेद की ऋषिका वागाम्भृणी की याद आ गई जो महत्वपूर्ण 8 ऋचाएँ रचकर भी चर्चा और उल्लेख के परे है।ये ऋचाएं देवीसूक्त के नाम से प्रचलित हैं।वही प्रखर और ओजपूर्ण स्वर।यह स्वर अब खोए नहीं,यह ज़रूरी है।

 ‪+91 97140 17001‬: 🙏🏻सादर नमन VMM अंजू शर्मा जी की चार कविताओं को मैंने कई बार पढ़ा। बेहद उम्दा कवयित्री है वो यह कहने की जरूरत नहीं। शब्दों का चयन औऱ भावनाओं की अभिव्यक्ति बेहतरीन है। बधाईयाँ औऱ शुभकामनाएं अंजू जी 🙏🏻💐
 ‪+91 97537 48806‬: अंजू शर्मा जी की कविताएँ अनूठी हैं।'आत्मा'स्त्री की अस्मिता को इंगित करती शास्वत सत्य का नाद करती हुई सी।जिसने टाँग दिये नियमों और अपेक्षाओं के आवरण किसी सामान्य वृक्ष पर नहीं अपितु कल्पवृक्ष पर।
फोन की कांटेक्ट लिस्ट एक अभिनव प्रयोग ,कांटेक्ट नंबर मात्र से उपजते मनोभाव ।
धर्म' कहन का अलग अंदाज।
काल जयी माँएं कविता बन सो जाती हैं ।बहुत खूब।
बिम्ब नये टटके पन सहज कथ्य व सरल कहन की प्रवाहमयी प्रभावी कविताओं के लिये, अंजू जी बधाई स्वीकारें।
91 98204 43014‬: अंजू शर्मा  जी आपने सच ही कहा है, कुदरत धर्मनिरपेक्षता सीखाती है। बादल मंदिर पे बरसता है और मस्जिद पर भी गिरता है।पानी इमाम की प्यास बुझाता है और पूजारी की तृष्णा। फूल मुर्तीयों पे चढ़ाये जाते हैं और मज़ारों की शान बढ़ाते हैं।
सभी रचनाएँ दिल को छू गई। 
मेरी शुभकामनाएँ।
Pravesh Soni: मैंने बांध लिया है 
चाँद और सूरज को
अपने बैंगनी स्कार्फ में,
जो अब नियत नहीं करेंगे
मेरी दिनचर्या,......यही तो कविता की ताकत है ,बेचारगी ,दयता से भरी स्त्रियाँ अब नहीं ,कभी नहीं |लाजवाब हु इस कविता को पढ़ कर ......लीक से हटकर अपनी अलग ही आभा से रोशन है यह कविता ...देह के पिंजरे से मुक्त नियमों और अपेक्षाओं के आवरण टांग दिए कल्पवृक्ष पर ....वाह ,यह कविता हौसले का दिव्यास्त्र है |
 फोन की कान्टेक्ट लिस्ट ...सच में एक दुनियां है ,भिन्न भिन्न नम्बरों में ,अलग अलग चेहरों और उनसे जुड़े भाव को सहेजे हुए ...यथार्थ आज का |
धर्म ....बहुत सही लिखा ,कौन बांटता है रंगों को धर्मो में और इंसान को इंसानियत से |इस कविता के भाव को आज  सबको समझने की जरुरत है |एक बात खटकी कि इंसान से बढ़कर अगर कुछ है .......यहाँ इंसान से बढ़कर कुछ होता ही नहीं |हिन्दू और मुसल्मा  इंसान के फितूर ने बनाए है |
माँ की कविता अद्दभूद ,नए बिम्ब सच में माये कभी नहीं मरती ..मरना भी नहीं चाहिए 
अंजू तुम्हारा लेखन लाजवाब कर देता है ...लिखती रहो और खूब सम्मान पाओ ,अनंत शुभकामनाएं 
🌹🌹🌹🌹

- Rupendra raj: अंजू जी की कविताएँ बेबाकी की रचनाएँ हैं,महिला सशक्तता का उदाहरण पहली कविता में प्रखर हो कर मुखर हुआ है।शिल्प में प्रतीकों का समावेश इसे विशेष बना रहा है।
फोन की कल्पना उसके नम्बरों की संख्या में भावनात्मकता का जुड़ाव ,अच्छी रचना अपनी मौलिकता के साथ।
धर्म के प्रारुप कटाक्ष करती रचना विचारों की बोधगम्यता को दर्शाती है।
माऐ कभी नहीं मरा करती सुंदर कालजयी चित्र खींचा है कविता में।
सभी कविताएँ चिरपरिचित विषय पर होते हुए भी कहन की मौलिकता रखती हैं।
मंच को इन कविताओं सुशोभित किया संतोष दी ने ,हर बार रचनाकारों को मंच दिलाने का संकल्प गंभीरता से पूर्ण करती हैं आप।
निदा जी का शेर बेहतरीन।अमर जी की टिप्पणी से इत्तेफ़ाक़ रखतीं हूँ।👍😊

अल्का अग्रवाल  अंजू जी आज अभी आपकी सारी कवितायें पढी 
पढ कर लगा जैसे हर कविता में तुम समायी हो
आत्मा को सुनकर 
आत्मा से परे हो जाना 
और तन मन को एकाकार करती आपकी कविता सीधे हृदय पर अंकित होती प्रतीत लगती है
फोन जो आज परिवार को contact list में सहेजे तो है पर हकीकत में इस फोन की वजह से ही अपने दूर हो रहे हैं 
धर्म सिर्फ इंसान की जायदाद है 
प्रकृति तो परे है इस धर्म से दूर दूर तक
यही कहती आपकी कविता इंसानी रिश्ते को मजबूती प्रदान करती है
मां शब्द अपने में ही पूरा महाग्रंथ है इसकी विवेचना काव्य में कर पाना 
शायद इसी का नाम अंजू है
आपका बहुत आभार जो पटल पर ये कवितायें देकर मानव मन को सहेज रूप से टटोल पायीं आप
आपका लेखन यूं ही अनवरत चलता रहे 
 इन्ही शुभकामनाओं के साथ
अलका अग्रवाल
आगरा

दिनेश गौतम  बहुत दिनों के बाद मंच के पटल पर फिर एक चमत्कृत कर देनेवाली प्रतिभा के दर्शन हुए। अंजू शर्मा सचमुच बहुत संवेदनशील और  सजग कवयित्री हैं । पटल पर आज प्रस्तुत उनकी कविताएँ अपनी श्रेष्ठता का उद्घोष कर अपना लोहा  मनवा ही लेती हैं। 
अंजू की पहली कविता 'आत्मा' आज की मुक्तिकामी नारी की आकांक्षाओं का स्वर है।  बहुत आत्मविश्वास से भरी आज की नारी की सोच की प्रतिनिधि यह  कविता  पुरुषवादी वर्चस्व को चुनौती देती, ताल ठोंकती सी लगती है। कविता में साफ़ दिखती है परावलम्बन को ठोकर मारती स्त्री, जिसे किसी भी बाधा की परवाह नहीं क्योंकि अब  वह अपना स्वर्ग स्वयं रचने का साहस  रखती है। किसी भरी नदी के उद्दाम वेग की तरह सब कुछ बहा देने का सामर्थ्य उसके पास आ गया है। कवयित्री का आत्मविश्वास अपने शिखर पर दिखता है जब वह कहती है -
" लौटा सकती हूँ अब देवदूत को भी
मेरे स्वर्ग की रचना मैं ख़ुद करूँगी।"
और - 
"मैंने बाँध लिया है
चाँद और सूरज को
अपने बैंगनी स्कॉर्फ में
जो अब नियत नहीं करेंगे
 मेरी दिनचर्या ।"
इस स्वतंत्रचेता नारी को अब किसी प्रलोभन में बंधने का भी भय नहीं।  अब वह नियमों और अपेक्षाओं के दायरे में बांध दी गई पहले की औरत नहीं रही। 
दूसरी कविता -' फ़ोन की कांटेक्ट लिस्ट' नई कथन भंगिमा से युक्त एकदम ताज़े कहन की कविता है। लिस्ट के प्रत्येक फ़ोन नंबर के साथ जुड़ा होता है उस व्यक्ति का चेहरा, जिसकी एक छवि हमारी स्मृतियों में भी होती है ,खट्टी या मीठी, कटु या तिक्त। सचमुच नंबरों पर उँगलियों की छुअन मात्र से उस व्यक्ति से जुडी स्मृतियों की पूरी दुनिया ही खुल जाती है। कविता का नयापन बहुत प्रभावित करता है। किसी  आप्त वाक्य की तरह ये अनमोल और सत्य कथन भी इस कविता में हमारे हाथ लगता है -
" डिलीट करने से नंबर भर डिलीट होता है, स्मृतियाँ नहीं।"
'धर्म' शीर्षक कविता आज की फिरकापरस्ती और धर्म के नाम पर आदमी को आदमी से बाँटती संकीर्ण विचारधारा को एक उदात्तमना कवयित्री का करारा जवाब है । कविता का समूचा कथ्य हिन्दू,  मुसलमान या ईसाई के रूप में बँट चुके लोगों को यह बताने की कोशिश है कि प्रकृति के उपादान भी मानव को सिर्फ़ मानव के रूप में देखते हैं।
"न ज़मीन को मालूम था
न ही जानता था आसमान
कि किस धर्म की वजह से
हरिया जाती थी ज़मीन
और भगवा हो जाता था 
सुनहरा आसमान। "
'माँएँ कभी नहीं मरा करती' मन को छू लेने वाली कविता है। माँ पर लिखी गई कोई भी कविता मुझे रुला जाती है। दरअसल इसलिए कि हम सब की माँएँ एक जैसी होती हैं। बहुत खूबसूरत शिल्प है इस कविता का । कविता में कथ्य के नएपन के साथ ही बहुत नर्म संवेदनाएं हैं जो अंतर्मन को गहराई तक भिगो जाती हैं।
अंजू शर्मा की कविताएँ बहुत प्रभावी हैं। सटीक और भावानुरूप शब्दों से सजी इन कविताओं को पढ़ना सचमुच एक सुखद अनुभव है। कथ्य के दुहराव से अटी पड़ी आज की हिंदी कविताओं की उमस में अंजू शर्मा की कविताएँ किसी सुखद ठंडी फुहार की तरह महसूस होती हैं। मैं इन कविताओं से बहुत प्रभावित हुआ ,या यूँ कहूँ कि उनकी दमदार लेखनी ने मुझे प्रभावित होने पर विवश कर दिया। विश्व मैत्री मंच के कुछ एकदम अलग चमक बिखेरने वाले सितारों की पंक्ति का एक नायाब सितारा हैं अंजू शर्मा। उन्हें तथा उनसे परिचित कराने वाली संतोष जी को मेरी ढेरों बधाइयाँ।
                    - दिनेश गौतम

 Anju Sharma: क्या लिखूं और कैसे आभार व्यक्त करूँ यदि कोई पूछे तो यही कहूँगी कि लिखकर यदि कोशिश भी करूँगी तो नाकाम रहूँगी क्योंकि शब्द भावों को, आभार को, खुशी को और संतुष्टि को पूरा पूरा कहाँ बयां कर पाते हैं।  🙏🏼🙏🏼
संतोष जी, बहुत आभारी हूँ आपकी कि आपने कविताओं को यहां प्रस्तुति के योग्य समझा।  चयन का श्रेय भी आपको ही देना चाहूंगी और यहां आनेवाली हर प्रतिक्रिया में थोड़ा थोड़ा आपको देखती महसूस करती रही। हृदय से धन्यवाद 🙏🏼🙏🏼
मैं कुछ अरसे से कविताएँ कम लिख रही थी। ज्यादा समय और तवज्जो कहानियों को ही देती रही पर इस माध्यम की सबसे बड़ी सार्थकता यही है कि यह आपको सतत लिखने के लिए प्रेरित करता है।  आज वाली कविताओं में आत्मा को छोड़कर बाकी पिछली छमाही में लिखी कविताएँ हैं क्योंकि मैंने पिछले एक साल कविता और कहानी दोनों को समय दिया है।  कविताएँ आपकी कसौटी पर खरी उतरीं तो लगा लेखन सार्थक हो गया।  आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद, शुक्रिया, मेहरबानी 🙏🏼🙏🏼🍁🍁

91 99878 60479‬: अंजू शर्मा जी आज आपकी कवितायें पटल पर दिल खोलकर रख दिया है आपने, सचमुच वी.एम.एम.की आभारी हूँ, वह वहीं होता तो हम इतने अच्छे लेखन से महरूम रह जाते
आत्मा कविता ने स्त्री की शक्ति को साबित कर दिया है कि अब उसे अपना स्वर्ग स्थापित करने के लिये किसी देवदूत की आवश्यकता नहीं, समय को बस में कर लिया है उसने, नियमों और अपेक्षाओं के आवरणों को भी दूर कर दिया है,
फोन की कांटेक्ट लिस्ट भी रिश्तों और स्मृतियों का अंबार होती हैं, इस विषय पर भी कविता लिखी जा सकती है ,यह तो हमने सोचा भी न था,
धर्म का तंग लिबास सिर्फ इंसान ही पहनते हैं,सृष्टि के किसी भी जीव को इसकी जरूरत नहीं,
माँ सचमुच कभी मरा नहीं करती,संतान के हर दुख में किसी न किसी रुप में खड़ी रहती हैं, कालजयी हो जाती हैं, मृत्यु से भी भिड़ जाती हैं
अंजू जी बड़ी संजीदगी से आपने अंतर्मन की पीड़ा शब्दों में ढाली है,
बहुत शुभकामनायें और बधाई
रत्ना जी कल आपने महिला लेखनी पर बहुत अच्छा लिखा,धन्यवाद
संतोष जी आभार
 ‪+91 84005 45999‬: फोन की कॉन्टेक्ट लिस्ट
नम्बर हैं
जो इंसान का पता देते है
उनके जैसा पर्भाव पड़ता है
और जिसमे एक नम्बर स्थायी है
वो जो भी नम्बर हो
उसकी पहचान है माँ
चलो कितना सुंदर सन्देश है
माँ का
उसके होने का
उसके प्रेम का हिदायतों का।
धन्यबाद अंजू जी इस एहसास के लिए और उसके स्थान्तरित करने की कोशिश के लिए।
सुरेन्द्र कुमार सिंह चांस
 Madhu Saksena: अंजू जी की कविताएँ विचारों के नए प्रतिमान गढ़ती मजबूती से अपनी बात रखती है की पाठक सहमत हो जाता है ।
स्त्री विमर्श की रोने धोने और पितृ सत्ता के दोषों से अटी पढ़ी कविताओं के बीच अपनी स्वतन्त्रता और स्वाभिमान की ये कविताएँ नई खुशबु बिखेर रही हैं ।अपने आपको मुक्त घोषित कर के ही मुक्त हुआ जा सकता है ।
फोन की कांटेक्ट लिस्ट कविता नम्बर से भावों को जोड़ने की कला है ।एक एज बात अपने वज़न के साथ जेहन में उतरती है और हम अपने स्मृति लोक में जा पहुंचते हैं ।बहुत खूब ।
धर्म निरपेक्षता पर कई कविताएँ लिखी गई है ।विषय पुराना होने पर भी नए तरीके से कही गई ये कविता मर्म पर चोट भी करती है और सहलाती भी है ।बढ़िया ।
माँ कभी नही मरती ..ज़िंदा रहती है मोहब्बत की तरह ।सबका पहला प्यार माँ ही तो होती है ....बात बात में रात बिरात  में ..कभी भी ,कहीं भी माँ बेरोक टोक आती हैं ।माँ और कविता अलग नही ।
अंजू शर्मा की कविताएँ अपने कोमल क़दमो को कठोरता और दृढ़ता आगे बढ़ती है और  से अपने होने का अहसास करती हैं ।

 91 84005 45999‬: माएं कभी नही मरती
अपना भी यह एक एहसास है और यकीन भी दुनिया।की सबसे सुंदर और शक्तिशाली स्त्री हमारे अंदर है।
माँ ही हैँ और कितना एक्टिवेट करती है हमे हमारे लिए एक इंसान की तरह।वरना ये दुनिया और इसको चलाने वाली और हांकने वाली शक्तिया खिलौने सी है उनके लिए।
आप ने माँ की याद दिला दी उसी रूप में।जिस रूप में है वो
आभार अंजू जी
Anju Sharma: माँ वाली कविता के विषय में कुछ कहना चाहूंगी। मेरी माँ नहीं रहीं जब मैं करीब 3 वर्ष की थी। पर माँ किसी न किसी रूप में अप्रत्यक्षतः जीवन में विद्यमान रहीं। उनकी मौजूदगी सदा बनी रही।  फिर जब मैं माँ बनी तो अहसास हुआ कि माँ होना क्या होता है।  ये कविता उसी अहसास की बानगी भर है।  यह अप्रकाशित कविता है।  शायद पहली बार vmm पर ही साझा की गई है। कोशिश आप सभी को पसंद आई।  शुक्रिया 🙏🏼🙏🏼😊

 ‪+91 76919 85478‬: गजब की भावाभिव्यक्ति है। बहुत धन्यवाद आदरणीया अंजू जी कि आपने हमें इस अप्रतिम रचना के पाठन का अवसर दिया । क्या तो बाँध लेती है यह कविता कि प्रारंभ से अंत तक एक साँस में पढ़ते जाते हैं । बहुत -बहुत बधाई और आपकी लेखनी ऐसे ही मनके रचती रहे , असीम शुभकामनाएँ 🙏😊🌹🌹🌹💕
91 94256 06033‬: स्त्री के मन की उड़ान और बंधन को समूल नष्ट करने की दृढ़ता का संदे
श देती कविता प्रभावी हैं 
फोन नम्बर पर केंद्रित अलग व्याख्या और सम्बन्धों की पड़ताल करती सुन्दर कविता 
प्रकृति की समदर्शी सोच और मानव द्वारा दीवार खड़ी करने की व्रत्ति पर करारा व्यंग्य 
माँ के विरोधाभासी जीवन की पीडा दर्शाती किंतु बच्चो को प्यार लुटाती माँ का मार्मिक चित्र 
शिल्प की कसावट हैं कुछ आंतरिक लय की कमी खटकती हैं उत्तम रचनायें
 Santosh Shreewastav: आज मंच पर अंजू शर्मा की कविताएं आप सबने पढ़ी और उन्हें बेहद पसंद भी किया। कविताओं की सराहना की और उस पर खुलकर लिखा भी ।मुझे सबसे ज्यादा पसंद आत्मा कविता आई।यह स्त्री की मुक्ति की कामना की कविता है।सभ्यता के विकास के साथ ही स्त्री की परतंत्रता बढ़ती गई। सामंती और पूंजीवादी व्यवस्था में स्त्री सिर्फ देह बनकर रह गयी है। अब स्त्रियां इस चाल को समझ रही है। मुक्ति का संधर्ष जारी है। स्त्रियां अपना स्वर्ग खुद गढ़ना चाहती है।  
अंजू जी ने जब 2014 में मुझे अपना कविता संग्रह भेजा था और फोन पर मुझसे बातचीत की थी तभी मुझे उनमें संभावनाएं नजर आई थी। इसमें कोई दो राय नहीं कि आज वे विशिष्ट कवियों की पंक्ति में है। मैं अंजू जी के उज्जवल भविष्य की कामना करती हूं।
 आज आपके साथ दिन भर रत्ना पांडे अपने चुलबुले संचालन के साथ रही।यही उनके संचालन की खासियत है कि समा बांध देती है। बहुत बहुत आभार रत्ना जी ।
 ‪+91 93295 09050‬:*** माएं कभी नही मरा करतीं ***
अंजू मेरे आंसू नही रुक रहे ।
** धर्म ** कविता एक बेहतर कविता है जिसे पढ़ते हुए नरेश सक्सेना याद आये ।
** फोन के कॉन्टेक्ट लिस्ट **
अंजू मैंने fb पर भी कहा था कि इस बिषय पर भी क्या कविता लिखी जा सकती है । अनूठा विषय 👌
91 93004 14813‬: आद०अंजू जी आज पटल पर आपकी रचनाये पढ़ने का मौका मिला आपकी सभी रचनाये एक से बढ़कर एक माये कभी नही मरती मर्म स्पर्शी कविता मुझे अच्छी लगी सभी कविता सहज वसुन्दर शैली में लिखी गई मानव को चिन्तन के लिये प्रेरित करती आपको हार्दिक बधाई वाशु हकामनाये
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